राशन कार्ड की हकीकत, जो पूरे देश से छुपा कर रखी गयी

author-image
आमिर अब्बास
New Update

इंसान के लिए राशन उसके लिए ईंधन के तरह होती है. 1945 से चला रहा PDS सिस्टम इसीलिए लाया गया था ताकि ग़रीब परिवारों को कम से कम पैसे में राशन मिल सके. लेकिन आज़ादी के 78 वर्षों बाद भी लोगों को राशन लेने के लिए समस्या से जूझना पड़ रहा है.

 

सरिता देवी जो गया जिले के फतेहपुर गांव में रहती हैं. उनके परिवार में सिर्फ़ उनके पति हैं जिनकी भी तबियत ख़राब रहती है. ऐसे में सरिता देवी सरकारी राशन पर पूरी तरह निर्भर हैं.

 

हमें राशन नहीं मिलता है. राशन के नाम पर बस ठगा जाता है. राशन कार्ड बनाने दिए तो आज तक बन कर नहीं आया. मजबूरन मुझे किसी और के घर में बर्तन मांज कर पैसा कमाना पड़ता है और पति के दवाओं का ख़र्चा भी उठाना पड़ता है. अगर आज मेरे पास राशन कार्ड होता तो उसका लाभ में उठा सकती और पति का देखभाल कर सकती.”

 

गरीबी का अभिशाप: जब व्यवस्था की लापरवाही ने छीन लिया एक जीवन

 

गया जिले के कोरमथु गांव में जब 40 वर्षीय राजेश विश्वकर्मा ने अपनी जीवन लीला समाप्त की, तो पूरा गांव शोक में डूब गया. दो मासूम बच्चों के सिर से पिता का साया उठ गया, पत्नी विधवा हो गई, और एक परिवार पूरी तरह से टूट गया. लेकिन इस त्रासदी का असली दोषी कौन है? क्या यह सिर्फ़ गरीबी थी, या फिर सरकारी तंत्र की उदासीनता भी उतनी ही जिम्मेदार थी

 

राजेश विश्वकर्मा की जिंदगी संघर्षों से भरी थी. उनके पास पक्की छत थी, शौचालय, और ही घर में पीने का साफ़ पानी और ही खाना . सरकारी नल-जल योजना पंचायत में तो चालू थी, लेकिन उनके घर तक पानी नहीं पहुंचता था. उनकी झोपड़ी हर तरफ से टूटी-फूटी थी, जो गर्मी में राहत देती थी, ठंड से बचा पाती थी. ऐसे बदहाल हालात में भी वह दिन-रात मेहनत कर अपने परिवार का पेट भर रहे थे. लेकिन जब आर्थिक तंगी असहनीय हो गई, तो उन्होंने अपने जीवन को समाप्त करने का निर्णय ले लिया

 

गरीबी ने छीन लिया सहारा

 

पति की मौत के बाद बबिता देवी पूरी तरह से टूट चुकी हैं. उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे. वह बार-बार यही दोहरा रही हैं "गरीबी ने मेरे पति की जान ले ली." उनके पास कोई सहारा नहीं है. दो छोटे बच्चे हैं, जिनकी परवरिश अब अकेले उन्हें करनी है. उनके अनुसार, आज तक उन्होंने किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं लिया, क्योंकि उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी

 

क्या सरकारी योजनाएं सिर्फ़ कागजों तक सीमित हैं?

 

यह घटना उन सरकारी योजनाओं पर सवाल खड़ा करती है, जिनका उद्देश्य गरीबों को सहायता प्रदान करना है. भारत सरकार द्वारा राशन कार्ड जारी किया जाता है, जिससे गरीब परिवारों को कम दरों पर अनाज मिल सके. लेकिन लाखों लोग आज भी इस योजना से वंचित हैं. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत बिहार में लगभग 1.97 करोड़ परिवारों को राशन कार्ड उपलब्ध कराए गए हैं, जिनमें से 22.88 लाख परिवार अन्त्योदय अन्न योजना (AAY) के तहत आते हैं, और 1.74 करोड़ परिवार प्राथमिकता प्राप्त गृहस्थी (PHH) श्रेणी में आते हैं

 

लेकिन कोरमथु गांव के इस परिवार तक यह सुविधा क्यों नहीं पहुंची

 

2021 में भारत का ग्लोबल हंगर इंडेक्स में स्थान 101 था, जो 2022 में गिरकर 107 हो गया, और 2024 में यह 105 रहा. यह आंकड़े बताते हैं कि गरीबी और भुखमरी की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है. भारत में लाखों परिवार ऐसे हैं, जो दो वक्त की रोटी तक के लिए संघर्ष कर रहे हैं

 

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, गया जिले में कुल जनसंख्या 43,91,418 है, जिसमें 6,54,241 ग्रामीण परिवार और 64,418 शहरी परिवार राशन कार्डधारी हैं. फिर भी, कोरमथु जैसे गांवों में लोग भूखे मरने को मजबूर हैं

 

राजेश विश्वकर्मा जैसे और कई परिवार हैं जिन्हें राशन कार्ड का फायदा नहीं मिलता है. इस विषय पर जब हमने फतेहपुर गांव के लोगों से बात की तो उन्होंने बताया कि राशन कार्ड बना हुआ है लेकिन हमें राशन नहीं मिलता है. हम राशन लाने जाते हैं तो अक्सर दुकान बंद रहता है. हम गरीब लोग हैं, इधर काम धंधा भी तो नहीं है खाने के लिए सरकारी राशन पर निर्भर हैं. ऐसे में लगता है की हम लोग भूखे मर जाएंगे.”

 

राजेश विश्वकर्मा की मौत का जिम्मेदार कौन?

 

सरकार की नाकामी इस घटना से साफ़ झलकती है. अगर सरकारी योजनाओं का लाभ सही तरीके से मिलता, तो शायद राजेश आज जिंदा होते. उनके घर में राशन होता, उनके बच्चों को भूख से लड़ना नहीं पड़ता, और उनकी पत्नी बेसहारा नहीं होती

 

यह घटना सिर्फ़ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि हजारों-लाखों गरीब परिवारों की सच्चाई को उजागर करती है. गरीबों की हालत सुधारने के लिए सरकार योजनाएं तो बनाती है, लेकिन उन तक यह सुविधाएं सही से नहीं पहुंच पातीं. बंटी मांझी बताते हैं कि मेरा राशन कार्ड बना हुआ है. पहले तो राशन मिलता था लेकिन पिछले 1 साल से राशन मिलना बंद हो गया है. गांव के अधिकतर लोग इसी पर निर्भर रहते हैं, ऐसे में राशन मिलने से बहुत समस्या हो रही है. देखिए अभी चुनाव रहा है सारे नेता आयेंगे और बड़े बड़े वादे करेंगे लेकिन राशन जैसा बुनियादी चीज़ भी हमें नहीं मिलता है.”

 

अंत में एक सवाल

 

राजेश विश्वकर्मा चले गए, लेकिन उनकी मौत एक कड़वा सच सामने रख गई. गरीबी अब भी लोगों की जान ले रही है. उनकी पत्नी और बच्चों का क्या भविष्य होगा? क्या वे भी इसी गरीबी में दम तोड़ देंगे, या फिर उन्हें कोई सहारा मिलेगा

सरकार, प्रशासन, और समाज सबको मिलकर यह सुनिश्चित करना होगा कि राजेश जैसे और लोगों को अपनी जान गंवानी पड़े. वरना हम हर दिन ऐसी दर्दनाक कहानियां पढ़ते रहेंगे, और धीरे-धीरे हमारी संवेदनाएं मरती जाएंगी.