पीने का पानी या ज़हर? बिहार के जल स्रोतों की भयावह सच्चाई

पर्यावरण में, आर्सेनिक ऑक्सीजन, क्लोरीन और सल्फर के साथ मिलकर अकार्बनिक आर्सेनिक यौगिक बनाता है. अकार्बनिक आर्सेनिक यौगिकों का उपयोग मुख्य रूप से लकड़ी को संरक्षित करने के लिए किया जाता है।

author-image
मधुयंका राज
एडिट
New Update
टंकी होने के बाद भी नल जल योजना फेल

यह कहावत सर्वविदित है—"जल है तो जीवन है." वास्तव में, जल के बिना न तो मनुष्य जीवित रह सकता है, न पशु, न वृक्ष, न पौधे, न कीट-पतंगे, और न ही जलीय जीव. जल की महत्ता को समझाते हुए रहीम ने अपने प्रसिद्ध दोहे में कहा है—
"रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून.
पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥"

हमारी पृथ्वी का लगभग 70% भाग जल से आच्छादित है, इसके बावजूद भी पीने योग्य जल की भारी कमी है. इसका प्रमुख कारण यह है कि उपलब्ध जल का 97% भाग महासागरों में है, जो खारा होने के कारण उपयोग के योग्य नहीं है. शेष मात्र 3% मीठा जल है, जिसमें से भी 2.4% ग्लेशियरों और ध्रुवीय बर्फ के रूप में जमा हुआ है. इस प्रकार, हमारे दैनिक उपयोग और पीने के लिए केवल 0.6% जल ही उपलब्ध है, जो नदियों, झीलों और तालाबों में स्थित है.
विडंबना यह है कि इतने सीमित जल संसाधन के बावजूद हम इसे प्रदूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते. उद्योगों से निकलने वाला रासायनिक कचरा, घरेलू गंदगी, कपड़े धोने और अन्य गतिविधियों के कारण इस 0.6% शुद्ध जल का भी बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है. रसायनों और प्रदूषण की वजह से जल स्रोतों की गुणवत्ता लगातार गिर रही है, जिससे पीने योग्य पानी का संकट और गहराता जा रहा है. हमें इस अमूल्य संसाधन को बचाने और संरक्षित करने की दिशा में गंभीर प्रयास करने चाहिए, क्योंकि जल ही जीवन का आधार है.

पानी में रसायन 

हालांकि पानी मूल रूप से  ऑक्सीजन और हाइड्रोजन से बना है. परंतु इसके अलावा इसमें कई अकार्बनिक रसायन, जैसे एट्राजीन, ग्लाइफोसेट, ट्राइक्लोरोइथिलीन, टेट्राक्लोरोइथिलीन, आर्सेनिक, कैडमियम, पारा, रेडियम और यूरेनियम प्राकृतिक रूप से भी पाए जाते है. और इनके मिश्रण से ये पानी मनुष्यों के उपयोग के लेयक नहीं रहता है. 

क्या है मामला?

हाल ही में विधानसभा में पेश बिहार आर्थिक सर्वेक्षण (2024-25) की नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश के 4709 ग्रामीण वार्डों में आर्सेनिक, 3789 वार्डों में फ्लोराइड और 21,709 वार्डों में आयरन अधिक प्रभावित है. PHED विभाग के रिपोर्ट के अनुसार, बिहार के लगभग 33 जिलों में आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन पानी में मौजूद पाए गये है. पानी में आर्सेनिक की मात्रा जिन जिलों में ज्यादा है उनके नाम है, सारण, वैशाली, समस्तीपुर,दरभंगा, बक्सर, भोजपुर, पटना, बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, मुंगेर, भागलपुर और कटिहार. फ्लोराइड की ज्यादा मात्रा से फैलाव वाले जिले है- कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, गया, नालंदा, शेखपुरा, जमुई, बांका, मुंगेर, भागलपुर, नवादा शामिल है. तो वही आयरन प्रभावित क्षेत्र सुपौल, अररिया, किशनगंज, सहरसा, पूर्णिया, कटिहार, मधेपुरा, बेगूसराय और खगड़िया है.

लेयर कम होने की वजह से बढ़ रही है परेशानी 

इसी सन्दर्भ में डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने बेगूसराय के करण कुमार से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया  "लोग आर्सेनिक को आयरन कहते है और पानी में आयरन की मात्रा ज्यादा होने के कारण खाने को पचने में समय लगता है और जिसके वजह से लोगो की पाचन शक्ति बिगड़ती है और लोगो को गैस की समस्या सबसे ज्यादा होती है. करण आगे कहते है की ग्रामीण क्षेत्र में ऐसे बहुत सारे गांव है जहाँ ना तो कभी कोई अधिकारी आते है और ना ही लोगो को पानी की व्यवस्था सुचारू रूप से मिली."

करण ने आगे हमसे बात करते हुआ कहा की "महादलित समाज में कई लोगो के पास पीने के लिए साफ़ पानी नहीं होता और वो लोग दिहाड़ी मजदूर होते है जो हर रोज 20 रुपए का पानी खरीदने में असमर्थ है और उन्हें चापाकल का पानी पीना पड़ता है जिसमें साफ़ पानी नहीं आता है, क्योंकि उसका लेयर नीचे तक नहीं हो पाता. उन्होंने कहा की अगर नल सही से नहीं लगाया गया है तो निश्चित रूप से आर्सेनिक की मात्रा उसमें रहेगी. चापाकल पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिनके पास उतना पैसा नहीं होता है तो वो ज्यादा से ज्यादा 30 फिट-40 फिट ही गढ़ा करवाते है.
 

पूरे बिहार में एक जैसा हाल 

इसी विषय पर हमने कटिहार के एक जाने माने  सामाजिक कार्यकर्ता रीना देवी से बातचीत की. बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि "बाढ़ रहित इलाके के पानी में ज्यादा पीलापन होता है जिसके कारण लोग बीमार होते है. उन्होंने आगे कहा कि जहाँ लोग एक-एक दाने को तरसते है वहां पानी खरीदकर पीना असंभव जैसी बात है. रीना बताती है कि गंदा  पानी पीने के वजह से पीलिया, डायरिया, कालाजार बुखार होने की शिकायतें आती है और इसका कोई सटीक इलाज भी लोगो को नहीं मिल पाता. रीना ने कहा कि जब बाढ़ आती है तो वो हर गंदगी को साथ लेकर आती है, और नल, चापाकल, कुआँ सब उसमें फंसते हुए जा रहे है". 

नल जल योजना से लाभ नहीं 
 

करण ने बेगूसराय में पानी की समस्या पर हमसे बात करते हुए कहा की   "नल जल योजना बिहार के हॉटस्पॉट इलाकों में नलों से पानी आ रहा है परन्तु कुछ ऐसे भी जगह है जहाँ पानी आ रहा है या नहीं इसका भी सर्वेक्षण नहीं किया जाता है. जिसका मुख्य कारण है कि पदाधिकारी स्थानीय लोग के प्रति उदासीन होती है और जिसके कारण लोगो को गंदा पानी पीना पड़ रहा है और लोग बीमार हो रहे. करण ने बताया कि उन्होंने कई बार बड़े अधिकारियों से बातचीत की और पत्र भी लिखे पर इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला." 

क्या कहते है डॉक्टर

इस मामले पर अधिक जानकारी के लिये हमने पटना के नामी फिजिशियन डॉ. शकील से बातचीत की. उन्होंने बताया कि “पानी में आर्सेनिक और फ्लोराइड की उपस्थिति कोई नई समस्या नहीं है; ये तत्व पहले से ही जल में मौजूद थे. परंतु, अब मीडिया इस मुद्दे पर ध्यान दे रही है. डॉ. शकील ने स्पष्ट किया कि ये तत्व प्राकृतिक रूप से मिट्टी में पाए जाते हैं और वहीं से पानी में घुलकर लोगों तक पहुँचते हैं परन्तु अगर इसकी मात्रा पानी में ज्यादा हुई तो इससे त्वचा, फेफड़े, गुर्दे में कैंसर जैसी जोखिम स्थिति मनुष्य के शरीर में उत्पन्न हो सकती है. और  पानी में फ्लोरिड का ज्यादा मात्रा से  हड्डियाँ कमजोर होती है.  

पानी के स्रोत की जांच ज़रूर करें 

डॉ. शकील न हिदायत के तौर पर कहा कि जहां तक संभव हो  हर एक व्यक्ति को अपने वाटर सोर्स की जांच करवानी चाहिए, चाहे वो पाइप से हो, चापाकल से हो, कुआं से हो या तालाब से इससे आप भविष्य में खराब पानी से उत्पान होने वाली शरीरिक समस्याओं से काफी हद तक बच सकते है.

Nal Jal Yogana NAL JAL YOJANA