बिहार के प्यासे गांव: नल-जल योजना की हकीकत और सूखते सपने

बिहार की ‘हर घर नल का जल’ योजना की हकीकत कड़वी है। सहरसा के पासी टोला जैसे गांवों में नल तो लगे, लेकिन पानी नहीं मिल रहा। लोग गंदा पानी पीने को मजबूर हैं। आर्सेनिकयुक्त भूजल से बीमारियां बढ़ रहीं हैं। सरकारी दावे हवा में हैं, जबकि गांव आज भी प्यासे हैं।

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नाजिश महताब
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बिहार सरकार द्वारा 2015 में शुरू की गई ‘सात निश्चय’ योजना के तहत ‘हर घर नल का जल’ एक महत्वाकांक्षी पहल थी, जिसका उद्देश्य था कि हर घर तक स्वच्छ और सुरक्षित पानी पहुंचे. 2020 में जब इस योजना का दूसरा चरण लॉन्च हुआ, तब उम्मीदें और भी बढ़ गईं. सरकार ने इस योजना के लिए करोड़ों रुपये का बजट जारी किया—2022-23 में 1,110 करोड़ और 2024-25 में 1,295 करोड़ रुपये निर्धारित किए गए. सरकार के दावे थे कि 2020 तक 60% कार्य पूरा हो चुका था, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती है.

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सहरसा के प्यासे गांव

सहरसा के पासी टोला में रहने वाले आकाश ने बताया,नल-जल योजना के तहत नल तो लगा दिया गया था, लेकिन कुछ ही समय बाद पानी आना बंद हो गया. हालात यह हैं कि यहां चापाकल भी नहीं है, और हमें दूसरे गांव जाकर पानी लाना पड़ता है. हमारे यहां बुनियादी सुविधाएं भी नहीं हैं. गंदा पानी पीना पड़ता है, जिससे बीमारियां होती रहती हैं. हम चाहते हैं कि सरकार हमारी मांग सुने और पानी की व्यवस्था करे.

भूजल में जहर, सपनों में दरार

बिहार के ग्रामीण और अर्ध-शहरी इलाकों में 90% आबादी ट्यूबवेल के जरिए भूजल पर निर्भर है. लेकिन चिंता की बात यह है कि इस पानी में आर्सेनिक की उच्च मात्रा पाई जाती है. पहली बार 2002 में बिहार के भूजल में आर्सेनिक की पहचान हुई थी, और तब से यह समस्या बढ़ती ही जा रही है. 2003 में केवल दो जिले इससे प्रभावित थे, लेकिन 2011 तक यह संख्या बढ़कर 18 हो गई. गंगा के दक्षिणी तट पर आर्सेनिक का प्रसार उत्तरी तट की तुलना में अधिक है, और लगभग 40% आबादी इस ज़हरीले पानी के संपर्क में आ रही है.

इसका असर सीधे स्वास्थ्य पर पड़ रहा है. आंकड़ों के अनुसार, 2020 में दुनिया भर में कैंसर के लगभग 19.2 मिलियन मामले सामने आए, जिसमें गॉल ब्लैडर कैंसर के 1,15,949 केस थे. इन मामलों में से 10% भारत से थे, और उनमें भी सबसे अधिक केस बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, महाराष्ट्र और दिल्ली में पाए गए. यह समस्या दर्शाती है कि हमारे पानी की गुणवत्ता कितनी खराब हो चुकी है.

प्यासे लोग, सूखते सपने

सहरसा जिले के अतिया पंचायत में कोशिला गांव के पासी टोला में 50 घरों में करीब 300 लोग रहते हैं. ये लोग पिछले पांच महीनों से शुद्ध पानी के लिए जूझ रहे हैं. मजबूरी में 350 से 400 मीटर दूर फल्गु नदी से पानी लाना पड़ रहा है. पहले इनके घरों तक नल-जल योजना के तहत पानी आता था, लेकिन बिजली बिल नहीं चुकाने के कारण आपूर्ति रोक दी गई.

गर्मी के मौसम में यह संकट और गंभीर हो जाएगा, क्योंकि तब नदी भी सूख जाएगी. इस टोले में एक भी सरकारी चापाकल नहीं है. टोले के बीचों-बीच एक चापाकल लगा हुआ है, जिसे एक विदेशी संस्था ने लगाया था. लेकिन कब वह खराब हो जाए, इसकी कोई गारंटी नहीं. वार्ड सदस्य इस समस्या से अवगत हैं, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा.

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सिर्फ़ पासी टोला ही नहीं, बिहार के कई अन्य गांव—मल्लडीहा, छातापुर और बेतिया—भी सरकार के दावों को कटघरे में खड़ा करते हैं. इन इलाकों में पानी की किल्लत बनी हुई है. नल-जल योजना के तहत पाइपलाइनें तो बिछाई गईं, लेकिन कहीं पानी की आपूर्ति नहीं हो रही, तो कहीं बिजली बिल न चुकाने के कारण मोटर बंद पड़ी हैं.

गंदगी, बीमारी और प्रशासन की अनदेखी

पासी टोला के लोगों को न केवल पानी की समस्या है, बल्कि सफाई व्यवस्था भी बेहद दयनीय स्थिति में है. चारों तरफ गंदगी का अंबार लगा हुआ है. सफाई अभियान केवल सरकारी कागज़ों तक सीमित है. मुखिया की उदासीनता इतनी अधिक है कि लोग अपनी समस्या लेकर उनके पास जाने से भी डरते हैं.

पासी टोला के स्थानीय निवासी बताते हैं,हमें पीने के लिए फल्गु नदी से पानी लाना पड़ता है. नल-जल योजना के तहत पाइप तो लग गए हैं, लेकिन पिछले कई महीनों से पानी नहीं मिला. हमें बहुत समस्याओं से गुज़रना पड़ता है. यहां गंदगी भी बहुत है, समझ नहीं आता कि सरकार क्या कर रही है.

गांव के लोग बताते हैं कि गंदगी और जलभराव के कारण यहां रहना मुश्किल हो गया है. रिश्तेदार भी यहां आने से कतराने लगे हैं. बरसात के दिनों में नालियों का पानी गलियों में बहने लगता है और घरों में घुस जाता है. इससे बीमारियों का खतरा और बढ़ जाता है.

शिक्षा की रोशनी से वंचित पीढ़ी

गांव के किनारे स्थित मध्य विद्यालय कोशिला है, लेकिन शिक्षा का स्तर मात्र 35% ही है. टोले के अधिकतर बुजुर्ग और अभिभावक अनपढ़ हैं, जिस वजह से वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते. कुछ बच्चों को पढ़ाने के लिए एक विदेशी संस्था ने खुले में विद्यालय संचालित किया है, लेकिन यह समाधान स्थायी नहीं है.

क्या होगा इन गरीबों का भविष्य?

पासी टोला और ऐसे कई गांव बिहार में विकास की तस्वीर के उलट एक कड़वी हकीकत बयां कर रहे हैं. जहां सरकार नल-जल योजना की सफलता के दावे कर रही है, वहीं ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कह रही है. पाइपलाइनें बिछाई गईं, लेकिन पानी नहीं आ रहा. टोल-फ्री नंबर दिए गए, लेकिन शिकायतों पर कार्रवाई नहीं हो रही.

राकेश (बदला हुआ नाम), जो पासी टोला में रहते हैं, ने बताया, नल-जल योजना के तहत पाइप तो लग गए हैं और सरकारी आंकड़ों में यही दिखाया जाता है, लेकिन पानी तो आता ही नहीं है. सरकारी आंकड़े बस नल लगाने तक ही सीमित हैं, पानी आने की कोई गारंटी नहीं.

2022 में बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण मंत्री रामप्रीत पासवान विभागीय समीक्षा के लिए दो दिवसीय दौरे पर सुपौल पहुंचे थे. इस दौरान उन्होंने बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी ‘सात निश्चय’ योजना के तहत सदर प्रखंड के हरदी पूरब पंचायत के कई वार्डों में योजना का निरीक्षण किया और खुद नल-जल योजना का पानी भी ग्रहण किया. उन्होंने कहा कि लोगों को पानी की समस्या के लिए टोल-फ्री नंबर 18001231121 जारी किया गया है. यदि कोई समस्या हो, तो लोग इस पर शिकायत कर सकते हैं, और 12 घंटे के भीतर समाधान किया जाएगा.

जब हमने इस टोल-फ्री नंबर पर कॉल किया, तो यह नंबर काम नहीं कर रहा था. वहीं, हमने वार्ड सदस्य से भी बात करने की कोशिश की, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया. हम लगातार कोशिश करेंगे कि इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो सके.

 

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