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28 मार्च 2025 को ख़बर आई की दानापुर के अकिलपुर की रहने वाली रीना कुमारी की शादी महज एक साल पहले हुई थी. शादी के बाद से ही उसके ससुराल वाले दहेज को लेकर उसे प्रताड़ित करने लगे. कई बार दोनों परिवारों के बीच समझौता हुआ, लेकिन आखिरकार रीना की लाश उसके मायके वालों को मिली. पुलिस जांच में पता चला कि रीना को गला दबाकर मार दिया गया था.
दहेज: एक सामाजिक कलंक
दहेज प्रथा के खिलाफ़ कानून बने, जागरूकता अभियान चले, लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है. बिहार के जमुई जिले में हर महीने औसतन दो महिलाओं की हत्या दहेज के लिए कर दी जाती है. 2023 में जनवरी से अगस्त के बीच 16 विवाहिताओं की जान ले ली गई. साल 2022 में ऐसे आठ मामले सामने आए थे, यानी एक साल में ये आंकड़े दोगुने हो गए.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, भारत में दहेज हत्या के मामलों में बिहार दूसरे और उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. यह एक भयावह सच्चाई है कि हर घंटे किसी न किसी महिला को दहेज के लिए मार दिया जाता है. 2022 में बिहार में 1057 महिलाओं की दहेज के कारण हत्या हुई.
सीमा ( बदला हुआ नाम) बताती हैं कि “ पिछले 10 साल पहले मेरे पति मुझे काफ़ी मारा करते थे और हमेशा मुझे घर से पैसे मंगवाने को कहते थे और ताना मारते थे. हद तो तब हुई जब उन्होंने मुझे ज़िंदा जला देने की कोशिश की पर किसी तरह मैं बच कर अपने घर आ गई और मैंने कोर्ट में केस कर दिया.”
एक अभिशाप जो अब भी जिंदा है
समय के साथ समाज आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है. विज्ञान तरक्की कर रहा है, महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, लेकिन एक कुप्रथा आज भी हमारी सोच पर भारी है—दहेज. यह सिर्फ़ एक प्रथा नहीं, बल्कि महिलाओं पर होने वाले अत्याचार का एक ज़हरीला रूप है, जो आज भी हमारी मानसिकता को जकड़े हुए है.
कानून और सजा की हकीकत
दहेज निषेध अधिनियम 1961 के तहत इस प्रथा को रोकने के लिए सख्त कानून बनाए गए. लेकिन क्या वे प्रभावी हैं? बिहार स्टेट क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2018 में दहेज हत्या मामलों में सजा की दर 46.5% थी, जो 2019 में घटकर 31.2% रह गई. हालांकि, 2020 में यह 63% और 2021 में 71.5% तक पहुंची. लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काफी है?
दहेज हत्या के भयावह आंकड़े
2017 से 2021 के बीच भारत में हर दिन औसतन 20 महिलाओं को दहेज के कारण अपनी जान गंवानी पड़ी. उत्तर प्रदेश में यह संख्या सबसे अधिक थी, जहां प्रतिदिन छह महिलाएं दहेज की भेंट चढ़ जाती थीं. इस दौरान देशभर में 35,493 महिलाओं की मौत दहेज के कारण हुई.
सिर्फ़ 2022 में ही देशभर में 6,450 दहेज हत्याएं दर्ज की गईं. बिहार में इस साल 1,057 और मध्य प्रदेश में 518 महिलाओं को दहेज के लिए मौत के घाट उतार दिया गया. यह आंकड़े बताते हैं कि दहेज प्रथा न केवल जिंदा है, बल्कि लगातार बढ़ती जा रही है.
सान्या से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “ मेरे घर पर मेरे रिश्ते को लेकर बातचीत चल रही है. इसी दौरान एक ऐसे लड़के का रिश्ता आया जिसने मेरे घर वालों से डिमांड की कि मुझे कार चाहिए और 10 लाख रुपए नकद. जब मुझे ये बात पता चली मैंने तुरंत ही इस रिश्ते से मना कर दिया. हालांकि दहेज को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन आज भी दहेज लेने वाले और देने वालों में कोई कमी नहीं आई है. दहेज का नाम बदल कर गिफ्ट कर दिया गया है.”
कुछ हृदयविदारक घटनाएं
केस1. मौत का सौदा: जब एक महिला का दम घुट गया
04 जनवरी को नालंदा से ख़बर आई जिसमें में एक नवविवाहिता की केवल छह महीने में हत्या कर दी गई क्योंकि वह दहेज में सोने की चेन लेकर नहीं आई थी. संध्या नाम की इस महिला को उसके ससुरालवालों ने पहले मारा-पीटा और फिर गला घोंट दिया.
मृतका के भाई ने बताया की “करीब 6 महीने पहले उसकी बहन संध्या की शादी दीपनगर थाना क्षेत्र के मेघी नगवां गांव निवासी प्रदीप कुमार से हुई थी. शादी के समय उन्होंने अपनी सामर्थय के अनुसार दहेज दिया था. इसके बावजूद बहन के ससुरालवाले उसे सोने की चेन दहेज में न लाने की वजह से परेशान करते थे.
इसी कड़ी में शुक्रवार रात उसकी बहन ने फोन किया और रोते हुए कहा कि मेरे साथ सभी लोग मारपीट कर रहे हैं. जल्दी आइए नहीं तो मार डालेंगे फिर फोन कट गया. दोबारा फोन करने पर बहन कॉल रिसीव नहीं की तो पूरा परिवार बहन के घर पहुंचा. वहां बहन का शव बेड पर पड़ा हुआ था और घर पर कोई मौजूद नहीं था.”
केस 02. 10 लाख कैश और बुलेट बाइक की मांग
14 मार्च 2025 को बेतिया के बैरिया थाना क्षेत्र में एक पति ने अपनी पत्नी को इसलिए मार डाला क्योंकि उसे 10 लाख रुपये और एक बुलेट बाइक दहेज में नहीं मिली थी. होली के दिन इस हत्या को अंजाम दिया गया.
केस 03. रस्सी का फंदा और ममता की चीखें
24 मार्च को ख़बर आई की भगवानपुर हाट में विशाखा नाम की महिला की संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई. उसकी मां ने एफआईआर दर्ज करवाई कि दहेज की मांग को लेकर उसकी बेटी को लगातार प्रताड़ित किया जाता था. आख़िरकार उसकी गला दबाकर हत्या कर दी गई.
समाज की जिम्मेदारी
यह सवाल हर व्यक्ति को खुद से पूछना होगा कि क्या हम सच में आधुनिक हो गए हैं? हम बड़ी-बड़ी बातों में समानता की बातें करते हैं, लेकिन जब बहन-बेटी की शादी होती है, तो चुपचाप दहेज की रस्म निभाते हैं. यह सिर्फ़ उन परिवारों की जिम्मेदारी नहीं है जो बेटी को जन्म देते हैं, बल्कि पूरे समाज को इस कुप्रथा को मिटाने के लिए आगे आना होगा.
क्या किया जा सकता है?
लाडली जो पिछले कई सालों से कई सारी ऑर्गेनाइजेशन के साथ मिलकर महिलाओं और बच्चों के लिए काम कर रहीं हैं वो बताती हैं कि “शिक्षा और जागरूकता, महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना और समाज को यह समझाना कि विवाह कोई व्यापार नहीं है, बल्कि दो परिवारों का मिलन है दूसरी चीज़ ये की सख्त कानूनों का प्रभावी पालन , दहेज हत्या के दोषियों को शीघ्र और कठोर सजा मिलनी चाहिए वहीं एक तरफ़ दहेज मांगने वालों का समाज में बहिष्कार किया जाए.”
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दहेज सिर्फ एक पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि एक सामाजिक अभिशाप है. यह महिलाओं के अस्तित्व पर एक क्रूर प्रहार है. जब तक समाज, कानून और हर व्यक्ति इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाएगा, तब तक न जाने कितनी बेटियों की जिंदगी इस प्रथा की बलि चढ़ती रहेगी. अब समय आ गया है कि हम इस जहर को जड़ से खत्म करें. दहेज का अंत सिर्फ कानून से नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव से होगा.