बिहार में 28 जुलाई के दिन राज्य के छह जिलों से वज्रपात से कुल 11 लोगों की जान जा चुकी है। वहीं 26 जुलाई के दिन राज्य के आठ जिलों से 20 लोगों की मृत्यु हुई है और 20-21 जुलाई के दिन वज्रपात से कुल 16 लोगों की जान जा चुकी है। गोपालगंज जिले में सर्वाधिक 3 लोगों की ठनका से मौत हुई। वहीं भोजपुर में दो और लखीसराय, सीवान एवं कटिहार में एक-एक व्यक्ति वज्रपात के शिकार हुए। बिहार में ठनका गिरने से अब तक 192 लोगों की मौत हो चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने वज्रपात की चपेट में हुई सभी मौतें पर शोक व्यक्त करते हुए सभी मृतकों के परिजन को तुरंत 4-4 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने के निर्देश दिए हैं।
आपदा प्रबंधन बिहार के आंकड़े के मुताबिक वज्रपात से 5 वर्षों में 1280 लोगों की मौत हुई है। इसके एवज़ में सरकार ने 51 करोड़ 20 लाख का अनुदान मृतक के परिजन को दिया है। आंकड़ों के मुताबिक 1.12 लाख लोगों ने इंद्रव्रज ऐप डाउनलोड किया है।
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आपदा प्रबंधन मंत्री रेणु देवी वज्रपात से जुड़े मसले पर कहती हैं कि
क्षति को कम करने के लिए आठ जगहों पर आपदा पूर्व चेतावनी प्रणाली लगी हुई है। वज्रपात की संभावना के पूर्व सूचना पहुंचाई जा रही है। सूचना तंत्र को और प्रभावी बनाने का काम किया जा रहा है।
कुछ किसान पटवन करतें मर गए तो कुछ रौपनी
29 जुन 2022, को मेरे भैया संजय और उनके दोस्त सुभाष भैया बारिश शुरू होते ही आम चुनने निकल गए थे। वैसे भी गांव- देहात में बहुत सारे लोग आम के मौसम में हवा और बारिश के समय बगीचा चले जाते हैं। तभी जोरदार आवाज के साथ ठनका पेड़ पर गिरा और दोनों बेहोश हो गए। बाद में पता चला भैया वहीं पर मर गए थे। और सुभाष भैया का अस्पताल ले जाने के दौरान मृत्यु हो गई। संजय भैया हम चारों में सबसे बड़े थे। उनका 1 साल का बेटा भी है।
सहरसा जिला के विशनपुर निवासी दयानंद यादव के पुत्र और संजय यादव के छोटे भाई सुरेन्द्र यादव बताते है।
वहीं अररिया जिला के पलासी प्रखंड के पेचैली पंचायत अंतर्गत श्यामपुर गांव के मु. अली हैदर डम्पी ने बताया कि
28 जून के दिन ही उनके बड़े भाई अजीम उद्दीन बारिश के वक्त खेत के मेढ़ पर मिट्टी देने गए थें। नहीं तो खेत का सारा पानी दूसरे खेत में चला जाता। तभी ज़ोर का ठनका गिरा और भैया दो मिनट में ही गुज़र गए।
सरकारी भवनों पर लगेंगे तड़ित चालक और खेत में?
हाल में ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ठनका से बचने के लिए सभी सरकारी इमारतों पर तड़ित चालक लगाने का फैसला लिया है। साथ ही खेतों में हो रहे मौत को लेकर पहले की तरह ही बिहार राज्य आपदा प्रदंधन प्राधिकरण की ओर से जागरुकता अभियान चलाया जाएगा। इसके जरिए ग्रामीण इलाके के लोगों को आकाशीय बिजली से बचने के लिए जागरुक किया जाएगा। साथ ही वज्रपात की सूचना तुरंत लोगों के पास पहुंचेगी।
कोसी नवनिर्माण मंच कोसी तटबंध के भीतर के गांवों में काम करती हैं। कोसी नवनिर्माण मंच के अध्यक्ष महेंद्र मिश्रा बताते हैं कि
हम लोग लगभग 200 गांव में काम करते हैं। आज तक इन गांवों में कभी भी सरकारी आदमी के द्वारा वज्रपात को लेकर कोई भी कैंपियन या जागरूकता अभियान नहीं चलाया गया है। पता नहीं सरकार के द्वारा चलाया जा रहा जागरूकता अभियान का कैंपियन किन गांव में लग रहा है जबकि यह गांव सबसे पिछड़ा भी है और वज्रपात को लेकर सबसे संदिग्ध भी।
बिजली गिरने की बढ़ती घटनाएं, ग्रामीणों में जागरूकता की कमी
इंडिया: एनुअल लाइटनिंग रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक 2019-20 और 2020-21 के बीच देश में बिजली गिरने की घटनाओं में 34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। पंजाब में यह प्रतिशत 331 है और दूसरे नंबर पर 168 फीसदी के साथ बिहार है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बिजली गिरने से होने वाली सभी मौतों में से 96 फीसदी ग्रामीण इलाकों से थीं और उनमें से 77 प्रतिशत किसान थे।
बिहार में हुए हाल की इन घटनाओं से समझिए इस आंकड़े के बावजूद, ग्रामीण आबादी का एक बड़ा हिस्सा बिजली गिरने की घटनाओं के दौरान खुद को बचाने के किस तरीके से अनजान है।
21 जुलाई 2022 को आरा शहर के टाउन थाना इलाके में धनपुरा पेट्रोल पंप के पास गुरुवार शाम वज्रपात हुआ, जिससे दो चचेरे भाइयों और एक व्यक्ति की मौत हो गई। तीनों खेत में पटवन करने के दौरान मोबाइल चला रहे थे। जबकि हमेशा टेलीविजन अखबार और मोबाइल पर वज्रपात के दौरान मोबाइल नहीं चलाने की सलाह दी जाती है।
वहीं 3 जुलाई के दिन बिहार के गोपालगंज जिले के कररिया गांव में खेत में धान की रोपनी करते वक्त ठनका गिरने से एक महिला की मृत्यु और सात महिला घायल हो गई। जिला प्रशासन और मौसम विभाग की ओर से बारिश और वज्रपात को लेकर अलर्ट जारी किया गया था, इसके बावजूद लोग खेतों में पहुंच गये थे।
वज्रपात से मवेशी की मौत
वज्रपात से व्यक्ति से ज्यादा मवेशियों की मौत होती है। लेकिन सरकार और मीडिया इसके बारे में कोई जिक्र नहीं करता है। मवेशियों की मौत का कोई आंकड़ा भी सरकार के पास उपलब्ध नहीं है। सरकार के द्वारा दुधारू पशु की मौत होने पर पशुपालक को 30,000 रुपए और भारवाहक पशु की मौत पर 25000 रुपए का मुअवजा दिया जाता है। इसके अलावा बछड़ा, गधा, खच्चर और टट्टू की मौत होने पर प्रति पशु पशुपालक को 16000 रुपए का मुआवजा दिया जाता हैं।
आपदा प्रबंधन विभाग पटना में सोशल मीडिया एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहे दिव्यराज बताते हैं कि
आदमी के मौत का मुआवजा तो सरकार आसानी से दे देती है। लेकिन मवेशी के मौत के मुआवजा के लिए किसानों को बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। इतना कि किसान भूल भी जाता है कि उन्हें मुआवजा चाहिए।
हाल में ही मेसकौर प्रखंड सीतामढ़ी थाना अंतर्गत सहवाजपुर पंचायत एम मिल्की गांव में 2 जुलाई के दिन प्रदीप यादव दो गायों को घर लेकर वापस लौट रहा थें इसी बीच गाय के ऊपर व्रजपात हो गया। दोनों घटनास्थल पर ही मर गए। प्रदीप यादव बताते हैं कि
हम 100 मीटर की दूरी पर खड़े थे। गनिमत रही कि हम बिल्कुल सुरक्षित है।दोनों गायों से लगभग ₹40000 का आर्थिक नुकसान हुआ है। हमारा घर इसी से चलता था।
वज्रपात की घटनाएं तेजी से क्यों बढ़ रही हैं ?
आइआइटी कानपुर और आइआइएम लखनऊ से पढ़ीं पूर्णिया की जया झा बताती है कि
तेजी से होने वाला अनियंत्रित शहरीकरण और पेड़ों की कटाई इन घटनाओं और इससे होने वाली मौतों की तादाद बढ़ने की प्रमुख वजह है। इन सारी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन भी बहुत नियंत्रित कर रहा है।
जागरूकता ही वज्रपात से लड़ने का उपाय
पूसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक शंकर झा बताते हैं कि
सरकार के द्वारा गांव-गांव जाकर किसानों को जागरूक कराना ही पड़ेगा। इन्द्रवज्र और मौसम विभाग के दामिनी एप से ज्यादा प्रभावी है कि आप मुखिया, सरपंचों को वज्रपात से बचने की ट्रेनिंग दें, जो अपने गांव में जाकर जागरूकता फैलाएं। क्योंकि इंद्रव्रज ऐप तभी किसानों के पास जाएगा जब किसानों के पास स्क्रीन टच मोबाइल होगा।
ये सवाल अहम और जरूरी है कि सरकार जहां बार-बार इंद्रव्रज ऐप यूज करने के लिए कह रही है। वहीं बिहार में स्मार्ट फ़ोन यूज़र कितने हैं और उसमें भी ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले खेत किसान और मज़दूरों की तादाद कितनी है?