पटना के बख्तियारपुर की रहने वाली संगीता कुमारी पिछले सात महीनों से कैंसर से जूझ रही हैं. मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाली संगीता के परिजनों के लिए कैंसर जैसी जटिल बीमारी के इलाज का ख़र्च उठाना सहज नहीं है. इलाज की प्रक्रिया शुरू होने के दौरान संगीता के परिजनों को उम्मीद थी कि आयुष्मान कार्ड होने के कारण पैसे की दिक्कत नहीं होगी. लेकिन परिजनों की यह उम्मीद जल्द ही समाप्त हो गई.
संगीता बताती हैं “जांच के बाद कीमोथेरेपी सेशन शुरू करने के लिए कहा गया. हमने आयुष्मान कार्ड के द्वारा इलाज की बात कही. तब अस्पताल कर्मियों ने कहा अगर कार्ड लगाइयेगा तो नंबर डेढ़ से दो महीने में आएगा. अगर अभी फीस जमा करियेगा तो सेशन एक हफ्ते में शुरू कर दिया जाएगा.”
संगीता आगे कहती हैं, "मजबूरी में परिजनों ने कर्ज लेकर उनका इलाज शुरू करवाया. अबतक लाखों रुपए उनके इलाज में खर्च हो चुके हैं. लेकिन आयुष्मान कार्ड का कोई लाभ उन्हें नहीं मिला."
वहीं केंद्र सरकार योजना के शुरूआती वर्षों से यह दावा करती आ रही है कि- आयुष्मान भारत योजना देश ही नहीं विश्व की सबसे बड़ी हेल्थ इंश्योरेंश स्कीम है. लेकिन जब कार्डधारकों को मुश्किल समय में कार्ड का लाभ नहीं मिले तो उनके लिए इस हेल्थ इंश्योरेंश का कोई उपयोग नहीं रह जाता है.
कार्ड का नहीं मिल रहा लाभ
संगीता की तरह ही वैशाली की रहने वाली गुड़िया देवी को इलाज की प्रक्रिया शुरू होने के बाद अस्पताल कर्मियों ने दवा के पैसे के लिए परेशान किया. गुड़िया देवी ओवेरियन सिस्ट का इलाज करवाने वैशाली से पटना आई थी. निजी अस्पताल में सर्जरी का खर्च 60 हज़ार रुपए बताया गया जिसके बाद परिजन उन्हें आईजीआईएमएस अस्पताल लेकर गए. अस्पताल में उन्हें सर्जरी पर 30 हज़ार रुपए खर्च होने की बात कही गयी.
आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण गुड़िया 30 हज़ार ख़र्च करने में भी सक्षम नहीं थी. गुड़िया देवी बताती हैं “मैंने अस्पताल कर्मियों को कहा मेरे पास पैसे नहीं है लेकिन आयुष्मान कार्ड है. तब उन्होंने कहा ठीक है आपका इलाज फ़्री में हो जायेगा. मुझे अस्पताल में भर्ती कर लिया गया. ऑपरेशन वाले दिन जब मुझे ओटी (ऑपरेशन थिएटर) में ले जाया गया तब मेरे घरवालों से दवा लाने के लिए कहा गया. लेकिन दवा दुकान में कोई भी दवा बिना पैसे के नहीं दी गई. 10 हज़ार से ज़्यादा की दवा मेरी मां ने कर्ज़ लेकर खरीदा.”
मरीज़ों के परिजन बताते हैं कि अस्पताल में आयुष्मान कार्ड का लाभ लेने के लिए उन्हें कर्मियों से काफ़ी मिन्नतें करनी पड़ती हैं. अस्पताल कर्मियों का व्यवहार उनके साथ काफ़ी कठोर और अपमानजनक होता है. अस्पताल कर्मी योजना का लाभ देने में आम लोगों की मदद नहीं करते हैं.
गुड़िया देवी के परिजन अमन कुमार कार्ड का लाभ लेने में आई परेशानी पर बताते हैं “बताया गया था बेड चार्ज, दवा चार्ज और डॉक्टर फीस कुछ नहीं लगेगा. लेकिन फ़्री दवा के लिए इतने काउंटर पर दौड़ाया जाता है कि लोग परेशान होकर अपने ही पैसे दवा खरीदने को मजबूर हो जाता हैं. दवा दुकानदार जैसे ही जानते हैं कि आयुष्मान कार्ड से दवा लेने वाला है वो 10 काउंटर पर वेरीफाई करवाने के लिए दौराते हैं. मरीज़ का फोटो खींचकर मांगते हैं. अगर कोई 10 बजे दवा की लाइन में खड़ा होता है तो उसे दो बज जाता है और तीन बजे काउंटर ही बंद कर दिया जाता है.”
गुड़िया देवी ने बातचीत के दौरान बताया था कि उन्होंने आयुष्मान कार्ड बनवाने के लिए तीन हज़ार रुपए खर्च किये थे. वहीं सरकारी अस्पताल में बेहतर इलाज नहीं होने के कारण उन्हें दोबारा निजी अस्पताल में इलाज करवाना पड़ा.
गुड़िया बताती हैं "ऑपरेशन में बार-बार सूजन हो जा रहा था. इसलिए सोना का कान वाला (इयरिंग) बेचकर डॉक्टर सहजानंद के यहां दोबारा ऑपरेशन कराए."
साल 2018 में आयुष्मान भारत योजना की शुरुआत गरीब और कमज़ोर आबादी की स्वास्थ्य जरूरतों के दौरान जेब से होने वाले खर्च को कम करने के उद्देश्य से किया गया था. लेकिन समय-समय पर इसमें होने वाली अनियमितता की पोल खुलती रही है. बीते वर्ष ही नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी रिपोर्ट में पीएमजेएवाई में हुए बड़े घोटाले को सामने रखा था. ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार 3,446 मरीजों के इलाज के लिए 6.97 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया, जो डेटाबेस में पहले ही मृत घोषित कर दिए गये थे.
ऑडिट रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि 2,231 अस्पतालों में एक ही मरीज़ को एक साथ कई चिकित्सा संस्थानों में भर्ती किए जाने के मामले सामने आए. ऑडिट में ऐसे 78,396 मामले पाए गए थे.
अस्पतालों की संख्या अपर्याप्त
राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देशभर में 35.81 करोड़ आयुष्मान कार्ड बनाए जा चुके हैं. राज्यों में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश (5.12 करोड़), मध्यप्रदेश (4.07 करोड़) और बिहार (3.58 करोड़) में कार्ड बनाए गये हैं. बिहार में जुलाई महीने में भी कार्ड धारकों की संख्या बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाया गया था. स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने एक करोड़ अतिरिक्त कार्ड बनाने के लिए जन वितरण प्रणाली के दुकानदारों को जिम्मेदारी भी दी थी.
हालांकि कार्डधारकों की संख्या के मुकाबले राज्य में अस्पतालों की संख्या कम है. बिहार में मात्र 1,032 अस्पताल इलाज के लिए पंजीकृत हैं. इसमें 587 सरकारी और 445 निजी अस्पताल हैं. वही वर्तमान में देशभर में योजना के तहत 30,743 अस्पताल पंजीकृत है जिसमें 17,084 सरकारी और 13,659 निजी अस्पताल हैं. डाटा कहता है कार्ड का इस्तेमाल कर इन अधिकृत अस्पतालों में 6.86 करोड़ मरीज भर्ती हुए हैं.
हालांकि जितनी तेजी से कार्डधारकों की संख्या बढ़ाने के प्रयास किये गए उसके अनुरूप अस्पतालों की संख्या बढ़ाने पर जोड़ नहीं दिया गया. वहीं हजारों पंजीकृत अस्पतालों में भी मरीजों को स्वास्थ्य लाभ नहीं दिया गया है.
बीते वर्ष लाइव मिंट ने अपनी रिपोर्ट में दावा किया था कि पीएम-जेएवाई के तहत सूचीबद्ध एक तिहाई से अधिक अस्पताल निष्क्रिय हैं. उस समय योजना के लिए सूचीबद्ध 27,000 अस्पतालों में से केवल 18,783 सक्रीय थे.
मिंट ने अपने अध्ययन में पाया कि 4,682 सूचीबद्ध अस्पतालों ने एक भी लाभार्थी को सेवा नहीं दी थी.
आयुष्मान भारत योजन के तहत जिन राज्यों में सबसे ज्यादा इलाज किये गये हैं उसमें तमिलनाडू, कर्नाटक, राजस्थान और केरल जैसे राज्य आते हैं. जहां कार्ड धारकों की संख्या यूपी-बिहार के मुकाबले काफी कम हैं. लेकिन इन राज्यों में अस्पतालों और स्वास्थ्य कर्मियों की संख्या बिहार के मुकाबले दोगुनी है.