ESIC MCH बिहटा में स्टाइपेंड न मिलने की समस्या से विदेशी मेडिकल स्नातक परेशान

एक मेडिकल इंटर्न का जीवन आसान नहीं होता. 24-24 घंटे की ड्यूटी, अनियमित भोजन, नींद की कमी और शारीरिक थकावट, इन सबके बावजूद, वे पूरे समर्पण के साथ मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं. लेकिन जब इन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाता है.

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नाजिश महताब
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ESIS

 भारत में चिकित्सा सेवा को एक पवित्र कर्तव्य माना जाता है. डॉक्टरों को समाज का आधारस्तंभ कहा जाता है, जो लोगों की जान बचाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं. लेकिन क्या हो जब उन्हीं डॉक्टरों को उनके हक से वंचित कर दिया जाए? क्या हो जब वे, जो दूसरों को स्वास्थ्य और राहत देने का कार्य करते हैं, खुद आर्थिक और मानसिक संघर्ष से गुजरने पर मजबूर हो जाएं?  

आज हम एक ऐसी ही समस्या की ओर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं, जो ESIC ( कर्मचारी राज्य बीमा निगम) मेडिकल कॉलेज और हॉस्पिटल, बिहटा, पटना में विदेशी मेडिकल स्नातकों (FMG) के साथ हो रही है. ये वे स्नातक हैं, जिन्होंने विदेशों से अपनी मेडिकल शिक्षा पूरी करने के बाद भारत में अपनी इंटर्नशिप करने के लिए यहाँ प्रवेश लिया. लेकिन विडंबना यह है कि इन्हें पिछले कई महीनों से उनके स्टाइपेंड से वंचित रखा गया है.  

डॉ संकल्प जो की ESIC MCH में बिहटा में इंटर्नशिप करते हैं वो बताते हैं कि “ जो लोग जुलाई 2024 में एडमिशन लिए थे उन्हें पिछले 8 महीने से स्टाइपेंड नहीं मिला है वहीं जिन्होंने जनवरी 2025 में एडमिशन लिया उन्हें 3 महीने से स्टाइपेंड नहीं मिला है. देश के हर ESIC MCH में इंटर्न को स्टाइपेंड मिलता है सिर्फ़ एक हमलोगों को ही स्टाइपेंड नहीं मिलता है.” 

आर्थिक संकट से जूझते मेडिकल इंटर्न्स  

ESIC MCH बिहटा में कार्यरत 108 विदेशी मेडिकल स्नातकों को 8 महीनों से स्टाइपेंड नहीं मिला है, जबकि कुछ को 3 महीनों से कोई भुगतान नहीं किया गया. यह केवल एक आंकड़ा नहीं, बल्कि उन युवाओं की जिंदगी का संकट है, जो अपने परिवार से दूर रहकर कठिन परिस्थितियों में दिन-रात मरीजों की सेवा कर रहे हैं.  

प्रिंस बताते हैं कि “ हमें पिछले 8 महीने से स्टाइपेंड नहीं मिला है, बहुत मजबूरी से घर से पैसे मांगना पड़ रहा है. 30070 रुपया दिया जाता है लेकिन हमें एक रुपया भी नसीब नहीं होता है. हमने कई बार अपने डीन से कहा है लेकिन वो बस कहते हैं कि डॉक्यूमेंट ऊपर भेज दिए हैं , काम हो जाएगा काम हो जाएगा और इसी तरह हमें फुसलाया जाता है.”

केंद्र सरकार और श्रम एवं रोजगार मंत्रालय द्वारा तय किया गया स्टाइपेंड ₹30,070 प्रति माह है, जो अन्य ESIC MCH में नियमित रूप से दिया जा रहा है. फिर भी, बिहटा, पटना में इंटर्न डॉक्टरों को उनके हक से वंचित किया जा रहा है. यह न केवल अन्यायपूर्ण है, बल्कि मेडिकल छात्रों के लिए गंभीर मानसिक और आर्थिक कठिनाइयों को जन्म दे रहा है.  

इंटर्नशिप के दौरान स्टाइपेंड केवल एक आर्थिक सहायता नहीं होती, बल्कि यह उन छात्रों की मेहनत का मान-सम्मान भी होता है, जो दिन-रात बिना किसी शिकायत के मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं. उनके लिए यह उनकी आजीविका का साधन है, जिससे वे अपने दैनिक ख़र्चों को पूरा कर सकें. लेकिन बिना स्टाइपेंड के, वे भारी आर्थिक दबाव का सामना कर रहे हैं.  

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना  

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से निर्देश दिया है कि विदेशी मेडिकल स्नातकों को भारतीय मेडिकल स्नातकों के समान स्टाइपेंड मिलना चाहिए. यह न केवल उनका अधिकार है, बल्कि मेडिकल पेशे के प्रति समानता और न्याय का प्रतीक भी है.  

ESIC MCH में काम करने वाली सुष्मिता ( बदला हुआ नाम) बताती हैं कि “ कुछ ही लड़कियों को हॉस्टल की सुविधा मिली है वहीं किसी को भी स्टाइपेंड नहीं मिल रहा है. पैसे नहीं हैं हमारे पास, मुझे बड़ी समस्याओं से गुजरना पड़ता है. स्टाइपेंड नहीं मिलने से मुझे मानसिक उत्पीड़न के साथ साथ आर्थिक तंगी भी झेलनी पड़ रही है. कंप्लेन करने पर भी कोई समाधान नहीं निकलता, डीन भी कुछ नहीं करते हैं.”

लेकिन ESIC MCH बिहटा, पटना में इस आदेश की खुलेआम अवहेलना की जा रही है. प्रशासन की उदासीनता और लापरवाही के कारण, इन छात्रों को मानसिक तनाव और असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है. जब कानून ने उनके अधिकार को मान्यता दी है, तो फिर उन्हें इससे वंचित क्यों रखा जा रहा है?  

मजबूरी में दिन-रात काम करने को विवश डॉक्टर 

एक मेडिकल इंटर्न का जीवन आसान नहीं होता. 24-24 घंटे की ड्यूटी, अनियमित भोजन, नींद की कमी और शारीरिक थकावट, इन सबके बावजूद, वे पूरे समर्पण के साथ मरीजों की सेवा में लगे रहते हैं. लेकिन जब इन्हें उनके अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, तो यह केवल एक व्यक्ति की समस्या नहीं रह जाती, बल्कि यह पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था की नाकामी को दर्शाती है.  

संकल्प आगे बताते हैं कि “ स्टाइपेंड नहीं मिलने के कारण हमें मानसिक और आर्थिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. और बात सिर्फ़ स्टाइपेंड की नहीं है, हमें हॉस्टल भी नहीं मिला है. ऐसे में हमें बाहर रहना पड़ता है और पैसा ज़्यादा ख़र्च होता है हमारा.”

बिना किसी आर्थिक सहायता के, बिना उचित हॉस्टल सुविधा के, बिना किसी सुनवाई के , क्या यही मेडिकल इंटर्न्स का भविष्य होना चाहिए? क्या इन डॉक्टरों की मेहनत और त्याग का यही प्रतिफल है?  

क्या है माँगे

ESIC MCH बिहटा, पटना के सभी विदेशी मेडिकल स्नातकों की तरफ से हम सरकार और प्रशासन से निम्नलिखित माँग करते हैं:  

1. तत्काल स्टाइपेंड भुगतान: सभी इंटर्न डॉक्टरों को श्रम मंत्रालय द्वारा तय ₹30,070 प्रति माह का भुगतान शीघ्र किया जाए.  

2. भविष्य के लिए स्पष्ट नीति: आगे से स्टाइपेंड के भुगतान की प्रक्रिया को पारदर्शी और समयबद्ध किया जाए ताकि किसी को भी इस तरह की परेशानी न हो.  
3. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन: सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार, विदेशी मेडिकल स्नातकों को भारतीय मेडिकल स्नातकों के समान सुविधाएँ दी जाएं.  
4. आवास की सुविधा: इंटर्न डॉक्टरों के लिए उचित हॉस्टल व्यवस्था सुनिश्चित की जाए ताकि वे मानसिक शांति के साथ अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें.  

क्या कोई सुनेगा डॉक्टर्स की पुकार? 

इंटर्न ने बताया कि उन्होंने प्रशासन से कई बार अनुरोध किया, लेकिन उनकी आवाज़ अब तक अनसुनी रही. ये डॉक्टर हैं,इन्होंने  मानव सेवा का संकल्प लिया है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनके अधिकारों की अनदेखी की जाए. सरकार, न्यायपालिका और स्वास्थ्य मंत्रालय से अपील करते हैं कि वे इस गंभीर मुद्दे को संज्ञान में लें और तत्काल कार्रवाई करें.क्या इस देश में डॉक्टरों को न्याय मिलेगा? या फिर वे इसी तरह उपेक्षित रहेंगे? यह प्रश्न केवल हमारा नहीं, बल्कि पूरे समाज का है. क्योंकि अगर डॉक्टरों के साथ अन्याय होगा, तो इसका असर पूरी स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ेगा.

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