बिहार में धीमी पड़ी मिशन इंद्रधनुष की रफ्तार, 15 जिलों में 70 फीसदी से कम टीकाकरण

NFHS-5 के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि बिहार में लगभग 70% बच्चे टीकाकरण से सुरक्षित हुए हैं. बिहार के 15 जिलों में 70% से कम टीकाकरण. राज्य में सबसे खराब स्थिति पटना (57%) जिले की.

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टीकाकरण करवाते हुए बच्चे

बिहार में धीमी पड़ी मिशन इंद्रधनुष की रफ्तार

बच्चों को खतरनाक बिमारियों से बचाने के लिए जन्म पूर्व गर्भवती महिलाओं और जन्म के कुछ ही घंटो बाद नवजात शिशुओं को टीका लगाया जाना आवश्यक है. अपने सफल टीकाकरण अभियान के कारण ही देश पोलियों मुक्त हो सका है. हालांकि यह उपलब्धियां तभी तक बनी रह सकती हैं जब देश में चलाए जा रहे टीकाकरण अभियान में तेजी लाया जा सके.

NFHS-5 यानी  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार देश में 76.4% बच्चों का टीकाकरण साल 2019-21 के बीच किया गया है. ये आंकड़े बच्चों के टीकाकरण कार्ड और बच्चों की मां द्वारा मिली जानकारी के आधार पर तैयार की गयी है. वहीं केवल टीकाकरण कार्ड के आधार पर तैयार रिपोर्ट कहती है की देशभर के 83.8% बच्चों का टीकाकरण हुआ है. 

मिशन इन्द्रधनुष

जबकि साल 2015-16 में जारी NFHS-4 के आंकड़े बताते हैं कि देश के 62% बच्चे ही टीकाकरण से सुरक्षित हुए थे. अभियान में तेजी लाने और टीकाकरण से छूट गए बच्चों को शामिल करने के लिए साल 2014 में मिशन इंद्रधनुष लाया गया. मिशन इन्द्रधनुष(Mission Indradhanush) शुरू किये जाने के बाद भी देश के कई राज्यों के कई जिले ऐसे थे, जहां टीकाकरण से छूट गए बच्चों की संख्या काफी ज्यादा थी. ऐसे ही इलाकों में टीकाकरण बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार ने साल 2017 में ‘सघन मिशन इंद्रधनुष’ यानी ‘इंटेन्सिफायड मिशन इंद्रधनुष (Intensified Mission Indradhanush)’ का उद्घाटन किया था. 14 अक्टूबर 2023 को इसका पांचवा संस्करण IMI 5.0 पूरा हुआ है.

हालांकि चार राज्य बिहार, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पंजाब में IMI 5.0 के तीसरे चरण की शुरुआत अक्टूबर में नहीं हो सकी थी. बिहार में IMI 5.0 के तीसरे चरण की शुरुआत 27 नवंबर से 2 दिसम्बर के बीच की गयी थी.

बिहार के 15 जिलों में 70% से भी कम टीकाकरण

एनएफएचएस 4 के पुराने आंकड़ों के अनुसार बिहार में 12 से 23 महीने के लगभग 60% बच्चों का पूरा टीकाकरण नहीं हुआ था. उस समय के आंकड़ों के अनुसार बिहार में मात्र 39.3% बच्चों का ही टीकाकरण हुआ था. 2005-06 में 12 से 23 महीने के 67.2% बच्चों का पूर्ण टीकाकरण नहीं हुआ था. उस दौरान शहरी इलाकों में ये आंकड़ा 40.3% और ग्रामीण इलाकों में 38.10% था. हालांकि लगातार प्रयास से इन आंकड़ों में सुधार हुआ है.

एनएफएचएस-5 के नवीनतम आंकड़े बताते हैं कि बिहार में लगभग 70% बच्चे टीकाकरण से सुरक्षित हुए हैं लेकिन आज भी राज्य के करीब 30% बच्चे टीकाकरण से वंचित हैं. एनएफएचएस-5 के दौरान एक और बदलाव जो देखने को मिला है वह शहरी और ग्रामीण टीकाकरण के बीच. शहरों में यह आकड़ा 46.8% जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह बढ़कर 51.6% हो गया है.

स्वास्थ केंद्र पर एक बच्ची

वहीं राज्य के अलग-अलग जिलों में आज भी टीकाकरण(vaccination) की स्थिति एक समान नहीं है. कई जिले राज्य के औसत प्रतिशत से पीछे हैं. जिलों में सबसे खराब स्थिति पटना (57%) की है. वहीं अररिया, भोजपुर और पश्चिम चंपारण में 62%, पूर्णिया और शिवहर में 63%, खगड़िया में 65%, बेगुसराय, दरभंगा और जमुई में 66%. सीतामढ़ी, भागलपुर और किशनगंज में 67%, पूर्वी चंपारण में 68% और लखीसराय में 69% में बच्चों का टीकाकरण हुआ है.

हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य में 97% बच्चे को आंशिक रूप से ही टीका लगाया गया है. पूरा टीकाकरण का मतलब है, 12 से 23 महीने के बच्चों को BCG और मीजल्ज़ का टीका और पोलियो और DPT के टीके की तीन खुराक.

टीकाकरण की रफ्तार धीमी

स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की जनवरी 2019 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले तीस साल से टीकाकरण पर काम हो रहा है. इसके बावजूद 12 से 23 महीने के बच्चों के टीकाकरण की दर बहुत ही धीमी गति से आगे बढ़ रहा है. हर साल टीकाकरण में 1% की दर से बढ़त हो रही है. साल 1992-93 में देश में टीकाकरण का कवरेज 35% से 2015-16 में 62% तक पहुंच पाया है.

रिपोर्ट का यह भी कहना है कि पिछले पांच साल में मिशन इंद्रधनुष जैसी मुहिमों की वजह से टीकाकरण के कवरेज की वृद्धि दर 1% से बढ़कर 6% हो गयी है.

साल 2021 में मिशन इंद्रधनुष के सर्वेक्षण (IMI- CES) से पता चलता है कि राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-4 की तुलना में पूर्ण टीकाकरण कवरेज में 18.5 फीसदी की वृद्धि हुई है. जिसके कारण 12-23 महीने की उम्र के बच्चों का पूर्ण टीकाकरण कवरेज 62% (NFHS-4) से बढ़कर 76.4% (NFHS-5) हुआ है.

साल 2014 के बाद से, मिशन इंद्रधनुष के 12 चरण देश में पूरे हो चुके हैं. 12वां चरण पूर्ण होने से पहले स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में बताया गया कि अभियान के तहत अब तक कुल मिलाकर 5.06 करोड़ बच्चों और 1.25 करोड़ गर्भवती महिलाओं को टीका लगाया गया है.

टीकाकरण क्यों जरूरी 

शिशु मृत्यु दर को कम करने में टीकाकरण अहम भूमिका निभाता है. यूनिसेफ के अनुसार अकेले खसरे के टीके ने साल 2000 से 2017 के बीच पूरे विश्व में 21 मिलियन से अधिक मौतों को रोका है. वहीं भारत का नियमित टीकाकरण कार्यक्रम 2.7 करोड़ शिशुओं और 3 करोड़  गर्भवती महिलाओं तक पहुंचा है और इसने हर साल भारत में 400,000 बच्चों की जान बचायी है. 

टीकाकरण

स्वास्थ एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अनुसार टीकाकरण की वजह से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में काफी कमी आयी है. 1990 में पांच साल से कम उम्र के 33 लाख बच्चों की मृत्यु हुई जो कि 2015 तक, टीकाकरण की वजह से, घट कर 12 लाख रह गई.

राज्य में, पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों के लिए 56 है, जो NFHS-4 (प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 58 मृत्यु) से दो अंक घटी है. पांच वर्ष तक के बच्चों में मृत्यु दर को कम करने के लिए IMI 5.0 में 5 वर्ष तक के बच्चों को शामिल किया गया था. इससे पहले तक के चरणों में केवल दो वर्ष तक के शिशु शामिल थे.

वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत ऐसा देश है जहां स्वास्थ पर होने वाला 65% खर्च आम आदमी को अपनी जेब से उठाना पड़ता है. ऐसे में टीकाकरण लोगों को बड़ी बीमारियों और उसके इलाज में होने वाले बड़े खर्च से बचाता है.

टीकाकरण से जुड़ी चुनौतियां

ऐसी कई बीमारियां हैं जिन्हें टीकाकरण से ही रोका जा सकता है. जैसे-पोलियों मुक्त भारत की घोषणा साल 2014 में कर दी गयी है लेकिन इसके बाद भी हर साल पांच वर्ष तक के बच्चों को पोलियों की खुराक पिलाई जानी आवश्यक है. क्योंकि आज भी कुछ देशों में पोलियों मौजूद हैं, जिससे यह खतरा बना है कि वे उन देशों से यात्रा करने वाले यात्रियों के माध्यम से वापस आ सकता है. 

टीकाकरण केंद्र

हालांकि संपूर्ण टीकाकरण के राह कई बाधाएं हैं. लोगों के बीच टीके से जुड़ी भ्रांतियां और क्रियान्वयन की खामियां टीकाकरण की पहुंच में एक बड़ी चुनौती है. टीकाकरण के तुरंत बाद होने वाले प्रतिकूल प्रभाव, जैसे बुखार, बच्चे का लगातार रोना, सुई लगने की जगह पर सूजन की वजह से कई लोग अपने बच्चों को टीका लगवाने से परहेज करते हैं. ऐसे में लोगों के बीच लगातार जागरूकता अभियान चलाए जाने से ही इसमें सुधार आएगा. 

सघन मिशन इंद्रधनुष योजना में 12 तरह के टीके शामिल हैं, जिसमें 10 देशभर में लगाए जाएंगे और दो बीमारियों के टीके वैसे राज्यों में लगेंगे जहां यह पायी जाती हैं. देशभर में लगाए जाने वाले दस टीकों में टीबी, परटूसिस (Pertussis), टेटनस, पोलियो, दिपथेरिया, मीजल्स, रूबेला, हेपटाइटिस-B, मेनिंजाइटिस और हेमोफ़िलस इनफ्लुएंजा टाइप-बी (Haemophilus influenzae type B) और रोटावायरस से होने वाले निमोनिया के टीके शामिल हैं. बाकी दो टीके Japanese Encephalitis और Pneumococcal conjugate vaccine का टीका केवल कुछ इलाकों में लगाएं जाएंगे.

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