SDG 2030: बाल स्वास्थ्य के मामले में भारत कभी विश्व गुरु बन पायेगा?

भारत में कुपोषण की समस्या पर करें तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 127 देशों में भारत 105वें स्थान पर है. भारत में भुखमरी की समस्या का अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि रैंकिंग में भारत बांग्लादेश और नेपाल से भी ख़राब है.

author-image
आमिर अब्बास
New Update
SDG 2030: बाल स्वास्थ्य के मामले में भारत कभी विश्व गुरु बन पायेगा?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार भारत को विश्वगुरु बनाने की बात कहते रहे हैं. उनके समर्थकों का भी मानना है कि पूरी दुनिया को बेहतर जीवन जीने का तरीका वर्तमान भारत से ही मिल सकता है. लेकिन जब इसकी पड़ताल करने के लिए आंकड़ों को देखा जाता है तो मामला उलट ही नज़र आता है. भारत विश्वगुरु बनना तो दूर सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स, SDGs) से भी काफ़ी पीछे है.

साल 2024 में जारी रिपोर्ट के अनुसार SDG रैंकिंग में भारत का प्रदर्शन ख़राब ही रहा है. 166 मुल्कों में भारत का रैंक 109वां है. कुपोषण, जलवायु परिवर्तन और नवजात बच्चों की मृत्यु दर को सुधारने के लिए भारत सरकार के द्वारा कोई मज़बूत पहल होती नज़र नहीं आ रही है. मिसाल के तौर पर, साल 2023 के आंकड़ों के अनुसार 28 दिनों के अंदर नवजात बच्चों की मौत की संख्या प्रति हज़ार 22 है. अनुमान है कि ये संख्या साल 2030 तक प्रति हज़ार 18 तक पहुंच जाएगी. जो अभी भी SDG लक्ष्य से 12 कम है. 

बच्चों में बौनेपन, कुपोषण और मृत्यु दर में देश पीछे

मुनिया देवी की एक बेटी है. इससे पहले मुनिया देवी को 2 बच्चे और हुए थें. लेकिन साल 2023 में जन्म के 1 हफ़्ते के भीतर ही दोनों की मृत्यु हो गयी थी. इसकी वजह, कुपोषण. जब हमने उनसे आंगनवाड़ी से मिलने वाली सहायता और राशन कार्ड की जानकारी ली तो उन्होंने हैरान करने वाली बात बताई.

मुनिया देवी ने बताया कि, "हमारी बस्ती में आंगनवाड़ी कहां ठीक से चलता है? कभी काम हुआ कभी नहीं. सेविका को तो सरकार कभी जनगणना तो कभी किसी और काम में लगा देती है. वो भी तो इंसान ही हैं. आख़िर सब काम कैसे देखेंगी. जब मेरा दोनों बच्चा पैदा हुआ था तो आंगनवाड़ी नहीं खुला हुआ था. हमको तो पता भी नहीं था कि बच्चों को सुईयां भी दिलवाना होता है. जहां तक बात राशन कार्ड की रही तो आज तक हमारा राशन कार्ड बना ही नहीं है. राशन कार्ड के लिए बहुत दौड़े लेकिन कभी भी कुछ बना ही नहीं." 

बस्ती में फैलता कुपोषण

अगर बात भारत में कुपोषण की समस्या पर करें तो ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट के अनुसार 127 देशों में भारत 105वें स्थान पर है. भारत में भुखमरी की समस्या का अंदाज़ा इस बात से भी लगा सकते हैं कि रैंकिंग में भारत बांग्लादेश और नेपाल से भी ख़राब है. हालांकि पिछले कुछ सालों से सरकार इस रिपोर्ट को नकारते आ रही है. सरकार के अनुसार इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए मापदंड है, वो सही नहीं है. लेकिन सरकार की इन बातों के बाद भी कुपोषण की बात को इंकार नहीं किया जा सकता है.     

अधिकांश आंगनबाड़ी पूरे महीने नहीं खुलते

बिहार आईसीडीएस पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार में कुल 1 लाख 17 हजार 820 आंगनवाड़ी केंद्र हैं. जिसमें से 1 लाख 14 हज़ार 988 आंगनबाड़ी ही मौजूदा समय में कार्यरत हैं. इनमें 7 हज़ार 115 मिनी आंगनवाड़ी केंद्र हैं. बिहार सरकार ने केंद्र सरकार से 18 हज़ार अतिरिक्त आंगनवाड़ी केंद्र की मांग की है.

गांव और स्लम बस्तियों के बीच स्थापित होने वाले इन आंगनवाड़ी केन्द्रों से एक करोड़ 84 लाख न्यूनतम आय वाले परिवार की महिलाएं एवं बच्चे जुड़े हुए हैं.

लेकिन काफ़ी संख्या में आंगनवाड़ी केंद्र महीने के 28 दिन नहीं खुलते हैं. पोषण ट्रैकर पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार महीने में 21 दिन तक खुलने वाले आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या मात्र 84 हज़ार 303 है. वहीं महीने में कम से कम 15 दिनों तक खुलने वाले आंगनवाड़ी केन्द्रों की संख्या 1,03,439 है.

पटना में आंगनवाड़ी

नवजात से लेकर छह वर्ष तक के बच्चों के लिए हैं योजनाएं

राज्य में छह महीने से छह साल तक के 95 लाख 50 हजार 532 बच्चे आंगनबाड़ी केन्द्रों से जुड़े हैं. वहीं नवजात शिशुओं और छह महीनों (0-6 महीने) तक के बच्चों की संख्या 2 लाख 55 हजार 494 है.

बच्चों के अलावा गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए भी आंगनबाड़ी केन्द्रों में योजनाएं चलाई जाती हैं. राज्यभर में 6 लाख 85 हजार 221 गर्भवती महिलाएं आंगनबाड़ी से जुड़ी है. वहीं स्तनपान करने वाली महिलाओं की संख्या 3 लाख 58 हजार 224 है. हालांकि बिहार जैसे घनी आबादी और न्यूनतम प्रति व्यक्ति आय वाले राज्य में यह संख्या काफी कम है.

पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब के अनुसार महाराष्ट्र में 6,16,772 बच्चे कुपोषित हैं. वही बिहार में 4,75,824 लाख कुपोषित बच्चे हैं साथ ही गुजरात में 3.20 लाख बच्चे कुपोषित हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार बिहार में 41% बच्चे कम वजन के हैं. वहीं 25.6 प्रतिशत बच्चों का वजन उनके कद के अनुरूप नहीं है जबकि 10.9% बच्चों का वजन उनके कद के हिसाब से बहुत कम है.

"सरकार का ध्यान पोषण की ओर नहीं"- प्रभाकर कुमार  

जिस तरह से बिहार और पूरे देश में बाल स्वास्थ्य की दशा बनी हुई है उसके बारे में और गहराई से समझने के लिए हमने खाद्य सुरक्षा और बस्तियों की पकड़ रखने वाले प्रभाकर कुमार से बात की. प्रभाकर कुमार विश्वविद्यालय में पढ़ाने का काम करते हैं. प्रभाकर कुमार से बात करते हुए हमने समझने की कोशिश की कि जब सरकार को समस्या पता है और उसका समाधान भी, तो आख़िर चूक कहां हो रही है? 

इस पर अपनी बात रखते हुए प्रभाकर बताते हैं, "सरकार का ध्यान पोषण पर नहीं है. अगर आप बजट उठा कर भी देखेंगे तो वो भी लगातार कम हो रहा है. बजट के आंकड़े बढ़े हैं, लेकिन जिस तरह से जीडीपी और बाकी क्षेत्र के बजट को बढ़ाया गया वैसे पोषण को बढ़ावा नहीं मिला. दूसरी बात, बच्चों के कुपोषण के मामले को सिर्फ़ बाल स्वास्थ्य से जोड़कर देखना अधूरी तस्वीर बयान करना होगा. बच्चों में कुपोषण महिलाओं में कुपोषण से है. बिहार में बाल विवाह के मामले काफ़ी हैं, जिस वजह से जब किशोरियों की उम्र ख़ुद कम है तो मां बनने के बाद उनके और बच्चे की जान को ख़तरा रहता है. फिर मामला ट्रैक करने का भी है. बच्चों में कुपोषण को ट्रैक करने की सुविधा सही से नहीं है क्योंकि उसके लिए सरकार के पास ना इंफ्रास्ट्रक्चर है और ना ही मैनपावर. आंगनवाड़ी में बच्चों का वज़न होना चाहिए, लेकिन आंगनवाड़ी में वज़न की मशीन नहीं होती है. तो सेविका अंदाज़े से बच्चों का वज़न लिखती हैं. ऐसे में जिन बच्चों को कुपोषित होने की वजह से ध्यान देने की ज़रूरत थी, उनका आंकड़ा कभी सामने ही नहीं आ पाता है."        

क्या सरकार को पॉलिसी में बदलाव की ज़रूरत है?

सरकार के पॉलिसी में बदलाव की बात पर प्रभाकर कुमार बताते हैं, "साल 2013-14 में कांग्रेस की सरकार के अंतिम वक्त में एक पॉलिसी ड्राफ्ट हुई थी. उस अधिनियम का नाम था 'खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013'. पॉलिसी में कमियों के बाद भी वो काफ़ी बेहतर थी. अब ये मौजूदा भाजपा सरकार की ज़िम्मेदारी थी कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 को लागू करे. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया."

खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के अनुसार आंगनवाड़ी को यूनिवर्सल करने की बात कही गयी थी. इस एक्ट के तहत 5 साल से कम उम्र के सभी बच्चे और जितनी भी गर्भवती और धात्री महिलाएं हैं उन सभी को शामिल करना था. लेकिन अभी आंगनवाड़ी टारगेट ही है. मतलब 8 गर्भवती और 8 धात्री महिलायें. इस वजह से आज भी कई बच्चे ऐसे हैं जिनका समय पर ध्यान नहीं रखा जा रहा है. 

सरकार का पक्ष जानने और समझने के लिए हमने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से बात की है. उनका जवाब आने पर ख़बर को अपडेट किया जाएगा. 

Malnutrition aangabadi workers aanganbaadi Malnutrition level in Jharkhand Malnutrition in Bihar malnutrition free districts in Bihar malnourished children identification Bihar SDG SDG 2030 ICDS sustainable development goals sustainable development goals 2030