बेरोज़गारी की क्या है स्थिति, क्या बिहार बस मज़दूरों का राज्य बनकर रह जाएगा?

बिहार की राजनीति में पलायन और बेरोज़गारी दो ऐसे मुद्दे हैं जो वर्षो से चले आ रहे हैं. हालांकि मौजूदा नीतीश सरकार यह दावा करती है कि उनकी सरकार ने पिछले 17-18 सालों के शासनकाल में रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान किए हैं.

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बिहार की राजनीति में पलायन और बेरोज़गारी दो ऐसे मुद्दे हैं जो वर्षो से चले आ रहे हैं. हालांकि मौजूदा नीतीश सरकार यह दावा करती है कि उनकी सरकार ने पिछले 17-18 सालों के शासनकाल में रोज़गार के पर्याप्त अवसर प्रदान किए हैं.

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छात्रों का इस पर क्या असर पड़ रहा है इसका जवाब जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने पटना यूनिवर्सिटी के छात्रों से बात की. पटना यूनिवर्सिटी में पीजी फाइनल इयर के छात्र मृणाल कुमार का कहना है

इस तरह के आंकड़ों से ताज्जुब नहीं होता है. ये तो अभी कुछ नहीं है. अगर यही हाल रहा तो आगे के सालों में इससे ज़्यादा बेरोज़गरी दर देखने को मिलेगी. सरकार रोज़गार के अवसर बढ़ाने के बजाए पुल बनाने में लगी है. सरकार सिर्फ़ झूठे दावे करती है कि हम रोज़गार देंगे.”

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वहीं सुनील कुमार जो कांग्रेस के कार्यकर्ता हैं और छात्रों के लिए आवाज उठाते रहते हैं कहते हैं

छात्र-हित को भूलकर सरकार सिर्फ़ अपना हित साधने में लगी है. सरकार सिर्फ़ हर क्षेत्र में निजीकरण करने में लगी है. हर क्षेत्र में असमानता बढ़ रही है. सांसदों के वेतन और भत्तो में कोई कमी नहीं की जाती लेकिन छात्रों को चार साल की नौकरी का लालच दिया जाता है. केंद्र सरकार भी बिहार के साथ भेदभाव करती है.

हालांकि आंकड़ों की मानें तो बिहार में अप्रैल के महीने में मई के मुकाबले ज़्यादा बेरोज़गारी दर था. अप्रैल में जहां 21.2 प्रतिशत बेरोज़गारी दर थी तो वही मई में यह घटकर 13.3 प्रतिशत पर आ गयी थी. अप्रैल के मुकाबले मई महीने में रोज़गार के अवसर बढ़े थे. लेकिन एक बार फिर जून आते-आते इसमें 0.7 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी.

बता दें कि बिहार में सेंटर फॉर मॉनिट्रिंग इंडियन इकॉनमी की तरफ़ से जारी आंकड़ों के अनुसार दिसंबर 2021 के महीने में बेरोज़गारी का आंकड़ा 16 प्रतिशत पार कर गया था लेकिन जनवरी में 13.3 प्रतिशत और फरवरी में 13.9 प्रतिशत के आंकड़े ने थोड़ी राहत दी थी. 31 मार्च को समाप्त हुए वित्त वर्ष में सबसे ज़्यादा डराने वाले आंकड़ें दिसंबर 2021 के ही थे. इसकी एक वजह ये भी थी कि कोरोना का प्रभाव भले कम हो रहा था लेकिन निर्माण संबंधी गतिविधियां पूरी तरह से काम नहीं कर रही थी. 

बिहार के लिए चिंता देनेवाली खबर यह है कि सेंटर फॉर मॉनिट्रिंग इंडियन इकॉनमी की रिपोर्ट में पड़ोसी राज्य झारखंड के मुकाबले बिहार में बेरोज़गारी दर ज़्यादा बढ़ गयी है. रिपोर्ट की मानें तो बिहार में झारखंड के मुकाबले रोज़गार के अवसर कम हैं. इस वित्तीय वर्ष, केवल फ़रवरी माह में झारखंड में बेरोज़गारी दर 15.0 प्रतिशत था जो बिहार की तुलना में अधिक था. वहीं उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल रोज़गार देने के मामले में बिहार से कहीं आगे हैं.

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मनीष कुमार जो पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता हैं कहते हैं

बिहार में इंडस्ट्री ही नहीं है तो रोज़गार कहां से आएगा. ये आंकड़ें तो बिहार की असलियत ही दिखाते हैं. सरकार ने इसे मज़दूरों का राज्य बनाकर छोड़ दिया है. यहां से लोग दूसरे राज्य में नौकरी और मज़दूरी की तलाश में जाते हैं. यहां जो कॉलेज और यूनिवर्सिटी है उसमें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं दिया जा रहा है, बेरोज़गारी तो बढ़ना तय ही है. केंद्र सरकार भी बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दे रहा है. विशेष राज्य का दर्जा मिलने से राज्य को कई तरह सुविधाएं मिल सकती थी.

देश में 14 जुलाई तक बेरोज़गारी दर 7.3 प्रतिशत हो गयी है वहीं शहरों में बेरोज़गारी दर 7.7 प्रतिशत है और गांव में इस महीने में पिछले महीनों के मुकाबले बेरोज़गारी दर में 1.7 प्रतिशत की कमी आयी है. ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोज़गारी दर 7.1 प्रतिशत दर्ज की गयी है. सेंटर फॉर मानीटरिंग इंडियन इकॉनमी की ओर से जारी मासिक रिपोर्ट बताती है कि शहरों से ज़्यादा बेरोज़गारी ग्रामीण क्षेत्रों में है. क्योंकि मई-जून महीने में ग्रामीण क्षेत्रों में खेतीबाड़ी का काम कम रहता है. बेरोज़गारी दर में यह इज़ाफा मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ी बेरोज़गारी के कारण हुआ है.

देश में 15 साल और उससे अधिक उम्र के लोगो के बीच बेरोज़गारी दर जनवरी 2022 में घटकर 8.2 प्रतिशत पर आ गयी है जो पिछले साल इसी अवधि में 9.3 प्रतिशत था.

14 वें पीएलएफ़एस सर्वेक्षण के अनुसार देश में अक्टूबर-दिसंबर 2021 की अवधि में 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र वाले लोगों की बेरोज़गारी दर 8.7 प्रतिशत था. सर्वेक्षण में पाया गया कि शहरी क्षेत्रों में 15 वर्ष और उससे अधिक की महिलाओं के लिए जनवरी-मार्च, 2022 में बेरोज़गारी दर घट कर 10.1 प्रतिशत रह गई. एक साल पहले की इसी अवधि में यह 11.8 प्रतिशत तथा अक्टूबर-दिसंबर, 2021 में यह 10.5 प्रतिशत पर थी. इसके अलावा शहरी इलाकों में पुरुषों के लिए बेरोज़गारी दर जनवरी-मार्च में घटकर 7.7 प्रतिशत रह गई, जो इससे पिछले वर्ष की इसी अवधि में 8.6 प्रतिशत और अक्टूबर-दिसंबर 2021 में 8.3 प्रतिशत थी.

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जुलाई-सितंबर 2020 में मुख्य रूप से देश में लॉकडाउन प्रतिबंधों के चौंका देने वाले प्रभाव के कारण बेरोज़गारी अधिक थी, जिन्हें घातक कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए लगाया गया था. बेरोज़गारी या बेरोज़गारी दर को श्रम बल में बेरोज़गार व्यक्तियों के प्रतिशत के रूप में परिभाषित किया गया है.

बेरोज़गारी दर बढ़ने की वजह जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने समाजशास्त्री डीएम दिवाकर से बातचीत की. डीएम दिवाकर ने बताया कि

बेरोज़गारी बढ़ने की मुख्य वजह है सरकार का रोज़गार को लेकर कोई रोडमैप ना होना. कोरोना के दौरान इतनी बड़ी संख्या में लोग बिहार वापस आये थे लेकिन क्या उनके लिए सरकार ने किसी तरह के रोज़गार की व्यवस्था की? नहीं, क्योंकि सरकार के लिए ये कभी भी चुनावी मुद्दा ना था और ना होगा.

बिहार में कई सरकारी नियुक्तियां भी कई सालों से रुकी हुई हैं. ऐसे में बिहार में बेरोज़गारी दर कब कम होगी ये देखने की बात है.

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