बिहार दिवस के दिन पटना स्थित रवींद्र भवन सभागार में आयोजित कार्यक्रम ‘आइए प्रेरित करें बिहार’ में राज्य के गृह विभाग के विशेष सचिव विकास वैभव ने मनीष कश्यप को सम्मानित किया। मनीष कश्यप एक यूट्यूबर हैं। पिछले बिहार दिवस के दिन भी विकास वैभव ने राजीव महर्षि नाम के एक व्यक्ति को सम्मानित किया था।
ट्रस्ट न्यूज के रिपोर्टर सन्नी बताते हैं कि,
फरवरी 2019 को कश्मीर में हुए पुलवामा घटना के बाद मनीष कश्यप और उनके साथी ने कई भड़काऊ वीडियो बनाए थे। परिणाम स्वरूप 25-30 उपद्रवी ल्हासा मार्केट में घुस कर कश्मीरी दुकानदार को मारा गया था। जिसके बाद पुलिस ने रूपसपुर के नागेश कुमार पांडेय,आलमगंज के चंदन और बेतिया के मझौनिया के त्रिपुरारि तिवारी उर्फ मनीष कश्यप (जिन्हें बिहार दिवस में पुरस्कार मिला है) को गिरफ्तार किया था। वहीं राजीव ब्रह्मर्षि भी 2018 में आपत्तिजनक वीडियो वायरल कर सौहार्द्र बिगाड़ने का आरोपित है। राजीव को भी सितंबर, 2018 को हाजीपुर नगर थाने की पुलिस ने पकड़ कर जेल भेज दिया था।
भाकपा माले के विधायक अजीत कुमार सिंह ने इस मामले को विधानसभा में उठाते हुए कहा कि
वर्तमान में भी मनीष कश्यप पर दंगा भड़काने के कई मामले विचाराधीन है।
‘आइये प्रेरित करें बिहार’ कार्यक्रम में किसी दंगा आरोपी को प्रेरित कर एक जिम्मेदार अधिकारी आखिर बिहार को किस दिशा में प्रेरित करना चाहते है? ”
मीडिया में कहीं इस घटना की चर्चा नहीं है
एक युवक राम ध्वज को मस्जिद के गेट पर लहरा रहा है. लंगट सिंह विश्वविद्यालय के छात्र संदीप यूट्यूबर भी है वो बताते हैं कि,
यह वीडियो मुजफ्फरपुर के साहेबगंज विधानसभा क्षेत्र स्थित मोहम्मदपुर गांव के डाकबंगला मस्जिद की है। जुलूस जब उस रास्ते होते हुए आगे जा रहा था तभी एक मोटरसाइकिल मस्जिद के पास रूकती है और पीछे खड़ा लड़का मस्जिद पर भगवा झंडा लगा रहा है। ऐसा करके उसे कौन सा युद्ध जीतने की खुशी मिली होगी, नहीं मालूम। वहीं लाउडस्पीकर से बार–बार यह आवाज आ रही है कि आगे बढ़िए, आगे बढ़िए, भाईचारा बनाए रखनी है। अफसोस इस युवा को लाउडस्पीकर वाली बात सुनाई नहीं दी।
“इस पूरे वीडियो को देखने के बाद मन में एक सवाल उठता है कि जुलूस के साथ पुलिस रहती है वो इस समय क्या करती है? इस उन्मादी भीड़ के कारण दंगे हो जाते तो गलती किसकी होती? यह एक बहुत ही सजीव उदाहरण है, किसी भीड़ के मिसलीड होने का” एलएन मिश्रा इंस्टिट्यूट मुजफ्फरपुर में पढ़ रहा लड़का रेहान अपने वक्तव्य को रखता है।
एनसीआरबी की ओर से साल 2020 में जारी आंकड़ों के मुताबिक 2018-2020 के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में सांप्रदायिक दंगों के कुल 1,807 मामले दर्ज किए गए हैं. जिसमें बिहार में सबसे अधिक यानी 419 सांप्रदायिक दंगे के मामले दर्ज किए गए हैं. बिहार की राजनीति में हालिया दिनों में धार्मिक उग्रता में इज़ाफ़ा देखा जा रहा है. आंकड़े बता रहे हैं कि जब से नीतीश कुमार ने भाजपा के साथ दूसरी बार गठबंधन करके 2017 में सरकार बनाई है, स्थितियां बदल गई हैं.
नेताओं का बयान बिहार को नफरत और सांप्रदायिक हिंसा की आग में झुलसने का काम करता है
मार्च 2022 में बिहार के बेगूसराय में होली की रात मामूली विवाद में दो पक्षों के बीच जमकर झड़प हुई. इस घटना में एक पक्ष के द्वारा दूसरे पक्ष के तीन लोगों को चाकू मारकर घायल कर दिया गया. जिसे पूरी तरह सांप्रदायिक रंग से रंग दिया गया था.
स्थानीय पत्रकार अजय बताते हैं कि,
12 मार्च 2022 को रजौरा गांव स्थित सरस्वती मंदिर चौक के पास लगभग 11 वर्षीय मोहम्मद चांद को चापाकल में पानी पीने के क्रम में एक बच्चे से लड़ाई हुई। हालांकि बड़ों के हस्तक्षेप के बाद लड़ाई वहीं समाप्त हो गई थी। पर होलिका दहन के दिन दोबारा 11 वर्षीया बच्चे चांद को पकड़कर कुछ लोगों ने उसके साथ मारपीट की और उसे बांधा गया। कुछ दिनों के भीतर इस बड़ी लड़ाई को अंजाम दिया। दो गुटों के बीच हिंसक झड़प हो गई थी। इस झगड़े और मारपीट में एक पक्ष से लगभग एक दर्जन से अधिक लोग घायल हुए थे।
बेगूसराय के भाकपा माले जिला सचिव दिवाकर कुमार बताते हैं कि,
मामूली लड़ाई के बाद 19 मार्च को बेगूसराय सांसद रजौड़ा पहुंचे और उन्होने सांप्रदायिक भाषण दिया। जिसके बाद साम्प्रदायिक तत्वों ने नीरज सिंह और पूर्व मुखिया टुनटुन सिह की अगुवाई में मो. चांद के पिता महफूज, जो पेशे से दर्जी हैं, के उपर जानलेवा हमला किया गया, जिसमें दर्जनों लोग घायल हो गए थें।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गिरिराज सिंह ने कहा था कि
अगर बेगूसराय में हिंदू नहीं रहेगा तो फिर कहां जाएगा। इस घटना ने मुझे कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा की याद दिला दी। पाकिस्तान में हिंदूओं को मार-काट के उनका जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया, बेगूसराय में हिंदूओं पर बच्चों के विवाद में एक जुट होकर हथियार और तलवार से हमला किया गया, अगर प्रशासन ने मामले में लीपापोती की तो हम कोई भी कदम उठाने को मजबूर होंग
नीतीश की पार्टी के कार्यकर्ता की हत्या बीफ़ और मॉब लिंचिंग का मामला तो नहीं?
2022 के फरवरी महीने में ही बिहार के समस्तीपुर जिला में नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड से जुड़े मोहम्मद ख़लील आलम की हत्या हुई। हत्या के तीन दिनों बाद खलील से जुड़ा एक वीडियो वायरल हुआ। जिसमें कुछ हिंदूवादी संगठन के लोग खलील को बीफ खाने पर मार रहे थे। जिसके बाद विपक्षी पार्टियों ने पूरी घटना को एक मॉब लिंचिंग करार दिया। हालांकि प्रशासन की नजर में वह एक साधारण हत्या है। हालांकि नीतीश कुमार के पार्टी के किसी भी बड़े नेता का कोई बयान नहीं आया।
मोहम्मद ख़लील आलम के बड़े भाई मोहम्मद सितारे डेमोक्रेटिक चरखा से बताते हैं,
16 फरवरी के दिन शाम तक भैया वापस घर नहीं आए तो भाभी ने फोन किया था। फोन पर किसी ने जवाब दिया कि जब तक मेरा पांच लाख वापस नहीं देगा वह घर नहीं आएगा। फिर खलील की लाश मिली और दूसरे दिन वीडियो वायरल हुआ। वीडियो देखने के बाद पूरा मामला आईने की तरह साफ है। कुछ और कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी। अफसोस है कि पुलिस पूरे मामले को पैसा लेनदेन से जुड़ा बता रही है।
समस्तीपुर के एक स्थानीय पत्रकार नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, “जिस क्रूरता से इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया गया है। इससे तो नहीं लगता है कि पैसे के लेन-देन का मामला है। अपराधी ने खुद वीडियो इंस्टाग्राम पर डाला है। पुलिस ने इसे क्यों पैसे के लेन-देन का मामला बताया है, ये आप भी समझ रहे हैं।”
डीजे और भड़काऊ गाने बिहार में दंगों का सांप्रदायिक पैटर्न
हाल में हुए बिहार के अधिकतर दंगे पर रिपोर्ट करने वाले क्राइम पत्रकार बृजेश मिश्रा बताते हैं कि,
बिहार में अक्सर रामनवमी, दशहरा और मुहर्ररम के मौकों पर दंगे और संप्रदायिक झड़प की खबरे आती है। सभी सांप्रदायिक दंगे का ट्रेंड कमोबेश एक-सा ही रहता है। सड़क पर जुलूस और उसमें भड़काऊ गाने बजाए जाते हैं। कट्टरवादी नेताओं का भाषण होता है और फिर भीड़ बेकाबू होकर तोड़फोड़-रोड़ेबाजी शुरू कर देती है। सिलसिला लगातार चलने के बावजूद बिहार में प्रशासन इस पर अंकुश लगाने में विफल रही है।
“टोपी वाला भी सर झुकाकर जय श्री राम बोलेगा जैसे गाने को सुनकर किसका खून नहीं खौलेगा। वह भी जानबूझकर हम लोगों के बस्ती में बजाया जाता है। अब्बा लोग कहते हैं कम संख्या में हो चुप रहो वरना मारे जाओगे।” नाम ना बताने की शर्त पर 23 वर्षीय एक मुस्लिम लड़का बताता है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सत्ता में रहने की राजनीति कितनी हावी है?
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक आत्मेश्वर झा अभी रांची से स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं। वो बताते हैं कि,
2017 से पहले आंकड़े इतने भयावह नहीं थे। 2017 में बीजेपी और जदयू के पुनः गठबंधन के बाद 2018 में सांप्रदायिक हिंसा से आरा, चंपारण, मुजफ्फरपुर और वैशाली जैसे जिला प्रभावित रहा। राजनीतिक हालात ऐसे बन चुके हैं कि जहां नीतीश, भाजपा के लिए ज़रूरी हैं वहीं नीतीश कुमार के लिए भी भाजपा का साथ कई कारणों से मजबूरी है। अभी के समय में जाति के राजनीति का गढ़ बिहार में कभी भी कोई एक बड़ी पार्टी सरकार नहीं बना सकती है। इसलिए भाजपा का ऊंची जाति और बनिया वर्ग पर पकड़ के कारण नीतीश कुमार का भाजपा के साथ रहना उनकी मजबूरी है।
हाल में हुए इन घटनाओं से ये साफ़ तौर से साबित हो गया है कि बिहार की राजनीति बदल गयी है। जिस समय पूरा देश जल रहा था तब बिहार में किसी भी तरह की हिंसा नहीं हो रही थी लेकिन अभी के समय में बिहार में हो रही सांप्रदायिक हिंसा चिंता का विषय है।