सरकारी शिक्षकों को जनगणना सहित अन्य कार्य करवाना कितना सही?

शिक्षा का अधिकार कानूनके तहत किसी भी शिक्षक को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जाना चाहिए. शिक्षकों को पढ़ाने, परीक्षा संचालन और जांच कार्यों के अलावा अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन राज्य सरकार समय-समय पर कानून को दरकिनार करते हुए शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों के अलावे अन्य कार्यों में लगाती रहती है.

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शिक्षा का अधिकार कानून 2009 के तहत किसी भी शिक्षक को गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जाना चाहिए. शिक्षकों को पढ़ाने, परीक्षा संचालन और जांच कार्यों के अलावा अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन राज्य सरकार समय-समय पर कानून को दरकिनार करते हुए शिक्षकों को शैक्षणिक कार्यों के अलावे अन्य कार्यों में लगाती रहती है.

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किसी भी राष्ट्र और राज्य का भविष्य इस बात पर ज्यादा निर्भर करता है कि वहां कि शिक्षा व्यवस्था कितनी बेहतर है. बेहतर शिक्षा व्यवस्था के द्वारा ही आने वाली पीढ़ी को जागरूक, जानकार और जिज्ञासु बनाया जा सकता है.

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लेकिन बिहार सरकार को राज्य की शिक्षा व्यवस्था से ज्यादा जातीय राजनीति में ज्यादा विकास नजर आ रहा है. राज्य की गरीबी और अशिक्षा को दूर करने की योजना बनाने से ज्यादा जातिगत टिप्पणी और अपना वोट बैंक बनाना सरकार के लिए ज्यादा अहम है.

राज्य में साक्षरता दर आज भी कई राज्यों से काफी पीछे है, स्कूल में शिक्षकों की कमी है, सरकारी स्कूलों में संसाधनों की कमी है. कोरोना महामारी के कारण बच्चों की पढ़ाई का पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है. संपन्न और निजी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे तो किसी तरह ऑनलाइन और अन्य माध्यमों से अपनी पढ़ाई जारी रख पाए हैं लेकिन सरकारी स्कूलों में पढ़ाने वाले उन गरीब बच्चों का क्या जो थोड़ी बहुत शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल के शिक्षक पर निर्भर हैं.

यहां ‘थोड़ा बहुत’ कहने के तीन कारक हैं- पहला सरकारी स्कूलों के वैसे शिक्षकों से हैं जो अपना काम यानि पढ़ाने का काम ईमानदारी पूर्वक नहीं करते हैं. दूसरा स्कूल में संसाधन की कमी और तीसरा निम्नवर्गीय परिवार से आने वाले बच्चों को पढ़ने के लिए परिवेश और परिस्थिति का अनुकूल न होना.

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राज्य में शुरू हुआ जातिगत जनगणना का कार्य

राज्य में नीतीश सरकार लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग कर रही थी और आख़िरकार इसका काम शनिवार यानी 7 जनवरी से शुरू हो चुका है. जातियों की गिनती का काम दो चरणों में पूरा होगा. पहला चरण 7 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगा. पहले चरण में घरों की गिनती होगी. इसके अलावा घर के मुखिया और परिवार के सदस्यों के नाम दर्ज किये जाएंगे.

वहीं दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा. दूसरे चरण में जातियों की गिनती होगी. इसमें लोगों से उनकी जाति, उपजाति और धर्म के बारे में पूछा जाएगा और आंकड़ा जुटाया जाएगा.

इसमें बड़ी संख्या में स्कूली शिक्षकों को सरकार ने लगाया है. सरकारी आदेश है कि स्कूल में पूरे समय बच्चों को पढ़ाने के बाद शिक्षक जनगणना का कार्य भी करेंगे. राज्य में सरकारी स्कूल का समय सुबह साढ़े 9 बजे से लेकर 4 बजे तक का है. यानि शिक्षक स्कूल में आठ घंटे पढ़ाने के बाद शाम 4 बजे से जनगणना का कार्य करना आरंभ करेंगे.

हालांकि शिक्षक सरकार के इस आदेश से नाखुश हैं और उनका कहना है कि क्या आठ घंटे की ड्यूटी के बाद हमें आराम करने का अधिकार नहीं है. क्या हमारा काम पढ़ाने से ज्यादा पूरे साल सरकार के दूसरे सरकारी काम करना है?   

किसी भी शिक्षक को गैर-शिक्षण कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है. शिक्षकों को पढ़ाने, परीक्षा संचालन और जांच कार्यों के अलावा अन्य गतिविधियों में शामिल नहीं किया जाना चाहिए.

लेकिन सरकार का इसपर तर्क है की गणना कार्य के लिए शिक्षकों को अलग से भुगतान किया जा रहा है, इसलिए उन्हें स्कूल में पूरे समय बच्चों को पढ़ाने के बाद कार्य करना होगा.

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क्या जनगणना कार्य में लगे शिक्षक को ज्यादा भुगतान के बदले जनगणना का काम करने से खुश हैं?

इसपर शिक्षिका इंदु कुमारी बताती हैं

“अभी हम दिन के पूरे 12-13 घंटे काम पर ही रहते हैं तो कितना खुश होंगे समझ जाइए. काम के बदले भुगतान किया जायेगा ठीक है लेकिन किसी काम को करने में सामने वाले को कितना परेशानी उठानी पड़ेगी इसका भी ध्यान रखा जाना चाहिए. स्कूल सुबह के साढ़े 9 बजे से है लेकिन हम 7 बजे ही अपने घर से निकलते हैं. फिर स्कूल पहुंचने के बाद उपस्थिति (Attendance) बनाने के बाद हम फील्ड में निकल जाते हैं. अब वापस रात के सात साढ़े 7 बजे ही घर पर पहुंचना संभव है.”

इंदु आगे कहती हैं सरकार ने तो कह दिया है कि

"बच्चों को स्कूल में पूरे समय पढ़ाना भी है और उसके बाद जनगणना भी करना है. लेकिन इसमें बहुत परेशानी है. सरकार हमें किसी एक ही काम में लगाए ताकि हम वहां अपना सौ प्रतिशत दे सकें."

गैर-शैक्षणिक कार्यों में शिक्षकों का अभियोजन निषेध 

शिक्षा का अधिकार कानून 2009 में यह निर्दिष्ट है कि शिक्षकों को जनगणना, आपदा राहत कार्यों, स्थानीय निकाय चुनाव, संसदीय चुनावों या राज्य विधानमंडल के चुनावों के अतरिक्त किसी अन्य गैर शैक्षणिक कार्यों में नहीं लगाया जा सकता है.

राज्य सरकार इसी छूट का फ़ायदा उठाते हुए शिक्षकों को जनगणना और चुनावी कार्य सौंप देती है.

“शिक्षकों कि सेवा शिक्षण के आलावे अन्य कार्यों में लेना सरकार की प्रायोरिटी (प्राथमिकता) को प्रदर्शित करता है. सरकार बच्चों को निर्बाध और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देना चाहती है या केवल साक्षरता दर बढ़ाना ही उद्देश्य है, इस पर हमें विचार करना होगा.”

ये कहना है सामाजिक कार्यकर्ता व पटना विश्वविद्यालय में समाज कार्य विभाग के गेस्ट फैकल्टी प्रभाकर कुमार का.

प्रभाकर आगे कहते हैं

“हमारे देश और राज्य में बेरोजगारों की कमी नहीं है. सत्ता और पद पर बैठे नेता और अधिकारी अगर सही प्लानिंग (योजना) के साथ काम करें तो बेरोजगारी दर को कम करने में सहायता मिल सकता है. जनगणना का काम अगर तीन महीने चलने वाला है तो सरकार नई टेम्पररी नियुक्ति के साथ तीन महीने किसी बेरोजगार को रोजगार दे सकती है, जिससे अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा.”

शिक्षा के अधिकार कानून में भले यह कानून बना हो कि शिक्षक केवल पढ़ाने का काम करेंगें. लेकिन सरकार खुद ही कानून का पालन नहीं करती है. साल 2016 में आंगनबाड़ी सेविकाओं को दूसरे कार्यों में नहीं लगाने संबंधित नियम जारी किए गए हैं परंतु उसका भी पालन नहीं हो रहा है. सरकार एक तरफ आरटीई (RTE) का उलंघन करती है तो दूसरी ओर श्रम कानून का भी उलंघन करती है.”

जनगणना कार्य में लगे प्रत्येक कर्मचारी जैसे शिक्षक, विकास मित्र, किसान सलाहकार, आंगनबाड़ी सेविका- सहायिका एवं पंचायत या प्रखंड स्तर पर लगे अन्य कर्मियों को 2 सप्ताह में डेढ़ सौ मकान को चिन्हित करना है.

आदर्श विद्या निकेतन यारपुर की प्रधानाध्यापिका प्रतिभा कुमारी बताती हैं

“मेरे स्कूल में मुझे मिलाकर पांच शिक्षक पढ़ाने का कार्य करते हैं. लेकिन अभी सभी शिक्षकों का ड्यूटी जनगणना में लगा हुआ है. स्कूल बंद था तब तो कोई परेशानी नहीं आ रहा था लेकिन अब जबकि स्कूल खुल चुका है तो बच्चों की पढ़ाई देखते हुए जनगणना का काम करने में परेशानी आ रहा है.”

प्रतिभा कुमारी बताती हैं

“परेशानी तो सभी शिक्षकों को है लेकिन महिला शिक्षकों को ज्यादा परेशानी उठानी पड़ रही है. चूंकि फील्ड का काम है शिक्षकों को गली गली सारे घरों में जाना और डाटा इकठ्ठा करना है. दिन के कई घंटे गली मोहल्ले में बिताना है इस बीच सबसे बड़ी समस्या टॉयलेट जाने की हो जाती है. पुरुष तो कहीं भी चले जाते हैं लेकिन महिलाओं को इंतजार करना पड़ता है. वहीं कभी-कभी तो किसी घर में दुर्व्यवहार भी झेलना पड़ता है.”

हालांकि राजकीय कन्या उच्च विद्यालय, बिन्दुसार बुजुर्ग सिवान के प्रधानाध्यापक उमेश कुमार तिवारी का इस पक्ष में अलग है. उनका कहना है कि

“जो शिक्षक ऐसा कह रहे हैं की परेशानी हो रहा है वो झूठ कह रहे हैं क्योंकि जिन भी शिक्षक को जनगणना के कार्य में लगाया गया है उन्हें केवल स्कूल में उपस्थिति बनाकर चले जाना होता है, तो परेशानी कहां से है?”

उमेश कुमार तिवारी के दावों को सही माना जाए तो यह कहना सही होगा कि सरकार का निर्देश कि कक्षाएं लेने के बाद ही गणना का कार्य करना है यह केवल कागज़ी निर्देश है. क्योंकि विभागीय स्तर पर सारे कार्य आपसी सामजंस्य से होते रहते हैं. नुकसान केवल आमलोग और छात्रों का होता है. उमेश कुमार तिवारी आगे कहते हैं

“मेरे विद्यालय से छह शिक्षकों की ड्यूटी जनगणना में लगी है बाकि के नौ शिक्षक आराम से बच्चों की कक्षाएं ले रहे हैं. हां, यहां एक बात मैं मान सकता हूं कि जिन विद्यालयों में शिक्षकों की कमी हैं वहां थोड़ी समस्या हो सकती है.”

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14 करोड़ बच्चों का भविष्य सरकारी शिक्षकों के ऊपर

यू-डायस के 2021-22 के रिपोर्ट के अनुसार राज्य में 5.82 लाख शिक्षक मौजूद हैं जिनमें महिला शिक्षकों की संख्या 2.34 लाख और पुरुष शिक्षकों की संख्या 3.48 लाख है.

शिक्षकों को स्कूल में पढ़ाने के आलावा अन्य कार्यों में लगाए जाने के कारण बच्चों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. शिक्षक लगातार गैर-शैक्षणिक कार्यों में लगाए जाने का विरोध करते आए हैं. मगर सरकार के दबाव में शिक्षकों को तमाम गैर-शैक्षणिक कार्य करने पड़ते हैं.

राज्य की चरमराई शिक्षा व्यवस्था का एक बड़ा कारण शिक्षकों की कमी है. लेकिन इसके बावजूद सरकार शिक्षकों के ऊपर पढ़ाने के आलावा अन्य कार्यों का बोझ डाल देती है.

सीपीआइएमएल विधायक संदीप सौरभ शिक्षकों के जातीय जनगणना में लगाए जाने का सख्त विरोध करते हैं और कहते हैं

“हम सरकार का कई मुद्दों पर समर्थन करते हैं लेकिन इस फैसले पर हम सरकार के साथ नहीं है. हमने विधानसभा में शून्यकाल के दौरान भी प्रश्न उठाया था कि जनगणना में शिक्षकों की सेवा न ली जाए क्योंकि इससे सरकारी स्कूलों के बच्चों की शिक्षा पर प्रभाव पड़ेगा. शिक्षकों के बजाय सरकार सांख्यिकी स्वयं सेवकों की सेवा ले सकते थे. साल 2013-14 में सरकार ने इनकी बहाली की थी. करीब एक साल तक इनकी सेवा लेने के बाद इन्हें सेवा से मुक्त कर दिया गया था. तब से लेकर अब तक सांख्यिकी कर्मी नियोजन के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं.”

संदीप आगे कहते हैं

“सरकार सांख्यिकी छात्रों के साथ अन्याय करने के साथ-साथ हाईकोर्ट के निर्देश का भी उलंघन कर रही है, क्योंकि कोर्ट ने शिक्षकों को गैर-शिक्षण कार्यों में लगाने से मना किया है.”

500 करोड़ ख़र्च करेगी सरकार

जातिय जनगणना में 4,663 प्रगणक, 777 पर्यवेक्षक, 107 फील्ड ट्रेनर की तैनाती किये गए हैं. इसके अलावे 10 फीसदी अतिरिक्त कर्मी तैनात किये गए हैं. प्रगणक ही लोगों के घर तक पहुंच कर काउंटीग कर रहे हैं. इस कार्य में शिक्षक, विकास मित्र, किसान सलाहकार इत्यादि को भी लगाया गया है. विशेषज्ञों के मुताबिक जाति गणना कराने से राज्य के विभिन्न जातियों की स्थिति का सटीक आंकड़ा उपलब्ध हो सकेगा.

इसके विभिन्न जातियों को समुचित विकास के लिए योजना तैयार कर उसके क्रियान्वयन में सुविधा मिल सकेगी. सामान्य प्रशासन विभाग और जिला अधिकारी ग्राम, पंचायत और उच्चतर स्तरों पर विभिन्न विभागों के अधीनस्थ काम करने वाले कर्मियों की सेवाएं जाति आधारित गणना का कार्य कराने के लिए लिया जा रहा है. जनगणना पर करीब 500 करोड़ रुपए खर्च किए जाने हैं और यह राशि बिहार आकस्मिकता निधि से ख़र्च की जानी है. ये ख़र्च अनुमानित है. यानी, ये कम और ज्यादा भी हो सकता है.

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