“हमरा खाली चाही मिथिला राज?” नारा और आंदोलन कितना प्रभावी?

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Rahul Gaurav
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“हमरा खाली चाही मिथिला राज?” नारा और आंदोलन कितना प्रभावी?
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भाषा या संस्कृति के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की बात सामने आना कोई नया नहीं है। आजकल ये नया मुद्दा बिहार के मिथिलांचल इलाके में पनप रहा है। हालांकि बिहार में मिथिलांचल राज्य की मांग नयी नहीं है। ‘अइसन इच्छा किछु नाही चाही, चाही खाली मिथिला राज’ नारों का गूंज पिछले कुछ दिनों से सोशल मीडिया और धरातल पर देखने को मिल रही हैं। मांग का समर्थन करने वाले लोगों के अनुसार पृथक मिथिला राज्य की मांग इस क्षेत्र के लोगों को आर्थिक, शैक्षणिक और राजनीतिक आज़ादी के लिए ज़रूरी है। 

मिथिला राज्य बनाने के आंदोलनकारियों को सुनिए 

मिथिलावादी पार्टी के इंजीनियर शरत झा बताते हैं कि

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सन 1967 के बाद बिहार के बिछड़ने के साथ ही मिथिला प्रांत की स्थिति और बद से बदतर होती चली गयी। आज़ादी के वक्त जिस क्षेत्र में अनेकों कल-कारखाने थे वह क्षेत्र एक अदद फ़ैक्टरी के लिए तरस रहा है। भारत में भाषा आधारित राज्य की मांग तो नई नहीं है। साथ ही देश के कई हिस्सों में राज्य की मांग हो रही है जो जायज़ भी है। वर्तमान देखिए तो छोटा राज्य विकास का आधार बन रहा है। इसलिए हमारा मांग जायज़ भी है और उपयुक्त भी।

मिथिला छात्र संघ के अध्यक्ष अनुप मैथिली मीडिया को बताते हैं कि

मिथिला राज्य की मांग मिथिला के विकास के लिए कर रहे है। एक ओर नालांद में ग्लास ब्रिज के लिए सरकार के पास फंड की कोई कमी नहीं है दूसरी ओर मिथिला के लिए चचरी पुल पर भी संकट है। 15 दिनों के अंदर बाढ़ग्रस्त पंचायत कलीगांव में वहां के मुखिया महेश झा के द्वारा एक शानदार पुल बना दिया गया। हमारे राज्य में हमें इसी तरह के जनप्रतिनिधि की आवश्यकता है जो रिकॉर्ड समय में कार्य करे और जनता के लिए कार्य करे। साथ ही हमारी संस्कृति अलग है, हमारी भाषा अलग है, हमारा पहनावा अलग है। भारत में भाषित प्रदेश की मांग नई भी नहीं है। इसलिए हमारी यही मांग हैं कि बिहारी शब्द से मिले छुटकारा, मिथिला हो राज्य हमारा।

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(मिथिला का अधिकांश क्षेत्र हमेशा बाढ़ ग्रसित रहता है)

एक वक्त था कि मिथिला देश का सबसे इंडस्ट्रीयलाइज्ड एरिया हुआ करता था। लगभग हरेक जिले में कोई ना कोई औद्यौगिक मिल या संयंत्र था। आज मिथिला लेबर ज़ोन बन गया है। आज यहां के सारे मिल और उद्योग बंद हो चुके हैं। यहां आने वाले ट्रक आज भर कर आते हैं और जाते वक्त खाली। मिथिलांचल के लोग दिल्ली और पंजाब के भरोसे बैठे हुए हैं। आंदोलनकारियों के मुताबिक मिथिला राज्य बनने से उद्योग, रोजगार, विकास के हज़ारों मौके उत्पन्न होगा। हरेक जिले में यह अभियान शुरू हो चुका हैं। एक महीने के अंदर गांव-गांव में अभियान पहुंच जाएगा। 

मिथिला स्टेट की मांग बहुत पुरानी है। 1912 में जब बिहार बंगाल प्रोविंस से निकल कर एक अलग स्टेट बना। उसी समय से एक अलग मिथिला स्टेट की मांग शुरू हो गई थी। नए राज्य बनने के बाद ही इस पिछड़े इलाके का विकास हो सकेगा।

मिथिला स्टूडेंट यूनियन के अमोद कुमार बताते है।

एक जाति विशेष की मांग हैं

इंडिया टुडे के पूर्व संपादक प्रोफ़ेसर दिलीप मंडल सोशल मीडिया पर मिथिला राज्य के बारे में लिखते हैं कि

मैं झा लोगों द्वारा अलग मिथिला राज्य मांगे जाने का समर्थन करता हूं। भारत सरकार मैथिल ब्राह्मणों की इस पर विचार करे। 

सुपौल के रहने वाले कांग्रेस के युवा छात्र नेता अमित चौधरी बताते हैं कि

मिथिला को अलग राज्य लेने की मांग कहां से हो रही हैं? आंदोलन में सम्मिलित लोग एक विशेष जाति से हैं। यह मांग बहुजन बहुसंख्यक प्रदेश सुपौल, मधेपुरा और किशनगंज अररिया से नहीं उठ रही है। बल्कि ब्राह्मण बाहुल्य प्रदेश दरभंगा और मधुबनी से उठ रही है। 

वहीं दरभंगा की जानी मानी समाज सेवी कुमौद सिंह ट्वीट एक फोटो के साथ ट्वीट करतीं हैं कि, “मिथिला राज्य की मांग करनेवाले को नालंदा का ग्लास ब्रिज देखकर चचरी पुल याद आता है, कभी यह पुल याद नहीं आता, क्योंकि इसकी ये हालत नीतीश कुमार ने नहीं जगन्नाथ मिश्रा ने किया है। यह ग्लास ब्रिज से सुंदर था, अगर रहता तो पर्यटक दरभंगा भी आते। आखिर तुम्हारा मिथिला प्रेम क्या है कामरेड।”

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(सोशल मीडिया पर मिथिला आन्दोलन से जुड़े पोस्ट)

मैथिली क्षेत्र के ही विकास यादव बताते हैं कि

मिथिलांचल के 3% ब्राह्मण है, जो की कट्टर भाजपाई है। बेचारे 1990 के बाद से एक ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनाने के लिए अलग मिथिला राज्य की मांग कर रहे हैं। भागवत झा आज़ाद, जगन्नाथ मिश्रा जैसे मैथिल ब्राह्मण मुख्यमंत्रियों ने बिहार को एक लेबर स्टेट बनाया। कांग्रेस शासित अन्य राज्यों में औद्योगीकरण फैलाने के लिए बिहार से मज़दूर सप्लाई करने शुरू किए। अब जब इन बेचारों को लगता है कि लालू-नीतीश के बाद कोई भी मुख्यमंत्री बनेगा लेकिन ब्राह्मण नहीं बनेगा तो अलग राज्य मांग रहे है।

हम सब बिहार में ही रहना चाहते है

पटना में रहकर बैंकिंग की तैयारी करने वाले सीतामढ़ी जिला के रमेश मंडल बताते हैं कि

सारे मिथिलावासी इस से सहमत नहीं हैं, कुछ संगठन को छोड़ कर। ये संगठन दशकों से मांग कर रहा है अलग मिथिला राज्य का। मुझे भी अपनी मिथिला की संस्कृति और भाषा पर गर्व है लेकिन हम सब बिहार में ही रहना चाहते है क्योंकि हम लोग भी उतने ही खाटी बिहारी है जितना आप लोग है।”

मिथिला छात्र संघ के पूर्व सदस्य रह चुके एक लड़के नाम न बताने की शर्त पर बताते हैं कि, “जिस संगठन के लोग मिथिला राज्य की मांग हो रही हैं। उस संगठन में चंदा लेकर राजनीति किया जाता है। अभी हाल फिलहाल में पंचायत चुनाव में एयरपोर्ट के नाम पर यह संगठन के लोग चंदा इकट्ठा किया और चुनाव लड़ा जिसमें कुछ लड़का जीता भी है। इसीलिए मिथिलांचल में मिथिला राज्य की मांग वही लोग कर रहा हैं जिनकी कोई वजूद नहीं है। यह मांग और आंदोलन चंदा इकट्ठा करने का एकमात्र जरिया है और कुछ नहीं।”

वहीं मिथिला छात्र संघ के एक और पूर्व सदस्य रह चुके कृष्णा लिखते हैं कि, “मिथिला राज्य की मांग ब्राह्मणों की मांग है। मैथिल मतलब अभी भी लोग ब्राह्मण ही समझेंगे, जिस तरह संघ सभी को हिन्दू बनाकर सत्ता में हैं। उसी तरह नए मिथिला राज्य में ब्राह्मण होंगे। मिथिला राज्य बनेगा जब हम चाहेंगे, ये सब कुछ से संपन्न निठला लोग हैं, इसलिए क्रेडिट का खेला चल रहा हैं।”

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(मिथिला राज्य को लेकर चलता आंदोलन)

राजनेताओं का हस्तक्षेप 

बिहार कांग्रेस के नेता और पूर्व क्रिकेटर कीर्ति झा आज़ाद बताते हैं कि

देश 28 टुकड़ों में बंट चुका है। इसलिए यह आंदोलन देश को बांटने का तो बिल्कुल नहीं है। राज्यों का निर्माण प्रशासनिक सुगमता और भाषाई व सांस्कृतिक अक्षुण्णता के संरक्षण के लिए किया जाता है। इसलिए हम हमेशा से मिथिला राज्य के लिए आवाज़ उठाते रहे हैं और उठाते रहेंगे और जब तक मिथिला राज्य नहीं बनता तब तक लड़ते रहेंगे अपने हक की लड़ाई।

गौरतलब है की कीर्ति झा आजाद राज्यसभा में भी मिथिला राज्य की मांग उठा चुके हैं। 

मिथिला राज के निर्माण से ही क्षेत्र का होगा आर्थिक उद्धार

भूपेंद्र मंडल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलसचिव सचिद्र महतो बताते हैं कि

मिथिला राज का निर्माण से ही कोसी व कमला के अंचल के बाढ़ पीड़ितों का आर्थिक उद्धार का रास्ता प्रशस्त होगा। जब तक राज्य नहीं होगा तब तक हमारी आर्थिक और सामाजिक स्थिति व हमारी भाषा का उत्थान संभव ही नहीं है।  

वहीं मिथिला छात्र संघ के सहरसा के प्रणव मिश्रा बताते हैं कि, “मिथिला राज्य की अवधारणा तीन सौ वर्षो से भी पुरानी है। सन् 1902 ई. में मिथिला राज्य के तीस जिलों को मिला कर एक मानचित्र भी बनकर सामने आ गया था। लेकिन सरकार की उदासीनता और कुछ बड़े राजनेताओं की राजनीतिक महत्वाकांक्षा में आज तक मिथिला राज्य की स्थापना नहीं हो सकी।”