हर खेत में पानी का वादा कितना हुआ पूरा? जानें इस रिपोर्ट में

मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना ‘हर खेत में पानी’ पहुंचाने की योजना लगातार फ़ेल हो रही है. हर साल किसानों को सिंचाई के लिए आसमान की ओर देखना पड़ता है. यदि बादलों की कृपा हुई तो ठीक वरना किसानों को महंगे डीज़ल और बिजली के सहारे सिंचाईं करनी पड़ती है. लागत के अनुपात में खेती में मुनाफ़ा नहीं होने से किसान परेशान हैं, किसानों को महंगे डीज़ल से पंपसेट चलाकर खेती करना पड़ रहा है.

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मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना ‘हर खेत में पानी’ पहुंचाने की योजना लगातार फ़ेल हो रही है. हर साल किसानों को सिंचाई के लिए आसमान की ओर देखना पड़ता है. यदि बादलों की कृपा हुई तो ठीक वरना किसानों को महंगे डीज़ल और बिजली के सहारे सिंचाईं करनी पड़ती है. लागत के अनुपात में खेती में मुनाफ़ा नहीं होने से किसान परेशान हैं, किसानों को महंगे डीज़ल से पंपसेट चलाकर खेती करना पड़ रहा है.

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सरकार किसानों को खेती के लिए हर सुविधा देने की घोषणाएं कर रही है. एक तरफ वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करना केन्द्र सरकार की महत्वपूर्ण योजना है. किंतु बिहार के किसानों की दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है. सरकार द्वारा खेतों में सिंचाई व्यवस्था दुरुस्त करने का दावा महज़ एक दिखावा बनकर रह गया है.

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पटना जिले के 975 राजकीय नलकूपों में से 426 ख़राब पड़े हैं, जिसका ख़ामियाज़ा किसान भुगत रहे हैं. बारिश नहीं होने के कारण खेत में धान का बिचड़ा सुख रहा है. विभागीय पदाधिकारियों के मुताबिक राजकीय नलकूपों का रख-रखाव का काम पंचायत का है. इसके लिए मुखिया और पंचायत जिम्मेवार होते हैं. पदाधिकारियों का कहना है, बिजली बिल का भुगतान और मरम्मत का कार्य पटवन से प्राप्त होने वाले राजस्व से करना होता है. वर्तमान समय में 426 ख़राब राजकीय नलकूप में 78 नलकूप के मरम्मत के लिए टेंडर निकाला गया है. 101 नलकूप का बिजली बिल बकाया है. करीब 90 नलकूप ख़राब  हो गए हैं. बाकि 157 नलकूप की मरम्मत कराई जाएगी.

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राज्य में एक तरफ़ बारिश कम होने से खेती करने में परेशानी हो रही है. सूखे जैसे हालात बनते नज़र आ रहे हैं. वहीं राज्य के करीब 62 प्रतिशत सरकारी नलकूप ख़राब पड़े हैं. नलकूप ख़राब होने के कई कारण बताये गये हैं. इसके अनुसार कुछ नलकूपों के उपकरण गायब हैं. कुछ नलकूपों के पंप गिर गये हैं. वहीं कई के मोटर ख़राब पड़ें हुए हैं. ऐसे में मरम्मत के अभाव में नलकूपों के ख़राब होने से सिंचाई सुविधा नहीं मिल पा रही है.

विभागीय आंकड़ों के अनुसार राज्य में 10 हज़ार 240 के करीब राजकीय नलकूप है जिसमे फ़रवरी 2022 तक 6376 नलकूप ख़राब हो चुके थे और मात्र 3864 नलकूप से सिंचाई का काम हो रहा था. हालांकि अब ख़राब नलकूप को ठीक कराने के लिए लघु जल संसाधन विभाग के स्तर पर कार्रवाई शुरू हुई है. अगले दो-तीन महीनों में अधिकतर को ठीक कर देने का दावा किया जा रहा है.

किसानों  को सिंचाई में आ रही समस्या को लेकर मुखिया, पंचायत सचिव, जिला पंचायती राज पदाधिकारी और लघु जल संसाधन विभाग के अधिकारीयों के बीच बिहार चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स में बैठक हुई. शनिवार को हुए विभागीय बैठक में अपर मुख्य सचिव परमार रवि मनुभाई ने कहा कि

नए नलकूप लगाने का कोई प्रावधान नहीं है. अगर भविष्य में ऐसा कोई नियम आएगा तो नलकूप लगाया जाएगा. वर्तमान में पटना के 78 नलकूप के मरम्मत के लिए 6 करोड़ की राशि के आवंटन को स्वीकृति दी गयी है. बैठक के दौरान नलकूपों के रखरखाव, मरम्मत, संचालन, पटवन, राजस्व वसूली आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गयी है. इस दौरान कई मुखिया ने ख़राब नलकूप के मरम्मत और नए नलकूप लगाने कि मांग की.

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लघु जल संसाधन विभाग ने राज्य के नलकूपों को आधुनिक करने के लिए नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट में स्काडा(Supervisory Control and Data System) योजना के तहत 3156 नलकूप में मोबाइल पंप कंट्रोलर लगावाया है. जिसका मकसद पंप ऑपरेटर की ज़रुरत को ख़त्म करना और मोबाइल से पंप का संचालन करना है. पंचायत के मुखिया की अनुशंसा पर किसी किसान के मोबाइल से नलकूप को जोड़ा जाएगा. जिस किसान के मोबाइल से यह जुड़ेगा वह घर बैठे ही नलकूप को चालू और बंद कर सकेगा. इससे समय, पानी और बिजली तीनों की बचत होगी. साथ ही वोल्टेज कम या ज़्यादा होने की स्थिति में नलकूप को ख़राब होने से भी बचाया जा सकता है.

बेगूसराय के घाघरा पंचायत का सरकारी नलकूप सालों से ख़राब पड़ा है जिससे किसानों को खेती में काफ़ी नुकसान हो रहा है. पहले से कई परेशानियां झेल रहे किसानों को सिंचाई में भी सरकार से कोई सहायता नहीं मिल रहा है. किसानों का कहना है अब खेती करना जुए खेलने जैसा हो गया है क़िस्मत अच्छी तो मुनाफ़ा और ख़राब तो नुकसान. यहां गरीब और मध्यम वर्गीय किसान होना ही सबसे पहला अभिशाप बनता जा रहा है.

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बेगूसराय के घाघरा पंचायत के सिमरी प्रखंड के किसान उमेश महतो सब्ज़ी की खेती करते हैं. उनके खेत के पास ही सरकारी नलकूप लगा हुआ है लेकिन इस नलकूप से सालों से पानी नहीं आ रहा है. उमेश खेती के लिए निजी नलकूप पर निर्भर हैं और कहते हैं

हम गरीब किसान है. हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि हम अपना बोरिंग करवा सकें. लेकिन हमारे जीने का साधन खेती ही है इसलिए कर्ज लेकर खेती करते है. उसपर भी अगर फ़सल अच्छा नहीं हुआ तो दोहरा मार हमपर पड़ता है.

वही दूसरे किसानों का कहना हैं

हमारे कमाने खाने का ज़रिया ही खेती है. समय से पानी नहीं  मिलने से हमारा फ़सल ख़राब हो जाता है. यहां दो सरकारी नलकूप हैं सिमरी वार्ड-6 और वार्ड-4 में दोनों सालों से ख़राब है. यहां नाला भी नहीं है जिससे हमलोग निजी नलकूप से सिंचाई करने के लिए मजबूर है. निजी नलकूप से सिंचाई के लिए 200 से 300 रूपए घंटा देना पड़ता है. उसपर भी कभी-कभी आख़िरी समय पर निजी नलकूप वाले मना कर देते हैं तो हमारे फ़सलों को नुकसान झेलना पड़ता है.

नलकूप ख़राब  होने के कारण हो रहे नुकसान को दूर करने के लिए किसानों ने सीधा सरकार और संबंधित अधिकारियों को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा

अगर मंत्री जी ध्यान देते तो हमें इतनी परेशानी नहीं होती. हमारी सरकार से मांग है कि आप नलकूप का मरम्मत करवायें और नाला साफ़ करवाएं ताकि उसमे पानी आए और हमे कर्ज से मुक्ति मिले.

किसान जो इस देश के अन्नदाता हैं लेकिन खेती करने में आने वाले दिक्कतों और नुकसान के कारण आज अन्नदाता ही दाने-दाने को मजबूर हैं. कभी खाद, कभी बीज, कभी सुखा तो कभी बाढ़ की मार झेल रहे हैं. किसान अब अपने खेत के पटवन के लिए भी कर्ज़ में डूबने लगे हैं. पर्यावरण में आ रहे बदलाव के कारण उन्हें अब प्रकृति का सहयोग भी नहीं मिल रहा है. अपने चुनावी वादे में नीतीश कुमार ने ‘हर खेत तक पानी’ पहुंचाने का वादा किया था. पिछले साल के शुरुआत में  इस योजना पर काम भी शुरू किया जा चुका है लेकिन किसानों को अभी तक इसका फ़ायदा नहीं मिला है. 

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