Health

बिहार के साहिल थेलेसिमिया से पीड़ित बच्चों को डोनर उपलब्ध कर बचा रहे जान

थेलेसिमिया खून की कमी की एक बीमारी है. डॉक्टरों के अनुसार इस बीमारी की वजह से खून में ऑक्सीजन और लाल रक्त कोशिका (Red Blood Cell) की की कमी हो जाती है. भारत में थेलेसिमिया से पीड़ित बच्चों की संख्या सबसे अधिक है. थेलेसिमिया की वजह से हर साल 20 साल की उम्र से पहले 1 लाख लोगों की मौत हो जाती है. इस बीमारी को लेकर जागरूकता फैलाने और पीड़ितों के इलाज के लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने साल 2016 में एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसके अनुसार केंद्र और राज्य सरकार को मिलकर इस बीमारी के लिए बजट बनाने की सलाह दी गयी थी. इस रिपोर्ट को मानते हुए सरकार ने थेलेसिमिया के लिए ख़ास बजट बनाया. इस बजट में ख़ास तौर से ये ध्यान रखा गया कि बच्चों को थेलेसिमिया के इलाज के दौरान ब्लड डोनर की कमी ना हो. लेकिन आज भी 70% बच्चों को डोनर नहीं मिल पाते हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बिहार में लॉकडाउन के दौरान डोनर नहीं मिलने की वजह से थेलेसिमिया से पीड़ित कई बच्चों की मौत भी  हो गयी थी.

इस वजह से बिहार, ख़ास तौर से ग्रामीण इलाकों में बच्चों के इलाज में काफ़ी कमी आ रही है. ऐसी ही स्थिति बिहार के सीवान में भी है. सीवान सदर अस्पताल में पर्चा काउंटर पर काम करने वाले बताते हैं

यहां पर हर दिन लगभग 10-15 ऐसे बच्चे आते हैं जिन्हें खून की ज़रूरत होती है. लेकिन हमेशा ब्लड बैंक में ब्लड मौजूद नहीं रहता है. हमलोग कोशिश करते हैं लेकिन छोटे जिले में इस लेकर काफ़ी समस्या आती है.

बच्चों की परेशानी को देखते हुए सीवान के रहने वाले साहिल ने एक समाधान निकालने की कोशिश की. साहिल ने पूरे बिहार स्तर पर ब्लड डोनर्स का एक ऐसा ग्रुप तैयार किया है जिसकी वजह से कई बच्चों की जान बचाई जा रही है. अपने सफ़र की शुरूआत के बारे में बताते हुए साहिल कहते हैं

5 साल पहले हम एक अस्पताल में थे और देखें कि एक बच्चा पड़ा हुआ और उसके पास कोई डोनर मौजूद नहीं था. मेरे मन में एक ही सवाल आया कि ऐसे कई बच्चे और लोग होंगे जिनके घर में डोनर नहीं होगा. तो फिर कैसे उनका इलाज हो पायेगा? इसी को लेकर हम एक ऐसा ग्रुप बनाने लगे जिसमें हम लोगों को जोड़ते हैं और उन्हें ये समझाने की कोशिश करते हैं कि उनके एक डोनेशन से किसी बच्चे की जान बच सकती है.

प्रीति को थेलेसिमिया 3 साल की उम्र में पता चला. उसके बाद उसे ब्लड डोनर्स की ज़रूरत पड़ती है. एक बार प्रीति को डोनर नहीं मिलने की वजह से उसकी तबियत काफ़ी ख़राब हो गयी थी. ऐसे में सीवान सदर अस्पताल के ही एक कर्मचारी ने प्रीति की मां अंजलि देवी को साहिल के बारे में जानकारी दी. अंजलि देवी बताती हैं-

मेरी बच्ची की तबियत बहुत बिगड़ गयी थी और अस्पताल के ब्लड बैंक में खून नहीं था. ब्लड बैंक में कहा गया कि जब ब्लड ही नहीं है तो हम लोग कहां से मुहैया करवाएंगे. तब साहिल का नंबर मिला. उन्होंने आधे घंटे में ही डोनर की व्यवस्था करवा दी. पहले हमको लगा था कि इसके बदले में हमसे पैसे की मांग की जायेगी और हम तैयार भी थे लेकिन साहिल ने एक भी रुपया लेने से साफ़ इनकार कर दिया.

लेकिन जब सरकारी अस्पतालों में ब्लड की कमी रहती है तो उसमें साहिल अपने नेटवर्क से डोनर्स की व्यवस्था कैसे कर लेते हैं. इस सवाल का जवाब देते हुए साहिल बताते हैं

मुझसे पहले भी एक टीम थी डिस्ट्रिक्ट ब्लड इन गोपालगंज (District Blood In Gopalganj) पहले मैं उस ग्रुप से जुड़ा. लेकिन वो टीम सुदूर ग्रामीण इलाकों में नहीं पहुंच रही थी. इस वजह से मैंने ग्रामीणों को जोड़ना और उनमें जागरूकता फैलाना शुरू किया. उसके बाद कुछ वालंटियर्स जुड़े जो ग्रामीणों को व्हाट्सएप्प ग्रुप में जोड़ना शुरू किये. साल भर में हम लोगों ने सिर्फ़ सीवान में ही 10 हज़ार लोगों का एक नेटवर्क बना लिया. अब अगर किसी भी बच्चे को ब्लड की ज़रूरत होती है तो हमलोग व्हाट्सएप्प के ज़रिये 10 हज़ार लोगों तक मैसेज पहुंचा देते हैं. जिसके बाद अब लोग खुद ही वालंटियर करके ब्लड डोनेट करने का काम करते हैं.

एक ऐसे ही ब्लड डोनर मुकेश बताते हैं

हमलोग इस व्हाट्सएप्प ग्रुप से जुड़े हुए और जैसे ही किसी बच्चे को ज़रुरत होती है हमलोग के ग्रुप में मैसेज आ जाता है. जिसके बाद हम में से कोई भी जाकर ब्लड डोनेट कर देता है. हमारा बस एक ही मकसद है कि किसी भी हालत में ब्लड की कमी की वजह से किसी बच्चे को कोई परेशानी का सामना ना करना पड़े.

नेशनल ब्लड ट्रांसफ्यूज़न कौंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में 84 ब्लड बैंक हैं जिसमें सिर्फ़ 72 ही कार्यरत हैं. इसके अलावा बिहार के 5 जिले ऐसे हैं जिसमें कोई भी ब्लड बैंक मौजूद नहीं हैं. सीवान में केवल 2 ब्लड बैंक मौजूद हैं. साथ ही पूरे बिहार में 10 लाख लोगों पर सिर्फ़ 0.7 ब्लड बैंक का रेश्यो मौजूद है. केन्द्रीय राज्य स्वास्थ्य मंत्री अश्विनी चौबे ने संसद में एक जवाब में ये बताया था कि

सार्वजनिक स्वास्थ्य, राज्य का विषय है. राज्य सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वे अपनी आवश्यकता के अनुसार ब्लड बैंकों की स्थापना सुनिश्चित करें.

केंद्र और राज्य सरकार के बीच जवाबदेही से बचने के खेल में बिहार के बच्चों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है. साहिल जैसे युवा अपनी ओर से इसे दुरुस्त करने की कोशिश तो कर रहे हैं लेकिन सरकार का दायित्व बनता है कि इस स्वास्थ्य समस्या का निपटारा करें.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *