बिहार का एक मुसहर टोला जहां पर लोग सिर्फ़ बिसलेरी का पानी पीते हैं

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Rahul Gaurav
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बिहार का एक मुसहर टोला जहां पर लोग सिर्फ़ बिसलेरी का पानी पीते हैं
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बिहार के सुपौल जिला के कटैया पंचायत वार्ड नंबर 7 में 95% से ज्यादा मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। जिनमें लगभग सभी लोग बीपीएल के अंतर्गत आते हैं। अधिकतर परिवार का घर दिल्ली और पंजाब के भरोसे चल रहा है। इसी पंचायत के 37 वर्षीय सुरेंद्र बताते हैं कि,

हमारे वार्ड के लगभग 50 से ज्यादा घरों में पानी खरीद कर पिया जाता है। गांव के ही 3-4 नवयुवक को किडनी से संबंधित बीमारी हो गया था, उसके बाद कुछ एनजीओ के सदस्यों और सरकारी लोगों ने आकर शुद्ध पानी पीने की सलाह दी।  जिसके बाद खरीद कर पानी पीने का सिलसिला शुरू हुआ।

बिहार के सुपौल जिला के कटैया पंचायत वार्ड नंबर 7 जहां 95% से ज्यादा मुसहर समुदाय के लोग रहते हैं। पिछले 3 साल पहले जल नल योजना के तहत टंकी बैठाया गया था। कटैया के ही शिक्षामित्र अरुण मंडल बताते हैं कि

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शुरुआत में लोग पानी भर कर घर ले जाते थे। पानी भी स्वच्छ रहता था। धीरे-धीरे पानी भी पीला आने लगा। सरकारी या रोड वाले नल का टोटी टूट गया। अब कहीं कहीं जल नल योजना वाले पानी से कपड़ा धोते लोग मिल जाते हैं।

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(सदर हॉस्पिटल सुपौल में डायलिसिस मरीज का कक्ष)

ब्रिटेन के मैनचेस्टर विश्वविद्यालय और पटना में महावीर कैंसर संस्थान और अनुसंधान केंद्र, फुलवारीशरीफ द्वारा किए गए एक अध्ययन में बिहार के 10 जिलों में भूजल को दूषित करने वाला यूरेनियम पाया गया है। इस रिसर्च के आने के बाद भी सरकार के द्वारा कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं लिया गया हैं। 

बिहार के सदर अस्पताल सुपौल में अंशु कुमारी विगत एक साल से अपनी किडनी का इलाज करा रही है। अंशु के भाई नवनीत बताते हैं कि

अंशु का पहले इलाज पटना के आईजीएमएस में हो रहा था। घर वालों के पास पैसे की कमी है इसलिए डॉक्टर ने शुद्ध पानी पीने की सलाह देते हुए सुपौल के अस्पताल में ही डायलिसिस करने की सलाह दी थी। अभी सिर्फ अंशु नहीं बल्कि पूरा परिवार खरीद कर पानी पीता है।


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महावीर कैंसर संस्थान एवं यूनिवर्सिटी आफ मैनचेस्टर के संयुक्त तत्वावधान रिसर्च के अनुसार बिहार के 6 जिलों के पानी में यूरेनियम की मात्रा मानक से दोगुने से ज्यादा मिली है। पहले भी इस जिले के पानी में आर्सेनिक की मात्रा हद से ज्यादा थी‌। यूरेनियम किडनी और कैंसर जैसे रोग तो देता ही है, साथ में इसका प्रभाव डीएनए पर भी पड़ता है।

इस रिसर्च में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाने वाले महावीर कैंसर संस्थान में रिसर्च करने वाले वैज्ञानिक बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डा. अशोक कुमार घोष बताते हैं कि,

बिहार के कई जिलों के पानी में आर्सेनिक की मात्रा पहले भी पाई गई थी। लेकिन फिर तय किया गया कि कुछ अन्य खनिजों का भी पता लगाया जाए। इस सिलसिले में राज्य के सभी 38 जिलों में 273 जगहों से कुंआ और चापानल समेत 46 हजार से भी अधिक ग्राउंड वॉटर सैंपल लिए गए। इससे पता चला कि राज्य के सुपौल, पटना, सिवान, गोपालगंज, सारण, नवादा और नालंदा जिले के पानी में यूरेनियम की मात्रा मानक से काफी अधिक है।

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(नल जल योजना में लगा प्यूरीफायर अगर सही से काम करे तो किडनी मरीज़ की संख्या कम हो सकती है)

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के अनुसार पानी में यूरेनियम की मात्रा 30 माइक्रोग्राम प्रति लीटर (एमपीएल) से अधिक नहीं होनी चाहिए, किंतु राज्य के 4 से 5 जिलों में पानी में यूरेनियम की मात्रा 50 एमपीएल से अधिक मिली। वहीं सुपौल जिले के सैंपल में तो 80 एमपीएल तक यूरेनियम पाया गया।

पटना मेडिकल कालेज एण्ड हास्पिटल (पीएमसीएच) के कैंसर विभाग के अध्यक्ष डा. पीएन पंडित के मुताबिक

यूरेनियम किडनी को सर्वाधिक प्रभावित करता है। इसलिए यूरेनियम से किडनी और लीवर की बीमारियां बढ़ जाती हैं।पानी में यूरेनियम का पाया जाना काफी चिंताजनक है। इसके बाद सदर अस्पताल सुपौल की रिपोर्ट हैरान करती है। 

सुपौल के सदर अस्पताल के डायलिसिस सेंटर पर काम कर रहे राजकुमार ने डायलिसिस पेशेंट के आंकड़े को डेमोक्रेटिक चरखा से सांझा किया। राजकुमार के दिए आंकड़े के मुताबिक 2020 के दिसंबर महीने में किडनी पेशेंट की संख्या 5 थी, फिर 2021 के जनवरी महीने में 12, फरवरी में 13, मार्च में 16, जून में 19, अक्टूबर में 26, नवंबर में 30 दिसंबर महीने में 33, फिर 2022 के जनवरी महीने में 37 और अभी 51 किडनी के पेशेंट सदर अस्पताल सुपौल में एडमिट हैं। सुपौल जिले के सदर अस्पताल में किडनी पेशेंट की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। सुपौल सदर अस्पताल की तरह ही पड़ोसी जिला स्थित सदर अस्पताल अररिया में भी किडनी पेशेंट की संख्या बढ़ रही हैं। 

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(सदर हॉस्पिटल अररिया जहां सदर अस्पताल सुपौल की तरह दिनों दिन किडनी मरीज की संख्या बढ़ती जा रही है।)

सुपौल में स्वास्थ्य सेवा में काम कर रहे राजू मंडल बताते हैं कि,

सुपौल में सदर अस्पताल को छोड़कर एक भी ठीक-ठाक अस्पताल नहीं है। सुपौल के 70% से ज्यादा किडनी मरीज पटना, दरभंगा या फिर दिल्ली जाते हैं। जिसके घर की स्थिति बहुत ही कमजोर रहती है वहीं सदर अस्पताल में भर्ती होते हैं। जिलें में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति बहुत खराब है।

हाल में स्वास्थ्य सेवा से जुड़े संगठनों और सरकारी रिपोर्ट के अनुसार जिला अस्पताल में कम से कम 220 बिस्तर होने चाहिए लेकिन सुपौल और अररिया जिले के डायलिसिस सेंटर में क्रमशः सिर्फ 11 और 24 बिस्तर लगा हुए हैं। वहीं पूरे सदर अस्पताल में अगर आप कैंसर या टीवी जैसे खतरनाक बीमारी के पेशेंट को ढूंढेंगे तो एक भी नहीं मिलेगा। 

आस्था कैंसर हॉस्पिटल के सह डायरेक्टर और कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ. एसके झा बताते हैं कि “बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में हाल के दौर में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है। खास कर गंगा और सोन के तटवर्ती इलाकों के लोगों में गोल ब्लाडर के कैंसर के मामले बढ़े हैं। इसकी वजह पानी में यूरेनियम की मौजूदगी भी हो सकती है।”

बिहार के जानेमाने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल सिंह बताते हैं कि,

जल नल योजना के तहत बिहार के ज्यादातर मुखिया पर कमीशनखोरी से लेकर प्रोजेक्ट को पूरा कराने में लेट-लतीफी बरतने, काम की खराब गुणवत्ता जैसे गंभीर आरोप हैं। जल नल योजना पैसा कमाने का एक बढ़िया जरिया बन चुका है। इस बार बिहार पंचायत चुनाव में वार्ड सदस्य में अधिक संख्या खड़ा होने का मुख्य वजह भी जल नल योजना ही था।

डॉ अशोक कुमार घोष बताते हैं कि “हमें दूषित पानी से आयरन और आर्सेनिक दोनों को हटाना होगा। इसके लिए कुएं का पानी सबसे बेहतरीन उपाय है लेकिन अब कुएं के पानी के पास जाएगा कौन? इसके लिए बिहार में जागरूकता की कमी है। महाराष्ट्र के कई जगह में कुएं का उपयोग शुरू हो चुका है। धीरे-धीरे बिहार को भी कुआं अपनाना ही पड़ेगा।”

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(बिहार में नल जल की दयनीय स्थिति)

देश में लोगों को पीने का साफ़ पानी उपलब्ध कराने के लिए पानी के लिए भारत सरकार ने साल 2019 में हर घर नल से जल’ योजना शुरू की थी। भारत सरकार के जल जीवन मिशन – हर घर जल कार्यक्रम के अनुसार 21 नवंबर, 2021 तक के आंकड़े के मुताबिक बिहार में 88.63 प्रतिशत घरों में नल के पानी की आपूर्ति है। यानी बिहार के 17,220,634 घरों में से 15,262,678 घरों में नल कनेक्शन हैं। नीतीश कुमार ने भी 2015 विधानसभा चुनाव में अपने घोषणा पत्र में सात निश्चय किया था उसमें से एक निश्चय हर घर को स्वच्छ नल का जल देना भी था। अगर बिहार सरकार ने जिस महत्वकांक्षा के साथ नल-जल योजना की शुरुआत की थी उसी महत्वकांक्षा के साथ अगर ज़मीन पर योजना दिखाई देती तो बिहार में बढ़ रही किडनी की बीमारी को रोका जा सकता था।