ह्यूमन मिल्क बैंक: राज्य में 31.1% बच्चे को ही मिल पाता है ‘मां का दूध’

ह्यूमन मिल्क बैंक: मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए संपूर्ण आहार होता है. जन्म के छह महीनों तक नवजात बच्चों को केवल मां का दूध देना ही पर्याप्त

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पल्लवी कुमारी
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ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

ह्यूमन मिल्क बैंक: मां का दूध नवजात शिशुओं के लिए संपूर्ण आहार होता है. जन्म के छह महीनों तक नवजात बच्चों को केवल मां का दूध देना ही पर्याप्त होता है. डॉक्टर भी कहते हैं जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात बच्चों को मां का दूध पिलाना आवश्यक होता है. लेकिन प्रत्येक नवजात शिशु को मां का दूध कई कारणों से नहीं मिल पाता है. जिसके कारण बच्चे कुपोषण, कमज़ोर इम्युनिटी और असमय मृत्यु का शिकार हो जाते हैं.

ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

गया जिले के बेलागंज की रहने वाली लवली कुमारी जून महीने में ही मां बनी है. गया के निजी अस्पताल में उनकी डिलीवरी हुई है. लेकिन चिकित्सकीय कारणों से डॉक्टर ने उन्हें अपने बच्चे को दूध पिलाने से मना किया है. ‘मां के दूध’ की जगह बच्चे को फार्मूला मिल्क पिलाया जा रहा है.

लवली बताती हैं

मेरी मेडिकल कंडीशन बच्चे को दूध पिलाने के लिए सही नहीं है. ऐसा डॉक्टरों का कहना है. मुझे कई तरह की दवाएं और इंजेक्शन दिए जा रहे थे. ना चाहते हुए भी मुझे अपने बच्चे को पाउडर वाला दूध पिलाना पर रहा था. मेरे पहले बच्चे को भी इसी समस्या से गुज़रना पड़ा था.

लवली के पति लखनऊ में बिजली विभाग में पोस्टेड हैं. वहां पारिवारिक सहयोग नहीं होने कारण लवली को बिहार आकर अपने बच्चे को जन्म देना पड़ा. लवली आगे कहती हैं

अगर मैं लखनऊ में रहती तो मेरे बच्चे को मां का दूध मिल जाता. क्योंकि वहां इस तरह की सुविधा उपलब्ध है. लेकिन यहां ऐसी कोई सुविधा नहीं है.

मदर मिल्क बैंक की स्थापना नहीं कर सका है बिहार

नवजात शिशुओं को असमय मृत्यु और कुपोषण से बचाने के लिए पूरे विश्व और भारत में कई राज्यों में ‘मदर मिल्क बैंक’ चलाया जा रहा है. जहां स्वस्थ मां के दूध को नवजात शिशुओं के लिए संरक्षित करके रखा जाता है. यहां वैसी मां अपना दूध दान करती हैं, जो किसी कारणवश अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती हैं.

कई बार मेडिकल कंडीशन (स्थिति) सही नहीं होने के कारण डॉक्टर खुद मां को बच्चे को दूध पिलाने से मना करते हैं. या फिर वैसी मां भी अपना दूध दान कर सकती हैं जिन्हें उनके बच्चे की आवश्यकता से ज़्यादा दूध आ रहा है. वहीं ऐसी मां जिनके बच्चे की मृत्यु हो गयी है वो किसी अन्य बच्चे के जीवन के लिए दूध दान कर सकती हैं.

ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

राज्य में कई मां ऐसी हैं जो अपना दूध दान तो देना चाहती हैं, लेकिन राज्य में मिल्क डोनेट करने की कोई सुविधा नहीं होने के कारण नवजात शिशुओं के लिए अमृत समान दूध बर्बाद हो जाता है. और कई बच्चे जिन्हें इस दूध की आवश्यकता है वो इससे वंचित रह जाते हैं.

बिहार शरीफ़ की रहने वाली मधु कुमारी भी अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती थी. मधू बताती हैं

जन्म के समय से ही मेरे बेटे के आंत में ब्लॉकेज था. जिसके कारण तुरंत ही उसके आंत का ऑपरेशन कराना पड़ा. इस कारण मैं उसे दूध नहीं पिला सकती थी. उस दौरान पूरे एक-डेढ़ महीने मुझे बहुत परेशानी हुई थी.

मधु बताती हैं

अगर उस समय मेरे आसपास कहीं मिल्क डोनेट करने की सुविधा होती तो मैं ज़रूर करती.

ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

7 साल पहले शुरू होने वाला था मिल्क बैंक

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति साल 2016 में ही राज्य में ‘मदर मिल्क बैंक’ की स्थापना करने वाली थी. लेकिन विडंबना यह है कि सात साल बीतने के बाद भी राज्य में मिल्क बैंक की स्थापना नहीं की जा सकी है.

बिहार राज्य स्वास्थ्य समिति में एसपीओ (SPO) चाइल्ड हेल्थ बिजय प्रकाश राय बताते हैं

बिहार में अभी मदर मिल्क बैंक के प्रोग्राम पर कोई काम नहीं हो रहा है. बिहार के पर्सपेक्ट में मिल्क बैंक की योजना अभी शुरू नहीं हुई है. पिछले वर्ष पीआईपी में इस पर चर्चा हुई थी लेकिन इस पर योजना नहीं बनी. लेकिन लैक्टेसन मैनेजमेंट यूनिट की शुरुआत की गयी है.

ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

राज्य स्वास्थ्य समिति के स्टेट प्रोग्राम मैनेजर अविनाश कुमार पांडेय कहते हैं

अभी इस तरह की किसी योजना की तैयारी नहीं है.

महिला रोग विशेषज्ञ डॉ ऋतू बताती है

बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में नेचुरल रूप से दूध बनना शुरू हो जाता है. जो नवजात के लिए पर्याप्त होता है. लेकिन कभी-कभी महिलाएं किसी कारण अपने बच्चे को दूध नहीं पिला पाती है. दूध नहीं निकाले जाने से महिलाओं के स्तन में गांठ हो सकती है. ऐसे में इन माओं को दूध सूखने की दवा खानी पड़ती है. या फिर दूध को निकाल कर फेंकना पड़ता है.

शिशू मृत्यु दर में कमी लाने के उपायों में एक उपाय नवजात शिशुओं के लिए ‘मां के दूध’ की व्यवस्था करना भी है.

राज्य में 31.1% बच्चे को ही मिल पाता है ‘मां का दूध’  

वर्ष 2030 तक नवजात शिशुओं और 5 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में असामान्य मौतें कम करना सभी देशों का लक्ष्य है. नवजात शिशु मृत्‍यु दर को घटाकर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर कम-से-कम 12 करना और 5 वर्ष से कम आयु के बच्‍चों में मृत्यु दर को घटाकर प्रति कम-से-कम 25 करना है.

मां का दूध छोटे बच्चों के संपूर्ण और स्वस्थ विकास के लिए बहुत ही आवश्यक है. जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का दूध देना उनकी एक साल के अंदर मौत के आंकड़ों को बहुत हद तक कम कर सकता है. लेकिन NFHS-5 के आंकड़े बताते हैं की देश में 41.8% बच्चों को ही जन्म के ए घंटे के अंदर मां का दूध मिल सका है.

वहीं बिहार में यह आंकड़ा और कम है. यहां मात्र 31.1% बच्चों को ही एक घंटे के अंदर मां का दूध मिल सका है. वहीं 6 से 8 महीनों के मात्र 39% बच्चों को ही मां के दूध के साथ पर्याप्त ठोस आहार मिल पाता है. 

ह्यूमन मिल्क बैंक - मां का दूध

शिशु मृत्यु दर में कमी लाता है ‘मां का दूध’

NFHS-5 रिपोर्ट बताता है कि देश में प्रति 1,000 जीवित बच्चों के जन्म पर 35.2 बच्चों की मौत हो जाती है.

संयुक्त राष्ट्र संगठन भी सभी देशों में स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रहा है. इस अभियान में कहा गया है कि जिन बच्चों को उनकी माताएं स्तन पान नहीं कराती हैं, उनकी एक साल का होने से पहले मौत की आशंका 14 गुना बढ़ जाती है.

नवजात मृत्यु दर प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर पहले 28 दिन की अवधि के दौरान बच्चों की मौतों की संख्या को दर्शाता है. NFHS-5 के रिपोर्ट बताती है कि बिहार में प्रति 1,000 बच्चों के जन्म पर 47 नवजात बच्चों की मृत्यु हो जाती है.