महाजन से कर्ज़ा लिए थे। हमारा 5 बच्चा है, कमाने वाला कोई है नहीं। एक दिन एक आदमी आया और कहा कि अपना एक बेटा मेरे साथ भेज दो हम 4 हज़ार रुपया देंगे। हमको नहीं पता था कि वो हमारे बच्चे को बेच देगा।
सुखिया देवी डेमोक्रेटिक चरखा की टीम से बात करते हुए भावुक हो जाती है। लेकिन बिहार में ये कहानी सिर्फ सुखिया देवी की नहीं है। बिहार में अनेकों ऐसे परिवार हैं जो ह्यूमन ट्रैफिकिंग के शिकार हैं।
करीब दो सप्ताह पहले गया जिले के चार बच्चों को तब उस वक्त रेस्क्यू किया गया, जब उनको इंदौर की चूड़ी फैक्ट्री में काम कराने के लिए ले जाया जा रहा था। इन सभी बच्चों का ताल्लुक समाज के उस वर्ग से है, जिनके पास खाने के लिए दो वक्त का भोजन बमुश्किल जुगाड़ हो पाता है।

कोरोना की दूसरी लहर, गया जिले में ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वालों का एक संगठित गिरोह करीब 17 बच्चों को लेकर गया से जयपुर लेकर जा रहा था। गिरोह का उद्देश्य इन बच्चों को जयपुर के चूड़ी उद्योग में काम कराने को लेकर था। समय रहते इस गिरोह के चाल की जानकारी इन बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था सेंटर डायरेक्ट के कार्यकारी निदेशक सुरेश कुमार को मिली। जिसके बाद इन बच्चों को गया के बॉर्डर पर रेस्क्यू किया गया।

ह्यूमन ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में लंबे वक्त से कार्य कर रहे सुरेश कुमार कहते हैं,
यह इतना घिनौना कार्य है कि इसकी तुलना किसी से भी नहीं की जा सकती है। वह कहते हैं, ऐसे कार्य करने वालों के मुख्य इशारे पर वीकर सेक्शन के ही लोग रहते हैं ताकि उनके मनोबल को आर्थिक लालच देकर आसानी से तोड़ा जा सके।
सुरेश बताते हैं, दरअसल ऐसे गिरोह संगठित तरीके से कार्य करते हैं, इसलिए इनके जाल को भी इसी तरीके से तोड़ना पड़ता है। वह कहते हैं, जब चार बच्चों को लेकर गिरोह जा रहा था तब हमने अपने वॉलंटियर द्वारा मिली सूचना पर आरपीएफ और जीआरपी की मदद ली। फिर इन बच्चों को रेस्क्यू करने में मदद मिल सकी। सुरेश बताते हैं, दरअसल उनकी संस्था जिला से लेकर पंचायत स्तर पर अपने वॉलंटियर की टीम को तैयार कर के रखती है, जिसका एकमात्र उद्देश्य मानवता की सेवा करना है।

दरअसल ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर जो बातें सामने आ रही हैं। वह किसी प्राइवेट संस्थान की तरफ से तैयार की हुई रिपोर्ट नहीं है। केंद्र सरकार के आंकड़े ही इस बात की तस्दीक कर रहे हैं कि चाहे कानून व्यवस्था को बेहतर करने को लेकर लाख दावे किए जाते रहे हैं लेकिन मानव के व्यापार जैसा घिनौना कार्य लगातार जारी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार साल 2018 में पूरे बिहार से ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 179 मामले सामने आए। इनमें से 231 पीडित पक्ष ने अपनी दुश्वारियों को लोगों के सामने रखा। 2017 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 121 मामले दर्ज किए गए थे।
इसका सबसे सोचनीय पक्ष यह है कि इन मामलों में किसी के खिलाफ भी चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकी थी। केंद्र सरकार के इस आधिकारिक आंकडों के अनुसार 2017 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर बिहार पूरे देश में तीसरे नंबर पर रहा। इस सूची में पहले स्थान पर राजस्थान तथा दूसरे नंबर पर पश्चिम बंगाल का स्थान था। एनसीआरबी के एक और आंकडें के अनुसार 2017 में बिहार में कुल 395 यानि प्रतिदिन औसतन एक बच्चे को ह्यूमन ट्रैफिकिंग से बचाया गया। इसी प्रकार एनसीआरबी की आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार 2016 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग के 43 मामले सामने आए थे।

बिहार के डीजीपी रह चुके पूर्व आईपीएस सुरेश कुमार भारद्वाज कहते हैं,
ह्यूमन ट्रैफिकिंग के लिए वैसे रास्ते सेफ पैसेज बन जाते हैं, जो नेपाल से लगे होते हैं। वह कहते हें, बिहार के कई ऐसे शहर हैं, जिनसे देश के बडे शहर सीधे संपर्क में हैं। इस घ्रणित कार्य को अंजाम देने वाले नेपाल के रास्ते लडकियों, बच्चों को अपने जाल में फंसाते हैं और देश के कई हिस्सों में भेज देते हैं।

वह कहते हैं, इसके कई कारण हैं। जैसे गरीबी, भूखमरी, साक्षरता में कमी और जनसंख्या में वृद्धि । जो लडकियां होती हैं, उनको जबरन देश व्यापार के धंधे में उतार दिया जाता है। वह यह भी बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि इसे खत्म करने के लिए कानून नहीं है। कानून है और बहुत कड़ा है। कई ऐसे एनजीओ भी हैं, जो कार्य करते हैं। इसमें कार्रवाई भी होती है। जिनको रेस्क्यू किया जाता है, उनको संरक्षण गृह में रखा जाता है। इस केस की मॉनिटिरिंग हाईकोर्ट के लेवल पर की जाती है। वह कहते हैं, अगर ऐसे मामलों में कमी लाना है तो इसके लिए कई स्तर पर बड़ी पहल करने की जरूरत होगी। लोगों में जागरूकता लाना होगा। एनजीओ के दायरे को बढ़ाना होगा। साक्षरता पर ध्यान देना होगा और नशाखोरी पर भी रोक लगानी होगी।
दरअसल मानव तस्करी जैसे कार्य में कई तरह के घिनौने अपराध शामिल हैं। तस्करी के द्वारा ऐसे लोगों से देह व्यापार के लिए यौन शोषण, जबरन घरेलू दासता, जबरदस्ती शादी करवाना, मानव अंगों का व्यापार तथा ऑनलाइन यौन शोषण भी शामिल है। एनसीआरबी के आंकडों पर गौर करें तो ह्यूमन ट्रैफिकिंग एक बड़ी समस्या बन चुकी है और कड़े कानून होने के बाद भी इस अपराध में कोई कमी नहीं आ रही है। यह देश के सबसे तेजी से बढते अपराध में शामिल हो रहा है और बिहार समेत देश के कई दूसरे राज्यों में यह पूरी तरह से फैल चुका है।

सुरेश बताते हैं, पूरे बिहार में गया एकमात्र ऐसा जिला है जिसके माथे में एक कलंक का दाग है, जिसे गया जिला कभी अपनाना नहीं चाहता है। दरअसल यह एक ऐसा शहर है जहां पर पूरे बिहार में सबसे ज्यादा बाल श्रमिक हैं। वह कहते हैं, सन 2011 की जनगणना के अनुसार पूरे राज्य में करीब 11 लाख बाल श्रमिक हैं, जिनमें से केवल गया जिले में ही 80 हजार बाल श्रमिक हैं। यह सभी बच्चे ह्यूमन ट्रैफिकिंग करने वालों के निशाने पर रहते हैं।
दरअसल वैसे उद्योग जिनमें बारिक काम करने की जरूरत होती है, उनमें छोटे बच्चों की डिमांड होती है। कपास उद्योग, चूडी उद्योग में नाजुक उंगलियों से बेहतर काम होता है, जिससे यह बच्चे गिरोह के निशान पर रहते हैं। इससे पहले गया से जो भी बच्चे ले जाए जा रहे थे या फिर जिनको रेस्क्यू किया जाता था, उनमें जयपुर, फिरोजाबाद जैसे जगहों के नाम सामने आते थे लेकिन इस बार यह पहला मौका है जब इंदौर जैसे शहर का नाम इस गिरोह द्वारा सामने आया है। दरअसल सरकार अपने स्तर पर संचालित योजनाओं को और पुख्ता तरीके से लागू करे और वक्त वक्त पर उसका संचालन बेहतर तरीके से करे तो इसके बेहतर परिणाम सामने आ सकते है लेकिन तब तक इन बच्चों, लड़कियों या इन जैसों और को गिरोह के चंगुल से छुपाना और बचा कर के रखना बडा ही दुश्वार कार्य है।

ह्यूमन ट्रैफिकिंग रेस्क्यू पर काम करने वाले सुरेश बताते हैं, ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर भी अलग-अलग तरह से गिरोह द्वारा कार्य किया जाता है। वह बताते हैं, बिहार में ज्यादातर जो ट्रैफिकिंग होती है, वह बाल श्रम को लेकर होती है, जबकि पड़ोस के झारखंड राज्य से लड़कियों की ट्रैफिकिंग की जाती है और उनको देह व्यापार के गंदे कार्यों के अलावा अन्य घिनौने कार्य में धकेल दिया जाता है।
केंद्र सरकार और राज्य सरकार के पास ह्यूमन ट्रैफिकिंग को लेकर आंकड़ा और उसे रोकने के लिए कानून तो बने हुए हैं लेकिन फिर भी सरकार की नाक के नीचे से बच्चों की तस्करी को अंजाम दिया जाता है।