राजधानी पटना स्थित IGIMS कम ख़र्च में बेहतर सुविधाओं के लिए जाना जाता है. बिहार के दूर दराज के जिलों से मरीज IGIMS में हार्ट जांच और अन्य बड़ी बिमारियों का इलाज करवाने आते हैं. मरीज़ बेहतर इलाज के उम्मीद में अस्पताल आते हैं. लेकिन क्या मरीज़ों को IGIMS में बेहतर इलाज मिलता है?
कई दिनों तक IGIMS में हार्ट जांच के इंतज़ार में गयी युवक की जान
वैशाली से आईजीआईएमएस में हार्ट का इलाज कराने आए एक 25 वर्षीय युवक की मौत हो गयी. परिजन का आरोप है कि समय पर उचित इलाज नहीं मिलने से उसकी मौत हुई है. सीने में कभी-कभी दर्द रहने पर परिजन उसे आईजीआईएमएस के कार्डियोलॉजी विभाग में दिखा रहे थे. जहां डॉक्टर ने उसे ईसीजी और इको के साथ होल्टर जांच करवाने को कहा था.
ईसीजी और इको जांच करवाने के बाद उसे होल्टर जांच के लिए एक सप्ताह तक इंतजार करना पड़ा. एक सप्ताह बाद होल्टर जांच करवाने के बाद बताया गया कि रिपोर्ट सहीं नहीं है, दोबारा जांच करानी होगी. दोबारा जांच करवाने के लिए अस्पताल से कॉल कर बुलाया जाएगा.
मरीज़ तीन दिनों तक अस्पताल से कॉल आने का इंतज़ार करता रहा. लेकिन चौथे दिन उसकी मौत हो गयी. निजी अस्पताल में मौत का कारण हार्ट अटैक बताया गया.
परिजन युवक की मौत का जिम्मेदार अस्पताल प्रशासन पर लगा रहे हैं. उनका कहना है यदि समय पर जांच और रिपोर्ट मिल जाती तो युवक बच सकता था.
इससे पहले भी IGIMS पर लगा है लापरवाही का आरोप
साल 2019 में शशि रमण नामक एक मरीज़ की मौत हुई थी. परिजनों ने इसकी वजह अस्पताल में इलाज की कमी बताई थी. परिजनों ने शशि रमण की मौत के बाद अस्पताल में काफ़ी हंगामा भी किया था. साल 2023 में ही मार्च के महीने में टीबी चेस्ट की मरीज़ श्रुति श्रद्धा की मौत हुई थी. उस समय भी परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगाया था. परिजनों के अनुसार
श्रुति की तबीयत लगातार बिगड़ती जा रही थी. हमने इसकी जानकारी नर्सिंग स्टाफ को दी. डॉक्टर को बुलाने का भी आग्रह किया, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई.
क्या होल्टर जांच समय पर नहीं होने से मौत हो सकती है?
ऐसे में यह जानना ज़रूरी है. क्या होल्टर जांच सही समय पर नहीं मिलने से मरीज की मौत हो सकती है?
इसपर डेमोक्रेटिक चरखा से बातचीत में आईजीआईएमएस के उप निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक मनीष मंडल कहते हैं,
पता नहीं ये बात कहां से उड़ी है कि होल्टर नहीं होगा तो कार्डियोलॉज़ी में तूफ़ान आ जाएगा. हार्ट के मरीज का इलाज ही नहीं होगा. अगर पटना में 50 कार्डियोलॉजिस्ट हैं. तो उनमें से मात्र 5 के पास ही होल्टर होगा. तो ऐसे में क्या 45 कार्डियोलॉजिस्ट जो इलाज कर रहे हैं. उनका प्रैक्टिस नहीं चल रहा है? होल्टर, एक केवल एक पार्ट है जांच का. जिससे 24 घंटे धड़कन की जांच की जाती है. 24 घंटे में हार्ट की धड़कन कितना था. इसके आलावा किसी अन्य जांच में यह सुविधा नहीं है.
मनीष मंडल आगे कहते हैं
अन्य जांच जैसे ईसीजी, इको या टीएनटी क्षणिक हार्ट रेट बताता है. जैसे स्ट्रेस में टीएमटी करते हैं तो देखते हैं उस समय हार्ट कैसा काम कर रहा है. ईसीजी और इको भी केवल तत्काल (current) हार्ट रेट बताता है. होल्टर जांच की आवश्यकता ऐसे मरीज को पड़ती है जिन्हें कभी-कभी धड़कन बढ़ने की समस्या होती है. जैसे- किसी मरीज का घर पर धड़कन तेज हो लेकिन अस्पताल आते-आते वह नार्मल हो गया है. ऐसे में उसका ईसीजी नार्मल आएगा और पता नहीं चल पायेगा कि मरीज़ की धड़कन कितनी है. ऐसे मरीज़ जिनकी धड़कन थोड़ी गड़बड़ रहती है, उन्हें ही होल्टर जांच की आवश्यकता होती है.
IGIMS में हार्ट जांच की कम मशीन बन रही मौत का कारण?
आईजीआईएमएस में होल्टर जांच के लिए 8 मशीने हैं. जिनमें से 3 मशीन खराब थीं. 3 मशीन खराब होने के कारण होल्टर जांच का ज़िम्मा 5 मशीनों के ऊपर आ गया है. मरीज को जांच के लिए एक सप्ताह से 10 दिन का समय लग जा रहा है. डॉक्टर द्वारा जांच लिखे जाने के बाद मरीजों को बार-बार अस्पताल का चक्कर लगाना पड़ता है.
अस्पताल में मौजूदा कार्यरत होल्टर मशीन की जानकारी देते हुए, आईजीआईएमएस के उप निदेशक सह चिकित्सा अधीक्षक मनीष मंडल बताते हैं, कि अभी अस्पताल में 8 होल्टर मशीने हैं. जिनमें से 5 का उपयोग जांच के लिए किया जा रहा है. क्योंकि तीन मशीने ख़राब थी और कल ही बनकर आयीं हैं. उसे मरीज़ों को देने से पहले अभी टेस्ट फेज़ में रखा गया है. टेस्ट होने के बाद उसे मरीज को दिया जाएगा. साथ ही 10 और मशीने आने की प्रक्रिया में हैं.
रोज़ाना अस्पताल में हार्ट की जांच कराने आने वाले मरीज़ों में से कितने मरीज को होल्टर जांच की आवश्यकता होती है? इसपर मनीष मंडल कहते हैं,
मान लीजिए रोज़ाना 10 मरीज हार्ट की जांच के लिए आते हैं. तो उनमें से किसी एक को भी जांच का आवश्यकता नहीं पड़ेगा. क्योंकि 100 में से मात्र 2% मरीज को ही होल्टर जांच की ज़रूरत पड़ती है. और उसके अलग-अलग मोड्स हैं.
कम उम्र में भी हार्ट अटैक के शिकार हो रहे युवा
हार्ट अटैक को पहले 55 से 60 के उम्र में पहुंच चुके लोगों की बीमारी माना जाता था. लेकिन अब 20 से 30 साल के युवा भी हार्ट भी हार्ट अटैक के शिकार हो रहे हैं. जिसके पीछे का कारण डॉक्टर मानसिक तनाव, एंजाइटी, शराब, स्मोकिंग, जंक फूड जैसी चीज़ों के ज्यादा सेवन को मानते हैं.
बदलते मौसम की वजह से अचानक ब्लड प्रेशर बढ़ने से ब्लड क्लॉटिंग (खून का थक्का जमना) हो जाती है. इसके कारण भी हार्ट अटैक और ब्रेन स्ट्रोक जैसी घटनाएं बढ़ रहीं हैं.
आईसीएमआर (ICMR) द्वारा 2017 में जारी ‘इंडिया: हेल्थ ऑफ़ नेशन’ नाम की रिपोर्ट में देश में होने वाली मौतों के कारणों का डाटा निकाला गया है. रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में देश में होने वाली 100% मौत में 27.5% दूसरों के संपर्क में आने (Communicable Diseases) के कारण होती है. वहीं 61.8% मौत गैर संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases) जैसे-डायबिटीज, हार्ट अटैक, बीपी, ब्रेन स्ट्रोक के कारण होती है. बाकि 10.7% मौत हादसों के कारण हुई थी.
हार्ट अटैक से 28.1% मौत
साथ ही इस रिपोर्ट हार्ट अटैक के कारण होने वाली मौतों के बढ़ते आंकड़े भी पता लगे थे. इस रिपोर्ट के अनुसार गैर संचारी रोगों से होने वाली मौतों में भी हार्ट अटैक के कारण सबसे ज्यादा 28.1% मौते हुई थी जबकि 1990 में यह आंकड़ा 15.2% था.
बिहार में हार्ट अटैक के कारण 15 से 39 वर्ष के 12.8% युवाओं की मौत 2016 में हुई है. वहीं 40 से 69 वर्ष के 33.3% और 70 वर्ष से ज्यादा उम्र के 33.1% लोगों की मौत हार्ट अटैक के कारण हुई थी.