बिहार में बढ़ा कुपोषण का मामला, बिहार के 4 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित

NFHS-5 के रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच साल में देश के प्रत्येक राज्य में कुपोषण के मामले बढ़े हैं. बिहार में पांच साल से कम उम्र के 41% बच्चें कुपोषित हैं. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमे से आधे से ज़्यादा यानी 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. इस बात की जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दिया है. मंत्रालय ने कहा कि देश में इस समय 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं.

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दुनियाभर में पांच साल से कम उम्र के बच्चों के मौत का कारण कुपोषण को माना गया है. डॉक्टरों के अनुसार समुचित पोषण ना मिलने के कारण छोटे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर हो जाती है, जिससे बच्चों को विभिन्न प्रकार के रोग पकड़ने का ख़तरा बना रहता है.

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NFHS-5 के रिपोर्ट के अनुसार बीते पांच साल में देश के प्रत्येक राज्य में कुपोषण के मामले बढ़े हैं. बिहार में पांच साल से कम उम्र के 41% बच्चें कुपोषित हैं. वहीं सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में इस समय 33 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं. इनमे से आधे से ज़्यादा यानी 17.7 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. इस बात की जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक आरटीआई के जवाब में दिया है. मंत्रालय ने कहा कि देश में इस समय 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं.

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पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब के अनुसार महाराष्ट्र में 6,16,772 बच्चे कुपोषित हैं. वही बिहार में 4,75,824 लाख कुपोषित बच्चे हैं साथ ही गुजरात में 3.20 लाख बच्चे कुपोषित हैं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार बिहार में 41% बच्चे कम वजन के हैं. वहीं 25.6 प्रतिशत बच्चों का वजन उनके कद के अनुरूप नहीं है जबकि 10.9% बच्चों का वजन उनके कद के हिसाब से बहुत कम है.

इन सबसे से निपटने के लिए ही सरकार ने आंगनबाड़ी जैसी संस्थाओं का निर्माण किया था. ताकि कोई बच्चा कुपोषित नहीं रहे. एक आंकड़े के अनुसार राज्य में 1.14 लाख आंगनबाड़ी है जिनमे 1.10 लाख आंगनबाड़ी अभी कार्यरत हैं जिनसे 99 लाख बच्चे जुड़े हुए हैं. इनमे 4.70 लाख बच्चे अति कुपोषित हैं और इनमें से अधिकतर आंगनबाड़ी की हालत अच्छी नहीं है. यहां बच्चों के लिए ना ही अच्छे भवन की व्यवस्था है और न उचित पोषाहार की व्यवस्था, ना ही स्वच्छ पानी की व्यवस्था और ना ही शौचालय की व्यवस्था है.

सुबह के 10 बजे हैं और वार्ड-44 के एल.आई.जी. झोपड़पट्टी, आंगनबाड़ी केंद्र पर कोई मौजूद नहीं था. जबकि आंगनबाड़ी संचालन का समय सुबह सात बजे (7:00) से साढ़े ग्यारह (11:30) बजे है. लेकिन इस केंद्र पर 10 बजे तक भी कोई मौजूद नहीं था. यह आंगनबाड़ी एक छोटे से करकट के कमरे में चलता है जिसकी हालत उतनी अच्छी नहीं है. बच्चों के लिए नीचे दरी पर बैठने की व्यवस्था है.

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संजू कुमारी कैलाशपुरी की सेविका हैं. हमारी टीम जब उनके केंद्र पर पहुची उस वक्त 7 से 8 बच्चे वहां मौजूद थे. लेकिन सेविका संजू कुमारी वहां नहीं थी, सहायिका उर्मिला देवी ने बताया दीदी अभी नहीं है. पोषाहार के सवाल पर उर्मिला देवी बताती हैं

यहां रोज़ बच्चों को पोषाहार दिया जाता है. सुबह में हम अंकुरित चना और पपीता देते हैं. उसके बाद 11 बजे चावल-दाल सब्जी या खिचड़ी देते हैं. पहले सुबह में एक बेसन का लड्डू या आटे का लड्डू देते थे. हर दिन अलग-अलग खाने का चार्ट बना है. लेकिन अभी कुछ दिन पहले ही खाना देने का चार्ट बदला है.

वार्ड-44 के अंतर्गत आने वाले आंगनबाड़ी की महिला सुपरवाइजर बबिता कुमारी बताती हैं

जिस केंद्र पर जितने बच्चों का नामांकन रहता है हम उतने बच्चों का पोषाहार देते हैं. किसी दिन 3 से 4 बच्चे अगर कम आते हैं तो उस दिन का पोषाहार अगले महीने में जुट जाता है. केंद्र के कुछ बच्चों का नामांकन प्राइवेट स्कूल में भी रहता है ऐसे में हम उन बच्चों का नाम हटा देते हैं और उनका पोषाहार नहीं दिया जाता है.

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बिहार बढ़ते कुपोषण का एक कारण यह भी है कि यहां प्रशिक्षित आंगनबाड़ी सेविका और सहायिका नहीं है. सामुदायिक स्वास्थ्य पर यहां ध्यान नही दिया जाता है. 6 माह से 23 माह तक के केवल 10 प्रतिशत बच्चों को ही पोषण मिल पाता है.

ये बातें खाद्य सुरक्षा पर काम करने वाले प्रभाकर कहते हैं.

नई शिक्षा नीति का पड़ेगा असर

प्रभाकर आगे कहते हैं

नई शिक्षा नीति आने के बाद से आंगनबाड़ी का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. अब आंगनवाड़ी को उसके नज़दीकी प्राथमिक स्कूल से जोड़ दिया जाएगा. आंगनबाड़ी को बच्चे की प्री-स्कूलिंग की ज़िम्मेवारी भी दी जा रही है. किसी मोहल्ले में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्र पर अपने बच्चे को पहुंचाने की जिम्मेदारी मां की होती है या सेविका बच्चों को घरों से जाकर बच्चों को ले जाती है. लेकिन जब आंगनबाड़ी एक किलोमीटर दूर चला जाएगा, तो ज़ाहिर है बच्चों की संख्या घटेगी.

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क्या है आंगनबाड़ी के लिए नई शिक्षा नीति

बिहार में नई शिक्षा नीति के तहत आंगनबाड़ी केंद्रों को सरकारी स्कूलों से जोड़ने की कवायद शुरू हो गई है. इसके लिए शिक्षा विभाग की ओर से सभी निदेशालयों और जिला शिक्षा अधिकारियों को 25 फरवरी तक डेडलाइन दी गई थी. ​योजना के तहत सभी गांव, पंचायत व प्रखंडों में स्थित आंगनबाड़ी केंद्रों को नजदीकी सरकारी स्कूलों से जोड़ा जाना है. शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव ने आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए आदेश जरी किया था,जिसके तहत आंगनबाड़ी केंद्रों को नजदीकी सरकारी स्कूलों से जूड़ना है.

नई शिक्षा नीति के तहत सरकारी स्कूलों से जुड़ने के बाद स्कूल के एक शिक्षक द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को पठन-पाठन ​कराया जाएगा. हालांकि, जहां सरकारी स्कूल से एक किमी की परिधि में कोई आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होंगे वहां बाल-वाटिका की स्थापना की जाएगी. इसके लिए एरियल मैपिंग भी शुरू हो गई है. आदेश के मुताबिक, बाल वाटिका की स्थापना की जरूरत के लिए कितनी जगह, कितना खर्च और संचालन की सभी जानकारी के साथ प्रस्वात तैयार कर 28 फरवरी तक सौंपना होगा.

नई शिक्षा नीति के तहत आंगनवाड़ी केंद्र को नजदीकी विद्यालय से टैग करने का नियम बना है, क्या आपको इसकी जानकारी है. इस सवाल के जवाब में संजू कुमारी कहती है जानकारी तो है लेकिन किस स्कूल में मेरा आंगनवाड़ी टैग होगा ये हमको नही पता. इसकी जानकारी आपको हमारी सुपरवाइज़र दे सकते है.

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आंगनवाड़ी सुपरवाइजर बबिता कुमारी बताती हैं 

वार्ड-44 के अंदर 15 से ज़्यादा आंगनबाड़ी केंद्र हैं. हर केंद्र को स्कूल में शिफ्ट नहीं किया जा सकता क्योंकि स्कूल में भी कमरे सीमित संख्या में ही होते हैं. स्कूल से ही एक शिक्षक केंद्र पर आकर बच्चों को पढ़ायेंगे. वार्ड 44 के अंदर आने वाले आंगनबाड़ी केन्द्रों को हनुमान नगर सरकारी स्कूल या फिर योगीपुर सरकारी स्कूल से टैग किया जाएगा. स्कूल टैग होने से बच्चो के पोषण देने में कोई लापरवाही नहीं होगी.

बच्चों के स्वस्थ और पोषित होने के लिए मां का स्वस्थ और पोषित होना जरूरी है, लेकिन जब मां ही कुपोषित होगी तो बच्चों को पोषण कैसे मिलेगा? NFHS-5 की रिपोर्ट के अनुसार बिहार की 63% गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं. वहीं 15 से 19 साल की 66% लड़कियां एनीमिया से ग्रस्त हैं. वहीं 15 से 49 साल की 63.5% महिलायें एनीमिया से ग्रस्त हैं.

NFHS-5 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार के नालंदा जिले में सबसे ज़्यादा एनीमिया से ग्रस्त लोग हैं जिनमे बच्चे भी शामिल हैं. वहीं दूसरे स्थान पर जमुई है जहां सबसे ज्यादा खून की कमी से ग्रस्त मरीज हैं. वहीं कुपोषण के मामले में शिवहर को सबसे ज़्यादा कुपोषित जिला बताया गया है. यहां कुपोषण के मामले में 20% की बढ़ोतरी हुई है. वहीं 17% की वृद्धि के साथ जहानाबाद दूसरे तथा 12% की वृद्धि के साथ रोहतास तीसरे स्थान पर हैं. 

बिहार में बढ़ रहे कुपोषण के मामले पर बात करते हुए खाद्य सुरक्षा पर काम करने वाले प्रभाकर बताते हैं

बिहार में कुपोषण को दूर करने के लिए हम पूरी तरह आंगनवाड़ी पर निर्भर नहीं रह सकते. सरकार भी आंगनबाड़ी का इस्तेमाल सही ढंग से नहीं कर रही है. जितना पोषण बच्चों को मिलना चाहिए उतना आंगनबाड़ी पूरा नहीं कर पा रहा है. इसका कारण है CDPO द्वारा दी जाने वाली राशि में कमी. मान लीजिए जिस दिन CDPO आंगनवाड़ी पर विजिट के लिए आए हों उस दिन वहां 5-6 बच्चे कम आए हो और ऐसा CDPO के 2 से 3 विजिट पर हो. ऐसी स्थिति में CDPO बच्चों का औसत निकालकर पोषाहार की राशि दे देतें है. ऐसे में में उन पांच से छह बच्चो का पोषाहार कभी आता ही नहीं है और ऐसे बच्चे पोषण से वंचित रह जाते हैं.

अति कुपोषित बच्चे के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र

अति कुपोषित बच्चों की देखभाल के लिए राज्य सरकार ने पोषण पुनर्वास केंद्र बनाये हैं. पूरे राज्य में 10 बेड वाले केवल 28 पोषण पुनर्वास केन्द्रों के भरोसे बच्चों को कुपोषण मुक्त करने की ज़िम्मेदारी है. इन केन्द्रों में 7 से लेकर 21 दिन तक बच्चों को रखा जाता है. यहां इलाज के साथ-साथ उन्हें पोषण युक्त भोजन भी दिया जाता है. साथ ही इन बच्चों कि देखभाल करने के लिए इनकी मां और अन्य अभिभावक को प्रशिक्षित भी किया जाता है.

प्रभाकर कहते हैं

पटना में केवल दो पोषण पुनर्वास केंद्र हैं और वो भी केवल 10 बेड का. पटना के अति कुपोषित बच्चों को इन्हीं दो केन्द्रों के भरोसे अपना इलाज करवाना होता है. 38 जिलों के इस राज्य में केवल 8 से 10 जिलों में ही ये पोषण पुनर्वास केंद्र संचालित हैं. लेकिन आशा और ममता कर्मचारियों के उदासीनता के कारण बच्चे उन केन्द्रों तक नहीं पहुंच पाते हैं.

इनमें से भी अधिकतर केन्द्रों की हालत उतनी बेहतर नहीं है. राज्य के अलग अलग हिस्सों से लगातार इसपर शिकायते सुनने को मिल जाती हैं. कहीं डॉक्टर मौजूद नहीं है, तो कहीं केवल नर्स के भरोसे मरीजों को छोड़ दिया जाता है कहीं केवल दाल चावल और सब्ज़ी दिए जाने की शिकायत आती है. मरीज़ों की शिकायत रहती है कि उन्हें मौसमी फल और दूध नहीं दिया जाता है.

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