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बिहार में खेल और खिलाड़ियों की बदहाली छुपी हुई नहीं है. क्रिकेट को छोड़कर शायद ही कोई और ऐसा खेल है जिसकी प्रैक्टिस के लिए भी कोई जगह हो. बिहार की राजधानी पटना में इनडोर गेम्स को बढ़ावा देने के लिए पाटलिपुत्रा इनडोर स्टेडियम की शुरुआत की गयी थी. लेकिन पटना को छोड़कर बाकी किसी जिले में इनडोर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए स्टेडियम की व्यवस्था नहीं मौजूद है. साल 1998 में राजधानी पटना से 140 किलोमीटर दूर सीवान जिले में तत्कालीन सांसद मोहम्मद शाहबुद्दीन ने इनडोर स्पोर्ट्स को बढ़ावा देने के लिए एक स्टेडियम का निर्माण किया था. इस स्टेडियम के उद्घाटन में उस वक्त की मुख्यमंत्री राबड़ी देवी मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद थी. आज के समय में ये स्टेडियम जर्जर होकर बंद पड़ा है जिसकी वजह से कई खिलाड़ियों का जीवंन बर्बाद हो चुका है.
आसिफ़ सीवान के एक उभरते बैडमिंटन खिलाड़ी थे. उस समय उन्होंने जिला स्तर तक कई प्रतियोगिताओं में भाग लिया और उसमें पदक भी हासिल किया. डेमोक्रेटिक चरखा से बात करने के दौरान आसिफ़ बताते हैं-
मेरा पूरा जीवन सरकार ने बर्बाद कर दिया है. मेरी दिली तमन्ना थी कि मैं अंतर्राष्ट्रीय खेल में भारत का प्रतिनिधित्व करूं. लेकिन सरकार की लापरवाही की वजह से इनडोर स्टेडियम जर्जर पड़ा है और सीवान या आसपास के किसी भी जिले में प्रैक्टिस करने की भी कोई जगह मौजूद नहीं है.
इस इनडोर स्टेडियम में पूल, बैडमिंटन, टेबल टेनिस, स्विमिंग जैसे कई खेलों की प्रैक्टिस के लिए व्यवस्था की गयी थी. लेकिन आज के समय में पूल टेबल की चादर को चूहों ने बर्बाद कर दिया है, टेबल टेनिस की जगह पर कचरा भरा पड़ा है और हर जगह नशे के सामान रखे हुए हैं. जब डेमोक्रेटिक चरखा की टीम इनडोर स्टेडियम पहुंची ठीक उसी वक्त टीम के सामने छत का एक हिस्सा गिरा जिसमें एक सदस्य को चोट भी आई. इनडोर स्टेडियम की छत हर जगह से टूट रही है और कई जगह नीचे गिर चुकी है. इनडोर स्टेडियम बंद होने के बाद उसके रखरखाव के लिए भी जिला प्रशासन की ओर से किसी को भी ज़िम्मेदारी नहीं दी गयी है.
सीवान में इनडोर स्टेडियम को खोलने के लिए माज़ उर्फ़ी ने लगातार कई सालों से आंदोलन किया है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सीवान दौरे के समय माज उर्फ़ी ने आत्मदाह करने की बात कही थी. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उस समय ये आश्वासन दिया था कि जल्द ही इनडोर स्टेडियम को खोला जाएगा लेकिन उस वादे को भी 4 साल हो चुके हैं.
वित्तीय वर्ष 2022-23 में बिहार में खेल, शिक्षा और कला को 40 हज़ार 828 करोड़ का बजट राज्य सरकार द्वारा आवंटित किया गया है. ये बजट पिछले बार से 16% कम है. राजधानी पटना में फिर भी कई तरह की खेल सुविधा मिल जाती है लेकिन सुदूर गांव के इलाकों में ये सुविधा बिलकुल नहीं मिलती. इसी बात को विस्तार से बताते हुए माज़ उर्फ़ी कहते हैं
सरकार को खेल और खिलाड़ी से कोई मतलब है ही नहीं. नयी संरचना बनाने की तो मांग है नहीं हमारी, हमारी मांग है जो संरचना मौजूद है उसे दुरुस्त करना. बिहार के खेल को बिहार की राजनीति से बर्बाद किया है. इनडोर स्टेडियम अगर आज के समय में खुला रहता तो सीवान से कई बेहतरीन खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे होते. इस स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी सायना नेहवाल भी मैच खेलने आ चुकी हैं, लेकिन फिर भी किसी अधिकारी की नज़र इस स्टेडियम पर नहीं है.
दरअसल इस स्टेडियम के जर्जर होने की वजह को समझने के लिए सीवान की राजनीति को समझना होगा. इस स्टेडियम को उस समय के सांसद शहाबुद्दीन ने बनवाया था. मोहम्मद शहाबुद्दीन के ऊपर कई तरह के मुक़दमे चल रहे थे और जब शहाबुद्दीन की गिरफ़्तारी और चुनाव में हार होती है तो जितने भी संरचना शहाबुद्दीन द्वारा बनवाई गयी होती है उसपर टारगेट कर उसे बंद किया जाता है. कई जगहों पर पूर्व के जिलाधिकारियों ने अलग-अलग मीडिया चैनल को ये बताया है कि ये ज़मीन कब्ज़ा की गयी थी इस वजह से इसे बंद कर दिया गया है.
लेकिन इस दावे में एक बड़ी गलती है. दरअसल ये बात लोगों तक पहुंची कि इस स्टेडियम को सरकार ने सील किया हुआ है. लेकिन ऐसा नहीं है. आखिरी विधानसभा चुनावों में उसी स्टेडियम में पुलिस के रुकने की व्यवस्था की गयी थी और आगामी 10 अप्रैल को स्टेडियम की बाहरी ज़मीन को जादू के शो के लिए किराए पर भी दिया गया है.
राजनीति में खिलाड़ियों की हो रही बुरी दुर्दशा पर सीवान के खिलाड़ी साजिद बताते हैं
जितने भी खिलाड़ी सीवान में थे हमारे साथ वो मध्यमवर्गीय परिवार से थे. सभी का सपना था भारत का खेल में नाम ऊंचा करना. हमने बहुत कुछ दांव पर लगा कर खेला. लेकिन स्टेडियम की स्थिति की वजह से आगे खेल नहीं पाए. आज के समय में अगर सीवान या आसपास के किसी भी जिला के खिलाड़ी को खेलना हो तो उसकी व्यवस्था यहां है ही नहीं. बल्कि उसे या तो पटना जाना होगा या फिर बिहार से बाहर. इस वजह से कई खिलाड़ी अब खेल ही नहीं रहे हैं क्योंकि उनके पास बाहर जाकर खेलने जितना पैसा नहीं है.
इस मामले को और बेहतर ढंग से समझने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने सीवान के जिलापदाधिकारी से बात करने की कोशिश की लेकिन समय नहीं रहने की वजह से वो बात नहीं कर पाए.
आज के समय में कई ऐसे नेशनल खिलाड़ी भी हैं जिनकी ज़िन्दगी बिहार में सही संसाधन नहीं होने की वजह से बर्बाद हो गई. कभी कोई विधायक या सरकारी अफसर खिलाड़ी के मुद्दों पर काम तो नहीं करते लेकिन अगर गलती से कभी कोई बिहारी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर पर खेले तो उसे शुभकामना देते हुए ट्वीट ज़रूर कर देते हैं. बिहार में शायद खेल मंत्रालय का इतना ही काम बचा है.