गोपालगंज जिले के मांझा थाना क्षेत्र की रहने वाली पांच नाबालिग बच्चियां 23 अगस्त को पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन पर मिलती हैं. ये बच्चियां 22 अगस्त की रात अचानक अपने घर से गायब थी. परिजनों की शिकायत पर पुलिस ने तुरंत कार्रवाई करते हुए इन्हें एक महिला के साथ रेलवे स्टेशन से बरामद किया. शुरूआती पूछताछ में महिला ने लड़कियों को काम दिलवाने की बात कही लेकिन सख्ती के बाद उसने देह व्यापर के लिए बेचे जाने की बात कबूल की.
जानकारी के अनुसार महिला बच्चियों परिचित थी और उन्हें काम दिलवाने का झांसा देकर अपने साथ ले जा रही थी. अधिकांश मामलों में तस्करी परिचित व्यक्ति द्वारा ही रोज़गार, शिक्षा, और प्रेम संबंधों का झांसा देकर किया जाता है. मानव तस्करी एक गंभीर सामाजिक समस्या है जो महिलाओं और बच्चों को पुरुषों के मुकाबले सबसे ज़्यादा प्रभावित करता है.
एक आरटीआई (RTI) रिपोर्ट के अनुसार 2016 से 2023 के बीच बिहार में 709 मानव तस्करी के मामले दर्ज हुए हैं. इसमें 408 मामले महिलाओं के तस्करी के लिए रिपोर्ट हुई थी. राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड्स ब्यूरो (NCRB) के अनुसार साल 2022 में राज्य में कुल 751 लोग मानव तस्करी का शिकार हुए थे, जिसमें 252 महिलाएं और 499 पुरुष शामिल थे.
बिहार में लड़कियों से ज्यादा लड़कों की तस्करी
भारत में बाल श्रम और बाल व्यापार एक बड़ी समस्या है. बिहार जैसे राज्य में यह और भयावह हो जाती है क्योंकि यहां गरीबी, अशिक्षा और बेरोज़गारी ज़्यादा है. आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार कुछ पैसों के लिए बच्चों को काम में लगा देते हैं. बाल तस्कर इसी बात का फायदा उठाते हुए परिवार को ज़्यादा पैसे का लालच देकर बच्चों को रोज़गार के नाम पर परिवार से दूर ले जाते हैं.
एनसीआरबी (NCRB) द्वारा साल 2022 में जारी आकड़ों के अनुसार बिहार में 499 लड़के तस्करी का शिकार हुए थे. इनमें 18 वर्ष से कम उम्र के 464 लड़के शामिल थे. उसी वर्ष 252 महिलाएं मानव तस्करी का शिकार हुईं.
बाल तस्करी का एक रूप बच्चों के गायब हो जाने के तौर पर भी देखने को मिलता है. जहां बच्चे गायब होने के बाद परिवार को कभी नहीं मिल पाते हैं.
गुमशुदा बच्चों को लेकर एनसीआरबी (NCRB) द्वारा साल 2022 में जारी आंकड़ों में पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश और बिहार शीर्ष तीन राज्यों में शामिल थे. पश्चिम बंगाल में 19,540 मध्यप्रदेश में 15,087 और बिहार में 12,600 बच्चे गायब हुए थे.
बंधुआ मज़दूर के तौर पर बच्चों का इस्तेमाल
गया जिले में बाल तस्करी के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेंटर डायरेक्ट ट्रैफिकिंग’ द्वारा पिछले पांच सालों में तस्करी और बाल श्रम से 1100 से अधिक बच्चे बचाए गये हैं. तस्कर इन बच्चों को बंधक बनाकर विभिन्न तरह की फैक्ट्रियों जैसे- चूड़ी, बर्तन, कपड़े, चमड़े, या कैमिकल की फैक्ट्रियों या ढाबों में बंधुआ मज़दूर के तौर पर काम कराया जाता हैं.
सेंटर डायरेक्ट ट्रैफिकिंग’ के संस्थापक सुरेश कुमार कहते हैं “कानून बनाने वाले से लेकर समाज में एक आम धारणा बन गई है की गरीब का बच्चा है कमाएगा नहीं तो खाएगा कैसे. ऐसे में तस्करी रोकने की बात गौण हो जाती है. इसी कारण ईट-भट्टों, चूड़ी फैक्ट्री, ढाबा और होटल संचालक गरीब तबके के बच्चे को निशाना बनाते हैं."
इसके अलावा बच्चों की तस्करी यौन शोषण, गोद लेने, मनोरंजक खेल जैसे- सर्कस में कलाबाज़ी, नृत्य मंडली, बाल विवाह, भीख मांगने, अंग व्यापार, नशीली दवाओं की तस्करी सहित कई कार्यों में उपयोग के उद्देश्य से किया जाता है. जहां से इन बच्चों का वापस परिवार के पास लौटना नामुमकिन होता है.
सेक्स ट्रैफिकिंग का शिकार छोटी बच्चियां
भारत में तस्करों का मुख्य शिकार छोटी बच्चियां और महिलाएं होती हैं. वेश्यावृति के लिए उनका व्यापार भारत के अलग-अलग राज्यों के अलावा विदेशों में भी किया जाता है. आंकड़ों के अनुसार भारत में मानव तस्करी किये गए 95 फ़ीसदी लोगों को जबरन देह व्यापार में धकेल दिया जाता है.
‘सेंटर डायरेक्ट ट्रैफिकिंग’ के संचालक सुरेश कुमार 2022 की एक घटना याद करते हुए बताते हैं “हमें सूचना मिली कि एक 14 साल की बच्ची को राजस्थान में बेच दिया गया है. बच्ची की मां ने हमें बताया कि गांव के ही दो लोगों ने बच्ची को अगवा कर पहले पटना और फिर वहां से जयपुर में बेच दिया.”
मुसहर समुदाय के गरीब परिवार से आने वाली उस बच्ची की मां मज़दूरी कर उसे पढ़ा रही थी. जिस समय उसे अगवा किया गया, वह आठवीं कक्षा में पढ़ती थी और कोचिंग जाने के लिए अपने घर से निकली थी. रास्ते में गांव के ही परिचित दो लोगों ने उसे ऑटों में लिफ्ट दी. उसके बाद दूसरी गाड़ी से अगवा कर पटना लाकर बेच दिया. पटना से दोबारा उसे जयपुर और तीसरी बार राजस्थान में बेचा गया.
चौथी बार शादी के नाम पर राजस्थान के बारण जिले के एक लड़के ने उसे ख़रीद लिया और उससे शादी कर ली. 14 साल की बच्ची के ख़रीद-फरोख्त का सिलसिला यही नहीं रुका. सुरेश कुमार कहते हैं “बारण जिले में हरिसिंह नाम के व्यक्ति के यहां बच्ची को रखा गया था. जहां से पांचवी बार बच्ची को बेचने की तैयारी थी. लेकिन इस बीच बच्ची ने उसके फोन से अपनी मां के पास फोन किया. जिसमें उसने बताया कि अगर उसे नहीं छुड़ाया गया तो ये लोग उसे कहीं दूर भेजने वाले हैं.”
क्यों इन मामलों की रिपोर्टिंग नहीं होती है?
तस्करी के मामलों में रिपोर्टिंग काफी अहम होती है. अगर समय रहते रिपोर्टिंग की जाए तो पीड़ित के रेस्क्यू की संभावन अधिक होती है. चूंकि तस्करी के शिकार हुए अधिकांश लोग वंचित समुदाय से आते हैं, ऐसे में रिपोर्ट दर्ज करवाना उनके लिए बहुत मुश्किल काम हो जाता है. वहीं लड़कियों के गायब होने के मामलों में परिवार भी लोक लाज के डर से रिपोर्ट दर्ज कराने से हिचकते हैं.
इस मामले में भी पुलिस ने करीब दो महीनों तक रिपोर्ट दर्ज नहीं किया था. एनजीओ द्वारा लगातार दबाव बनाने के बाद मामला दर्ज हुआ और बच्ची को वापस लाया जा सका. वहीं गिरफ़्तारी के लिए भी काफ़ी दबाव बनाया गया. दोनों आरोपी व्यक्तियों की गिरफ़्तारी हुई जिन्हें अब तक सजा नहीं हुई है.
बिहार में लड़कियों की तस्करी न केवल सेक्स ट्रैफिकिंग के लिए की जाती है, बल्कि इसका दूसरा वीभत्स रूप शादी ट्रैफिकिंग के रूप में भी देखने को मिलता है. ऐसे अधिकांश मामले मानव तस्करी के आधिकारिक फ़ाइलों में दर्ज नहीं हो पाते हैं.
पश्चिम बंगाल, मध्यप्रेदश और बिहार तीन ऐसे राज्य हैं जहां लापता हुई बच्चियों की संख्या सबसे अधिक है. बिहार के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल लड़कियों की तस्करी और उन्हें वेश्यावृति के लिए मजबूर करने के मामले पर शीर्ष है. राज्य में 18 वर्ष से कम उम्र की 16,180 बच्चियां लापता हैं. वहीं मध्यप्रदेश में 11,896 जबकि बिहार में 10,570 बच्चियां गायब हैं.
केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2019 से 2021 के बीच देशभर में 18 वर्ष से अधिक उम्र की 10,61,648 महिलाओं और 18 वर्ष से कम उम्र की 2,51,430 बच्चियां लापता हुई हैं.
बिहार तस्करी के लिए सोर्स, ट्रांसिट और डेस्टिनेशन
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अपनी रिपोर्ट 'महिलाओं और बच्चों की तस्करी: चुनौतियां और समाधान' में भारत को तस्करी के लिए ट्रांसिट, स्रोत और गंतव्य देश बताता है. जिसके अनुसार यहां तस्करी करना, बेचना या यहां से बाहर के देशों में बेचना सभी कार्य किए जाते हैं. भारत में 90 फ़ीसदी तस्करी देश के अंदर अलग-अलग राज्यों में होती है.
बिहार भी तस्करों के लिए अनुकूल जगह बन गया है. राज्य की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से भौगोलिक निकटता इसे तस्करी के प्रति संवेदनशील बनाते हैं. उत्तर बिहार में भारत और नेपाल के बीच सीमा उच्च तस्करी के क्षेत्र है. बिहार का सिमांचल क्षेत्र जिसमें किशनगंज, कटिहार, अररिया, पूर्णिया जैसे जिले शामिल हैं. हर साल कोसी का दंश झेलने वाला यह क्षेत्र सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक तौर पर पिछड़ा हुआ है. इसी कारण तस्कर यहां के लोगों को अच्छे जीवन की लालसा दिखाकर अपने जाल में फंसाते है.
दूसरी तरफ पश्चिम बंगाल से बांगलादेश की सीमा उच्च तस्करी के क्षेत्र है. इस कारण बिहार के सीमांचल से तस्कर कर लाए जाने वाले बच्चे और लड़किय इन क्षेत्रों में बेच दी जाती है. इसके अलावा बिहार में अंतरजिला और अंतरराज्यीय तस्करी भी काफ़ी संख्या में की जाती है.
बाल श्रम और तस्करी रोकने के लिए काम करने वाली संस्था वूडपेकर इनिसिएटीव फाउंडेशन के संस्थापक और विहान संस्था के साथ काम कर चुके प्रकाश कुमार बिहार को ट्रांसिट, स्रोत और गंतव्य तीनों के लिए सुगम बताते हैं. वो कहते हैं “सीमांचल के कुछ जिले और उत्तर बिहार का नवादा जिला चाइल्ड लेबर में लगाए जाने वाले बच्चों के लिए स्रोत क्षेत्र है. डेस्टिनेशन (गंतव्य) के रूप में किशंगज का पांझीपाड़ा और कई छोटे-बड़े इलाके हैं. ट्रांसिट की बात करें तो पूरा बिहार रेल और सड़क नेटवर्क से जुड़ा हुआ है. अगर नार्थ ईस्ट से कोई ट्रैफिक हो रहा है तो वह बिहार के रास्ते आराम से जाते हैं.”
मानव तस्करी डीमांड ड्रिवेन यानी मांग आधारित व्यवसाय बन चुका है.अलग-अलग व्यवसायों में 18 से 20 घंटे काम करने के लिए बच्चों की तस्करी की जाती है. ईट, भट्टों, चूड़ी कारखाना, ढाबा ऐसी जगहों पर लोग बच्चों को काम पर रखना ज़्यादा फायदेमंद समझते हैं. वहीं कम उम्र की लड़कियों की वेश्यावृति और कम लिंगानुपात वाले राज्यों में मांग रहती है.