गया के इमामगंज थाने के रहने वाले सोनू कुमार (बदला हुआ नाम) पिछले कई महीनों से अपनी बहन के घर रह रहा है. बाल तस्करों के चंगुल से छूट कर आया सोनू डर के कारण अपने गांव में नहीं रहता है. उसके पिता ने उसे अपनी बहन के घर पढ़ने के लिए भेज दिया है.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए सोनू बताता है “उतना याद नहीं है लेकिन पिछले साल जनवरी में हम अपने नानी घर डोभी गये थे. वहां बगल के दो लड़कों से मेरी दोस्ती हो गयी थी. उन लड़कों ने अपने तीन-चार दोस्तों के साथ मिलकर एक दिन कलकत्ता घूमने का प्लान बनाया. हम उसके झांसे में आ गये और उनके साथ घूमने चले गये. कलकत्ता से वे लोग हमको हैदराबाद लेकर चला गया. वहां चूड़ी बनाने वाले दो भाईयों के यहां छोड़कर वे लोग चला गया.”
सोनू के साथ वहां 12 बच्चे जबरन चूड़ी बनाने के काम के लिए बंधक बनाये गये थे. बंधक में उन बच्चों से दिन रात काम करवाया जाता था. वहीं ना तो भरपेट खाना दिया जाता और काम ना करने पर मारपीट किया जाना तो आम बात थी.
सोनू बताता है “वहां दिन रात काम करना पड़ता था. अगर काम समय पर पूरा नहीं हुआ तो मोटे-मोटे डंडे से पीटा जाता था. जो भी हाथ में आता उससे फेंक कर मार देता था. उन लोगों नें एक लड़के के पैर में चिमटा से छेद कर दिया था. इतना पिटाई वहीं खाने में दिन में 12 बजे 2 रोटी और फिर रात में कुछ खाने के लिए दे देता था.”
जख्मी हालत में बच्चों को छोड़ा स्टेशन पर
लगातार पारिवारिक और प्रशासनिक दबाव के बाद आरोपी व्यक्ति ने बच्चों को सिकंदराबाद स्टेशन पर लाकर छोड़ दिया. जहां से बच्चे अकेले पहले हावड़ा और वहां से गया पहुंचते हैं. उसके बाद पुलिस ने उनकी हालत देख कर उन्हें ट्रेन से उतार लिया और पूछताछ की. उसके बाद पुलिस वालों ने उन्हें 800 रूपए दिए जिसके बाद वो डोभी पहुंच पाए.
सोनू के पिता रमेश पासवान गया जिले के इमामगंज क्षेत्र में अंडा बेचकर सात लोगों का परिवार चलाते हैं. बेटे का कहीं पता नहीं लगने के बाद रमेश इमामगंज थाने में रिपोर्ट दर्ज कराने पहुंचे. पुलिस ने पहली बार में केस लेने से मना कर दिया. चाइल्ड ट्रैफिकिंग(child trafficking) रोकने के लिए काम कर रही संस्था के हस्तक्षेप के बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया. दरअसल, गया जिले के कुछ से कुछ घंटो की दूरी पर झारखंड की सीमा लगती है. जिसके कारण गया क्षेत्र में बाल तस्कर गिरोह लगातार सक्रिय रहते हैं.
दो तीन महीने तक भागदौड़ करने के बाद भी रमेश को बेटे से बात नहीं करवाया गया. गया क्षेत्र में बाल तस्करी के लिए काम करने वाली संस्था सेंटर डायरेक्ट ट्रैफिकिंग के सहयोग से मामला थाने में दर्ज हुआ.
रमेश पासवान बताते हैं "एक दिन अचानक बेटा का फोन आया कि पापा हमको हावड़ा जाने वाला ट्रेन में बैठा दिया है, हम आ रहे हैं. वहां से वह किसी तरह डोभी अपने नानी घर पहुंचा. हम इमामगंज से डोभी गये तो देखे उसका हालत खराब था."
जो कपड़ा पहने था वह बहुत गंदा था और गर्दन भी टूटी हुई थी. वहां प्राइवेट हॉस्पिटल में दवा सुई दिलवाकर सोनू के पिता उसको इमामगंज लेकर आये. यहां पहले उसको थाना बुलाया गया फिर वहां से मगध अस्पताल में भर्ती करवाने के लिए कहा गया. वहां लगभग 20 दिन उसका इलाज हुआ.
प्रशासनिक दबाव के बाद दर्ज हुआ केस
केस दर्ज नहीं करने का आखिर क्या कारण है इसपर सोनू का केस लड़ रहे वकील नीरज कुमार कहते हैं, “आज कल कोई काम करना नहीं चाहता है. थाने में अगर केस दर्ज होगा तो थानेदार को काम करना पड़ेगा. जबकि 154 सीआरपीसी के तहत थाने को केस दर्ज करना ही है चाहे वह लिखित हो या मौखिक, लेकिन फिर भी लोगों को दौराया जाता है.”
नीरज बताते हैं कि तन्नु मियां और गुड्डू मियां नाम के दो भाई हैदराबाद में चूड़ी फैक्ट्री चलाते हैं. इन्हीं की फैक्ट्री में सारे बच्चे बंधक बनाये गये थे. जब यहां मामला दर्ज हुआ तो शुरुआत में इमामगंज के थानेदार सैयद रेयाज अहमद ने तन्नु और गुड्डू मियां पर केस दर्ज नहीं किया जबकि उन पर भी मामला दर्ज होना था. फिर हमने एसपी ऑफिस से दबाव दिया तब जाकर उन दोनों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ लेकिन उनकी गिरफ़्तारी आज तक नहीं हुई है.
इसके अलावा बिहार में रैकेट चलाने वाले जैदून पासवान, साहिल पासवान और सीबू पासवान पर केस दर्ज हुआ. इसमें साहिल की उम्र 17 वर्ष थी लेकिन थानेदार ने उसका उम्र 14 वर्ष दर्ज किया. सोनू की मदद से वकील नीरज कुमार ने जैदून और साहिल पासवान को पकड़वाया लेकिन सीबू पासवान की गिरफ़्तारी आज तक नहीं हुई है. गिरफ्तार हुए व्यक्ति का ट्रायल एडीजे वन शेरघाटी में चल रहा है. वहीं नाबालिक का केस जुबेनाइल कोर्ट, गया में चल रहा है वो जेल गया है.
बाल तस्करी में बिहार का दूसरा स्थान
कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन (केएससीएफ) द्वारा साल 2016 से 2022 के बीच जमा किये गये आंकड़े बताते हैं कि बाल तस्करी में यूपी पहले, बिहार दूसरे और आंध्रप्रदेश तीसरे स्थान पर हैं. इन तीनों राज्यों में बाल तस्करी की घटनाएं बढ़ी हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि तस्करी के बाद सबसे ज़्यादा बच्चों को होटल और ढाबे (15.6%) में काम पर लगाया जाता हैं. वहीं ऑटोमोबाइल या परिवहन उद्योग में (13%) बच्चे जबकि कपड़ा उद्योग में (11.18%) बच्चे काम कर रहे हैं. वहीं पांच से आठ साल की उम्र के बच्चे कास्मेटिक उद्योग में काम करते पाए गए हैं.
तस्करों के समूह से बचाए गए 80% बच्चे 13 से 17 वर्ष की आयु के थे. आंकड़ों के मुताबिक इस दौरान 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बचाया गया. वहीं 13% बच्चे 9 से 12 वर्ष की आयु के थे जबकि 2% से अधिक बच्चे 9 वर्ष से कम उम्र के थे.
गया जिले में बाल तस्करी के लिए काम करने वाली संस्था ‘सेंटर डायरेक्ट ट्रैफिकिंग’ के संचालक सुरेश कुमार पीछले पांच सालों में तस्करी और बाल श्रम से छुड़ाए गये बच्चों का आंकड़ा देते हैं. उनकी संस्था द्वारा 2019 से 2023 तक 1100 से ज़्यादा बच्चे बचाए गये थे.
जहां 2019 में 224, 2020 में 219, 2021 में 423, 2022 में 113 और 2023 में 180 बच्चे बचाए गये हैं. ये सभी बच्चे जयपुर के चूड़ी कारखानों में काम कर रहे थे.
प्रशासनिक संस्थाओं को संवेदनशील होने की ज़रूरत
नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) द्वारा 75वे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर 11 राज्यों के 75 जिलों में बाल तस्करी रोकने के लिए 25 दिवसीय विशेष अभियान का आयोजन किया गया था. इस अभियान में बिहार के सात जिले अररिया, किशनगंज, सुपौल, मधुबनी, पश्चिम चंपारण (बेतिया), पूर्वी चंपारण और सीतामढ़ी शामिल थे जहां बाल तस्करी की घटनाएं काफी संख्या में होती हैं.
इस ट्रेनिंग प्रोग्राम में जिलों के स्पेशल जूवनाइल पुलिस यूनिट (एसजेपीयू), एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट (एएचटीयू), थानों के चाइल्ड वेलफेयर पुलिस ऑफिसर (सीडब्ल्यूपीओ), बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी), जूवनाइल जस्टिस बोर्ड (जेजेबी) और मानव तस्करी के मुद्दों क्षेत्र में काम कर रहे समितियों को और अधिक जागरूक और संवेदनशील होने की ट्रेनिग दी गयी थी.
बाल तस्करी के विरुद्ध काम करने वाली संस्थाओं का मानना है कि हाल के वर्षों में बाल तस्करी के ज़्यादा मामले दर्ज हुए हैं, जो यह दर्शाता है कि संस्थाए चीजों को गंभीरता से ले रही है. हालांकि इसमें अभी और ज़्यादा काम करने की आवश्यकता है.
दिसंबर 2018 में गृह मंत्रालय की ओर से संसद में दी गयी जानकारी के अनुसार 2015 में पूरे देश में बाल तस्करी के 3,905 मामले दर्ज किये गये थे. वहीं 2016 में पूरे देश में 90,304 मामले दर्ज किये गये थे.