कब तक अपनी धार्मिक पहचान के लिये लड़ेगा आदिवासी समाज?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है. इसमें धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता से संबंधित विभिन्न पहलू शामिल हैं.

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नाजिश महताब
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सरना धर्म

धार्मिक पहचान के लिये सरना धर्म

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार की गारंटी देता है. इसमें धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता से संबंधित विभिन्न पहलू शामिल हैं. इस अनुच्छेद के तहत धर्म की स्वतंत्रता सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के हित में लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है. इसका मतलब यह है कि हालांकि व्यक्तियों को अपने धर्म का पालन करने का अधिकार है, लेकिन इसे समाज के सद्भाव को बाधित नहीं करना चाहिए या दूसरों की भलाई का उल्लंघन नहीं करना चाहिए.

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क्या होगा आपका जब एक सुबह आप उठे और आपको पता चले की आपके धर्म की कोई मान्यता ही नहीं है सरकार के पास तब क्या करेंगे, आप अपनी धार्मिक पहचान के लिये आए जानते हैं ठीक ऐसे ही एक धर्म के बारे में जिसे अभी तक मान्यता नहीं दी गई है. जिसको मानने वाले आज भी अपनी धार्मिक पहचान के लिये संघर्ष कर रहे है.

क्या है सरना धर्म

सरना धर्म भारतीय धर्म परम्परा का ही एक आदि धर्म और जीवनपद्धति है. इस धर्म के अनुयायी बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, त्रिपुरा, असम और महाराष्ट्र में पाए जाते हैं. भारत के अलावा नेपाल, भूटान, बांग्लादेश में भी पाए जाते हैं‍. परन्तु अलग-अलग राज्यों में इस धर्म को अलग-अलग नाम से जानते हैं. सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है. जब आदिवासी आदिकाल में जंगलों में होते थे, उस समय प्रकृति के सारे गुण और सारे नियम को समझते थे और सब प्रकृति के नियम पर चलते थे. उस समय से आदिवासी में जो पूजा पद्धति व परम्परा विद्यमान थी वही आज भी विद्यमान है.

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कैसे और किनकी होती है पूजा

सरना धर्म का मूल आधार प्रकृति की पूजा है. सरना धर्म के अनुयायी प्रकृति में रहने वाले सभी प्राणियों को ईश्वर का रूप मानते हैं. वे सूर्य, चंद्रमा, तारे, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, पेड़-पौधे, जानवरों, और मनुष्यों को ईश्वर के रूप में पूजते हैं. जाहेरथान या जाहेरगार इनके पूजा स्थल है, और यह गांवों में पाया जाता है. सरनावाद का मुख्य त्योहार सरहुल है, एक ऐसा त्योहार जिसमें भक्त अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं. त्योहार के दौरान, पाहन सरना में तीन पानी के बर्तन लाते हैं. यदि पानी के बर्तनों का स्तर कम हो जाता है, तो उनका मानना है कि मानसून विफल हो जाएगा, लेकिन यदि यही स्थिति रही तो मानसून सामान्य रूप से आएगा. फिर पुरुष सकुआ के फूल और पत्ते चढ़ाते हैं. झारखंड में बहापर्व होता है जो फागुन महीने में मनाया जाता है. वहीं दूसरी तरफ़ बिहार में बहाबूंगा होता है जो बसंत के महीने में मनाया जाता है.

आदिवासी सेंगल अभियान सामाजिक संगठन के बिहार प्रेसिडेंट विश्वनाथ टुड्डू ने बताया कि

“संविधान के अनुच्छेद 25 के तहत हम किसी भी धर्म को मान सकते हैं, लेकिन हमें धार्मिक आजादी नहीं मिला है. सबसे कम संख्या वाले जैन धर्म हैं, उन्हें मान्यता मिल गई है लेकिन हमारी संख्या उनसे अधिक है लेकिन अभी तक हमारे धर्म मान्यता प्राप्त नहीं हुई है.”

सरना धर्म मानने वालों की संख्या

2011 DETAILS OF RELIGIOUS COMMUNITY SHOWN UNDER 'OTHER RELIGIONS AND PERSUASIONS' IN MAIN TABLE के रिपोर्ट के अनुसार सरना धर्म को मानने वालों की संख्या 49,57,467 है. झारखण्ड - 42,23,500 (अनुमानित), उड़ीसा - 5,00,000 से 10,00,000 (अनुमानित) असम 10,00,000 से 15,00,000 (अनुमानित), बिहार - 13,49,460 (अनुमानित)

आख़िर क्यों सरना धर्म के लोग कर रहे आंदोलन

आदिवासी समुदाय का एक बड़ा हिस्सा  सरना धर्म को मानता है. उनके मुताबिक सरना वो लोग हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं. लेकिन अभी तक उनके धर्म को मान्यता प्राप्त नहीं हुई है, जिसके वजह से उन्हें कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बीते कई वर्षो से सरना धर्मं के लोग आन्दोलन करते आये है इससे पहले सरना धर्म कोड लागू करने के लिये पटना के गांधी मैदान में नवम्बर 2022 में एक बड़ा आंदोलन किया था.

सरना समाज के लोग

झारखंड के आदिवासी सेंगल अभियान सामाजिक संगठन के स्टेट प्रेसिडेंट देवनारायण मुर्मू से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि

“सरना धर्म को मान्यता कॉलम पर नहीं मिला है, जिसकी वजह की हमारी संख्या सही नहीं है. हमारी संख्या 50 लाख से ज़्यादा है. हमारे धर्म को मान्यता नहीं मिलने के कारण कई लोग हिन्दू, मुस्लिम या इसाई धर्म में चले जाते हैं. स्कूल में एडमिशन लेना हो या बैंक में खाता खोलना हो, वहां पर हमारे धर्म का ऑप्शन नहीं होता जिसके वजह से हमें दूसरे धर्म का बनना पड़ता है.”

क्या है सरना धर्म कोड

आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग पिछले कई सालों से उठ रही है. सरना धर्म कोड की मांग का मतलब यह है कि भारत में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है, उसमें दूसरे सभी धर्मों की तरह आदिवासियों के धर्म का जिक्र करने के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए. जिस तरह हिंदू, मुस्लिम, क्रिश्चयन, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के लोग अपने धर्म का उल्लेख जनगणना के फॉर्म में करते हैं, उसी तरह आदिवासी भी अपने सरना धर्म का उल्लेख कर सकें.

सरना धर्म के लोगों की क्या है मांगे?

इनकी मांग है कि सरकार 'सरना धर्म कोड' को लागू करे. लगातार आंदोलन कर रहे सरना धर्म के लोगों की मांग है कि फॉर्म में दूसरे सभी धर्मों की तरह सरना के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाये. हिंदू, मुस्लिम,क्रिश्चयन, जैन, सिख और बौद्ध की तरह 'सरना' को भी अलग धर्म का दर्जा मिले. राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (एनसीएसटी) ने सुझाव दिया है कि 2011 की जनगणना के धर्म कोड में सरना धर्म को स्वतंत्र श्रेणी दी जाए हालांकि, तत्कालीन भारतीय जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल ओराम ने 2015 में दावा किया था, "इस तथ्य से कोई इनकार नहीं है कि आदिवासी हिंदू हैं." इस टिप्पणी के कारण 300 आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया था.

सरना धर्म को मानने वाले अभिजीत टुड्डू से बात होने पर उन्होंने बताया कि

“मूल रूप से 15 करोड़ आदिवासी हैं जो प्रकृति की पूजा करते हैं लेकिन धर्म की मान्यता नहीं मिलने के कारण कोई हिंदू, मुस्लिम या इसाई में परिवर्तन हो जाते हैं। केंद्र सरकार या राज्य सरकार के विकास के नाम से फंड भी आता है, उस फंड का भी बटवारा हमें ठीक से नहीं मिलता है”

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सरना धर्म सारे धर्मों से अलग है जहां प्रकृति की पूजा की जाती है. अलग ढंग अलग रंग अलग वेश-भूषा फिर भी धर्म की सामान्यता क्यों नहीं? क्या होगा आपकी आस्था का अगर हिंदू धर्म से  राम हटा दिया जाए, क्या होगा आपकी आस्था का अगर मुस्लिम धर्म से मोहम्मद हटा दिया जाए, सिख धर्म से नानक हटा दिया जाए, क्या होगा आपकी आस्था का अगर इसाई से जीसस हटा दिया जाए इससे आपकी धार्मिक पहचान नहीं रह जायेगी क्योंकि हर धर्म की एक अपनी पहचान है और अपनी एक मान्यता है.

लेकिन आज भी आदिवासी समाज के सरना धर्म को  सरकार क्यों मान्यता नहीं दे रही है ये सबसे बड़ा सवाल है.

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