मशहूर शायर मुनव्वर राणा का एक शेर है
“ऐ ख़ाक-ए-वतन तुझ से मैं शर्मिंदा बहुत हूं
महंगाई के मौसम में ये त्यौहार पड़ा है”
जी हां, वर्तमान समय में बिहार और बिहार से बाहर देशभर की जनता शायद यही कह रही है, क्योंकि दिनभर बेतहाशा मेहनत और मज़दूरी करने के बाद भी शाम को अगर कोई व्यक्ति अपने परिवार की ख़्वाहिशों को पूरा करने में असफ़ल रहता है तो यकीन मानिए इससे बुरा पल उस इंसान के लिए और कुछ नहीं हो सकता.
ये तो बात रही ख्वाहिशों की लेकिन अगर हम गौर करें तो इस समय देश में मज़दूर वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक हर कोई अपनी और अपने परिवार की मूलभूत सुविधाएं भी उपलब्ध नहीं करवा पा रहा है. दिपावली जैसे त्योहार में भी महंगाई ऐसा टांग अड़ा रही है कि लाईट की रौशनी फीकी पड़ जा रही है.
सितंबर के महीने में खुदरा महंगाई दर में ज़बरदस्त बढ़ोतरी
सितंबर के महीने में खुदरा महंगाई दर में जबर्दस्त बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा जारी हालिया आंकड़ों के मुताबिक अगस्त के महीने में 3.65 प्रतिशत की खुदरा मुद्रास्फीति सितंबर महीने में 5.49 प्रतिशत पहुंच गई. खुदरा महंगाई की बढ़ोतरी के पीछे खाद्य कीमतों में वृद्धि मुख्य वजह रही. खुदरा महंगाई दर के साथ साथ थोक महंगाई दर भी सितंबर के महीने में बढ़ी है.
अगस्त में थोक महंगाई दर 1.31 प्रतिशत रही जो सितंबर में बढ़कर 1.84 प्रतिशत रही. पटना के दानापुर में रहने वाली शशिकला देवी बताती हैं कि “अब घर चलाना बहुत मुश्किल हो गया है. पहले 5000 रुपए में पूरे परिवार का एक महीने का राशन आ जाता था लेकिन अब उतने पैसे में आधा भी नहीं आ पाता है. आटा, तेल और दाल के दाम बेतहाशा बढ़े हैं. सब्जियों को तो भूल हीं जाओ. पहले 200 रुपए में पूरे परिवार के लिए झोला भर के सब्जी आ जाता था लेकिन अब 500 रुपए लगते हैं तो भी सब्जियों की खरीदारी पूरी नहीं हो पाती है. टमाटर जैसी सब्जी जो की रोज़ खाने में इस्तेमाल होता है पिछले दो महीने से घर में नहीं आया.”
थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर ( WPI) मार्च महीने में 14.55 फीसदी रही है जबकि फरवरी 2022 में थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 13.11 फीसदी रही थी. थोक महंगाई दर का चार महीने का ये उच्चतम स्तर है. जनवरी 2022 में महंगाई दर 12.96 फीसदी रही थी.
क्या होती है मुद्रास्फीति
‘मुद्रास्फीति’ उस स्थिति को कहते है जब कीमतों के सामान्य स्तर में लगातार वृद्धि होने लगें. इसे आसान भाषा में हम ऐसे समझ सकते है की पहले आप 100 रूपए खर्च करके 5 किलो आलू खरीद पाते थें लेकिन आज उसी 100 रूपए में आप केवल 2 किलो ही आलू खरीद पाते हैं .
महंगाई नियंत्रण में RBI विफल
केंद्र सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा महंगाई दर को 2 से 6 फीसदी के बीच रखने का निर्देश दिया था. लेकिन लगातार चार महीनों से यह रिजर्व बैंक के तय सीमा से ऊपर रहा है. अप्रैल से पहले जनवरी और फरवरी में भी खुदरा महंगाई दर 6.07 प्रतिशत और 6.01 प्रतिशत रही थी.
कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) पर आधारित खुदरा महंगाई के आंकड़े सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा जारी किए जाते हैं. ध्यान देने वाली बात ये है कि शहरों के मुकाबले गांवों में महंगाई में बढ़ोतरी दर्ज की गई. सितंबर महीने खुदरा महंगाई दर शहरी क्षेत्रों में 5.05 प्रतिशत तो वहीं ग्रामीण इलाकों में 5.87 प्रतिशत रही. खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी की सबसे बड़ी मार बिहार पर पड़ी है. सितंबर महीने में बिहार की महंगाई दर 7.50 रही. यह राष्ट्रीय औसत (5.49) से कहीं ज़्यादा है. राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में महंगाई दर केवल 6.58 प्रतिशत है.
आरा जिले के कोईलवर थाना क्षेत्र की पुष्पा देवी बताती हैं कि “महंगाई पहले से बहुत ज्यादा बढ़ गई है. उस हिसाब से तो हमारी आमदनी भी नहीं बढ़ी. बाजार में सब्जियों के दाम सौ रुपए के आस-पास हमेशा हीं रह रहे हैं. हम तो आलू और अन्य कुछ कुछ सब्जियों की खेती करते हैं इसलिए हम इस महंगाई की मार से बचे हुए हैं. लेकिन कुछ खास सब्जियां अभी भी बाहर से खरीदनी हीं पड़ती हैं. सरकार को इस मामले में कुछ करना चाहिए.”
बिहार के बाद सबसे ज्यादा दाम छत्तीसगढ़ में बढ़े, यूपी तीसरे पर
बिहार- 7.50%
छत्तीसगढ़- 7.36%
यूपी- 6.74%
ओडिशा- 6.56%
हरियाणा- 6.20%
गुजरात- 6.05%
अभी और बढ़ सकती हैं महंगाई की मार
आंकड़ों पर बात करते हुए अर्थशास्त्र के शोधार्थी कुमार अभिषेक बताते हैं कि “बिजली की कीमतों में भी बढ़ोतरी दर्ज की गई, जहां सितंबर 2024 में अखिल भारतीय बिजली सूचकांक 162.5 रहा यह अगस्त 2024 के सूचकांक 162.4 है, जो बिजली के बढ़ते खर्चों को दर्शाता है. हालांकि इस बात की भी मजबूत सम्भावना है की आने वाले महीनो में त्यौहार की गतिविधियों से मांग में बढ़ोतरी मेह्गाई की दर को और बढ़ा सकती है.”
बिहार में बढ़े बिजली दर के बारे में बात करते हुए श्री संजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि “बिहार बाकी राज्यों की तुलना में महंगी बिजली खरीदता है. बिहार का एवरेज प्रोक्योरमेंट प्राइस (average procurement price APP) 5 रुपए 21 पैसे हैं. जो कि उड़िसा जैसे राज्यों से कहीं ज्यादा है. अडानी और टाटा जितने दाम में बिजली बेच देते हैं बिहार लगभग उससे डबल दाम में खरीदता है. ये पहला कारण है. दूसरा कारण है ट्रांसमिशन लाॅस का बहुत ज्यादा होना. इसका कारण है भ्रष्टाचार. भ्रष्टाचार की वजह से सस्ता ग्रीड, सस्ता तार सस्ता ट्रांसफर खरीदा गया है जिसकी वजह से दुर्घटना होती रहती है लोग मरते हैं और ट्रांसफार्मर जलता है. बिहार में बिजली महंगी होने का सबसे बड़ा दो कारण यहीं है.”
कैसे कम हो सकती है महंगाई?
इस सवाल के जवाब में अर्थशास्त्र के शोधार्थी कुमार अभिषेक बताते हैं कि महंगाई पर काबू पाने के लिए भारत सरकार कई कदम उठा सकती है. भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) मौद्रिक नीति के तहत रेपो रेट बढ़ाकर उधारी महंगी कर सकता है, जिससे खर्च और निवेश में कमी आए. साथ ही, प्रणाली में मुद्रा की आपूर्ति घटाने और रिवर्स रेपो रेट, बैंक रेट, ओपन मार्केट ऑपरेशंस, सांविधिक तरलता अनुपात (SLR), नकद आरक्षित अनुपात (CRR), और तरलता समायोजन सुविधा (LAF) जैसे अन्य उपकरणों का भी उपयोग कर सकता है.
राजकोषीय नीति के अंतर्गत सरकार अपने खर्चों में कटौती और टैक्स में वृद्धि कर सकती है. आवश्यक वस्तुओं पर शुल्कों का युक्तिकरण कर गरीबों पर अतिरिक्त बोझ को कम किया जा सकता है. संवेदनशील वस्तुओं की आपूर्ति और मांग का प्रभावी प्रबंधन करने के लिए उदार टैरिफ और व्यापार नीतियों का उपयोग भी किया जा सकता है.
इसके अलावा, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) को सुदृढ़ बनाकर जरूरतमंदों को समय पर और उचित मूल्य पर आवश्यक वस्तुएं उपलब्ध कराई जा सकती हैं. ब्याज दरों में कटौती की संभावना कम महंगाई दरों में बढ़ोतरी से बैंकों के ब्याज दरों में कटौती की संभावनाओं को करारा झटका लगा है. रिजर्व बैंक खुदरा महंगाई दर को चार फीसदी के भीतर सीमित रखने को लेकर चलता है. मौद्रिक नीति तय करते समय मुख्य रूप से खुदरा महंगाई दर को ध्यान में रखा जाता है.