सोलर स्ट्रीट लाइट: क्या नीतीश कुमार की महत्वकांक्षी योजना नाकाम है?

अरवल जिले में तीन साल बीत जाने के बाद भी अब तक केवल 64 पंचायतों के 326 वार्डों में 3260 लाइट्स ही लग पाई हैं, जबकि पूरे जिले में 5,060 सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगाई जानी थीं.

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नाजिश महताब
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मुख्यमंत्री सोलर स्ट्रीट लाइट योजना

बिहार में हर गांव के कोने-कोने में अंधेरे को मिटाने के उद्देश्य से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा जल जीवन हरियाली मिशन के तहत सोलर स्ट्रीट लाइट योजना का शुभारंभ किया गया. इसके तहत वर्ष 2022-23 के लिए राज्य योजना और छठे वित्त आयोग के तहत 247.17 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जबकि 2023-24 में इसे बढ़ाकर 392 करोड़ रुपये कर दिया गया.

इस योजना का मकसद था कि बिहार के सभी 8054 पंचायतों के 1,19,647 वार्डों में दस लाख से अधिक सोलर लाइट्स लगाई जाए, ताकि गांव की गलियों में अंधेरा हमेशा के लिए समाप्त हो जाए. योजना के प्रारंभ में सरकार का दृष्टिकोण सकारात्मक था, परंतु वर्तमान स्थिति बेहद निराशाजनक है. अरवल जिले के कुछ गांवों में अभी तक एक भी सोलर लाइट नहीं लगाई गई है. ग्रामीणों के अनुसार योजना की गति इतनी धीमी है कि एक ओर जहां पूरा राज्य अंधकार में डूबा है, वहीं अधिकारियों की लापरवाही से योजना अधूरी ही रह गई है. 

अरवल जिले में धीमी गति से काम और बिखरे सपने अरवल जिले के आंकड़ों पर नजर डालें तो प्रथम चरण में 64 पंचायतों के 282 वार्डों में 2820 सोलर स्ट्रीट लाइट लगाने की योजना बनाई गई थी. लेकिन तीन साल बीत जाने के बाद भी अब तक केवल 64 पंचायतों के 326 वार्डों में 3260 लाइट्स ही लग पाई हैं, जबकि पूरे जिले में 5,060 सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगाई जानी थीं. इसमें से भी 1600 से अधिक लाइट्स अब ख़राब हो चुकी हैं. इन खराब लाइट्स के रखरखाव के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई है. अरवल जिले के अमरा पंचायत के रहने वाले राजेश कुमार से जब इस विषय में बात की गई, तो उन्होंने कहा, “सोलर स्ट्रीट लाइट पिछले तीन सालों से ख़राब है. हमने कई बार शिकायत की, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. रात में बाहर निकलने से डर लगता है. कभी कोई आपातकाल हुआ, तो सोचना पड़ता है बाहर जाने के लिए.”

आजीविका पर असर और सुरक्षा की चिंता

गांवों में सोलर स्ट्रीट लाइट्स का ख़राब होना सिर्फ़ अंधेरे तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा असर स्थानीय लोगों की आजीविका और सुरक्षा पर भी पड़ता है. राजेश कुमार ने बताया कि वह एक छोटी दुकान चलाते हैं, लेकिन लाइट न होने के कारण उन्हें शाम सात बजे ही दुकान बंद करनी पड़ती है. “मेरी एक छोटी सी दुकान है, लेकिन लाइट नहीं होने के कारण 7 बजे शाम में ही दुकान बंद कर देना पड़ता है. एक तो ग्राहक नहीं आते और दूसरी ओर अंधेरा इतना रहता है कि कब चोर या डाकू आ जाए नहीं मालूम. अगर यही स्ट्रीट लाइट ठीक होता तो मैं 10 बजे तक दुकान खोल कर दुकानदारी कर सकता.”

गया जिले की स्थिति: शिक्षा पर प्रभाव और अनदेखी का दर्द

गया जिले के कुछ गांव और पंचायतों में अब तक सोलर स्ट्रीट लाइट योजना नहीं पहुंची है.  जिसके कारण वहां के लोगों को काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अमन जो की गया जिले के पंचानपुर गांव में रहते हैं वो बताते हैं कि “सोलर स्ट्रीट लाइट हमारे यहां नहीं लगा है. हमारे गांव में आज भी अंधेरा है. रात के वक्त रोड  पर निकलने में बहुत मुश्किल होती है. डर बना रहता है. ऊपर से कई बार ऐसा हुआ है की बूढ़े लोग नाले और गड्ढों में गिर जाते हैं. मुझे शाम होते ही घर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता है.”

पंचानपुर में काफ़ी बच्चे रहते हैं जो पढ़ाई करते हैं. जब हमने एक छात्रा से बात की जो विश्वविद्यालय में पढ़ती हैं. वैष्णवी से जब हमने बात की तो उन्होंने बताया कि “हम विश्वविद्यालय में पढ़ते हैं, शाम को घर आते हैं लेकिन खुद के घर आने में डर लगता है क्योंकि पूरा रास्ता अंधेरा होता है. कभी सांप का डर तो कहीं गिर जाने का भी लगा रहता है. अगर शाम के 8 बजे के बाद अगर कोई सामान की ज़रूरत महसूस होती है तो हम बाहर नहीं जा पाते हैं. नीतीश कुमार कहते हैं बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ लेकिन स्ट्रीट लाइट न होने के वजह से कॉलेज जाने में डर लगता है.”

बेगूसराय जिले में भी बढ़ रही है असुरक्षा की भावना

बेगूसराय जिले के मालपुर पंचायत में भी सोलर लाइट्स की ख़राब की शिकायतें सामने आई हैं. बथौल गांव के करण कुमार ने बताया कि उनके घर के बाहर लगा सोलर स्ट्रीट लाइट दो महीने में ही खराब हो गया, जिसे अभी तक ठीक नहीं किया गया है. “गांव में ज्यादातर सोलर लाइट खराब हो चुकी हैं. इससे शाम के बाद पढ़ाई करके लौटने वाले बच्चों, खासकर लड़कियों को काफी परेशानी होती है. बुजुर्गों के नाले या गड्ढों में गिरने की संभावना बनी रहती है.”

जब इस संबंध में मालपुर पंचायत के मुखिया प्रतिनिधि विजय कुमार सिंह से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि उनके पास ऐसी कोई शिकायत नहीं आई है और लाइट्स के रखरखाव की जिम्मेदारी कंपनी की है. पंचायत प्रतिनिधियों की इस तरह की अनदेखी और लापरवाही से साफ जाहिर होता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्ट्रीट लाइट्स की हालत कितनी बदतर है.

सरकार और पंचायत की असफलता

सरकारी आंकड़े भी बताते हैं कि मुख्यमंत्री सोलर स्ट्रीट लाइट योजना में कार्य की गति बहुत धीमी है. बिहार के पंचायती राज विभाग के डिजिटल प्लेटफॉर्म ‘निश्चय सॉफ्ट’ और बिहार आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट 2023-24 के अनुसार, अब तक केवल 5176 पंचायतों के 20,195 वार्डों में 2,11,173 लाइट्स लगाई गई हैं. जबकि इस अवधि में 2,80,201 लाइट्स लगाई जानी थी. सरकार ने मार्च 2024 तक यह आंकड़ा 3 लाख तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा था, लेकिन अगस्त 2023 के पहले सप्ताह तक भी यह लक्ष्य अधूरा रहा.

क्या कहा विभाग ने

इस पर जब हमने पंचायती राज विभाग से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा कॉल तो उठाया पर जैसे ही हमने बताया कि पत्रकार बात कर रहें हैं तो उन्होंने हमारा कॉल काट दिया. इससे यह बात साफ़ ज़ाहिर होती है कि विभाग हमारे सवालों से बच रही है. लेकिन हम लगातार कोशिश करेंगे और जल्द से जल्द इस समस्या का समाधान करेंगे. सौर ऊर्जा की शक्ति के बावजूद अंधेरे में बिहार के गांव सौर ऊर्जा का उपयोग कर गांव की गलियों को रौशन करने का सपना देखने वाले नीतीश कुमार का यह प्रयास नाकाम साबित हो रहा है.

ग्रामीणों की शिकायतें, स्ट्रीट लाइट्स की ख़राबी और सरकार की उदासीनता से यह साबित होता है कि बिहार के गांव आज भी अधेरे में डूबे हुए हैं. गांवों में सोलर लाइट्स का ना होना सिर्फ़ एक तकनीकी समस्या नहीं, बल्कि एक सामाजिक चुनौती भी है. जिन बच्चों के लिए शाम के बाद पढ़ाई के लिए स्कूल लौटना भी मुश्किल हो गया है, वे कैसे विकास के पथ पर अग्रसर होंगे? बुजुर्गों की सुरक्षा और गांवों की गलियों में अंधेरा अब उनके लिए एक स्थायी डर बन गया है. सरकार को चाहिए कि वे इस योजना की प्रगति पर गंभीरता से ध्यान दें और जल्द से जल्द उचित रखरखाव का प्रावधान करें.