बिहार के स्कूल में पानी तक मौजूद नहीं, कैसे सुधरेगी शिक्षा व्यवस्था?

यू-डायस के आंकड़े कहते हैं कि बिहार के सौ फीसदी सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की उपलब्धता है. लेकिन इन जल स्रोतों से मिलने वाले पानी की गुणवत्ता कैसी है इसको लेकर शिक्षा विभाग भी आश्वस्त नहीं है.

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आंगनबाड़ी और सरकारी स्कूल जुड़े

स्कूल जाने वाले बच्चे दिन के लगभग छह घंटे स्कूल में बीताते हैं. स्कूल का वातावरण बच्चों के स्वास्थ्य और सीखने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसलिए आवश्यक है कि स्कूल में पढ़ाई के साथ-साथ उनके दैनिक आवश्यकताओं के लिए पर्याप्त इंतजाम किए जाए. स्कूल में शिक्षक, किताब, बेंच-डेस्क के अलावे बुनियादी सुविधाओं जैसे- स्कूल भवन, लड़के और लकड़ियों के लिए अलग शौचालय और स्वच्छ पीने के पानी की व्यवस्था होना आवश्यक है. जब स्कूल में पानी, शौचालय की व्यवस्था होती है तो बच्चों के स्कूल छोड़ने की संभावना भी कम होती है.

UNICEF द्वारा आज से 10 साल पहले जारी के एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 58 फ़ीसदी प्राथमिक स्कूलों में शौचालय और 56 फ़ीसदी में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं थी. हालांकि 10 सालों में इन आकड़ों में काफ़ी सुधार हुए हैं, ऐसा यू-डायस की 2021-22 की रिपोर्ट कहती है. आंकड़े कहते हैं कि भारत के 94 फ़ीसदी सरकारी स्कूलों में शौचालय मौजूद है. वहीं 73 फ़ीसदी स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था है.

यह आंकड़े धरातल पर कितने सच है इसकी ख़बरें समय-समय पर डेमोक्रेटिक चरखा दिखाता रहा है, जिसमें बच्चे गंदे शौचालय और पानी का इस्तेमाल करने को मजबूर पाए गए हैं. जबकि स्कूलों में साफ़-सफ़ाई और स्वच्छ पानी की उपलब्धता के लिए सरकार साल 2014 से ही ‘स्वच्छ भारत, स्वच्छ स्कूल’ जैसे कार्यक्रम चला रही है. 

सरकारी स्कूलों में दूषित पानी

पीएचइडी विभाग करेगा पानी के गुणवत्ता की जांच

सितम्बर माह में बिहार के नालंदा जिले में स्थित कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय में पढ़ने वाली नौ छात्राएं कथित तौर पर स्कूल में मौजूद दूषित पानी पीने के कारण बीमार हो गई थी. वहीं इसी वर्ष फ़रवरी माह में भोजपुर के बड़ौरा पंचायत के उर्दू प्राथमिक विद्यालय चइयाचक शिवपुर में पढ़ने वाले एक दर्जन छात्र-छात्राओं की तबीयत चापाकल का पानी पीने के बाद ख़राब हो गई थी.

इन दोनों घटनाओं में स्कूली छात्रों की तबियत विद्यालय में मौजूद पानी पीने के कारण हुई थी. जबकि केंद्रीय योजनाओं के अलावा राज्य सरकार भी सरकारी स्कूलों में साफ़ पानी और शौचालय की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए योजनाओं का संचालन करती है. बिहार के सरकारी स्कूल धरातल पर चाहे जितनी कमियों से युक्त नजर आएं लेकिन कागज़ी आंकड़े बेहद अच्छे नजर आते हैं. 

यू-डायस के आंकड़े कहते हैं कि बिहार के 100 फ़ीसदी सरकारी स्कूलों में पीने के पानी की उपलब्धता है. लेकिन इन जल स्रोतों से मिलने वाले पानी की गुणवत्ता कैसी है इसको लेकर शिक्षा विभाग भी आश्वस्त नहीं है. शिक्षकों और छात्रों द्वारा पानी की गुणवत्ता को लेकर लगातार कि जा रही शिकायतों के बाद विभाग ने अब पानी के जांच के आदेश दिए हैं. राज्य के 71,863 स्कूलों में मौजूद पानी की जांच पीएचडी विभाग करेगा.

जांच के दौरान पानी की क्वालिटी, टंकी की सफाई, पेयजल सप्लाई वाले पाइप की स्थिति, पानी के रंग उसमें मौजूद मिनरल की मात्रा आदि का पता लगाया जाएगा. जांच के दौरान दूषित पाए जाने वाले पेयजल स्रोत को बंद किया जाएगा और उसके स्थान पर सबमर्सिबल पंप लगाया जाएगा. सरकारी स्कूलों में लगे चापाकल और टंकी के पानी की जांच की जाएगी. इस दौरान टंकी की सफाई कराई जाएगी और उसपर तारीख लिखी जाएगी. पानी सप्लाई वाले पाइप की जांच होगी. पानी में दवाएं डाली जाएगी. ताकि छात्रों और शिक्षकों को शुद्ध पेयजल मिल सके. 

राज्य में 13 जिलों के 88 ब्लॉक में पानी की गुणवत्ता की शिकायत मिल रही है.  

स्कूल के बच्चे

19 फ़ीसदी स्कूलों में कुएं का पानी पीने को मजबूर बच्चे

राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) द्वारा वर्ष 2022 में तैयार किये गए एफएलएस (Foundational Learning Study Reports) रिपोर्ट में भी राज्य के स्कूलों में मौजूद पीने के पानी की गुणवत्ता पर चिंताजनक आंकड़े जारी किए गए थे. रिपोर्ट के अनुसार बिहार के 45 फ़ीसदी स्कूलों में बच्चों को पीने का साफ़ पानी नहीं मिल पाता है.

राज्य के 19 फ़ीसदी स्कूलों में कुएं के पानी का उपयोग पीने के लिए किया जा रहा था. विशेषज्ञों के अनुसार सतही जल स्रोत स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. वहीं 79 फीसदी स्कूलों में पीने के पानी के साधन के तौर पर चापाकल का उपयोग किया जा रहा था.

आंकड़ों में सभी स्कूल में पानी, हकीकत कुछ और

जल जीवन मिशन के वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार बिहार के 71,323 स्कूलों में से 70,085 यानी 98 फ़ीसदी विद्यालयों में नल के माध्यम से पानी पहुंचाया जा चुका है. पश्चिमी चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीवान, वैशाली, मुज्जफरपुर समेत 11 जिलों के 100 फ़ीसदी स्कूल नल जल योजना से लाभान्वित हो चुके हैं.

ऐसे में प्रश्न उठता है जब विद्यालयों में नल जल योजना के तहत स्वच्छ पानी की सुविधा उपलब्ध कराई जा चुकी है तब इन विद्यालयों में हाल के वर्षों में सबमर्सिबल (निजी बोरिंग) क्यों कराया जा रहा है? किशनगंज जिले में जहां के 98.46 फीसदी विद्यालयों में नल जल योजना की पहुंच है वहां के विद्यालय में भी निजी बोरिंग कराया गया है. क्योंकि योजना के तहत मिले नल में कभी पानी ही नहीं आया है. स्कूल के शिक्षक और छात्र पूर्व में लगे चापाकल का उपयोग पानी पीने के लिए कर रहे थे.

बिहार का स्कूल

किशनगंज जिले के उत्क्रमित मध्य विद्यालय, भाटटोली के शिक्षक राहुल कुमार झा नल जल योजना को पूरी तरह विफल बताते हैं. वे कहते हैं “मैं इस विद्यालय पिछले तीन सालों से कार्यरत हूं. लेकिन आज तक मैंने यहां नल जल योजना का पानी आते नहीं देखा. हमलोगों ने कई बार शिकायत किया तो पानी का सप्लाई दिया गया लेकिन नल नहीं लगाया गया. पानी आने पर वह यूं ही बर्बाद होते रहता था. इसके बाद हमलोगों ने उसको किसी तरह लकड़ी-प्लास्टिक डालकर बंद कर दिया.” 

राहुल बताते हैं उनके विद्यालय में इसी वर्ष मार्च-अप्रैल के महीने में बोरिंग कराया गया है. शिक्षा विभाग के पूर्व अपर मुख्य सचिव केके पाठक के कार्यकाल के दौरान सभी विद्यालय जहां पानी के लिए सबमर्सिबल नहीं था वहां निजी समर्सेबल कराए जाने का प्रेशर दिया गया. राहुल कहते हैं “सबमर्सिबल कराने का कोई लिखित आदेश नहीं था लेकिन विद्यालय के प्रधानाचार्य पर ऊपर के अधिकारीयों का दबाब था की आप जल्द से जल्द बोरिंग कराए. इसके बाद हमलोगों ने बोरिंग कराया, जिसपर लगभग ढाई लाख खर्च हुए. लेकिन आज इसी कारण कई प्रधानाचार्यों का वेतन रोक दिया गया की पहले बोरिंग पर खर्च हुए पैसे और कितनी गहराई पर बोरिंग हुआ इसका ब्यौरा दें.”

शिक्षक कहते हैं कि इस क्षेत्र के ग्राउंड वाटर में  आयरन की मात्रा अधिक रहती है. इसलिए विद्यालय में आरओ फ़िल्टर लगाने की आवश्यकता है. 

लगभग विद्यालयों में निजी सबमर्सिबल

लगभग सभी विद्यालय जहां पानी की सुविधा मौजूद है उनके पास अपना खुद का सबमर्सिबल है. पटना के तारामंडल के पास स्थित राजकीय कन्या मध्य विद्यालय,अदालातगंज स्कूल के शिक्षक बताते हैं कि उनके विद्यालय में दो सबमर्सिबल कराया गया है. विद्यालय में 800 बच्चे पढ़ते हैं जिनके लिए फ़िल्टर वाटर (आरओ) की भी व्यवस्था है. लेकिन यह विभाग द्वारा नहीं बल्कि स्वयंसेवी संस्था द्वारा दिया गया है. इस फ़िल्टर वाटर पर तीन विद्यालयों के बच्चों का बोझ है.

पटना के कंकड़बाग स्थित राजकीय मध्य विद्यालय में भी सबमर्सिबल की सुविधा है. यहां के शिक्षक सुनील कुमार पानी की गुणवत्ता को लेकर कहते हैं “हम लोग महीने में पानी के टंकी की सफाई कराते हैं लेकिन पानी के गुणवत्ता की जांच कभी नहीं हुई है. हमलोग आरओ फ़िल्टर लगाने की भी मांग कर रहे हैं ताकि बच्चों को शुद्ध पानी मिल सके.”

बिहार के सरकारी स्कूलों में समर कैंप

पटना सिटी स्थित बालक मध्य विद्यालय, शरीफ़ागंज एक भवनहीन विद्यालय हैं. जिसके पास अपना खुद का भवन नहीं है. लेकिन इस विद्यालय में स्थानीय लोगों के सहयोग से तीन साल पहले सबमर्सिबल लगवाया गया है. इस विद्यालय के एचएम गुड्डू कुमार सिंह कहते हैं “आज पूरे बिहार में किसी भी विद्यालय में पीने के पानी की समस्या नहीं है. विभाग या स्थानीय स्वयं सेवी संस्थाओं के सहयोग लगभग 99 फीसदी विद्यालयों में सबमर्सिबल की व्यवस्था है. अब रही साफ़ सफाई की बात तो यह स्कूल के मैनेजमेंट की जिम्मेदारी है कि वह इसका नियमित ध्यान रखे. विभाग द्वारा आदेश है कि विद्यालय विकास मद की राशि से भी आप खराब चापाकल, मोटर आदि ठीक करा सकते हैं.” 

सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों और प्रधानाचार्य द्वारा दी गई जानकारी से पता चलता है कि विद्यालयों में पानी की व्यवस्था का कारण बिहार सरकार की नल जल योजना या केंद्र सरकार की हर घर जल योजना नहीं है. विद्यालयों ने विद्यालय विकास मद की राशि या फिर सामाजिक सहयोग से विद्यालय परिसर में निजी सबमर्सिबल की व्यवस्था की है.

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