डायरिया से ग्रामीणों की मौत, नल-जल का पाइप फटने से फैला डायरिया

हलसी प्रखंड के बीडीओ अर्पित आनंद कहते हैं "पीएचइडी विभाग द्वारा जो पानी की पाइपलाइन बिछाई गई थी, वो कहीं-कहीं से टूटी हुई थी. इसी कारण पानी में नाले का पानी मिल गया था."

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डायरिया से ग्रामीणों की मौत, नल-जल का पाइप फटने से फैला डायरिया

बिहार में हर साल मौसम जनित बीमारियां लोगों को अपने चपेट में लेती रही हैं. मानसून सीज़न में डेंगू-मलेरिया का ख़तरा हमेशा रहता है. लेकिन इस साल डेंगू-मलेरिया के साथ ही डायरिया का प्रकोप भी जारी है. बिहार के कई गांव और बस्तियां इसकी चपेट में हैं.

हम सभी जानते हैं, डायरिया एक ऐसी बीमारी है जो दूषित पानी, खाने और आसपास फैली गंदगी के कारण होता है. वैसा क्षेत्र जो खुले में शौच मुक्त ना हो या जहां पीने के स्वच्छ पानी की उपलब्धता ना हो वहां इसके फैलने की संभावना ज़्यादा रहती है. 

लेकिन जब सरकार की योजना ही मौत और बीमारी का कारण बन जाए तो किसे दोष दिया जाए?

पूरा गांव डायरिया की चपेट में, सरकार ने किया नज़रंदाज़

लखीसराय जिले के हलसी प्रखंड के अंतर्गत आने वाला गांव ‘नोमा’ 15 दिनों पहले तक डायरिया की चपेट में था. गांव में ढाई सौ से अधिक घर हैं, जो अलग-अलग वार्ड में बंटा है. ग्रामीणों का कहना है कि अधिकांश घरों में डायरिया के लक्षण वाले मरीज़ थें. वहीं 70 से ज़्यादा मरीज़ों को अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था. लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग की तरफ से गांव में कोई भी चिकित्सा सुविधा नहीं उपलब्ध कराई गयी.

ग्रामीणों का कहना है कि गांव में बने स्वास्थ्य केंद्र पर ना तो नियमित डॉक्टर की सुविधा है और ना ही कोई दवाई उपलब्ध कराई जाती है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर इलाज ना मिलने के कारण ग्रामीणों को छोटी-बड़ी किसी भी बीमारी की जानकारी शुरुआती चरणों में नहीं मिल पाती है.

नोमा की रहने वाली गुड़िया कुमारी और उनकी दो बेटियां जानकारी के अभाव में डायरिया की चपेट में आ गये. उन्हें इलाज के लिए लखीसराय सदर अस्पताल में भर्ती कराया गया. गुड़िया से पहले परिवार में उनके ससुर की तबियत ख़राब हुई थी. जिसके बाद एक-एक कर सभी लोग बीमार हो गये.

डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए गुड़िया बताती हैं “मेरे घर में सबसे पहले मेरे ससुर की तबियत ख़राब हुई. उनको हलसी स्वास्थ्य केंद्र में लेकर गए. वहां हालत में सुधार नहीं हुआ. रात के 12 बजे डॉक्टर बोले लखीसराय ले जाओ. फिर उनको लखीसराय सदर अस्पताल ले गए. एक हफ़्ते बाद वो ठीक होकर घर आ गये. लेकिन उसके अगले ही दिन हमको और मेरी बेटी को उल्टी के साथ दस्त होने लगी.” 

फिर गांव में शुरू हुआ मौत का 'तांडव'

ग्रामीण शुरुआत में डायरिया को लेकर अंजान थें. लेकिन एक दिन के अंतराल गांव में हुई दो मौतों से लोग दहशत में आ गये. पहले 13 साल की बच्ची और उसके बाद एक 50 से 55 वर्षीय व्यक्ति की मौत ‘उल्टी-दस्त’ के बाद हो गई.

इसके बाद ग्रामीणों ने इसकी जानकारी स्वास्थ्य विभाग और स्थानीय सांसद विजय कुमार सिन्हा को दी. जिसके बाद गांव के स्वाथ्य केंद्र में 24 घंटे निगरानी के लिए डॉक्टर की नियुक्ति की गई. साथ ही पानी के जांच और ब्लिंचिंग पाउडर के छिड़काव का आदेश दिया गया.

नोमा के ही रहने वाले बिहारी कुमार बताते हैं “दो लोगों की मौत के बाद सब लोग डर गये. मेरे ही घर में मेरी पत्नी बच्चे सब बीमार थे. सबका इलाज लखीसराय सदर अस्पताल में हुआ. सूचना के बाद सांसद विजय सिन्हा गांव में आए थें. जिनके घर मौत हुआ था उनके परिवार को मुआवज़ा भी दिए. आदेश दिया गया था कि गांव के स्वास्थ्य केंद्र पर 24 घंटे डॉक्टर रहेंगे लेकिन तीन दिन बाद ही डॉक्टर चले गये.” 

डायरिया की वजह नल-जल योजना का पाइप फटना

नोम गांव कुछ वर्षों तक मीठे और साफ़ पानी के लिए गांव के एक चापाकल पर निर्भर था. भूमिगत जल का लेयर नीचे होने के कारण लोग चापाकल गड़वाने या बोरिंग कराने में सक्षम नहीं थे. ज़्यादातर घरों में पहले से लगे चापाकल सूख चुके थे या उनमें से निकलने वाला पानी साफ़ नहीं था.

कुछ वर्षों पहले मुख्यमंत्री नल-जल योजना के तहत गांव के प्रत्येक घर में नल और स्वच्छ पानी की सुविधा पहुंचाई गई है. ग्रामीण इस सुविधा से ख़ुश भी थे. लेकिन उन्हें नहीं पता था की यह सुविधा अपने साथ बड़ी बीमारी भी लेकर आएगी.

दरअसल उल्टी-दस्त की सूचना के बाद गांव के जल स्रोतों की जांच की गयी. जांच में पाया गया कि नल-जल योजना के तहत जो पाइपलाइन बिछाई गयी है वह कई स्थानों पर गंदगी से होकर गुज़र रही है और जगह-जगह से टूटी हुई है. जिसके कारण गंदगी और कीटाणु पानी में मिलकर घरों तक पहुंच रहा था.

गुड़िया कुमारी कहती हैं “गांव में लाइट की समस्या रहती है. उधर एक हफ़्ता कुछ ज़्यादा ही दिक्कत थी. इसलिए लाइट आने पर जैसे ही पानी आता सब लोग जितना बर्तन या जिसके यहां पानी टंकी हैं भरकर रख ले रहे थे. फिर वही पानी खाने-पीने में इस्तेमाल कर रहे थे.”

नल-जल वाले पानी में बैक्टीरिया की पुष्टि के बाद गांव में और प्रत्येक घर में ब्लिंचिंग पाउडर का छिड़काव किया गया. साथ ही पानी शुद्धिकरण टैबलेट भी बांटा गया.

प्रखंड विकास पदाधिकारी ने मानी गलती

जो नल जल योजना प्रत्येक घर में स्वच्छ पानी पहुंचाने का दावा करती है वही इस गांव के लिए अभिशाप बन गयी. हलसी प्रखंड के बीडीओ इसकी पुष्टि भी करते हैं. बीडीओ अर्पित आनंद कहते हैं "पीएचइडी विभाग द्वारा जो पानी की पाइपलाइन बिछाई गई थी, वो कहीं-कहीं से टूटी हुई थी. गांव में जलनिकासी की सुविधा अच्छी नहीं थी. इसी कारण पानी में नाले का पानी मिल गया था. लेकिन अब सब ठीक करा दिया गया है."

बिहार के कई जिले डायरिया की चपेट में 

डायरिया का प्रकोप बिहार के विभिन्न जिलों में फैला हुआ है. इसमें नालंदा जिले का सिलाव और बिहारशरीफ, नवादा जिले का गोविंदपुर पंचायत, पटना जिले का धनरुआ, मुंगेर जिले का असरगंज प्रखंड, गया जिले का मोहनपुर व आमस प्रखंड, बांका का धोरैया प्रखंड और रोहतास जिले के कोचस प्रखंड शामिल है. 

इन प्रखंडों में आने वाले विभिन्न पंचायत और गांव डायरिया से प्रभावित हैं. लेकिन इस रोग से राज्य में  अबतक कितने लोगों की मौत हुई या कितने संक्रमित है इसकी जानकारी उपलब्ध नहीं है.

जानकारी के लिए हमने स्टेट एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉ रागिनी मिश्रा से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने आंकड़े साझा करने से मना कर दिया. उनका कहना बिना विभागीय आदेश के वे जानकारी साझा नहीं कर सकती हैं.

इसके बाद हमने स्टेट हेल्थ सोसाइटी के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुहर्षा भगत से संपर्क करने का प्रयास किया. लेकिन उनसे हमारी बात नहीं हो सकी है.

डॉ रागिनी का कहना है आंकड़े कॉन्फिडेंटिअल है. लेकिन जब डेंगू और मलेरिया के आंकड़े सार्वजनिक किए जा सकते हैं तो डायरिया के क्यों नहीं? 

पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मौत का तीसरा बड़ा कारण डायरिया

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार डायरिया रोग पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में मौत का तीसरा सबसे प्रमुख कारण हैं. हर साल लगभग 44,3,832 बच्चों की मौत डायरिया के कारण हो जाती है. वहीं हर वर्ष पूरी दुनिया में बच्चों में दस्त रोग के 1.7 बिलियन मामले दर्ज किये जाते हैं. 

WHO के अनुसार दुनिया भर में, 780 मिलियन व्यक्तियों के पास बेहतर पेयजल की सुविधा नहीं है और 2.5 बिलियन लोगों के पास बेहतर स्वच्छता की कमी है. 

लेकिन भारत सरकार और बिहार सरकार राज्य स्वच्छ पेयजल पहुंचाने का दावा करती रही है. जल शक्ति मंत्रालय के हर घर नल का जल योजना के अनुसार बिहार के 96.08 फीसदी घरों में शुद्ध पानी के साधन पहुंचाए जा चुके हैं. लेकिन क्या केवल पाइपलाइन के माध्यम से पानी पहुंचना काफी है. क्या इसकी निगरानी नहीं होनी चाहिए की पानी साफ है या नही. पाइपलाइन का नियमित तौर पर रखरखाव हो रहा है या नहीं? 

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