बिहार सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'हर घर नल का जल', जो 2015 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चयों के अंतर्गत शुरू हुई थी, आज भी अपनी राह तकती नज़र आती है. इस योजना का उद्देश्य हर घर तक स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल पहुंचाना था, लेकिन ज़मीनी हक़ीक़त इससे कोसों दूर है. मल्लडीहा गांव से लेकर छातापुर विधानसभा क्षेत्र और बेतिया जिले तक की स्थिति इस योजना की दुर्दशा को उजागर करती है.
मल्लडीहा और छातापुर की दुर्दशा
मल्लडीहा गांव, जो लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण (पीएचईडी) मंत्री नीरज कुमार सिंह का गृहग्राम है, और उनका विधानसभा क्षेत्र छातापुर, दोनों ही इस योजना की विफलता की कहानी बयां करते हैं. मल्लडीहा के महादलित बस्ती में, जहां संथाल और अन्य वंचित समुदाय के लोग रहते हैं, चार महीने से पानी नहीं आ रहा है.
मल्लडीहा गांव के निवासी बताते हैं कि “पानी सोने की तरह हो गया है जैसे हमारे नसीब में ही नहीं है. सिर्फ़ पाइप लगाने से क्या होगा जब तक साफ़ पानी न आए. पानी के लिए हमें घर से काफ़ी दूर जाना पड़ता है जिसके वजह से नौकरी पर असर पड़ता है. शौचालय के लिए भी परेशानी होती है लेकिन इससे सरकार को क्या, सरकार को तो बस वोट चाहिए. हमने कई बार अधिकारियों से शिकायत की है लेकिन उसका नतीजा कुछ नहीं निकलता.”
छातापुर के बलुआ बाज़ार, जो कई प्रतिष्ठित राजनेताओं का गांव है, में भी स्थिति दयनीय है. नाथपट्टी और मंडल टोला जैसे इलाकों में सरकारी नलों से पानी कभी नहीं आया. लक्ष्मीनियां पंचायत, कोचगामा, और धिवहा पंचायतों में या तो पाइपलाइनें टूटी हुई हैं या पंप बंद पड़े हैं. जब हमने वहां के लोगों को बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कहा कि “नलों से सिर्फ़ नाममात्र पानी टपकता है, वह भी लोहे और आर्सेनिक से भरा. नल जल के तहत पाइप तो लग गया है लेकिन पानी नहीं आता है. हमारी आर्थिकस्तिथि इतनी अच्छी नहीं है की बाहर से पानी ख़रीद कर पियूं और घर में जो पानी आता है उसमें लोहा और आर्सेनिक होता है जिससे बीमारी होती है, ऐसे में हम क्या करें?"
आर्सेनिक और आयरन का कहर
बिहार के भूजल में आर्सेनिक और आयरन की अधिकता इस समस्या को और जटिल बना रही है. 2002 में पहली बार बिहार के पानी में आर्सेनिक की मौजूदगी पाई गई थी. आज, राज्य के 18 जिलों में भूजल आर्सेनिक से प्रभावित है. गंगा के दक्षिणी तट पर इस समस्या की गंभीरता अधिक है, और लगभग 40% आबादी इसके संपर्क में है. यह स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहा है, विशेष रूप से गॉल ब्लैडर के कैंसर जैसी बीमारियों का जोखिम बढ़ा रहा है.
बेतिया की स्थिति: शोभा की वस्तु बनी टंकी
बेतिया जिले के मझौलिया ब्लॉक के बघम्भरपुर गांव में एक पानी की टंकी तो लगी है, लेकिन उसमें पानी नहीं आता. 2019 में मुख्यमंत्री के दौरे के समय आनन-फानन में इस टंकी को स्थापित किया गया था, लेकिन आज यह सिर्फ एक शोपीस बनकर रह गई है. स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि अधिकारियों की लापरवाही के कारण यह योजना दम तोड़ चुकी है.
बघम्भरपुर के मुकेश ( बदला हुआ नाम ) बताते हैं कि “शुरुवाती कुछ महीने हमें शुद्ध पानी मिला लेकिन उसके बाद पानी आना बंद हो गया. शुद्ध पानी हम सब का अधिकार है, लेकिन हमें पानी नहीं मिल रहा. हमें हर काम के लिए पानी बाहर से लाना पड़ता है, कभी कुंआ तो कभी चापानल . जिनके पास पैसा है वो बोरिंग करा लेते हैं. लेकिन हमारे पास इतनी आमदनी नहीं है. सरकार को चाहिए कि सरकार ज़मीन पर आए और देखें कि हमें किन किन समस्याओं से गुज़रना पड़ता है."
सरकार के दावे और ज़मीनी हक़ीक़त
बिहार सरकार ने 'हर घर नल का जल' योजना के लिए बड़े-बड़े बजट का प्रावधान किया. वित्तीय वर्ष 2022-23 में इस योजना के लिए 1,110 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था. 2020 में सरकार ने दावा किया था कि इस योजना का 60% कार्य पूरा हो चुका है. लेकिन मल्लडीहा, छातापुर और बेतिया जैसे क्षेत्रों की स्थिति इस दावे पर सवाल खड़े करती है.
पंचायती राज और पीएचईडी की भूमिका
मंत्री नीरज कुमार सिंह का कहना है कि उन्होंने विभागीय जिम्मेदारी संभालते ही समस्याओं को सुलझाने की कोशिश की. उनके अनुसार, पीएचईडी के 90-95% काम और पंचायती राज विभाग के 85-90% काम अब दुरुस्त हैं. लेकिन ज़मीनी स्तर पर इन आंकड़ों का कोई प्रमाण नहीं दिखता.
ठेकेदारों और पंप चालकों की समस्याएं
योजना के तहत पंप संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी ठेकेदारों को सौंपी गई थी. लेकिन ठेकेदारों को समय पर भुगतान नहीं होता, और पंप चालकों को केवल 3,000 रुपये मासिक वेतन दिया जाता है, वह भी महीनों तक अटका रहता है. जिन ग्रामीणों ने अपनी जमीनें पंप और टंकी लगाने के लिए दी थीं, वे भी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. जब हमने एक ठेकेदार से बात की तो उन्होंने अपनी पहचान उजागर न किए जाने के वादे पर बताया कि “ रख-रखाव की ज़िम्मेदारी हमें मिली है ये बात हम मानते हैं लेकिन हमारा जो मासिक वेतन है और जो पैसे होते हैं वो भी समय से नहीं मिलता अब ऐसे में हम कैसे काम करेंगे ज़रा सोचिए.”
समस्या समाधान के लिए टोल फ्री नंबर, महज औपचारिकता
सरकार ने शिकायतों के लिए एक टोल फ्री नंबर (18001231121) जारी किया है, लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि शिकायत दर्ज कराने पर कॉल काट दी जाती है. इससे साफ पता चलता है कि सरकार इन समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रही है.
समस्या का समाधान कैसे हो?
- योजना को सुचारु रूप से चलाने के लिए पाइपलाइन और पंप की नियमित जांच और रखरखाव ज़रूरी है.
- पंप चालकों और ठेकेदारों को समय पर भुगतान सुनिश्चित किया जाए ताकि वे अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें.
- आर्सेनिक और आयरन के प्रभाव को कम करने के लिए जल शोधन संयंत्र लगाए जाएं.
- लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाए जाने चाहिए.
क्या अपनी खामियों को दूर कर पाएगी नल-जल योजना
'हर घर नल का जल' योजना बिहार के ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में जल संकट को हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. लेकिन इसकी असफलता ने लाखों लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया. सरकार और संबंधित विभागों को चाहिए कि वे इस योजना को सही मायने में सफल बनाने के लिए ठोस कदम उठाएं. बिहार के हर घर तक स्वच्छ और सुरक्षित जल पहुंचाने का सपना तभी साकार होगा जब इस योजना की खामियों को दूर किया जाएगा.