रोहतास जिले के चेनारी में अपनी विनय फीश प्रोडक्शन ऑपरेट करने वाली विनय प्रताप सिंह कहते हैं,
अगर अपने दम पर प्रगतिशील किसान कुछ न करें तो शायद सरकारी स्तर पर कुछ भी संभव नहीं होगा। 2017-18 में मैंने करीब दस बीघे में अपना फीश प्रोडक्शन शुरू किया था। तब प्यासी, रोहू, कतला जैसी कई मछलियों की प्रजातियां थी। बेहतर तरीके से मछली पालन के लिए कई बार सरकारी स्तर पर अधिकारियों से मिलने की कोशिश भी किया लेकिन बदले में केवल आश्वासन ही मिला। यह ऐसा सब्जेक्ट है जिसमें पैसे के साथ जानकारी भी बहुत अहम होती है। अगर सरकार अपने स्तर पर जानकारी ही दे देती तो हम जैसे कई और किसानों की प्रगति के लिए नयी राह खुल जाती।

क्या मीठे पानी में पलने वाली मछलियों को लेकर बिहार आत्मनिर्भर हो रहा है? प्राकृतिक रूप से बिहार की बनावट कुछ इस कदर है कि इस राज्य को हर साल बाढ़ और सुखाड़ दोनों एक साथ झेलना पड़ता है। राज्य में हर साल बाढ़ एक तबाही बन कर आती है और अपने पीछे कहानी छोड़कर चली जाती है। लाखों क्यूसेक पानी बर्बाद हो जाता है। पहले सरकार के पास इस पानी का सदुपयोग करने के लिए कोई खास व्यवस्था नहीं थी लेकिन इसके बाद सरकार ने इस पानी के उपयोग करने को लेकर कुछ पहल किया और वह पहल थी मीठे पानी में पलने वाली मछलियों को लेकर। सरकारी दावों पर यकीन करें तो बिहार तेजी से मछलियों के उत्पादन में रिकॉर्ड बना रहा है और अब इन मछलियों को एक्सपोर्ट करने की तैयारी हो रही है। लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि कई ऐसे भी किसान हैं जिन्होंने केवल अपने दम पर मत्सय पालन कर के अपने साथ राज्य की प्रगति में अपना योगदान दे रहे हैं।

वर्ष 2020 में बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र को जारी करते हुए कहा था कि अगले दो वर्ष में मछली पालन में बिहार को नंबर एक राज्य बनाया जाएगा। फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई जाएगी। इससे पहले दस सितंबर 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार सहित देश के 21 राज्यों में 20,050 करोड रूपये की प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना की नींव रखी। हालांकि वर्तमान हाल में फिलहाल सूबे में अभी एक लाख मीट्रिक टन मछली दूसरे राज्यों से आ रही है।
अगर बिहार सरकार के आंकड़ों पर यकीन करें तो बिहार में पिछले 15 सालों में मछली के उत्पादन में करीब तीन गुनी वृद्धि हुई है। आंकड़ों के अनुसार 2006 में बिहार में 2,7953 लाख टन मछली का उत्पादन होता था जिसमें काफी वृद्धि हुई है और 2020-21 में उत्पादन का यह आंकड़ा 6,8317 लाख टन तक पहुंच चुका है। सरकारी जानकारी के अनुसार बिहार में हर साल तकरीबन आठ लाख मीट्रिक टन मछली की खपत होती है। जबकि पिछले साल तक 6,8317 लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन हुआ है। यानि अब भी करीब एक लाख मीट्रिक टन मछली दूसरे राज्यों से बिहार में आती है। राज्य में नाविक और मछुआरों की कुछ संख्या लगभग 01 करोड़ 75 लाख है, जबकि बिहार मत्स्य निदेशालय के आंकड़ों के अनुसार 2003 में सिर्फ 60 लाख मछुआरे ही मछली पालन से जुड़े थे। इसकी संख्या दिनों-दिन घटती ही गई है। सरकार ने मछली पालन के लिए बजट में तकरीबन 32% का इजाफा करते हुए इसे 1561.72 करोड़ रूपए का किया है।

मछली के उत्पादन में किसानों की मदद करने के दावों की बात करें तो कई किसानों का यह कहना है कि सरकार के दावों के अनुरूप उन्हें आज तक कोई मदद नहीं मिली है जबकि सरकार जोर-शोर से यह दावा करती है कि नीली क्रांति के लिए सरकार हर प्रकार से किसानों की मदद करने के लिए तैयार है। गोपालगंज जिले के राय फिश के नाम से अपना काम करनेवाले प्रगतिशील किसान राजू राय बताते हैं कि करीब आठ साल पहले उन्होंने मछली उत्पादन के बारे में काम करने के लिए सोचा। इसके लिए उन्होंने कई स्तर पर जानकारी एकत्र करने की कोशिश की। प्रारंभिक दौर में उन्होंने जिले के कोन्हवा गांव के पास करीब आठ बीघे की जमीन में अपनी हैचरी को शुरू किया। वह कहते हैं, शुरू में उनको कुछ विभागीय इनपुट मिला था। जिसमें उनको मछली के जीरे, दवा, रख रखाव व अन्य कई चीजों की जानकारी दी गई थी। उस वक्त करीब 80 हजार रूपये सरकारी स्तर पर दिए गए थे। इसके बाद आज तक कोई अनुदान प्राप्त नहीं हुआ है। अपनी प्राइवेट हैचरी चला रहे राजू के पास आज की तारीख में रोहू, कमल कॉर्प, ग्रास कॉर्प, नैनी, कतला के अलावा कई अन्य प्रजाति की भी मछलियां का उत्पादन होता है। राजू बताते हैं, अगर सरकार की तरफ से मदद मिलती तो उनके जैसे कई और किसान इस कार्य में आगे आते। वह कहते हैं, मछली की डिमांड में जिले में कभी कोई कमी नहीं है। अगर बेहतर तरीके से सरकारी स्तर पर कार्य हो तो इसके सुखद परिणाम सामने आ सकते हैं।
ज्ञात हो कि पिछले साल ही राज्य सरकार द्वारा राज्य के मछली पालकों को सरकार द्वारा सौगात देने की बात कही गयी थी। जिसमें यह जानकारी दी गयी थी कि अब बिहार में मछली पालन के नये तालाब के निर्माण पर राज्य सरकार द्वारा 90 प्रतिशत की सब्सिडी मिलेगी साथ ही मछली बेचने के लिए गाड़ी और आइस बॉक्स खरीदने पर भी अनुदान मिलेगा। जानकारी के अनुसार किसानों की आय को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार से वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 17 करोड़ की राशि भी स्वीकृत हो गई थी। मछली पालन को लेकर डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने मत्स्य पालन के निदेशक निशात अहमद से बात करने की कोशिश की। उन्होंने डेमोक्रेटिक चरखा की को बताया
मछली पालने वाले किसानों को लेकर कोई परेशानी की बात नहीं है। अगर किसी प्रगतिशील किसान को दिक्कत होगी तो उसको दिखवाया जाएगा।

बिहार में मछली पालन को लेकर एक और बड़ी समस्या है, वो है तालाब का सूखना। बिहार में अभी 102545 तालाब हैं जिसमें से 30 हजार से अधिक तालाब में जीर्णोद्धार की जरूरत है।
सरकार जिस नीली क्रांति की बात करती है और जिस तरीके से सत्ता में आने से पहले अपने घोषणापत्र में इसका दावा करती है वो बिहार की हकीकत से परे है।