भोजन के अधिकार के तहत 2013 में लागू किया गया राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम दुनिया का सबसे बेहतर खाद्य आधारित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम है। सरकारी के द्वारा जारी किये गए आंकड़े के मुताबिक सावर्जनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत 80 करोड़ आबादी (जिनमें 75% ग्रामीण आबादी और 50% शहरी आबादी शामिल हैं) को अनाज उपलब्ध कराया जाता है।
हालांकि, समय-समय पर इसमें करोड़ रुपये के राशन घोटाले, उपभोक्ताओं के साथ डीलरों के दुर्व्यवहार की घटनाएं सामने आती रहती हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला बिहार के जहानाबाद जिले से आया है। कुछ रोज़ पहले की बात है, जहानाबाद जिले में सरकारी राशन लेने गए उपभोक्ताओं को डीलर के द्वारा लाठी डंडे से पीटा गया। यह कोई नई बात नहीं है, गाहे-बगाहे कई राज्यों से ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। लेकिन इन मामलों में ना तो जल्द सुनवाई होती है और ना भ्रष्टाचार में लिप्त लोगों पर कार्रवाई।
पीडीएस को विनियमित करने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्य सरकारें साझा करती हैं। केंद्र सरकार अनाज की खरीद, भंडारण, परिवहन और थोक आवंटन के लिए जिम्मेवार है तो वहीं राज्य सरकारें उचित मूल्य की दुकानों के स्थापित नेटवर्क के माध्यम से उपभोक्ताओं को इसे वितरित करने के लिए जिम्मेवार है।
राशन वितरण प्रणाली में कालाबाजारी की सबसे बड़ी वजह है जमाखोरी। कई बार अनाज की गुणवत्ता इतनी खराब होती है कि इसे खाया नहीं जा सकता। यही नहीं, कई बार डीलर द्वारा कम अनाज का वितरण किया जाता है। लेकिन इतने के बाद भी ग्रामीण शिकायत करने से डरते हैं। वजह है क्षेत्रीय स्तर पर आपसी संबंध खराब होने का डर। कई लोगों का कहना है कि वह पीडीएस में जुड़ी गड़बड़ी संबंधित बातों को उजागर करने से इसलिए डरते हैं कि कहीं डीलर उन्हें राशन देना बंद न कर दे। अक्सर डीलर क्षेत्रीय या संबंधित गांव का होता है। संभवत: कोई भी गरीब परिवार डीलर से अपने संबंध खराब नहीं करना चाहता।
वहीं राइट टू फूड कैंपेन के लिए काम करने वाले रूपेश कुमार का कहना है कि कई लाभार्थी जागरूक नहीं होते हैं और आवाज़ नहीं उठा पाते हैं लेकिन कई बार वह सब जानते हुए भी शिकायत करने से बचते हैं। उन्होंने हंसते हुए कहा,
पब्लिक है सब जानती है, पर झंझट मोल नहीं लेना चाहती।
वहीं बिहार में अब तक कई ऐसे मामले सामने आए हैं। बिहार में महाराजगंज के डीलर प्रभात कुमार सिंह उर्फ चुन्नू सिंह पर कालाबाजारी और घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। यह मामला सिवान जिले का है। प्रभात कुमार पर मारपीट के भी आरोप हैं। हालांकि, उन्होंने हमसे बातचीत में इन सभी बातों का खंडन किया है। उन्होंने अपने ऊपर लगे सभी आरोपों को गलत बताया है। साथ ही कहा कि गांव के कुछ बाहुबली लोग उन्हें फंसाने के लिए उन पर यह आरोप लगा रहे हैं। प्रभात कुमार पर एक आरोप यह भी है कि वह अक्सर झारखंड चले जाते हैं, जिससे जन राशन वितरण का काम प्रभावित होता है। इस संबंध में उन्होंने कहा कि उनकी तबियत खराब रहती है जिसके कारण वह झारखंड जाते हैं, साथ ही उनका परिवार भी रहता है। लेकिन इससे उनके काम में कोई रुकावट नहीं आती।
महाराजगंज ब्लॉक की निवासी सुनीता देवी (बदला हुआ नाम) डेमोक्रेटिक चरखा की टीम से बात करते हुए बताती हैं-
हमलोग को तो राशन जल्दी मिलता ही नहीं है। जाते है तो डीलर गाली देकर भगा देता है। हमलोग के पास खाने के कुछ नहीं रहता है तो हमलोग मिन्नत करते हैं। अब ये लोग (प्रभात कुमार) बड़े लोग हैं तो हम लोग को इनके खिलाफ बोलने में डर लगता है।
समय समय पर बिहार के कई जिले से ऐसे मामले सामने आते रहते हैं। हालांकि, जानकारों का मानना है कि बीते कुछ सालों में बिहार का प्रदर्शन बेहतर हुआ है। नेशनल फूड सिक्योरिटी पोर्टल द्वारा जारी किए एक आंकड़ें के मुताबिक, बिहार में पीडीएस सेवा से लाभ लेने वाले कुल 8,71,50,763 लोग हैं जिनमें जिनमें कुल शहरी लाभार्थी की संख्या 14,86,687 हैं और ग्रामीण लाभार्थी की संख्या 1,64,13,824 है।
वहीं रूपेश कुमार से जब हमने पूछा कि पीडीएस में कालाबाजारी से मुक्ति कैसे पाया जाए तो उन्होंने कहा कि
सरकार की नीति और क्रियान्वन में गैप है। डीलर को भी स्टेट फूड कॉरपोरेशन (एसएफसी) से कम मात्रा में अनाज मिलता है। ऐसे में वह भी पूर्ण रूप से निर्धारित मात्रा में अनाज उपभोक्ताओं को नहीं दे पाते हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की ओर से निगरानी के कार्य में कमी देखी जाती है। वहीं जिन अधिकारियों को निगरानी रखने के लिए नियुक्त किया जाता है वह भी व्यक्तिगत लाभ के कारण डीलर को छूट दे देते हैं। इस तरह भ्रष्टाचार बढ़ता जाता है। भ्रष्टाचार को रोकने का एक मात्र उपाय है कि सरकार पीडीएस के क्रियान्वन पर निगरानी बनाये रखे।
सार्वजनिक वितरण प्रणाली में होने वाली गड़बड़ियों पर डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बिहार राज्य खाद्य आयोग के चेयरमैन विद्यानंद विकल बताते हैं कि
अभी विभाग ने लगातार इन सारी गड़बड़ियों से निपटने के लिए पूरी व्यवस्था तैयार कर ली है। उम्मीद है कि अब हम लोगों को इस तरह की शिकायत भविष्य में सुनने के लिए नहीं मिलेगी।
लगभग सभी राज्यों के जन वितरण प्रणाली दुकानदारों पर राशन घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। डीलर से आप इस संबंध में कुछ पूछते हैं तो गोल मोल जवाब देकर वह आपको वापस कर देता है। मंत्री से लेकर अधिकारी तक सभी इस बात जानते हैं कि राशनकार्ड धारकों को डीलर राशन देने में आनाकानी करता है। सोशल मीडिया और सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा कई बार आवाज़ भी उठाया जाता है। लेकिन फिर भी कुछ एक मामले को छोड़ दें तो कार्रवाई नहीं हो पाती है। ऐसे में यह सवाल जरूर बनता है कि आखिर ऐसा क्यों?