पटना को स्मार्ट सिटी बनाने का नाम पर क्या झुग्गी-झोपड़ी को हटाने की साज़िश चल रही है?

जैसे तैसे जो जीवन गुजर ही रहा था लेकिन सरकारी चोट ऐसी पड़ी कि सब तबाह हो गया। जब कार्य शुरू होने वाला था तो हम सभी को वक्त दिया गया था। हम सभी जगह छोड़ने के लिए तैयार हो गए थे लेकिन हमारी यह भी मांग थी कि अपने आशियाने को बसाने के लिए हमें ज़मीन दी जाए।मोहम्मद गयास सरवर

आज भी इसी इलाके में ठेला लगा कर जीवन गुज़ार रहे मोहम्मद गयास सरवर कहते हैं, जिस जगह पर कभी हमारी झोपड़ी हुआ करती थी, उस जगह को देखकर मन विचलित हो जाता है लेकिन हम गरीब लोग हैं, हमारी कौन सुनेगा? किससे फरियाद करें। एक दिन पुलिस बल के साथ क्रेन आया तो सबकुछ तोड़ कर चला गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 में ये ऐलान किया था कि साल 2022 तक सभी लोगों के पास अपना घर होगा। लेकिन बिहार में इसके उलट सरकार लोगों को उजाड़ने का काम कर रही है। ऐसे में क्या ये समझा जाए कि सरकार कि घर की सूची में झुग्गी-झोपड़ी वालों के लिए कोई जगह नहीं है?

बड़ा हो या छोटा, अमीर हो या गरीब, हर किसी की अपनी एक तमन्ना होती है। अपनी ज़रूरत और हैसियत के अनुसार लोग अपने लिए आशियाने की व्यवस्था करते हैं। कोई अट्टालिका बनाता है तो कोई अपने जीवन के सारे बसंत एक झोपड़ी में ही गुज़ार देता है। तकलीफ़ तब होती है जब शहर को ‘स्मार्ट’ बनाने के नाम पर किसी की बसी बसायी दुनिया को उजाड़ दिया जाता है।

एक झटके में छिन गया सबकुछ

वक्त ने करवट लिया जब राजधानी पटना का चयन भी स्मार्ट सिटी के लिए किया गया। स्मार्ट सिटी के लिए राजधानी के कई जगहों को चयनित भी किया गया। जिसमें से एक अदालतगंज तालाब का सौंदर्यीकरण भी था। इस जगह को खूबसूरत बनाए जाने का प्रोजेक्ट बना लेकिन ज़द में वो लोग आ गए जिन्होंने अपने सिर को छुपाने के लिए अपने यहां पर घर बनाया था। करीब ढाई एकड़ में फैले इस इलाके में हज़ारों ऐसे परिवार थे जो यहां पर झुग्गी झोपड़ी बनाकर अपने जीवन को व्यतीत करते थे। इस तालाब को खूबसूरत बनाने के लिए अदालतगंज लेक एरिया डेवलपमेंट बनाया गया। इसके लिए अप्रैल 2019 में कार्य भी शुरू किया गया। तय था कि इसे अप्रैल 2020 में पूरा कर लिया जाएगा लेकिन कोरोना और लॉकडाउन की वजह से इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में देरी हुई। इस पूरे इलाके को विकसित करने के लिए 9 करोड़ 84 लाख की राशि भी तय की गई थी।

पहले फेज में 1017 करोड़ के कार्य

एक जानकारी के अनुसार पटना स्मार्ट सिटी के तहत शहर में चल रहे विभिन्न स्मार्ट प्रोजेक्ट के लिए पहले चरण में करीब 1017 करोड़ की लागत से कई तरह के कार्य किये जा रहे हैं। जिनमे कुछ कार्य अपने अंतिम चरण में हैं तो कई कार्यों के डीपीआर रेडी हैं।

एक झटके में सब बर्बाद

दरअसल इस तालाब के आसपास की ज़मीनें गैर मजरूआ हैं। यानि यह सरकार की संपत्ति है और सरकार जब चाहे, इसे अपने उपयोग के लिए खाली करा सकती है। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर एडवोकेट अभयकांत मिश्रा यह भी कहते हैं कि देश में कानून एक साथ तो हैं लेकिन एक-दूसरे के विपरित भी हैं। ऐसे में यह कहना बहुत मुश्किल हो जाता है कि किसी विषय वस्तु पर सरकार का कौन सा आदेश मान्य होगा। उदाहरण के तौर पर अधिवक्ता अभयकांत मिश्रा बताते हैं,

अगर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण है तो सरकार के पास उस अतिक्रमण को हटाने का पूरा पावर है। वह कहते हैं, एक नहीं बल्कि कई ऐसे अवसर पर यह सामने आ चुका है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह भी कहा जा चुका है कि जहां कहीं भी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण होता है वह सरकारी कर्मियों की अक्षमता से होता है। लेकिन वहीं दूसरे ओर सोशल वेलफेयर के तहत उजाड़ी गयी बस्ती को बसाने का भी प्रावधान है। दिल्ली में जब बस्तियों को तोड़ा जा रहा था तब उन्हें बसाने के लिए ‘स्लम क्वाटर’ मुहैया कराये गए थे।

वहीं दूसरी ओर गैर-मजरुआ ज़मीन पर बसने वाली झुग्गी-झोपड़ी के लिए सज़ा का प्रावधान भी रखा गया है। किसी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण किया जाता है तो तहसील की ओर से अतिक्रमण करने वालों के खिलाफ भू राजस्व अधिनियम की धारा 91 के तहत बेदखली की कार्रवाई की जाती है। सरकारी जमीन में बिलावल नाम भूमि, चारागाह, गैर मुमकिन पहाड़ी और वन क्षेत्र आते हैं। वन क्षेत्र की भूमि को तहसील के दायरे से बाहर रखा गया है। एडवोकेट मिश्रा कहते हैं, भू राजस्व अधिनियम की धारा 91 के तहत यदि पटवारी की मौका रिपोर्ट के आधार पर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण पाया जाता है तो पहली बार में अतिक्रमण के खिलाफ नियम के अनुसार बेदखली की कार्रवाई की जाती है। यदि तीसरी बार अतिक्रमण करने की पुष्टि होती है तो अतिक्रमण करने वाले को 3 साल की साधारण सजा हो सकती है। इस मामले में तहसीलदार और नायब तहसीलदार को धारा 91 के तहत यह अधिकार है। वह यह भी कहते हैं कि सरकारी जमीन पर किसी ने फसल की बुवाई कर, बाड़ लगाकर, पत्थर का पाटा लगाकर, कटीली झाड़ियां लगाकर या मकान बनाकर कब्जा किया हो तो वह अतिक्रमण की श्रेणी में आता है।

अलग-अलग समय पर अलग फ़ैसले की वजह से अधिवक्ता अभयकांत मिश्रा कहते हैं

इन सभी कानून को देखा जाए तो अंतिम रूप में आम तौर पर आम आदमी ही पिसता है।

सौंदर्यीकरण के लिए अदालतगंज की ज़मीन को खाली कराना था, जिसके बाद प्रशासनिक स्तर पर इस कदम को उठाया गया। तालाब के आस-पास करीब दो हज़ार से भी ज़्यादा परिवार इन झोपड़ियों में रहते थे। प्रशासनिक स्तर पर कार्यवाही की गई और सब कुछ एक झटके में तबाह हो गया।

क्रेन ने घर को तोड़ा

इस जगह पर झोपड़ी डालकर अपना जीवन गुज़ारने वाले मोहम्मद गयास सरवर बताते हैं,

मेरे नाना पटना हाईकोर्ट में कार्य करते थे। जिसके बाद परिवार यहीं पर रहने लगा। अभी हमारी पूरी फैमिली कमला नेहरू नगर में रह रही है।

इसी झोपडी में दर्जी का काम करने वाले मोहम्मद जैक कहते हैं, यहां पर घर नहीं टूटे, बल्कि हमारा जीवन अंधकारमय हो गया। इस जगह पर मेरी करीब 20 साल से दुकान थी, जिससे परिवार का भरण पोषण होता था। छह लोगों के खाने का इंतजाम जैसे तैसे हो जाता था लेकिन हालात इस कदर बिगडे कि परिवार का तो छत छिन ही गया, दुकान चलाने के लिए भी जगह नहीं है। सड.क के ठीक दूसरी तरफ फिलहाल एक टूटी फूटी झोपडी में दर्जी का काम कर रहे मोहम्मद जैक कहते हैं, हमें कब मदद मिलेगी? कब बिजनेस सुधरेगा? इसकी जानकारी कोई नहीं दे रहा।

इधर- उधर चले गए लोग

अदालतगंज तालाब की दूसरी तरफ रहने वाले पिंटू कुमार कहते हैं, जब सरकारी स्तर पर अतिक्रमण हो हटाया गया तो इसके बाद पूरी आबादी ही यहां से हट गई। कुछ लोग परसा बाजार चले गए तो कुछ पोठिया, पुनपुन चले गए। ज्यादातर लोग रोज कमाने खाने वाले थे। उनका घर टूटा। इसलिए जहां पर भी रोजगार की संभावना दिखी वहां पर वह चल दिए और वहीं पर बस गए।

सरकार का कदम कितना मानवीय?

बिहार सरकार की स्टैंडिंग आर्डर के अनुसार- सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों कड़ी सज़ा रखी जायेगी। इसी कड़ी में लोगों को जेल की सजा भुगतनी होगी। इसके अलावा उन पर 20 हजार रुपये तक जुर्माना लगाया जाएगा। इसके लिए नीतीश सरकार ने कमिश्नर से लेकर डीएम तक को कार्रवाई करने का अधिकार दे दिए हैं। जिसके बाद ये अधिकारी सीधे तौर पर सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों से जवाब-तलब कर पाएंगे।

यह आदेश राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग ने पहले ही जारी किया था, लेकिन कार्य में शिथिलता को देखते हुए विभाग के अपर मुख्य सचिव विवेक सिंह ने एक बार फिर से सभी प्रमंडलीय आयुक्त और जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है। नये पत्र में जेल और अर्थदंड की व्यवस्था को प्रभावी बनाने का भी सख्त निर्देश दिया गया है।

सरकार का पक्ष जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने सर्किल ऑफिसर और स्मार्ट पटना पी.आर.ओ. से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन किसी से भी संपर्क नहीं हो पाया है।

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