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बीपीएल यानी गरीबी रेखा से नीचे आने वाले लोगों के लिए केंद्र और राज्य सरकार ने कई सारी सामाजिक सरोकार की नीतियां बनायीं हैं. लेकिन हमेशा प्रश्न उठा है कि सरकार ये कैसे निर्धारित करती है कि कौन गरीबी रेखा से नीचे है? क्या वो पैमाना सही है? क्या बीपीएल में आने वाले लोगों को सभी सामाजिक नीतियों का लाभ मिल पाता है?
अगर आपको अपने परिवार का बीपीएल लिस्ट में अपना नाम जोड़ना है तो आपके परिवार कि आय 10,000 हज़ार से कम होनी चाहिए. यानि कोई परिवार दिन का 75 रूपए से भी कम कमाता है वही राशन कार्ड के लिए आवेदन दे सकता है. लेकिन हमारी टीम पटना के कुछ इलाके जैसे- गांधी मैदान, नाला- रोड, डाकबंगला जैसे इलाकों में फुटपाथ पर अपना गुज़ारा कर रहे कुछ लोगो से बात की इनमें से अधिकांश लोगों का कहना था कि वो कम से कम दिन का 100 या 200 रूपए कमाते हैं. इनमें से ज़्यादातर का परिवार या तो गांव में रहता है या फिर फुटपाथ पर रहकर ही गुज़ारा करता हैं.
पटना के गांधी मैदान, एसबीआई के पास लगभग अस्सी वर्ष (80 वर्ष) से ज़्यादा उम्र के दिव्यांग बुजुर्ग साइकिल पर अपनी जीविका चलाने के लिए विवश हैं. अपने एक हाथ और दोनों पैरों से दिव्यांग बुज़ुर्ग देवचरण अपने साइकिल पर बैठे थे. देवचरण अपनी इस लाचारी और बेबसी को दिखाते हुए कहते हैं
मेरा घर-बार सब यही है. मेरा कोई नहीं है. मैं ठंडा-गर्मी-बरसात यहीं पर रहता हूं. खाने का इंतज़ाम इधर-उधर से हो जाता है. कोई खाने को दे देता है, तो कोई दो-चार पैसे दे देता है. इसी पर मैं गुज़ारा कर रहा हूं.
हमने पूछा क्या आपको कोई सरकारी सहायता मिल रही है, क्या आपका राशन कार्ड बना हुआ है? देवचरण आगे कहते हैं
इसी साइकिल पर किसी तरह दिन भर में 100 रूपए कमा लेता हूं. किसी दिन अच्छा रहा तो कुछ ज़्यादा कमा लेता हूं. इतने पैसे में क्या होता है. पेट भी नहीं भरता है. आप ही बताईये इतने में आप कैसे गुज़ारा करियेगा. मैं इसी साइकिल पर रहता हूं क्योंकि इतने कम पैसे में मै रूम का किराया कहां से दूंगा. रूम का किराया 3 हज़ार मांगा जाता है. अभी बरसात में बहुत दिक्कत हो रहा है. पुलिस भी रोड पर दुकान लगाने वाले को भगाती है. अब बोलिए जिनका हाथ पैर है वो तो खा लेंगे लेकिन मै कहां जाऊंगा.
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बीपीएल की रूपरेखा तय करने के लिए बनी सुरेश तेंडुलकर कमेटी ने अप्रैल 2010 में सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि
देश के ग्रामीण क्षेत्र में 41.8 फ़ीसदी आबादी गरीब है. वहीं शहरी क्षेत्र में गरीबी का आंकड़ा 25.7 फीसदी है. इस तरह गांव और शहर मिलाकर देश की कुल 37.2 फ़ीसदी आबादी को गरीब मान लिया गया.
तेंडुलकर कमेटी ने नेशनल सैपल सर्वे ऑर्गनाइजेशन के 2004-05 में किए गए नेशनल हाउसहोल्ड कंजम्शन एक्सपेंडीचर सर्वे के आधार पर यह आंकड़ा पेश किया. मज़े की बात है कि इसी सर्वेक्षण के आधार पर सरकार गरीबों की तादाद को 27 फ़ीसदी मानकर चल रही थी, लेकिन बाद में योजना आयोग ने तेंडुलकर कमेटी की रिपोर्ट मंजूर को मंज़ूर कर लिया था.
उधर बीपीएल जनगणना का तरीका सुझाने के लिए गठित एन.सी. सक्सेना कमिटी ने देश में 50 फ़ीसदी आबादी को गरीब माना था. वहीं ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के 2010 के आंकड़े के अनुसार देश में 55 फीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती है. लेकिन योजना आयोग ने इन आंकड़ों को मानने से इंकार कर दिया था.
ऐसी ही कहानी राहुल की भी है. राहुल पटना के मंदिरी इलाके के रहने वाले हैं. उनका परिवार बांस से बने सामान बेचकर गुजारा करता है. इस काम में उनकी मां भी मदद करती हैं. राहुल ने कहा उनके परिवार का नाम बीपीएल में नही जुड़ा है. राहुल की मां कहती हैं
किसी महीने तो अच्छी कमाई हो जाती है लेकिन किसी महीने बिल्कुल मंदा रहता है. ऐसे में परिवार चलाने में बहुत मुश्किल होता है. बीपीएल लिस्ट में नाम जुड़ जाता तो थोड़ी राहत रहती.
2014 के बाद हुआ है बदलाव
साल 2014 में केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद बीपीएल और एपीएल श्रेणी को हटा दिया गया. जन वितरण दुकान से उन्हें इसी आधार पर राशन मिलता था. लेकिन साल 2014 में सत्ता बदलने के बाद एपीएल और बीपीएल की व्यवस्था को हटाकर सरकारी राशन लेने वाले लाभुकों को पीएचएच (PHH-प्रायोरिटी हाउसहोल्ड) और एएवाई (AAY-अंत्योदय अन्न योजना) के दर्जे बांट दिया गया है.
अब पीएचएच राशन कार्ड उन परिवारों को दिया जाता है, जो गरीबी रेखा से नीचे होते हैं और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं. गरीबी रेखा से नीचे वाला प्रत्येक परिवार जिसके पास पीएचएच राशन कार्ड है, उसे प्रति सदस्य प्रति माह 5 किलोग्राम खाद्यान्न दिया जाता है. इस पांच किलो में दो किलो गेहूं और तीन किलो चावल शामिल है. आसान भाषा में कहें तो अगर पांच लोगों का परिवार है तो उसे कुल 25 किलो सरकारी राशन मिलेगा, जिसमें 10 किलो गेहूं और15 किलो चावल होगा.
वहीं, अंत्योदय अन्न योजना के तहत उन परिवारों का राशन कार्ड बनता है जो ‘गरीब से गरीब’ हैं. यानि जो गरीबी रेखा से काफी नीचे हैं. इन परिवारों को सरकार की ओर से हर महीने 35 किलो राशन देने का प्रावधान है. हालांकि, इसमें प्रति व्यक्ति राशन देने का कोई प्रावधान नहीं है.
बिहार में केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित राशन के अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति परिवार पर 1 लीटर केरोसिन तेल भी दिया जाता है. जबकि बिहार के अलावे अन्य राज्यों में भी राज्य सरकार अपनी ओर से कई तरह के सामान जन वितरण दुकान के ज़रिए सरकारी दर पर लोगों को मुहैय्या कराती है.
कितने लोगों का बना है राशन कार्ड
खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग की वेबसाइट पर दी गयी जानकारी के अनुसार बिहार में अभी तक 1.79 करोड़ लोगों का राशन कार्ड बन चुका है. जिसमे 22,93,357 लोगो का अन्त्योदय अन्न योजना(AAY) के तहत कार्ड बना है. वही पीएचएच(PHH) के तहत 1.56 करोड़ लोगों का राशन कार्ड बनाया गया है. वहीं बिहार में 49,750 जन वितरण केंद्र है. जिसमे कॉपरेटिव, स्वयं-सहायता समूह, निजी संचालित और अन्य तरह के जन वितरण केंद्र भी शामिल हैं.
वही बिहार के विभिन्न जिलों की बात कि जाए तो पटना में 8.81 लाख कार्ड राशन कार्ड बनाए गए हैं. जिनमे 7.78 लाख PHH के तहत जिसमे 1 लाख कार्ड AYY के तहत आते हैं. वही नालंदा में 4.59 लाख कार्ड बने है, गया में 6.54 लाख कार्ड, नवादा में 3.38 लाख, लखीसराय में 1.55 लाख और मुजफ्फरपुर में 9.31 लाख लोगों का राशन कार्ड बनाया गया है.
खाद्य सुरक्षा पर काम करने वाले प्रभाकर कहते हैं
2011 से सरकार ने जनगणना ही नहीं करवाया है और न ही गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की कोई गणना हुई है, तो आखिर हमें कहां से पता चलेगा आख़िर कितने लोग गरीबी रेखा से नीचे है. 2011 में हुई जनगणना के आधार पर ही बीपीएल की लिस्ट तैयार की गयी थी. पिछले दस सालों में इसमें एक भी नए नाम नहीं जोड़े गए हैं. बिहार में लगभग 21 प्रतिशत आबादी बीपीएल में आती होगी लेकिन क्या ऐसे सभी लोगों का बीपीएल लिस्ट में नाम जुड़ा है. 2011 में आख़िरी बार जब बीपीएल लिस्ट तैयार हुई थी उस वक्त कुछ होशियार लोगो ने भी अपना नाम इस लिस्ट में जुड़वा लिया था और अभी तक इसका लाभ उठा रहे हैं.
लोगो से बातचीत से में हमें पता चला कि ज़्यादातर लोग दिन का कम से कम 100 रुपए कमाते हैं. लेकिन आसमान छूती महंगाई में इतने कम पैसे में किसी एक व्यक्ति का गुज़ारा करना बहुत मुश्किल है. अनाज से लेकर फल- सब्जी, तेल-मसाले, दूध और गैस के दाम पिछले कुछ सालों में इतने बढ़ गए हैं कि सामान्य परिवार कि जितनी आय है उसमे गुजर होना मुमकिन नहीं है.