पटना के आर्यभट्टा नॉलेज यूनिवर्सिटी (AKU) से मान्यता प्राप्त कॉलेज, ISM कम उपस्थिति वाले छात्रों पर 20 हजार तक का जुर्माना लगा रहा है. इनमें बीबीए और बीसीए के लगभग 40 से ज्यादा छात्र हैं.
अधिक जुर्माना वसूल किए जाने की वजह से छात्रों में कॉलेज प्रशासन को लेकर खासी नाराजगी है. छात्रों ने इसके लिए विश्वविद्यालय का दरवाजा खटखटाया. जहां उन्हें अपनी समस्या को लिखकर आवेदन के रूप में जमा करने को कहा गया है.
ISM कम उपस्थिति के वजह से ₹7500 से ₹20 हजार तक लगाया जा रहा है फाइन
कॉलेज के द्वारा लिए जा रहे फाइन की राशि 7500 से 20 हजार तक तय की गई है. जिसे लेकर छात्रों ने हंगामा कर रखा है. कॉलेज प्रशासन के द्वारा जारी किए गए नोटिस के अनुसार, जिन छात्रों की उपस्थिति 30% से 50% है. उन्हें 20 हजार का जुर्माना लगेगा.
इसके अलावा जिन छात्रों की उपस्थिति 51% से 64% तक है, उन्हें 15 हजार का जुर्माना लगेगा. 65% से 74% की उपस्थिति वाले छात्रों को ₹7500 रुपए का जुर्माना लगेगा. इस विषय पर हमने वहां के बीसीए विभाग के छात्र विक्की से बात की. विक्की ने हमें बताया कि
हमलोगों से मनमर्जी फाइन लिया जा रहा है. इतना फाइन हम लोग कैसे दे पाएंगे. मेरे जैसे कई छात्र ऐसे हैं जिन्हें इस वजह से परीक्षा देने से भी वंचित कर दिया गया है. कुछ छात्रों को कॉलेज प्रशासन के द्वारा पैसे इंस्टॉलमेंट में जमा करने का आदेश है. मुझे जबरदस्ती एनओसी भरने और कॉलेज से नाम कटा कर जाने को कहा गया है.
ISM के छात्र सौरभ बार-बार लगने वाले फाइन के बारे में कहते हैं-
यह पहली बार नहीं है जब हमसे फाइन वसूल किया जा रहा है. इससे पहले भी जनवरी के वक्त अनुशासनहीनता के नाम पर कॉलेज ने फाइन लगाया. उसमें से एक लड़का तो ऐसा था जो पहली बार कॉलेज आया था. लेकिन उस पर भी फाइन लगा दिया गया. कॉलेज मनमानी तरीके से फाइन वसूल कर रहा है. कॉलेज के शिक्षकों से जब पूछने आते हैं, तो वह हमें डांट देते हैं और सही ढंग से जवाब नहीं देते.
ISM कम उपस्थिति के कारण कॉलेज प्रशासन ने दिया अनुशासन का हवाला
छात्रों से जुर्माना वसूल करने को लेकर जब हमने कॉलेज प्रशासन से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने अनुशासन का हवाला दिया. इस विषय पर हमने आई.एस.एम की 'एडमिनिस्ट्रेशन प्लस ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट ऑफिसर' नीरू मैम से बात की.
ISM के प्रशासन का कहना है, कि विश्वविद्यालय के मानदंडों के अनुसार 75% से कम उपस्थिति वाले छात्रों का सेमेस्टर बैक लगेगा. इसके अलावा उन्हें हॉस्टल में शिफ्ट करना होगा. आमतौर पर छात्र घर में रहते हैं तो कोई बहाने बना लेते हैं, कि घर में कुछ हो गया. अगर बच्चे हॉस्टल में रहेंगे तो हमारी निगरानी में रहेंगे. बच्चों का कहना है कि वह हॉस्टल में नहीं रहेंगे. क्योंकि हमारे हॉस्टल में नियम कानून थोड़ा सख्त है.
नीरू मैम ने हमें बताया कि
आप आर्यभट्टा नॉलेज यूनिवर्सिटी की वेबसाइट पर भी चेक कर सकते हैं. 75% उपस्थिति अनिवार्य है. जो छात्र विरोध कर रहे हैं. उनमें से एक छात्र जिसका नाम पीयूष है, उसकी मां की तबीयत काफी ज्यादा खराब थी . इस वजह से हमने मानवता के नाते उसकी उपस्थिति 75% से कम होने के बावजूद भी उसे परीक्षा देने की अनुमति दी. मेरा केवल इतना कहना है, कि हमने हर महीने बच्चों को उनकी कम उपस्थिति के लिए नोटिफाई किया गया है.
जब हमने इस विषय पर विश्वविद्यालय के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की तो उनसे हमारा संपर्क नहीं हो पाया.
छात्रों का आरोप, हॉस्टलों में रहने के लिए किया जाता है बाध्य
आईएसएम के छात्रों का आरोप है, कि उन्हें कॉलेज के द्वारा लगातार हॉस्टल शिफ्टिंग के लिए बाध्य किया जाता है. ऐसा ना करने की वजह से ही उन पर ज्यादा फाइन लगाया जा रहा है. इस विषय पर वहां के छात्र विक्की ने हमें बताया कि,
हमलोगों का 75% उपस्थिति नहीं होने पर हमें फाइन देने को कहा जाता है. जिन छात्रों की 30% से कम उपस्थिति है, उन्हें हॉस्टल में शिफ्ट करने के लिए कहा जाता है. हमलोग कॉलेज का हॉस्टल अफोर्ड नहीं कर सकते तो हमलोग क्यों लें हॉस्टल? हॉस्टल में रहने वाले छात्रों से भी तो कम उपस्थिति के नाम पर फाइन वसूल किया जा रहा है.
छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन को बताई अपनी समस्या और जमा किए अपने आवेदन
छात्रों ने कॉलेज द्वारा ज्यादा फाइन लेने के मामले में विश्वविद्यालय का दरवाजा खटखटाया है. छात्रों के द्वारा उनकी अपनी मांगों और समस्या को लेकर आवेदन दिया जा चुका है. विश्वविद्यालय ने भी छात्रों को आवेदन के बदले उसका रिसिविंग दे दिया है. विक्की ने आगे बताया
हमलोगों अपनी समस्या को लेकर विश्वविद्यालय गए. वहां मैं नंबर 402 में बैठे एक अधिकारी को अपनी समस्या बताई. तो उन्होंने कहा कि इतना-इतना फाइन लेने का कोई प्रावधान तो है ही नहीं. उन्होंने हमसे अपनी समस्या को लेकर आवेदन जमा करने को कहा. मैंने अपना आवेदन आज जमा कर दिया है. उसके बदले मुझे रिसीविंग मिल चुकी है. जिन छात्रों ने आवेदन जमा नहीं किया है. वह भी थोड़े समय में अपने-अपने आवेदन को लेकर विश्वविद्यालय पहुंच रहे हैं.
निजी कॉलेज द्वारा वसूल किए जाने वाले अर्थदंड को लेकर क्या कहता है कानून
इस विषय पर हमने पटना हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल कुमार सिंह जी से बात की उन्होंने हमें बताया कि,
इसको लेकर कोई लिखित रूप से कानून नहीं है. निजी कॉलेज किसी न किसी बाय लॉ अथवा संस्थागत कानून के अंतर्गत आते हैं. ऐसे में ये जुर्माना उनके कानून में साफ लिखित होना चाहिए. साथ ही साथ एक उच्चतम मानक उसमें निर्धारित होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने टी एम ए पाई बनाम कर्नाटक राज्य केस में दिए गए. फैसले में साफ कहा था कि शैक्षणिक संस्था चैरिटी के लिए बनाई गई हों, तो वह बाद में लाभ उत्सर्जन पर ध्यान नहीं लगा सकती. इसी संदर्भ में वर्ष 2010 में The Prohibition of Unfair Practices in Technical Educational Institutions, Medical Institutions and Universities Bill 2010 लाया गया था. परंतु लोक सभा में यह बिल कानून में बदलने के पहले ही खारिज हो गया.
ज्यादा फाइन केवल छात्रों की समस्याएं ही नहीं बल्कि शिक्षा के अधिकार का हनन भी
निजी कॉलेजों द्वारा छात्रों से ज्यादा अर्थदंड लगाए जाने की सीमा क्या हो, यह तय करने का अधिकार केवल कॉलेज प्रशासन पर छोड़ देना ठीक नहीं है. भारत जैसे देश में जहां शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है, ऐसे में शिक्षा के क्षेत्र में गलत तरीके से छात्रों से वसूल की गई राशि उनके इस अधिकार पर सीधा प्रहार है.
अमेरिका सहित कई ऐसे देश हैं जिन्होंने मूलभूत अधिकारों पर जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य का नियंत्रण पूर्ण रूप से अपने हाथ में रखा है. केंद्र और राज्य सरकार को चाहिए कि निजी कॉलेजों द्वारा वसूल किए जाने वाली राशि और अर्थदंड के ऊपर एक सीमा तय करें. इसके साथ ही शिक्षा मंत्रालय एक निगरानी विभाग भी बनाए जो इस तरह की समस्या से छात्रों को निजात दिला सके. शिक्षा छात्र के जीवन को बेहतर बनाने के लिए है. इसे व्यापार के तराजू पर तौलना समाज के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.