जीविका बिहार की सबसे सफ़ल योजना आजकल चर्चा में क्यों है?

31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट में बिहार सरकार द्वारा संचालित ‘जीविका समूह’ की सफलता की तारीफ़ की गई है.

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पल्लवी कुमारी
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जीविका: बिहार की सबसे सफ़ल योजना आजकल चर्चा में क्यों है?

जीविका बिहार की सबसे सफ़ल योजना

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31 जनवरी 2023 को संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2022-23 की रिपोर्ट जारी की गई. इस रिपोर्ट में बिहार सरकार द्वारा संचालित ‘जीविका समूह’ की सफलता की तारीफ़ की गई है.

रीमा कुमारी हाजीपुर जिले की रहने वाली हैं. रीमा केवल दसवीं तक पढ़ी लिखीं हैं लेकिन बताती हैं, उन्हें शुरू से अपना कुछ काम करने का मन था. लेकिन शादी के बाद उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था कैसे शुरुआत करें. साल 2021 के अंत में उनके गांव की कुछ महिलाएं जीविका से जुड़ी और उन्हें भी इससे जुड़ने का सलाह दिया.

शुरुआत में तो घर में सब मना कर रहे थे लेकिन फिर मैंने हिम्मत करके खुद से फ़ैसला लिया और जीविका से जुड़ गई. समूह से जुड़ने के बाद मैंने पहला लोन लिया और अपना खुद का मशीन ख़रीदा. शुरुआत के कुछ महीनों के बाद ही मैंने बचत करना शुरू कर दिया और लोन भी समय पर चुका दिया. आज जीविका के कारण मै अपने पैरों पर खड़ी हूं और अपने दो बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रही हूं.

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आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत में इस समय 1.20 करोड़ स्वयं सहायता समूह कार्यरत हैं, इनमें से 88% समूह महिलाओं द्वारा संचालित हैं. रिपोर्ट में केरला के कुडुम्बाश्री, बिहार के जीविका, महाराष्ट्र के महिला आर्थिक विकास महिला मंडल और लद्दाख के लूम्स की सफलता की चर्चा की गई है. 

जीविका ने बदला कई महिलाओं का जीवन

जीविका से जुड़ी एक अन्य महिला सीमा देवी भी जीविका से जुड़ी हैं. सीमा जीविका से जुड़ने के बाद अपना खुद का सिलाई सेंटर चला रही है. सीमा कहती हैं

हमको पहले से सिलाई आती थी. लेकिन सिलाई सेंटर खोलने के लिए मेरे पास पैसा नहीं था. जीविका से हमको उसके लिए मदद मिला. आज मेरे पास पांच सिलाई मशीन है और मेरे साथ पांच और महिलाएं रोज़गार कर रही हैं.   

‘जीविका’ से जुड़ने के बाद रीमा और सीमा आज सफलतापूर्वक अपना व्यवसाय कर पा रही हैं. 


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एसएचजी बैंक लिंकेज प्रोजेक्ट (SHG-BLP), जिसे 1992 में शुरू किया गया था, दुनिया की सबसे बड़ी माइक्रोफ़ाइनेंस परियोजना है. एसएचजी प्रोजेक्ट को शुरुआत छोटे और सीमांत वर्गों को लाभ पहुंचाने के लिए किया गया था.

वर्तमान में, स्वयं सहायता समूहों को बढ़ावा देने और उन्हें बैंक से जोड़ने के लिए केंद्र सरकार, राज्य सरकार और गैर-सरकारी संगठन मदद कर रही है.

आर्थिक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार 31 मार्च 2022 तक देश में 119 लाख एसएचजी के माध्यम से जुड़े 14.2 करोड़ परिवारों ने 47,240.5 करोड़ रुपये की बचत राशि जमा की है. साथ ही 67 लाख एसएचजी समूहों को 1,51,051.3 करोड़ रूपए का अतिरिक्त ऋण दिया गया है.

पिछले दस वर्षों (FY13-FY22) के दौरान लिंक्ड SHG की संख्या 10.8 प्रतिशत की कम्पाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR) के दर से बढ़ी है, जबकि उसी दौरान प्रति SHG अतिरिक्त क्रेडिट 5.7 की दर से बढ़ी है.

इस रिपोर्ट में स्वयं सहायता समूहों द्वारा बैंक का ऋण चुकाने का दर 96% बताया गया है साथ ही कहा गया की ये उनकी ऋण अनुशासन और विश्वसनीयता को दर्शाता है.

कब हुई बिहार में जीविका की शुरुआत?

बिहार में नीतीश कुमार ने साल 2006-07 में इस योजना की शुरुआत वर्ल्ड बैंक से कर्ज़ लेकर किया था. इसमें महिलाओं के सेल्फ़ हेल्प ग्रुप बनाकर उनके बैंक खाते खुलवाए जाते हैं और उन्हें रोज़गार शुरू करने के लिए सरकार की तरफ से मदद दी जाती है. बिहार में महिलाओं के अब तक लगभग 10,77,258 स्वयं सहायता समूह और 71,095 ग्राम संगठन बनाये गए हैं और उनके बैंक खाते खोले गए हैं.

जीविका के तहत बने प्रत्येक समूह की महिलाओं को अलग-अलग काम के लिए कर्ज़ दिया जाता है. राज्य में जीविका के तहत अभी तक कुल 25 हज़ार करोड़ रूपए का बैंक क्रेडिट महिलाओं को दिया गया है.

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जनता के बीच अपनी पकड़ बनाने के लिए इस समय ‘समाधान यात्रा’ कर रहे हैं. समाधान यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री जिस भी गांव या कस्बे में जाते हैं वहां के ‘जीविका समूह’ से ज़रूर मुलाकात करते हैं.

इस मुलाकात के बहाने नीतीश कुमार अपनी योजना की सफलता को भुनाने का प्रयास कर रहे हैं. साथ ही शराबबंदी के बाद जीविका योजना महिलाओं के बीच खासा लोकप्रिय हुआ है जिसका लाभ नीतीश कुमार उठाना चाह रहे हैं.

नीतीश कुमार समाधान यात्रा के दौरान कैमूर जिले में जीविका दीदियों के साथ बैठक कर चुके हैं और अपने द्वारा चलाये गए योजना की तारीफ़ की. नीतीश कुमार ने कहा इस योजना कि

जीविका की सफलता को देखते हुए लोगों ने आजीविका योजना शुरू किया.

इससे पहले समाधान यात्रा में जब नीतीश कुमार दरभंगा के लहेरियासराय में पहुंचे तो उन्होंने जीविका और शराबबंदी योजना के तारीफ़ में जीविका दीदी को संबोधित करते हुए कहा,

जीविका दीदियों ने कहा हमने सब जगह देसी विदेशी शराब बंद कर दिया. मैं मिलता हूं सब जगह जीविका दीदी से. वो बताती हैं पहले पति पीते थे घर में लड़ाई झगड़ा करते थे, अब घर आते हैं तो हंसते हुए आते हैं, कितना अच्छा लगता है.

CM Nitish Kumar and Deputy CM Tejashwi Yadav in conversation with Jivika Workers.

(जीविका दीदी से संवाद के दौरान मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव)

बिहार के सभी जिलों में है जीविका की पहुंच

बिहार के सभी 38 जिलों में जीविका योजना चल रही है. जीविका के अंतर्गत गरीब महिलाओं को समूह से जोड़ा जाता हैं जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है. समूह में 10 से 12 महिलाओं को जोड़कर समूह बनाया जाता है. समूह से जुड़ी महिलाओं को बचत और रोजगार से जुड़ी जानकारियां दी जाती हैं.

ऐसे हर समूह का एक बैंक खाता खुलवाया जाता है और महिलाएं हफ़्ते के किसी एक दिन समूह में 10 रूपए जमा करती हैं जिसे बैंक में जमा किया जाता है. इसके साथ ही हर ग्रुप के खाते में सरकार की तरफ से भी 30 हज़ार रुपये जमा कराये जाते हैं जिसे प्रोज़ेक्ट फ़ाइनेंसिंग कहा जाता है.

स्वयं सहायता समूह की महिलाएं इससे कर्ज़ लेकर अपना व्यवसाय शुरू कर सकती हैं. बाद में कर्ज़ का पैसा इन्हें ग्रुप के खाते में वापस करना होता है. समूह द्वारा पैसे समय पर वापस करने के बाद बैंक ऐसे एक समूह को शुरूआत में डेढ़ लाख़ रुपये तक का लोन देती है.

बिहार जीविका योजना की सफलता पर ‘जीविका’ की प्रोजेक्ट कोऑर्डिनेटर महुआ राय बताती हैं

एसएचजी समूहों के निरंतर विकास के लिए उन्हें ‘पंचसूत्र’ नियम का अभ्यास करना चाहिए. पंचसूत्र नियम के तहत उन्हें रेगुलर (नियमित) बैठकें, नियमित बचत, नियमित अंतर-ऋण (inter loaning), समय पर लोन चुकाने और बैंकों से ऋण प्राप्त करने के लिए खाते को नियमित अपडेट करने की सलाह दी जाती है. हमे ख़ुशी है की ‘जीविका समूह’ ऐसा कर पाने में सफल हुई है.”

जीविका से जुड़ने की प्रक्रिया

‘जीविका’ बिहार के ग्रामीण इलाक़ों की वैसी महिलाओं के लिए काफ़ी मददगार है जिनके पास आय का कोई साधन नहीं है. जीविका से जुड़ने के बाद वे अपना स्वयं का स्वरोज़गार या समूह में रोजगार पाने में सक्षम हो हुईं हैं.

जीविका से जुड़ने के लिए महिलाओं के पास आधार कार्ड होना आवश्यक है. वहीं ग्रुप सदस्य  बनने के लिए महिला की उम्र भी 60 वर्ष के कम होनी चाहिए. 

लेकिन यही पात्रता कभी उनके लिए बाध्यता और रूकावट भी बन जाती है. पटना में रहने वाली गणिता देवी इसी बाध्यता के कारण इस योजना का लाभ नहीं ले सकी हैं. गणिता बताती हैं

मेरा घर वैशाली जिले के विद्धुपुर में हैं लेकिन आधार कार्ड में पता पटना के किराए वाले घर का है. इसी कारण मेरे गांव में चलने वाले जीविका समूह से हमको नहीं जोड़ा गया.

पूर्व में योजना में ‘जीविका दीदी’ रही रूबी देवी बताती हैं

गांव में जब जीविका से जोड़ने की प्रक्रिया शुरू हुई तो हम उससे सबसे पहले जुड़े जिसके बाद हमको और महिलाओं को जोड़ने का ज़िम्मा दिया गया. शुरुआत में तो हम 10 से 15 महिला को जोड़ने में सफ़ल हुए लेकिन ज़्यादा दिन तक महिलायें जुड़ी नहीं रह पायीं. ज़्यादातर महिलाएं शुरुआत में ही लोन लेने की मांग करने लगी और जिनको नहीं मिल पाया वो समूह छोड़ दी.

रूबी देवी कहती हैं

समूह नहीं बन पाने के कारण हमारे गांव में जीविका समूह बंद हो गया. लेकिन वैसी महिलाएं जो सही में अपना रोज़गार करना चाहती हैं इससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है.

हालांकि ऐसे किसी समस्या को अगर प्रोजेक्ट संचालक समय पर सुलझा लें तो ये महिलाओं के लिए एक सफल योजना साबित हो सकती है. 

देश के सबसे पिछड़े राज्यों में से एक माने जाने वाले बिहार ने ‘जीविका योजना’ के माध्यम से स्वयं सहायता समूहों (SHG) के गठन और कार्य करने का एक सफल रास्ता दिखाया है.

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