साल 2017 में सिमडेगा (झारखंड) जिले के कारीमाटी गांव में 11 साल की बच्ची संतोषी की मौत भूख के कारण हो गयी थी. लेकिन झारखंड सरकार ने मौत का कारण ‘भूख’ मानने से इंकार कर दिया था. सरकार का कहना था कि मौत मलेरिया के कारण हुई है. संतोषी का परिवार सिमडेगा जिले के अत्यंत पिछड़े समुदाय से आता है. जिस समय संतोषी की मौत हुई थी उस समय उनके घर में राशन नहीं था.
संतोषी के परिवार को तब आठ महीने से राशन इसलिए नहीं मिला था क्योंकि उनका आधार कार्ड राशन डीलर के पीओएस (प्वाइंट आफ सेल्स) मशीन से लिंक नहीं हो सका था. झारखंड सरकार ने तब ऐसे सारे राशन कार्ड रद्द कर दिए थे जो आधार से लिंक नहीं हुए थे. संतोषी की मां कोयली का कहना था कि
उनकी बेटी भात-भात करते हुए मर गयी. अगर उनके परिवार को राशन कार्ड से वंचित नहीं किया गया होता तो आज संतोषी ज़िन्दा होती.
राइट टू फूड कैम्पेन से जुड़कर काम करने वाले धीरज कुमार बताते हैं
झारखंड की 80% से ज़्यादा राशन दुकानों में आधार कार्ड आधारित राशन वितरण व्यवस्था लागू कर दिया गया है. लेकिन दूर दराज के इलाकों में जहां इंटरनेट कनेक्टिविटी कमज़ोर है, वहां के लोगों को राशन मिलने में परेशानी होती है. लाभार्थी परिवार के मुखिया का अंगूठा बायोमेट्रिक सिस्टम में स्कैन नहीं हो पाता है.
राज्य में राशन वितरण में अनियमितता
साल 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड राज्य की आबादी 3.29 करोड़ है. जिसमें से 40% से ज़्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे रहती है. इनमें आदिवासी और पिछड़े तबके के लोग ज़्यादा हैं. पिछले 10 सालों में जनसंख्या वृद्धि का कोई नया सरकारी आंकड़ा मौजूद नहीं होने के कारण बहुत सारे पिछड़े परिवार सरकारी योजनाओं का लाभ लेने से वंचित हो जा रहे हैं.
झारखंड राज्य खाद्य आयोग के वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार झारखंड में PHH कार्ड धारकों की संख्या 51,53,395 (79%), AAY कार्ड धारकों की संख्या 8,95,358 (13.9%) और ग्रीन कार्ड धारकों की संख्या 4,72,423 (7.2%) है.
झारखंड सरकार ने ग्रीन कार्ड की शुरुआत ऐसे परिवार के लिए किया था जो एनएफएससी (NFSC) के तहत मिलने वाले मुफ्त राशन से छूट गये थे.
धीरज कुमार बताते हैं
राज्य में राशन वितरण में बहुत भ्रष्टाचार व्याप्त है. भूख से मौत के केस तो अब कम आ रहे हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि परिस्थितियां बदल गई हैं. लॉकडाउन के समय झारखंड सरकार ने एनएफएसए के अतिरिक्त झारखंड स्टेट फूड सिक्योरिटी स्कीम की शुरुआत की थी. इसमें ऐसे 15 लाख लोगों जोड़ना था जो एनएफएसए में छूट गये थे और जिन्हें इसकी बहुत ज़्यादा ज़रूरत थी.
लेकिन जिस उद्देश्य के साथ इस योजना को शुरू किया गया था सरकार उसमें सफ़ल नहीं हुई. अभी पिछले 5-6 महीनों से 4 लाख ग्रीन राशन कार्ड धारकों को राशन नहीं मिल रहा है. धीरज बताते हैं कि कई लोग हमारे पास पूछने आते हैं कि राशन कब मिलेगा? कुछ लोगों को इधर राशन मिला भी है तो वह दिसंबर 2022 का. ऐसे में जब राशन वितरण में छह-छह महीनों का अंतराल होगा तो गरीब परिवार भरपेट भोजन कहां से खाएगा.
लुखी मुर्मू झारखंड के पाकुर की रहने वाली थीं. 30 वर्षीय लुखी मुर्मू की मौत भी भूख से हुई क्योंकि उनका राशन कार्ड आधार कार्ड से लिंक नहीं था.
जनगणना नहीं होने के कारण एनएफएसए में कोटा नहीं बढ़ाया गया है. परिवार में बढ़े नए सदस्यों को इसमें जोड़ने में समस्या आती है.
कुपोषण और भूख से लड़ने की जंग सिर्फ़ कागज़ तक
वैसे तो झारखंड के सुदूर ग्रामीण और जंगल के इलाकों में रहने वाले लोग कुपोषित ही हैं, मगर छोटी उम्र के बच्चों की स्थिति बहुत ख़राब है. भूख के कारण संतोषी ने तो दम तोड़ दिया मगर उसके परिवार में मौजूद उसके दो भाई-बहन आज भी कुपोषण से लड़ रहे हैं. आज उन्हें दो वक्त का भोजन तो मिल जाता है लेकिन हरी सब्ज़ी, फल, दूध और दाल उन्हें आज तक नसीब नहीं हुआ है.
सरकार द्वारा मिलने वाले मुफ़्त राशन में केवल चावल और गेंहूं दिया जाता है. उसमें भी गेंहू से ज्यादा चावल. अब ऐसे में केवल ‘मार-भात’ खाने वाले बच्चे या व्यस्क व्यक्ति को पोषण कहां से मिलेगा?
एनएफएचएस-5 रिपोर्ट में बताया गया है कि 6 से 23 माह के मात्र 11% बच्चों को ही राज्य में पर्याप्त और पोषण युक्त भोजन मिल पता है.
राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी कहा गया है कि जब बच्चे कुपोषित होते हैं तो वे बेहतर रूप से सीखने में असमर्थ हो जाते हैं. राष्ट्रीय शिक्षा नीति में बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य (मानसिक स्वास्थ्य) पर विशेष ध्यान देने पर बल दिया गया है.
एनएफएचएस-5 के रिपोर्ट बताते हैं कि पिछले पांच सालों में देश के प्रत्येक राज्य में कुपोषण के मामले बढ़े हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पोषण ट्रैकर के हवाले से आरटीआई के जवाब में बताया है कि सबसे ज़्यादा कुपोषित बच्चे महाराष्ट्र, बिहार और गुजरात में हैं. मंत्रालय ने कहा कि देश में इस समय 33,23,322 बच्चे कुपोषित हैं. जिसमें महाराष्ट्र में 6,16,772, बिहार में 4,75,824 लाख और गुजरात में 3.20 लाख बच्चे कुपोषित हैं.
राज्य में 40% बच्चे कुपोषण का शिकार
बच्चों के स्वस्थ और पोषित होने के लिए मां का स्वस्थ और पोषित होना जरूरी है, लेकिन जब मां ही कुपोषित होगी तो बच्चों को पोषण कैसे मिलेगा? एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 65% महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं.
झारखंड में कुपोषण एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या है. राज्य में लगभग 48% बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार झारखंड में 5 साल से कम उम्र के 39% बच्चे उम्र के हिसाब से कम वजन के शिकार हैं. वहीं 22% बच्चों का वजन (Wasting) उनके कद के अनुरूप नहीं है. 9% बच्चों का वजन गंभीर (severe wasting) रूप से कम है जबकि 40% बच्चों का कद (stunting) उनके उम्र के हिसाब से बहुत कम है.
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW CNNS) 2016-17 के रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में 5 वर्ष से कम उम्रे के 6.7% बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित (SAM) हैं. वहीं 2016-18 के रिपोर्ट के अनुसार बिहार, झारखंड और मध्यप्रदेश के 50% से ज्यादा किशोर (adolescent) अत्यंत गरीब परिवारों से आते हैं.
RIMS में ही बन पाया कुपोषण उपचार केंद्र
केंद्र सरकार द्वारा कुपोषण से पीड़ित बच्चों के उपचार के लिए प्रत्येक राज्य में कुपोषण उपचार केंद्र बनाए जाने का प्रावधान किया गया है. केंद्र द्वारा झारखंड के लिए 103 कुपोषण उपचार केंद्र (MTC) स्वीकृत किये गये हैं जिनमें से वर्तमान में अभी मात्र 88 केंद्र ही कार्यरत हैं. ये एमटीसी केंद्र, जिला स्वास्थ्य केन्द्रों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर बनाये गये हैं.
इन कुपोषण उपचार केन्द्रों पर वैसे बच्चों को रखा जाता है जो गंभीर रूप से कुपोषित होते हैं. पीड़ित बच्चों को कम से कम 15 से 20 के लिए भर्ती रखा जाता है. जहां बच्चों को मुफ्त पोषणयुक्त भोजन और दवाइयां दी जातीं है. इसके साथ ही बच्चों को पोषण युक्त आहार देने के लिए मां को प्रशिक्षण भी दिया जाता है. साथ ही उन्हें रोज के 130 रूपए भी दिए जाते हैं.
रिम्स की नोडल ऑफिसर आशा किरण बताती है
रिम्स में अभी एमटीसी केंद्र का निर्माण कार्य चल रहा है. अभी कुपोषण से ग्रस्त जो भी बच्चे हॉस्पिटल में आते हैं उन्हें पीडियाट्रिक वार्ड में रखा जाता है. अगर जन्म के समय बच्चे को कोई और समस्या नहीं है तो उसे 15 दिनों के अंदर डिस्चार्ज कर दिया जाता है. साथ ही बच्चे के रहने वाली माओं की भी जांच की जाती है. कहीं उनको एनीमिया या कोई और दूसरी बीमारी तो नहीं है. उन्हें भी खाने के साथ आयरन और कैल्सियम की गोली दी जाती है. अगर हॉस्पिटल खाना नहीं दे पाता है तो, खाने के लिए 100 रूपए रोज़ाना दिए जाते हैं.
आशा किरण का कहना है कि बाकि बचे एमटीसी केंद्र भी कुछ महीनों में तैयार कर लिए जाएंगे. नये जिलों में गिरिडीह और धनबाद में एमटीसी केंद्र बनाये जाने है. इन केन्द्रों के संचालन के लिए एएनम की तीन बैच में ट्रेनिंग दी गयी है. इन जिलों में अगले महीने से केंद्र शुरू हो जाएंगे. हालांकि RIMS में MTC का निर्माण पिछले डेढ़ सालों से चल रहा है. लेकिन निर्माण कार्य में केवल वॉल पेंटिंग ही की गयी है.
हालांकि पहले से कार्यरत पोषण पुनर्वास केन्द्रों की स्थिति भी कुछ ख़ास अच्छी नहीं है. अगर प्रशासन राशन वितरण जैसी योजनाओं के क्रियान्वयन को लेकर सजग और ईमानदार रहें तो भूखमरी और कुपोषण की स्थिति शायद ही उत्पन्न हो.