बिहार में 53% स्वास्थ्य उपकेंद्रों की कमी, ग्रामीण स्वास्थ्य में बजट की कमी

बिहार के जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के 36% और अनुमंडल अस्पतालों में 66% पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 1872 पदों में से 1206 पदों पर नियुक्ति हुई है और 688 पद खाली हैं.

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हमारी बहू पेट से (गर्भवती) थी. अचानक रात में उसको दर्द उठा और हमलोग अस्पताल पहुंचे लेकिन हमारे घर के पास का स्वास्थ्य उपकेन्द्र सालों से बंद ही पड़ा रहता है. जिला अस्पताल हमारे घर से 30 किलोमीटर दूर है. जब तक हम लोग अस्पताल पहुंचते तब तक मेरी बहू की मौत हो गयी.”

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(डॉक्टर नहीं रहने के कारण एम्बुलेंस में पड़े मरीज़)

रामेश्वर साहू डेमोक्रेटिक चरखा बताते हैं कि कैसे बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था ने उनसे उनकी खुशियों को छीन लिया. रामेश्वर साहू की बहू गुड़िया देवी बेगूसराय के गढ़पुरा में रहती थी. प्रसव पीड़ा की वजह से गुड़िया देवी की मौत हो गयी. ये कहानी सिर्फ़ गुड़िया देवी की नहीं है. ये बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था का सच है. साल 2022 के बजट के दौरान बिहार सरकार के वित्त मंत्री और उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद ने ये जानकारी दी थी कि सबसे अधिक राशि स्वास्थ्य विभाग में ख़र्च की गयी थी. इसके बाद बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पाण्डेय ने कहा था कि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था कोरोना के दौरान काफ़ी सुदृढ़ हुई है. हालांकि बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था पर डेमोक्रेटिक चरखा ने कई रिपोर्ट्स बनाई हैं जिसमें ये साफ़ तौर से दिखा है कि बिहार में डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ की कितनी कमी है.

बिहार के जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के 36% और अनुमंडल अस्पतालों में 66% पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में डॉक्टरों के कुल स्वीकृत 1872 पदों में से 1206 पदों पर नियुक्ति हुई है और 688 पद खाली हैं. जबकि अनुमंडल अस्पतालों में 1595 स्वीकृत पदों में से 547 ही पदों पर नियुक्ति हुई है. यह आंकड़े केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी रूरल हेल्थ स्टैटिसटिक्स के हैं. इसके मुताबिक राज्य के जिला और अनुमंडल अस्पतालों में पैरामेडिकल स्टाफ के भी आधे से अधिक पद खाली हैं. जिला अस्पतालों में 8208 स्वीकृत पदों में से 3020 और अनुमंडल अस्पतालों में 4400 पदों में से 1056 पैरामेडिकल स्टाफ के पदों पर नियुक्ति की गयी है. वहीं बिहार के ग्रामीण इलाकों में जनसंख्या के हिसाब से 53% स्वास्थ्य उपकेन्द्र, 47% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 66% सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की कमी है.

जुलाई 2021 तक के बिहार के ग्रामीण इलाकों के अनुमानित जनसंख्या 10.86 करोड बताई गई है. इस हिसाब से 21,933 स्वास्थ्य उप केंद्र, 3647 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और 911 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र होने चाहिए. स्वास्थ्य उपकेन्द्र हर 5 हज़ार की जनसंख्या पर 1 होता है और दुर्गम इलाकों में 3 हज़ार की आबादी पर होता है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र 30 हज़ार की आबादी पर और दुर्गम इलाकों में 20 हज़ार की आबादी पर होता है. उसी तरह से सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र 1 लाख 20 हज़ार की आबादी पर होता है.

लेकिन अभी वर्तमान में इनकी संख्या काफी कम है. बिहार में स्वास्थ्य उप केंद्र की संख्या 10,258 है. यानी 11675 अस्पतालों की कमी है. उसी तरह से 1932 स्वास्थ्य केंद्र और 306 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है. जो कि अपने लक्ष्य से काफी अधिक कम है.

बिहार सरकार के साल 2022 के स्वास्थ्य बजट को अगर देखा जाए तो उसमें ग्रामीण स्वास्थ्य को 3071 करोड़ रूपए दिए गए हैं. ये राशि अगर 38 जिलों में विभाजित की जाए तो एक जिले को ग्रामीण स्वास्थ्य के लिए पूरे साल में केवल 80 करोड़ ही मिलेंगे. जबकि बिहार की अधिकांश आबादी गांव में ही निवास करती है.

लेकिन ऐसा नहीं है कि बिहार की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था सिर्फ़ गांव तक ही सीमित है. शहरी इलाकों में भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र कम है. राज्य की अनुमानित शहरी जनसंख्या 1.5 करोड़ है. इस हिसाब से 301 पीएससी होने चाहिए, लेकिन अभी 102 पीएचसी ही मौजूद है. यानी 66% प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की कमी बिहार के शहरी क्षेत्रों में है.

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इसके अलावा अगर शहरी इलाकों में अस्पतालों के मेडिकल स्टाफ पर नज़र डाली जाए तो स्वास्थ्य कर्मियों (आशा और ANM) से लेकर डॉक्टर, फार्मेसिस्ट, लैब टेक्नीशियन और नर्सिंग स्टाफ की नियुक्ति काफी कम हुई है.

इस पर बात करते हुए जन स्वास्थ्य अभियान के संचालक और पॉलीक्लीनिक के चिकित्सक डॉ. शकील का कहना है कि

"बिहार में मरीज़-डॉक्टर अनुपात, मरीज़-हेल्थ वर्कर अनुपात बहुत ख़राब है. यहां तक कि अगर बिहार में Per Capita Medical Expenditure यानी इलाज के दौरान दवाइयों पर होने वाले ख़र्च को देखा जाए तो वो भी देश में काफ़ी अधिक आता है. बिहार के आंकड़ों के अनुसार अगर कोई अपने इलाज में 100 रूपए की दवा लेता है तो उसमें सिर्फ़ 13 रूपए ही सरकार की ओर से मदद मिलती है. बिहार में पूरे स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार की ज़रुरत है."

ग्रामीण इलाकों में ब्लॉक स्तर और पंचायत स्तर पर स्वास्थ्य की क्या स्थिति है ये डेमोक्रेटिक चरखा ने अलग-अलग जिलों से रिपोर्ट दिखाई है. इसपर बात करते हुए स्वास्थ्य विभाग, बिहार के स्पेशल ड्यूटी ऑफिसर शिशिर मिश्रा ने डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए बताया-

"स्वास्थ्य विभाग हमेशा लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए तत्पर रहता है. अगर कहीं कोई दिक्कत है तो उसे जल्द ही पूरी की जायेगी."

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