ब्राह्मणोऽस्य मुखामासीद्वाहू राजन्य: कृत:। ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत
– पुरुषसूक्त ऋग्वेद संहिता, 10वां मंडल, 13वां श्लोक
इस श्लोक में ये बताया जा रहा है कि ब्राह्मण की उत्पत्ति ब्रम्हा के मुख से हुई, क्षत्रिय की बाज़ुओं से, वैश्य की उत्पत्ति ब्रम्हा के जांघों से और शूद्रों की उत्पत्ति ब्रम्हा के पैर से की गयी है. ऋग्वैदिक काल से लेकर आजतक दलितों का यही काम समझा गया है कि वो बाकी के तीन समुदाय की सेवा करेंगे.
80% घर आज भी सीवेज सिस्टम से नहीं जुड़े
साल 1993 में हाथ से मैला उठाना या सीवर में सीधे उतर कर सफ़ाई करना बैन कर दिया गया. लेकिन बैन करने के बाद भी ये प्रथा पूरे बिहार में होती है. जनगणना 2011 के अनुसार पटना में प्रतिदिन 225 एम.एल.डी सीवेज निकलता है. पटना शहर में कुल 4 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है लेकिन ख़ुद पटना नगर निगम की बुकलेट के अनुसार ये दयनीय हालत में हैं. सीवरेज सिस्टम तक पटना के सिर्फ़ 20% घर ही जुड़े हैं यानी बाकी के 80% घरों में सेप्टिक टैंक है या सीवेज खुले में बहाया जाता है. इसी सेप्टिक टैंक और खुले में सीवेज की सफ़ाई का ज़िम्मा सीवर मज़दूर का है. पटना के पत्थर की मस्जिद का इलाका हो या राजेंद्र नगर का, वहां भले आपको फ्लश शौचालय मिलेंगे लेकिन ये शौचालय सीवेज सिस्टम से जुड़े हुए ही नहीं हैं.
पटना के पी.एम.सी.एच को वर्ल्ड क्लास हॉस्पिटल बनाया जा रहा है. लेकिन उसी के पास के नाले की सफ़ाई के लिए कोई मशीन तो दूर की बात है सीवर मज़दूरों को मास्क, ग्लव्स या कोई सुरक्षा किट भी नहीं दिया जाता है. राहुल एक सीवर मज़दूर हैं और मांझी समुदाय से आते हैं. उनकी उम्र सिर्फ़ 15 साल है. उससे बात करने पर राहुल बताते हैं
"घर में सभी लोग यही काम करते हैं. हम स्कूल जाने का सोचे थे, कुछ दिन गए भी थे. लेकिन वहां पर सब हमको कुछो-कुछो बोलता था ख़राब तो हम पढ़ाई छोड़ दिए. अब मन भी नहीं करता है पढ़ाई करने का. इस साल से हम गटर की सफ़ाई करना शुरू किये हैं."
फौजियों से ज़्यादा मौत सीवर मज़दूरों की
सामाजिक कल्याण एवं सशक्तिकरण मंत्रालय ने राज्यसभा सांसद वंदना चवन के एक सवाल में बताया था कि साल 2016 लेकर नवम्बर 2019 के बीच में 282 सीवर मज़दूरों की मौत सीवर में मौजूद ज़हरीली गैस से हुई है. लेकिन ये सिर्फ़ वो मौत हैं जो रिपोर्ट की गयी. अनगिनत मौत ऐसी है जिसे कभी रिपोर्ट नहीं किया गया है. इसी जवाब में मंत्रालय ने ये भी कहा था कि उन्होंने अब तक 17 राज्यों में 60,440 सीवर मज़दूरों की पहचान की है.
पटना का कौटिल्य नगर सांसद-विधायक कॉलोनी के नाम से भी जाना जाता है. यहां पर बिहार के निति निर्माताओं का घर है और यहीं पर डेमोक्रेटिक चरखा की टीम को मिलते हैं प्रकाश राम. प्रकाश राम एक सीवर मज़दूर हैं और पिछले 20 सालों से पटना नगर निगम में सफ़ाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहे हैं. प्रकाश राम से जब हमारी टीम बातचीत करने की कोशिश करती है तो वो थोड़ा भड़क कर कहते हैं,
"जब सीवर में काम करने जाते हैं तो कैमरा लेकर लोग आ जाता है फ़ोटो खींचने के लिए. लेकिन कोई भी हमारी मदद नहीं करता है. जब सीवर के अन्दर जाते हैं तो सबका पैखाना बदन में लगता है. पैखाने की बदबू के बीच हमलोग सीवर में अन्दर जाते हैं और हाथ से पूरा पैखाना और बाकी गंदगी बाहर निकालते हैं. लेकिन कभी भी कोई ऐसा सरकारी अधिकारी नहीं मिला है जो हमलोग को मास्क या ग्लव्स दे. अभी हमलोग सांसद-विधायक कॉलोनी में काम कर रहे हैं. सब तरफ़ नेता जी ही हैं लेकिन कभी भी हमलोग को कुछ नहीं मिला है."
बड़े बजट के बाद भी नहीं रुकी सीवर मज़दूरी
Manual Scavenging Prohibition Act 1993 के तहत सभी स्थानीय निकाय यानी नगर निगम को ये अधिकार दिया गया है कि वो हाथ से मैला उठाने या सीवर मज़दूरी को रोकने के लिए उचित कदम उठाये. पटना नगर निगम ने साल 2020-21 में ₹3863.57 करोड़ रूपए का बजट बनाया था जिसमें से ₹2911.63 करोड़ रूपए ख़र्च किये गए हैं. इतने पैसे ख़र्च करने के बाद भी पटना नगर निगम ने सीवर मज़दूरों को किसी भी तरह का मास्क या सुरक्षा किट मुहैय्या नहीं करवाया. पटना नगर निगम ने साल 2020 में 9 बड़े नालों की सफ़ाई के लिए ₹50 करोड़ रूपए ख़र्च किये हैं. सीवर मज़दूरों का मासिक वेतन भी सिर्फ़ ₹9 हज़ार प्रति माह है. अगर सीवर में उतरने का काम करने के दौरान किसी सीवर मज़दूर को किसी तरह की चोट लगती है या उसकी मौत हो जाती है तो ना दर्ज किया जाता है और ना किसी भी तरह का मुआवज़ा दिया जाता है.
रवि एक सीवर मज़दूर हैं. सीवर में उतरने के दौरान उनके सिर में भारी चोट आई थी लेकिन उनके ठेकेदार की तरफ़ से उनका इलाज भी नहीं करवाया गया और ना उन्हें किसी भी तरह की आर्थिक मदद मिली. रवि बताते हैं,
"पिछले साल की बात है, हम नूरी मस्जिद (भिखना पहाड़ी के पास का इलाका) के पास गटर में सफ़ाई करने उतरें. अन्दर काफ़ी गहरा था और सड़क का कंस्ट्रक्शन करके ईंट फेका हुआ था. अन्दर जाने के दौरान मेरा पैर फिसला और नीचे ईंट पर सिर पर चोट आई. काफ़ी खून निकला लेकिन ठेकेदार कहा अपना समझो. हमलोग को इंसान तो कभी ठेकेदार समझता ही नहीं है, जानवर की तरह काम करवाता और गाली देकर ही बात करता है."
सीवर मज़दूरों की चोट, मौत और मुआवज़े पर बात करते हुए प्रकाश राम आगे बताते हैं,
"हमलोग के जान की कीमत ही नहीं समझी जाती है. कुछ दिन पहले इनकम टैक्स गोलंबर के पास सीवर में एक आदमी गया ज़हरीली गैस अन्दर से निकली थी नहीं तो वो उसी में दम घुट कर मर गया. लेकिन उसकी मौत को ये बताया ही नहीं गया कि सीवर में उसकी मौत हुई है. नगर निगम हमलोग को अपना कर्मचारी भी नहीं मानती है तो कभी भी काम के दौरान हमलोग में से किसी की मौत होती है तो वो बात किसी को पता ही नहीं चलती."
नगर निगम कर्मचारी का दर्जा भी नहीं मिला
दरअसल पटना नगर निगम सीवर की सफ़ाई करवाने के लिए ठेकेदारों को पैसे देकर काम करवाती है. अब ये ठेकेदारों के ऊपर निर्भर करता है कि वो काम किससे करवाते हैं और कैसे करवाते हैं. जितने भी सीवर मज़दूर हैं वो कागज़ पर पटना नगर निगम के कर्मचारी ही नहीं हैं.
एक ठेकेदार ने नाम सार्वजनिक नहीं करने की शर्त पर बताया,
"नगर निगम की तरफ़ से हमलोग को वार्ड की सफ़ाई का टेंडर मिलता है. उस टेंडर जो पाने के लिए हमें कई लोगों को पैसे देने पड़ते हैं उसके बाद हाथ में बहुत कम ही बचता है. उसमें इतना पैसा नहीं रहता है कि हम किसी को सुरक्षा किट दे सकें. अगर हमलोग कभी नगर निगम से इसकी शिकायत करते हैं वो कहा जाता है कि अगर तुमसे ये काम नहीं होगा तो बता दो किसी और से करवा लेंगे."
हालांकि इन सभी आरोपों को नकारते हुए पटना नगर निगम के कार्यपालक पदाधिकारी कुमार पंकज कहते हैं
"पटना नगर निगम में किसी भी तरह का ठेकेदारी व्यवस्था नहीं है. हमारे कुछ सफ़ाई कर्मचारी हैं काम उन्हीं से करवाया जाता है. अगर उन्हें किसी भी चीज़ की ज़रूरत है तो वो बताएं हम उन्हें मुहैय्या करवाएंगे. अभी आपके माध्यम से पता चला कि पटना में कई जगहों पर हाथ से मैला या सीवर में मज़दूरी करवाई जा रही है. हम जांच करेंगे कि ऐसा क्यों हो रहा है."
जब डेमोक्रेटिक चरखा ने कार्यपालक पदाधिकारी से पूछा कि क्या दोषियों पर कारवाई की जायेगी तो जवाब में उन्होंने कहा
"ये तो देखना होगा कि वो किस परिस्थिति में मैला उठाने गए. कई बार लोग काम के ‘उत्साह’ में मैला उठाने चले जाते हैं लेकिन अगर उनपर कोई दबाव डाल कर काम करवा रहा है तो हम उनपर कारवाई करेंगे."
लेकिन सवाल ये है कि आख़िर कोई इस तरह का काम ‘उत्साह’ में क्यों करेगा?
सीवर मज़दूरों के बच्चे भी पढ़ाई से दूर
सलीम पिछले 13 सालों से हाथ से मैला उठाने और नाली की सफ़ाई करने का काम कर रहे हैं. सलीम के अनुसार
"हम 7वीं कक्षा तक पढ़े हैं. आगे पढ़ाई करने का मन था लेकिन पूरा परिवार इसी काम में लगा था इस वजह से स्कूल में सब हमसे अलग बैठते थे. एक समय पर लगा कि शायद ख़ुदा ने मेरी किस्मत में यही लिखा है इसीलिए हम भी पढ़ाई छोड़ कर इस काम में लग गए. लेकिन कभी भी मन नहीं करता है ये काम करने का. हाथ से नाली की सफ़ाई करते हैं, उसमें पूरा इंसानी मैला आता है. 2 साल पहले हम ये काम छोड़ने का मन बना लिए और चाय की दुकान शुरू किये. लेकिन कोई भी डोम (दलित समुदाय की एक जाति) के हाथ का चाय या पानी नहीं पीना चाहता है. इस वजह से फिर यही काम शुरू कर दिए हैं. सफ़ाई करने के बाद बदन इतना महकता है कि बर्दाश्त नहीं होता है. उसपर से अगर किसी जगह चाय पीने या खाना खाने जाते हैं तो वो हमलोग का अलग प्लेट और प्लास्टिक के ग्लास में चाय देता है. ऐसी ज़िन्दगी का फ़ायेदा ही क्या जब लोग हमें अछूत समझे."
स्वच्छ भारत दिवस के दिन जब देश के प्रधानमंत्री सहित सभी मंत्री और अफ़सर साफ़ जगह की सफ़ाई करते हैं तो दरअसल वो इन सफ़ाई कर्मचारियों का मज़ाक बनाते हैं और वही सेल्फी ट्विटर पर वायरल होती है.