बिहार में राशन कार्ड की वजह से लोग भूखे, आयोग ने मानने से किया इंकार

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Sujit Srivastava
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हमें कोई पूछने वाला नहीं है। एक तो कार्ड नहीं है और दूसरा जिसके पास कार्ड है, उसे राशन नहीं मिलता है। वह कहते हैं, इस जगह पर करीब 50 परिवार रहते हैं। हर परिवार में कम से कम पांच लोग हैं। कोरोना के कारण जब लॉकडाउन लगा तो हमसब सोच में पड़ गए कि आखिर परिवार कैसे पालेंगे। हमारे पास बीपीएल कार्ड था, तब राशन मिल जाता था। जब वह बंद हुआ तो कहा गया कि राशन कार्ड मिलेगा तो राशन मिलेगा। तमाम जद्दोजहद के बाद करीब दस दिन पहले राशन कार्ड प्राप्त हुआ है।लालू पासवान

कोरोना महामारी के दौर में पूरी दुनिया ने लगातार दो बार लॉकडाउन के देखा और झेला। तमाम परेशानियां हुई लेकिन इन सबमें सबसे पहला उद्देश्य यह था कि लाखों-करोड़ों की आबादी को भूख से कैसे बचाया जाए। इसी वक्त राशन कार्ड का उपयोग सामने आया। दरअसल सरकारी स्तर पर यह आदेश दिया गया कि लॉकडाउन में लोगों को भूख से बचाने के लिए प्रत्येक परिवार को पांच-पांच किलो का राशन दिया जाएगा। सरकारी आंकड़ों पर यकीन करें तो सभी जरूरतमंदों को ऐसे वक्त में राशन कार्ड की बदौलत राशन दिया गया है लेकिन हकीकत ऐसी कि ऐसे दावों पर सवालिया निशान उठ रहे हैं।

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राज्य के दूसरे हिस्से की कौन कहे, राजधानी पटना में ही हार्डिंग रोड के किनारे पिछले करीब बीस सालों से झोपड़ियां बना कर बसेरा कर रहे लोगों के दावे सरकारी दावों के बिल्कुल अलग है। इसी झुग्गी-झोपडी में रहने वाली आशा देवी बताती हैं,

मेरे परिवार में सात लोग रहते हैं। मेरा आज तक कार्ड हीं नहीं बना है। कार्ड बनेगा कैसे? ये बताने वाला भी कोई नहीं है। लॉकडाउन में तो पूरी तरह से लोगों की दया पर निर्भर रहना पडा।

यहां निवास करने वाले सभी दिहाड़ी मज़दूर हैं। जो रिक्शा, ठेला चलाकर अपना जीवन यापन करते हैं। इसी जगह पर अपनी झोपड़ी डालकर जीवन गुजारने वाली पिंकी देवी कहती हैं, हम लोगों की सुनने वाला कोई नहीं है। जब लॉकडाउन लगा तो केवल एक बार आधार कार्ड पर पांच किलो राशन मिला। उसके बाद कोई पूछने वाला आज तक नहीं आया।

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बिहार राज्य खाद्य आयोग के चेयरमैन विद्यानंद विकल कहते हैं,

लॉकडाउन लगने के बाद सरकार की तरफ से मार्च 2020 से नवंबर 2020 तक प्रति कार्ड प्रति यूनिट पांच किलोग्राम राशन व एक हजार रूपये फ्री में दिए गए। इनमें एनएफएसए, पीएमजेकेवाई भी शामिल थे। इसके अलावा हमने तेज भूमिका निभाते हुए जिनके पास राशन कार्ड नहीं था। उनको आधार नंबर पर राशन उपलब्ध कराया। वह कहते हैं, इसके बाद दुबारा मई 2021 से लेकर मार्च 2022 तक सभी जरूरतमंदों को पांच किलोग्राम फ्री अनाज दिया जा रहा है। इसमें गेंहू और चावल दोनों हैं। इसकी कंट्रोलिंग मुख्यालय में है। ये कार्य इलेक्ट्रॉनिक पीओएस द्वारा किया जा रहा है, जिसमें अनुपात व लक्ष्य पर पूरा ध्यान रखा जा रहा है। वह कहते हैं, वन नेशन वन कार्ड के माध्यम से भी लोगों को राशन दिया जा रहा है। कई ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें आधार यहां का है और राशन कार्ड कहीं और बना है तो इस हालात में विभागीय स्तर पर इसे देखा जा रहा है और अलग करने की प्रक्रिया जारी है। इसे जल्द ही पूरा कर लिया जाएगा।

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(बिहार राज्य खाद्य आयोग के चेयरमैन विद्यानंद विकल)

हालांकि आंकड़ों में कहानी कुछ और ही है। प्रधानमंत्री ग़रीब अन्न योजना के तहत भी जो अनाज केंद्र सरकार द्वारा बांटा जा रहा है वो भी लोगों तक पहुंच नहीं रहा है। मई 2021 के महीने में 3,48,466 मेट्रिक टन गेंहू दिया गया और FCI के ओर से 6,274 मेट्रिक टन गेंहू दिया गया यानी कुल 3,54,740 मेट्रिक टन गेंहू बिहार को मिला लेकिन बंटा सिर्फ़ 1,55,752.03 यानी 1/3 हिस्सा। अगर बात दिसम्बर 2021 की करें तो 1,65,168.49 मेट्रिक टन गेंहू और 2,47,804.93 चावल बांटा गया। जनवरी और फरवरी 2022 का आंकड़ा सरकार की ओर से नहीं जारी किया गया है।

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(केंद्र सरकार की वेबसाइट पर मौजूद आंकड़ा)

वहीं एक और महिला सुनीता देवी अलग की कारण बताती हैं। सुनीता कहती हैं, करीब दो माह पहले मेरा राशन कार्ड बनकर आया है। लेकिन जब राशन उठाने के लिए जाती हूं तो डीलर यह कह कर राशन नहीं देता है कि सूची में उसका नाम नहीं है। इसलिए वह राशन नहीं दे सकता। वह कहती हैं, साहब, यह सब काम तो अफसर लोगों का है। अगर वह काम नहीं कर रहे हैं तो उनकी गलती का खामियाजा हम लोग क्यों भुगते?

विकल बताते हैं, पिछले लॉकडाउन में राशन कार्ड की जरूरत तो देखते हुए युद्धस्तर पर कार्य किया गया और जीविका के माध्यम से करीब 33 लाख नये कार्ड को बनाया गया। यह प्रक्रिया अभी भी जारी है। विकल कहते हैं, लॉकडाउन के दौरान हमने अपने नागरिकों को तो राशन उपलब्ध कराया ही था । लॉकडाउन के दौरान दूसरे राज्यों से आने वाले बड़ी संख्या में प्रवासियों को भी दो माह का राशन फ्री में उपलब्ध कराया गया था।

बिहार में 55% आबादी ग़रीबी रेखा से नीचे है. पटना की आबादी 2011 के सेन्सस के मुताबिक़ 20 लाख के आसपास है और उनमें से सिर्फ़ 2,89,939 शहरी क्षेत्र में और ग्रामीण क्षेत्र में 5,91,512 लोगों का ही राशन कार्ड (आंकड़ें 22 फ़रवरी 2022 तक के हैं) बना है। 

विद्यानंद विकल कहते हैं,

लोगों को राहत मिले इसके लिए राशन कार्ड को बनाने की प्रक्रिया को और सरल किया जा रहा है। पहले राशन कार्ड के लिए एक तय शुल्क देकर शपथ पत्र दिया जाता था। अब केवल सादे कागज पर आवेदन दिया जा सकता है। पहले आरटीपीएस द्वारा आवेदन होता था, अब विभागीय वेबपोर्टल पर आवेदन दिया जा सकता है। वह कहते हैं, उद्देश्य केवल यही है कि जब सरकार सुविधा दे रही है तो हर किसी को उसका लाभ मिले।

लेकिन जिस सरल प्रक्रिया की बात सरकारी अधिकारी कह रहे हैं वो दरअसल काफी कठिन है। ऑनलाइन आवेदन अभी भी दिहाड़ी मजदूरों की पहुंच से बाहर है। उसके ऊपर से अंग्रेजी में बनी वेबसाइट पर अशिक्षित लोगों को आवेदन करना नामुमकिन है।