<strong>कुढ़नी: क्या बिहार में ‘मिनी पाकिस्तान’ बन रहे हैं?</strong>

देश के किसी भी इलाकें में मुस्लिमों के साथ हुए मॉब लिंचिंग का पहला कारण मुस्लिमों के लिए राजनेताओं द्वारा लोगों के मन में बैठाई गई नफरत है.

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देश के किसी भी इलाकें में मुस्लिमों के साथ हुए मॉब लिंचिंग का पहला कारण मुस्लिमों के लिए राजनेताओं द्वारा लोगों के मन में बैठाई गई नफरत है.

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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के अध्यक्ष सांसद अस्द्दुदीन ओवैसी ने साल 2018 में लोकसभा में सरकार से एससी-एसटी एक्ट के तरह एक कानून लाने की बात कही, जिसके तहत किसी भी भारतीय मुस्लिम को पाकिस्तानी कहना गैर जमानती अपराध माना जाए. उन्होंने इसके लिए तीन साल तक की सज़ा के प्रावधान की भी मांग की थी.  

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हालांकि ऐसा कोई कानून तो नहीं बनाया गया. लेकिन राजनैतिक पार्टियां समय-समय पर मुसलमानों के ऊपर पाकिस्तानी होने या पाकिस्तान जाने जैसे शब्दों का इस्तेमाल करते रहते हैं. कई बार तो मुस्लिम बहुल इलाकों को ‘मिनी पाकिस्तान’ तक घोषित कर दिया जाता है.

इस मुद्दे पर ताजी घटना बिहार के कुढ़नी विधनासभा से आया है.

मजाक में कहा- ढाका को ‘पाकिस्तान’

अभी हाल ही में कुढ़नी विधानसभा उपचुनाव में प्रचार करने पहुंची भाजपा सांसद रमा देवी ने पूर्वी चंपारण के ढाका विधानसभा क्षेत्र की तुलना पाकिस्तान से कर दी. जिसके बाद से बिहार का सियासी पारा एक बार फिर गर्म हो गया है.

रमा देवी ने जिस वक्त ये बयान दिया उनके साथ चंपारण के ढाका से विधायक पवन जायसवाल भी बैठे हुए थे. उनकी तरफ इशारा करते हुए सांसद ने कहा कि

“हमलोगों ने तो पाकिस्तान भी जीता है और ढाका तो पाकिस्तान ही है ना. पवन जायसवाल वहीं से जीत कर आए हैं.”

हालांकि रमा देवी का बयान वायरल होने के बाद पवन जायसवाल ने मीडिया में सफाई देते हुए कहा कि

“रमा देवी ने ये बात मजाक में कही है और उनकी बात को तोड़-मरोड़कर कर दिखाया जा रहा है.”

जायसवाल डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए आगे कहते हैं

“दरअसल प्रेस वार्ता में मेरा परिचय दिया जा रहा था. इसी दौरान किसी ने कहा कि ये ढाका से विधायक हैं. इसी बात पर वहीं बैठे किसी और शख्स ने हंसी में कहा कि क्या बांग्लादेश वाला ढाका. तब रमा देवी ने मजाक में कहा कि ये पाकिस्तान से जीत कर आए हैं, क्योंकि ढाका तो पाकिस्तान में ही है ना. बस इतनी सी बात को बेवजह तूल दिया जा रहा है.”

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Rama Devi

हालांकि यह कोई पहला मामला नही है जब नेताओं ने मुस्लिम बहुल इलाकों की तुलना ‘पाकिस्तान’ और ‘मिनी पाकिस्तान’ से किया हो.

साल 2020 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में आप का दामन छोड़कर भाजपा में शामिल हुए कपिल मिश्रा ने ट्वीट किया था कि 8 फरवरी को दिल्ली की सड़कों पर हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच मुकाबला होगा.

जिसके बाद चुनाव आयोग ने मिश्रा को नोटिस भी जारी किया था लेकिन कपिल मिश्रा अपने बयान पर टिके रहे थे. इस चुनाव से पहले संसोधित नागरिकता कानून के विरोध के समय भी राजधानी दिल्ली के शाहीन बाग में जारी प्रदर्शन स्थल को कपिल मिश्रा ने ‘मिनी पाकिस्तान’ बोल दिया था.

कपिल मिश्रा ने ट्वीट करते हुए लिखा था

“दिल्ली में छोटे-छोटे पाकिस्तान बनने लगे हैं. पाकिस्तान की एंट्री दिल्ली के शाहीन बाग में हो गई हैं. दिल्ली के शाहीन बाग, चांद बाग और इन्द्रलोक में पाकिस्तानियों का कब्जा हो गया है. दिल्ली के सड़कों पर पाकिस्तानी दंगाइयों का कब्जा हो गया है.”

इससे पहले भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी ने साल 2021 के नंदीग्राम चुनाव के समय ममता बनर्जी के लिए ‘बेगम’ शब्द का इस्तेमाल किया था. साथ ही कहा था “आप ‘बेगम’ को वोट नहीं करेंगे बल्कि ‘छोटे पाकिस्तान’ के लिए वोट करेंगे.”

हालांकि ऐसी बयानबाजियां अक्सर जनता द्वारा चुने गए जनप्रतिनिधियों द्वारा की जाती हैं. आमलोगों में इस तरह कि बयानबाजियों का कितना असर पड़ता है? इस विषय पर आमलोग खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग क्या सोचते हैं?

देश के अंदर और कितने हिस्से करेंगे हम?

फरीद खां पटना के एक लेखक हैं. ‘अपनों के बीच अजनबी’ किताब के लेखक फरीद खां अपनी किताब में इसी दर्द को बयान करते हैं. उनके किताब में ‘मिनी पाकिस्तान’ नाम से एक अध्याय भी जोड़ा गया है जिसमें मुस्लिम समुदाय में गरीबी और अशिक्षा के कारणों की पड़ताल की गई है.

साथ ही कैसे नेता भारतीय समाज के मन में मुस्लिम समुदाय के प्रति दुर्भावना भर रहे हैं. साथ ही कैसें दो समुदाय के बीच दूरियां पैदा की जा रहीं हैं.

फरीद खां कहते हैं

“संवैधानिक पदों पर बैठे नेता-राजनेता पाकिस्तानी, जिहादी और मिनी पाकिस्तान जैसे शब्दों का इस्तेमाल केवल अपने राजनीतिक फायदें के लिए करते हैं. संवैधानिक पद पर होने के बावजूद उनके द्वारा असंवैधानिक बयान दिए जाते हैं.”

फरीद आगे कहते हैं,

“जब देश का बंटवारा हुआ था तो बहुत से मुस्लिमों ने भारत में ही रहने का फैसला किया. तब शायद उन्होंने यह नही सोचा होगा की आगे चलकर उन्हें पाकिस्तानी होने जैसे आरोप सुनने होंगें. ‘पाकिस्तानी’ और ‘मिनी पाकिस्तान’ बोल कर राजनेता मुस्लिम इलाके को विकास से वंचित कर देना चाहते हैं. जिन्ना ने तो देश को एक बार बांटा था, लेकिन भाजपा नेता और देश को बांटने की सोच रखने वाले लोग देश को अंदर ही अंदर कई टुकड़ों में बांटना चाहते हैं.”

फरीद खां कानून बनाए जाने के पक्ष में नहीं हैं और कहते हैं

“ओवैसी राजनीतिक फायदे के लिए कानून लाने की बात करते हैं. उनके ज्यादातर बयान भाजपा के फायदे के लिए होते हैं. फरीद आगे कहते हैं हमारे देश में सभी धर्म और जाति के लोगों को आजादी दी गई है. अगर कोई किसी व्यक्ति को धर्म विशेष या जाति विशेष होने पर तंग करता है तो उसके लिए पहले से ही कानून हैं. भारत के संविधान में सबको बराबर का हक दिया गया है.”

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Farid Khan

देश के किसी भी इलाकें में मुस्लिमों के साथ हुए मॉब लिंचिंग का पहला कारण मुस्लिमों के लिए राजनेताओं द्वारा लोगों के मन में बैठाई गई नफरत है.

इससे पहले 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी पाकिस्तान ऐसे ही अचानक केंद्र में आ गया था. ये बयान भी बीजेपी नेता की तरफ से ही दिया गया था. उस वक्त बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह थे. शाह ने बिहार में चौथे चरण के मतदान से पहले रक्सौल में एक रैली को संबोधित किया. इस रैली में शाह ने कहा था कि

“अगर बिहार में बीजेपी हारती है तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़कर जश्न मनाया जाएगा.”

हालांकि इसतरह की बयानबाजी का फायदा उन्हें चुनाव में नहीं मिला था. लेकिन इस तरह की बयानबाजी का असर अक्सर सामजिक स्तर पर बहुत बुरा होता है. सामाज के मन में यह धारणा बैठती जाती है कि एक खास समुदाय उनके और समाज के लिए हानिकारक है.

इसी साल सितंबर महीने में अमित शाह के बिहार दौरे से ठीक पहले बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा था दुनिया में सबसे अधिक बच्चे किशनगंज और अररिया में पैदा होते हैं. चूंकि अररिया और किशनगंज में मुस्लिमों की आबादी अधिक है, इसलिए उनके बयान का सीधा अर्थ लगाया जा सकता है.

बिहार में मुसलमानों की जनसंख्या

2011 की जनगणना के अनुसार बिहार की कुल आबादी 10,40,99,452 है. इसमें पुरूषों की संख्या 5,42,78,686 और महिलाओं की संख्या 4,98,21,295 है. कुल आबादी में मुस्लिम समुदाय 16.9 प्रतिशत है. 2011 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में मुसलमानों की कुल आबादी 17,55,78,09 है. जिसमें पुरूष 90,44,086 और महिलाएं 85,13,723 है.

बिहार में 2001 में हिंदुओं की आबादी 82.75 करोड़ और मुस्लिम आबादी 13.8 करोड़ थी. ठीक 10 साल बाद हिंदुओं की आबादी बढ़कर 96.63 करोड़, जबकि मुस्लिमों की आबादी 17.22 करोड़ हो गई. इस दौरान मुस्लिमों की आबादी 24.78% की गति से जबकि हिंदुओं की 16.77% की गति से बढ़ी है.

वहीं भारत की कुल जनसंख्या में मुस्लिम आबादी 2001 में 13.4% थी जो 10 साल बाद बढ़कर 14.2% हो गई. वहीं, इस एक दशक में हिंदुओं की कुल जनसंख्या में आबादी 80.45% से घटकर 79.8% हो गई.

“धर्म का नाम लेने वाले सबसे ज्यादा अधर्म करते हैं”

‘जिस लाहौर नई देख्या’ के नाटककार और लेखक असगर वजाहत समाज में फ़ैल रही हिंसा और कट्टरता के लिए सत्ता की लालसा रखने वाले राजनेताओं कों दोषी मानते हैं. असग़र वजाहत कहते हैं

“धर्म के आधार पर राजसत्ता पाने की लालसा में जिस प्रकार देश और समाज को बांटा गया उसमें लाखों लोगों की जानें चली गई. बदले की भावना ने आदमी को जानवर बना दिया है. धर्म का नाम लेने वालों ने सबसे अधिक अधर्म किया है.”

असग़र वजाहत आगे कहते हैं

“हिंसा और साम्प्रदायिकता जैसी प्रवित्तियों पर लगाम लगाने के लिए समाज को संवेदनशील होना होगा. संविधान और कानून बना कर किसी समाज को संवेदनशील नहीं बनाया जा सकता है. राजनीति, सरकार या प्रशासन भी समाज को संवेदनशील नही बना सकते. समाज को संवेदनशील बनाने का काम कविता, साहित्य और कलाएं ही करती हैं. कविता का बुनियादी काम लोगों को संवेदनशील बनाना है. यह काम बहुत समय तो लेता है लेकिन बहुत पक्का होता है. यह भी सच्चाई है कि समाज को संवेदनशील और मानवीय बनाने का और कोई रास्ता नहीं है.”

क्या कविता सांप्रदायिकता को समाप्त करने या कम करने में कोई भूमिका निभा सकता है. इसपर असग़र वजाहत कहते हैं

“कवि सांप्रदायिक दंगा रोकने के लिए न तो सड़क पर निकल सकता है और न तो कोई हथियार चला सकता है, न किसी का वार रोक सकता है. वह केवल लोगों से दंगा न करने की अपील कर सकता है. लेकिन उस समय उसकी अपील पर कौन ध्यान देगा? बल्कि उसकी दख़ल देने का उल्टा असर हो सकता है. अर्थात अपील करने वाले की ही हत्या की जा सकती है. उदाहरण के लिए कानपुर के दंगों में मुस्लिम सांप्रदायिक गुंडों द्वारा हिंदी के सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार और स्वतंत्रता सेनानी गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या कर दी गयी थी.”

फरीद खां भी इस बात से सहमत होते हुए आगे कहते हैं

“कुढनी विधानसभा उपचुनाव में भाजपा सांसद रमा देवी द्वारा दिया गया बयान भी राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया बयान है. भाजपा सांसद या नेता इस तरह के बयान अपने फायदे के लिए बोलते हैं. जबकि उनके ऊपर अभी देश को जोड़कर रखने की सबसे ज्यादा ज़िम्मेदारी हैं.”

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Ashgar Wajahat with Alok Dhanva
सस्ती लोकप्रियता के लिए देते हैं बयान

हिन्दू महासभा यूपी, मेरठ के प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक अग्रवाल रमा देवी के बयान से सहमत नहीं है. उनका कहना है

“इस तरह की बयानबाजी केवल सस्ती लोकप्रियता के लिए बोला जाता है. मेरा कहना है कि क्या हमारे देश में पाकिस्तान का कानून चलता है, जो किसी क्षेत्र से जीतने वाले नेता को पाकिस्तान से जीतकर आया कहा जाएगा. हां, जो देश को बांटने की मंशा रखते है और देश विरोधी नारे लगाते हैं उन्हें जरुर पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश भेजा जाना चाहिय. लेकिन देश के अंदर ही किसी क्षेत्र को पाकिस्तान बोलना ओछी राजनीतिक मानसिकता का सबूत है.”

वहीं पटना यूनिवर्सिटी के छात्र नेता ओसामा खुर्शीद का कहना है

“इस तरह की बयानबाजी दो समुदाय को बांटने की साजिश है. राजनीतिक लाभ के लिए पार्टियां वोट देने वाली जनता का अपमान करने से भी नहीं चूकती है. इसतरह के बयान दो समुदायों में कड़वाहट भरते हैं और अंततः इसका लाभ नेता उठाते हैं.”

नेताओं के इन सस्ती बयानबाजी का खामियाजा अंत में आम जनता को उठाना पड़ता है. जिसकी वजह से देश में सांप्रदायिक सौहाद्र कमजोर होता है.

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