यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (Unified District Information System for Education) के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में शिक्षकों के 1 लाख से ज़्यादा ख़ाली पद वाले तीन राज्य हैं. पूरे देश में सबसे अधिक शिक्षिक पदों पर रिक्तियां उत्तर प्रदेश (3.3 लाख), उसके बाद बिहार (2.2 लाख) और पश्चिम बंगाल (1.1 लाख) हैं. बिहार में 2.2 लाख शिक्षकों के पद ख़ाली हैं और इसमें से 89% रिक्तियां ग्रामीण बिहार में हैं.
बिहार की राजधानी पटना से लगभग 160 किलोमीटर की दूरी पर बेगूसराय का इस्फ़ा गांव है. इस गांव में एक प्राथमिक विद्यालय है जहां उस गांव और आस-पास के इलाके के लगभग 120 बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं. इस स्कूल में शिक्षक की काफ़ी कमी है. शिक्षकों की कमी के कारण इस्फ़ा प्राथमिक विद्यालय अधिकांश बंद ही रहता है. बिहार राज्य ‘बच्चों की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा नियमावली 2011’ की कंडिका 4(1) में साफ़ लिखा गया है कि प्राथमिक विद्यालयों की स्थापना वैसे बसाव-क्षेत्र, जहां 6-14 आयुवर्ग के बच्चों की संख्या कम से कम 40 हो, के एक किलोमीटर की सीमा के अंतर्गत की जाएगी. इसके साथ नियमानुसार बच्चों और शिक्षक के बीच का अनुपात 30:1 का होना चाहिए. लेकिन इस प्राथमिक विद्यालय में 60 बच्चों पर एक टीचर मौजूद हैं. इस पूरे प्राथमिक विद्यालय में केवल 2 शिक्षक ही हैं.
मौलाना मोहम्मद वासिम इस्फ़ा के भूतपूर्व सरपंच रह चुके हैं. उन्होंने बताया कि
यहां पर हमलोगों ने कई बार चाहा कि स्कूल नियमित तौर पर खुले और हमारे बच्चे पढ़ाई करें लेकिन स्कूल ही इतना कम खुलता है कि हमारे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई चौपट हो चुकी है.
बिहार में शिक्षकों की कमी का मामला नया नहीं है. बल्कि सरकार ख़ुद मानती है कि बिहार में शिक्षकों की काफ़ी कमी है. इसी कमी को पूरा करने के लिए सरकार ने ये कहा था कि अगस्त 2021 तक सारे रिक्त पदों पर शिक्षकों की नियुक्ति हो जायेगी लेकिन अभी अगस्त 2022 के महीने तक रिक्त पदों पर नियुक्ति नहीं हुई है. यहां तक कि अभी भी पटना के गर्दनीबाग़ में शिक्षक नियुक्ति के लिए STET पास शिक्षक आन्दोलन कर रहे हैं, जिस पर डेमोक्रेटिक चरखा लगातार आर्टिकल लिख रहा है.
नियुक्ति का पेंच कहां फंसा है इसे जानने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने शिक्षा विभाग के मुख्य सचिव संजय कुमार के दफ़्तर से संपर्क किया जहां हमें ये जानकारी मिली कि काफ़ी दिनों तक पटना हाईकोर्ट ने इस नियुक्ति में स्टे लगाया हुआ था अभी वो स्टे हटा है तो अब नियुक्ति का काम शुरू होगा.
दरअसल यह पूरा मामला पटना हाईकोर्ट में दायर नेशनल फेडरेशन ऑफ द ब्लाइंड की याचिका पर पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के आदेश से जुड़ा है. इसमें 24 जुलाई 2020 को चीफ जस्टिस संजय करोल ने आदेश दिया था कि बिहार में बहाली की प्रक्रिया पर इस मामले के निष्पादन होने तक रोका लगाई जाती है.
नेशनल ब्लाइंड फेडरेशन ने पटना हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी कि बिहार में शिक्षक नियोजन समेत तमाम बहालियों में नेत्रहीन दिव्यांगों के लिए आरक्षित रोस्टर का पालन नहीं किया जा रहा है.
शिक्षकों के नियोजन के लिए बिहार में शिक्षक अभियार्थियों के आंदोलन का एक लंबा दौर रहा है. साल 2014 में चुने गए शिक्षकों की बहाली अभी तक नहीं हुई है जिसके वजह से शिक्षक अभियार्थियों ने लगातार आंदोलन किया लेकिन सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ा. साल 2020 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ये वादा किया था कि वो जल्द से जल्द शिक्षकों के ख़ाली पदों को भरेंगे. एक साल बाद भी जब शिक्षकों के रिक्त पदों को नहीं भरा गया तब 5 सितंबर, शिक्षक दिवस के दिन 94 हज़ार शिक्षक अभियार्थी ने पटना में आंदोलन भी किया था.
शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी ने शिक्षकों की नियुक्ति पर कई मौकों पर अलग-अलग बयान दिए हैं. सबसे पहले उन्होंने ये भरोसा दिलाया था कि कोर्ट से मामला ख़त्म होने के 15 दिनों के अन्दर नियुक्ति पत्र शिक्षकों को मिल जाएगा. उसके बाद उन्होंने 15 अगस्त तक नियुक्ति की बात कही थी. उसके बाद प्रेस कांफ्रेस के दौरान शिक्षा मंत्री ने दिवाली से पहले शिक्षकों की नियुक्ति का वादा किया था. उसके बाद शिक्षा मंत्री ने जनवरी 2022 से लेकर मार्च 2022 तक नियुक्ति की बात कही थी. उसके बाद शिक्षा मंत्री की ओर से लगातार ऐसे बयान आते रहे हैं जिससे ये समझ में आता है कि ये नियुक्तियां साल 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव से पहले नहीं होगी.
यू डाइस की रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में शिक्षक छात्र अनुपात 1:57 है. जो कि 1:30 होना चाहिए. यानि तीस बच्चों पर एक शिक्षक. बिहार के 8000 से ज्यादा स्कूलों में शिक्षक-छात्र अनुपात 1:100 है. एक साल पहले केंद्र सरकार की ओर से जारी रिपोर्ट में शिक्षकों की कमी के मामले में बिहार टॉप पर रहा है. जहां करीब तीन लाख शिक्षकों के पद रिक्त हैं. बिहार शिक्षा परियोजना के मुताबिक बिहार में 41762 प्राथमिक विद्यालय हैं जबकि 26523 मध्य विद्यालय हैं. बिहार में 3276 स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे काम चल रहा है. जबकि 12507 विद्यालयों में 2 शिक्षक, 10595 स्कूलों में 3 शिक्षक, 7170 विद्यालयों में 4 शिक्षक, 4366 स्कूलों में 5 शिक्षक और 3874 स्कूलों में 5 या इससे अधिक शिक्षक कार्यरत हैं.
शिक्षकों की कमी के कारण जिन मां-बाप के पास कुछ पैसे भी हो जाते हैं वो अपने बच्चों को सरकारी स्कूल की जगह प्राइवेट स्कूल में भेजना ज़्यादा पसंद करते हैं. इस वजह से बिहार के कई सरकारी स्कूल बंद हो चुके हैं. यू-डायस के आंकड़ों के मुताबिक अत्यंत कम नामांकन वाले स्कूलों की लिस्ट में पटना ज़िले के 133 स्कूल शामिल हैं. इनमें से दो विद्यालयों (प्राथमिक विद्यालय वाजनचक, नौबतपुर और प्राथमिक विद्यालय, मनेर) में तो नामांकन शून्य तक पहुंच गया है. पटना के सबसे हाई-फ़ाई इलाके में से बोरिंग रोड में पानी टंकी के बगल में एक प्राथमिक सरकारी स्कूल हुआ करता था. अब इस स्कूल को बंद कर दिया गया है और तर्क ये दिया गया कि इस स्कूल में बच्चों का नामांकन नहीं हो रहा था.
पानी टंकी के पास का सरकारी स्कूल बांस और फूस से बनी एक झोपड़ी में चल रहा था. साल 2017 में डेमोक्रेटिक चरखा के आमिर ने व्यक्तिगत तौर पर इस सरकारी स्कूल के ऊपर एक रिपोर्ट तैयार की थी. एक कमरे की झोपड़ी में चलने वाले इस स्कूल में एक साथ 2 क्लास चलते थे और पढ़ाने वाले शिक्षक सिर्फ़ एक ही थे. उसी झोपड़ी में बाकी के कक्षाओं की भी पढ़ाई होती थी जो दूसरे शिफ्ट में चलती थी. इस स्कूल की एक मात्र शिक्षिका डॉली देवी ने उस समय बताया था कि
यहां पर जगह तो है नहीं इसी वजह से हम स्कूल को दो शिफ्ट में चलाते हैं. लेकिन इससे सरकार या शिक्षा विभाग को कोई मतलब नहीं है वो तो बस हमें एक शिफ्ट की ही सैलरी दे रही हैं. अब तो इस स्कूल को बंद करने की बात चल रही है ऐसे में जो ग़रीब का बच्चा सब पढ़ता था वो सबकी पढ़ाई अब छूट जायेगी.
इस मुद्दे पर जब डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने जिला शिक्षा पदाधिकारी, पटना से बातचीत की तो उन्होंने कहा कि
देखिये शहर के सरकारी स्कूल में कमरे की व्यवस्था की थोड़ी समस्या है. जगह कम है, उन्हीं जगहों में हमें कक्षाएं करवानी है इसलिए एक बिल्डिंग में कई स्कूल चल रहे हैं. लेकिन मूलभूत ज़रूरत की चीज़ें हम जल्द मुहैय्या करवाएंगे. शिक्षकों की कमी तो पूरे बिहार में चल रही है और शिक्षा मंत्री ने इस मामले में ख़ुद संज्ञान लिया है. उम्मीद है जल्द ही सभी रिक्त पदों पर जल्द बहाली होगी.
शिक्षकों की कमी के साथ बिहार में शिक्षकों की योग्यता पर भी UNESCO की रिपोर्ट ने सवाल उठाया है. शिक्षकों की योग्यता पर यूनेस्को (UNESCO) की रिपोर्ट कहती है कि बिहार में लगभग 16% प्री प्राइमरी, 8% प्राइमरी, 13% अपर प्राइमरी, 3% सेकेंडरी और 1% हायर सेकेंडरी शिक्षक अंडर क्वालिफाइड हैं. बिहार में शिक्षकों की योग्यता पर अक्सर सवाल उठता रहता है. लेकिन अभी के समय में जो बिहार के शिक्षा व्यवस्था में सबसे बड़ी कमी है वो है बिना शिक्षकों के स्कूल. इसी कारण से बिहार में सरकारी स्कूलों में नामांकन का आंकड़ा भी कम हुआ है. ऐसे में बिहार की एक बड़ी आबादी जो अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में भेज कर नहीं पढ़ा सकती है वो शिक्षा से दूर होते जा रही है.
आशीष कुमार रघुनाथपुर स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ते हैं. उनके पिता, सोनू कुमार, रिक्शा चलाते हैं और मां घरेलू मददगार के तौर पर कंकड़बाग के इलाके में काम करती हैं. आशीष बताते हैं
हम बड़ा होकर सरकारी अफ़सर बनना चाहते हैं, ताकि किसी भी सरकारी स्कूल में कोई कमी ना रहे. लेकिन हमारे स्कूल में ना टीचर हैं और ना ही कोई सुविधा. सरकारी अफ़सर लोग नहीं चाहते हैं कि हम ग़रीब लोग भी बड़े अधिकारी बने इस वजह से वो हमें पढ़ने ही नहीं देतें.
रघुनाथपुर के मुद्दे पर जब डेमोक्रेटिक चरखा ने रिपोर्ट्स बनायीं तो NCPCR ने इस मामले पर पटना के जिलाधिकारी को एक पत्र लिख इसकी जानकारी मांगी. इसके बाद जिलाधिकारी ने इसके जवाब में स्कूल में कई सुविधाएं उपलब्ध करवाई हैं.
डेमोक्रेटिक चरखा के लगातार प्रयासों से बिहार के कई ग्रामीण इलाकों में शिक्षा व्यवस्था सुधरी है. लेकिन व्यापक तौर पर अभी बड़े बदलाव की ज़रुरत है.