सरकारी स्कूल में शौचालय और पानी नहीं, पीरियड्स में लड़कियों की छूटती है पढ़ाई

शिक्षा का अधिकार यानी Right to Education (RTE), 2009 के अनुसार 6-14 साल के सभी बच्चों को अनिवार्य और मुफ़्त शिक्षा दी जायेगी. साथ ही इसकी गुणवत्ता और सभी शैक्षणिक पहलुओं पर निगरानी रखने के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाये जाने का प्रावधान है. अगस्त 2009 में भारत के संसद से नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार एक्ट पारित किया गया था और एक अप्रैल 2010 से यह कानून पूरे देश में लागू हुआ.

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शिक्षा का अधिकार यानी Right to Education (RTE), 2009 के अनुसार 6-14 साल के सभी बच्चों को अनिवार्य और मुफ़्त शिक्षा दी जायेगी. साथ ही इसकी गुणवत्ता और सभी शैक्षणिक पहलुओं पर निगरानी रखने के लिए राष्ट्रीय आयोग बनाये जाने का प्रावधान है. अगस्त 2009 में भारत के संसद से नि:शुल्क व अनिवार्य शिक्षा का अधिकार एक्ट पारित किया गया था और एक अप्रैल 2010 से यह कानून पूरे देश में लागू हुआ.

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बिहार की राजधानी पटना के सबसे हाई-फ़ाई इलाकों में से एक है कंकड़बाग़ का लोहियानगर. इस इलाके में सभी सुविधाएं मौजूद हैं. इसी लोहियानगर में रघुनाथपुर सरकारी विद्यालय है जहां पर एक स्कूल की बिल्डिंग में 5 सरकारी स्कूल संचालित किया जाता हैं.

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बच्चों के बैठने की जगह मौजूद नहीं है तो बच्चों की पढ़ाई बरामदे में ज़मीन पर बैठाकर होती है. एक कमरे में 3-4 कक्षाओं का संचालन किया जाता है. इन स्कूलों में जगह की कमी तो है ही साथ ही सभी बुनयादी ज़रूरतों की चीज़ भी नदारद है. इन स्कूल में एक भी शौचालय या पीने का पानी भी मौजूद नहीं है. छात्र-छात्राओं को बगल की मस्जिद से पीने का पानी लेने जाना पड़ता है. शौचालय के इस्तेमाल के लिए भी इन्हें स्कूल के कैंपस से बाहर जाना पड़ता है. इस स्कूल की बिल्डिंग में बल्ब और पंखे भी नहीं लगे है.

मानव संसाधन विकास मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति द्वारा फरवरी 2020 के आखिरी सप्ताह में संसद में पेश की गयी रिपोर्ट में सरकारी स्कूलों के आधारभूत ढांचे पर चिंता जाहिर की गई है. रिपोर्ट के अनुसार अभी तक देश के केवल 56 फीसदी सरकारी स्कूलों में ही बिजली की व्यवस्था हो सकी है.

इसी प्रकार से देश में 57 प्रतिशत से भी कम स्कूलों में खेल-कूद का मैदान है.

आशीष कुमार रघुनाथपुर स्कूल में 7वीं क्लास में पढ़ते हैं. उनके पिता, सोनू कुमार, रिक्शा चलाते हैं और मां घरेलू मददगार के तौर पर कंकड़बाग के इलाके में काम करती हैं. आशीष बताते हैं

हम बड़ा होकर सरकारी अफ़सर बनना चाहते हैं, ताकि किसी भी सरकारी स्कूल में कोई कमी ना रहे. हमलोग सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं इसीलिए हमलोग के स्कूल में पानी पीने का नल तक नहीं लगा हुआ है. महंगा सा मार्बल लग गया है लेकिन नल ही नहीं लगा है. शौचालय भी हमेशा बंद रहता है, इसलिए कभी प्यास लगती है या शौचालय जाना होता है तो पास की मस्जिद में जाते हैं.

केंद्र सरकार ने 25 जुलाई 2021 को एक आंकड़ा जारी करते हुए जानकारी दी थी कि बिहार के 99% स्कूल और आंगनबाड़ी में नल का साफ़ पीने लायक पानी आता है. लेकिन बिहार में अनेकों स्कूल और आंगनबाड़ी ऐसे हैं जिनमें पानी पीने का नल ही नहीं लगा हुआ है. बिहार के बेगूसराय में छतौना गांव में एक मध्य विद्यालय है. इस स्कूल में भी पीने का पानी मौजूद नहीं है. बिहार में अभी भी 17,665 स्कूलों में पेयजल की सुविधा उपलब्ध नहीं है. बाकी जिन स्कूल में पेयजल की सुविधा उपलब्ध भी है वहां भी पूर्ण रूप से नल कार्यरत नहीं है.

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लेकिन इस स्कूल में पीने के पानी से भी बड़ी समस्या है छत की. इस स्कूल की छत पूरे तरीके से टूटी हुई है. बच्चों के ऊपर पलस्तर झड़कर गिरता रहता है और किसी भी दिन कोई बड़ा हादसा हो सकता है.  मध्य विद्यालय, छतौना के प्रिंसिपल ने डेमोक्रेटिक चरखा की टीम को बताया कि

हमलोगों ने कई बार जिला शिक्षा पदाधिकारी और प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी को टूटे हुए छत की सूचना दी है. लेकिन हमेशा यही कहा जाता है कि फंड नहीं है. विद्यालय का एक हिस्सा टूट कर गिर चुका है. उस हादसे में किसी बच्चे को कोई चोट नहीं लगी लेकिन भविष्य में फिर ऐसी घटना हो सकती है.

मार्च 2021 में पटना हाईकोर्ट ने एक तीन सदस्या कमिटी गठित की थी. इसमें अर्चना सिन्हा शाही, अनुकृति जयपुरियार और अमृषा श्रीवास्तव की तीन-सदस्यीय समिति का गठन किया था. इसका मकसद शौचालय के बुनियादी ढांचे की वास्तविकता जानना था.  समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि इन स्कूलों में छात्राओं के लिए शौचालय और अन्य आवश्यक बुनियादी ढांचे या तो थे ही नहीं, या फिर फंड की कमी और नियमित सफाईकर्मियों की कमी के कारण बहुत खराब स्थिति में थे. कोर्ट ने कहा कि

Patna High Court

(पटना हाईकोर्ट, फ़ाइल इमेज)

पटना शहर स्मार्ट सिटी में शुमार है और यहां के गर्ल्स स्कूलो में शौचालय नहीं है, जहां शौचालय है तो साफ नहीं है.

ऐसी हालत को देखते हुए पटना हाईकोर्ट ने शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया है कि वो इन स्थानों पर छात्राओं को सभी आवश्यक सुविधाएं प्रदान करने के लिए धन आवंटन और अन्य आवश्यक कार्रवाई के बारे में व्यक्तिगत क्षमता में जवाब दाखिल करने को कहा है.

शिक्षा विभाग के आंकड़े देखें तो सिर्फ़ पटना जिला जिसका ज़्यादातर क्षेत्र शहरी है, वहां की स्थिति बहुत बदतर है. जिले के कुल 4,054 स्कूल में से 1,154 स्कूल में शौचालय नहीं है. इन 1154 स्कूल में से 557 यानी तकरीबन आधे स्कूल ऐसे हैं, जो सिर्फ लड़कियों के लिए है.

यूनीफाइड डिस्ट्रीक्ट इंफारमेंशन सिस्टम फॉर एजुकेशन (यू -डाइस) की रिपोर्ट के मुताबिक भी बिहार के सरकारी स्कूलों में शौचालयों की स्थिति देश भर में सबसे बदतर है. राज्य के तकरीबन 8,000 सरकारी स्कूल में गर्ल्स टॉयलेट और 9000 में लड़कों के टॉयलेट नहीं हैं.

पटना के बेलछी प्रखंड के बंदीचक स्थित मध्य विद्यालय में शौचालय नहीं है. इस स्कूल में लगभग 400 बच्चे पढ़ते हैं और इसमें से 180 छात्राएं हैं. इस स्कूल के पंखे और बल्ब भी ख़राब है. शौचालय नहीं होने के कारण यहां के बच्चियों की पढ़ाई छठे क्लास के बाद छूटने लगती है.

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(पानी और शौचालय के इस्तेमाल के लिए बच्चियां कैंपस से बाहर जाती हैं)

प्रिया कुमारी सातवीं क्लास की छात्रा हैं. उनके पिता हर रोज़ गांव से रोज़ शहर 15-16 किलोमीटर साइकिल चलाकर आते हैं और दिहाड़ी पर मज़दूरी करते हैं. प्रिया कहती हैं

हमें किसी भी हालत में पढ़ाई करनी है और अपने घर की ग़रीबी दूर करनी है. लेकिन स्कूल में शौचालय नहीं रहने के कारण उतने दिन हम स्कूल ही नहीं जा पाते हैं. पीने के लिए पानी भी नहीं है स्कूल में तो हमलोग स्कूल के दौरान पानी भी नहीं पीते हैं.

पटना शहर के मुख्य हिस्से खेतान मार्केट स्थित मध्य विद्यालय, भंवरपोखर में कई साल पहले शौचालय का छत गिर चुका है. इसके बाद लोकसभा चुनाव 2019 में यहां दो डीलक्स शौचालय चुनाव कार्य के लिए बनाए गए. लेकिन इन शौचालयों में ताला लगा रहता है.

बिहारी साव लेन में स्थित मुरादपुर राजकीय मध्य विद्यालय और लोकेश्वरी महिला उच्च विद्यालय एक ही परिसर में चलता है. पीने के पानी के लिए चापाकल या नल की सुविधा भी नहीं है. शौचालय के लिए लगे नल वाले पानी से ही मिड डे मिल बनता है. कहने को तो इस परिसर में सात शौचालय हैं लेकिन शौचालय इस्तेमाल के लिए दोनों प्राचार्य के बीच खींचतान चलती रहती है. परिसर के चार शौचालय में इतनी गंदगी है कि बच्चों ने इस्तेमाल करना छोड़ दिया है. उसी शौचालय के बाहर मिड डे मिल बनता है. वहीं बचे तीन शौचालय में से एक में ताला लगा रहता है. बाकी दो शौचालय में भी गंदगी रहती है.

यू-डाइस के 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़े देखें तो बिहार राज्य में सबसे ज़्यादा बच्चे बीच में ही पढ़ाई छोड़ रहे हैं. साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%, साल 2015-16 में 25.90% और 2016 -17 में 39.73%  बच्चों ने स्कूल छोड़ा है. हालांकि साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में ड्राप आउट की संख्या कम होकर 21.4% पर पहुंची है. लड़कियों में माध्यमिक (9-10) कक्षाओं में ड्राप आउट की संख्या अभी भी चिंताजनक है. साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 22.7% लड़कियां स्कूल छोड़ देती हैं.

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(शौचालय में लटका ताला)

शिक्षक-छात्र अनुपात में भी बिहार की स्थिति पूरे देश में सबसे ख़राब है. बिहार में प्राथमिक विद्यालयों में 55 बच्चों पर एक शिक्षक हैं तो वहीं उच्च माध्यमिक में 59 बच्चों पर एक शिक्षक मौजूद हैं.

स्कूल में पेयजल और शौचालय की व्यवस्था नहीं होने पर डेमोक्रेटिक चरखा ने जिला शिक्षा पदाधिकारी, पटना से बातचीत की. उन्होंने बताया कि

देखिये शहर के सरकारी स्कूल में कमरे की व्यवस्था की थोड़ी समस्या है. जगह कम है, उन्हीं जगहों में हमें कक्षाएं करवानी है इसलिए एक बिल्डिंग में कई स्कूल चल रहे हैं. लेकिन पेयजल और शौचालय मूलभूत ज़रूरत की चीज़ है. आपके ज़रिये जो जानकारी और वीडियो मिले हैं हम उनपर जल्द कारवाई करेंगे और इनकी पूर्ति जल्द से जल्द करेंगे.

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