जब सरकारी तंत्र शिक्षा और स्वास्थ्य पर बेवजह अपना अधिपत्य जताने की कोशिश करता है और विकल्प होने पर भी अपने फायदे के लिए ऐसे विकल्पों को चुनता है जिससे आम लोगों को नुकसान हो तब यह सरकार के मतलबपरस्त रवैया को दिखाता है.
कुछ ऐसा ही मतलबी रवैया सरकार ने पटना विश्वविद्यालय की जमीन लेकर किया है. जी हां, हम लोगों को यह बात सुनकर अच्छी लग सकती है कि किसी खाली स्थान पर पड़ी जमीन को स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए उपयोग किया गया लेकिन आपको यह बात हजम नहीं होगी की जो जमीन शैक्षणिक विकास ने लगाई जानी चाहिए थी वह अब सरकार के द्वारा मेट्रो और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट में लगाया जा रहा है.
आपको बता दें कि पटना विश्वविद्यालय का लगभग 2000 वर्ग मीटर भूमि सरकार ने मेट्रो और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट के लिए लिया है. पिछले कुछ दिनों में स्थिति ऐसी बन चुकी है कि पटना विश्वविद्यालय लगातार अपनी जमीनों को खोता जा रहा है.
कभी मेट्रो के नाम पर, कभी एलिवेटेड रोड के नाम पर, तो कभी फ्लाईओवर के नाम पर. सरकार के हिसाब से वह प्रदेश का विकास कर रही है लेकिन क्या प्रदेश के विकास के लिए केवल विश्वविद्यालयों की जमीन ही सरकार को मिल रही है. क्या सरकार के पास विकास के काम को आगे बढ़ाने के लिए और जमीन अधिग्रहण के लिए कहीं और भूमि तलाशने का प्रयास नहीं करना चाहिए?
कुछ महीने पहले पटना विश्वविद्यालय में जब मेट्रो निर्माण करने वाली एजेंसी ने विश्वविद्यालय से इस काम के लिए जमीन मांगी थी. तब विश्वविद्यालय ने एक सिंडिकेट की बैठक बुलाई थी जिसमें इस विषय पर निर्णय लेना था. उस बैठक में नगर विकास सह आवास विभाग की ओर से बनाए जा रहे मेट्रो और एलिवेटेड सड़क को लेकर भूमि देने की बात को लेकर चर्चा की गई.
जिसमें मेट्रो के निर्माण के क्रम में पटना साइंस कॉलेज के एनआईटी मोड़ के पास तथा 1-2 अन्य स्थानों पर भी जमीन की मांग की गई. उस बैठक में एजेंसी ने कहा कि एलिवेटेड सड़क निर्माण के क्रम में पटना विश्वविद्यालय की बाउंड्री भी तोड़नी पड़ेगी. जिसमें ऐतिहासिक पटना विश्वविद्यालय का शताब्दी द्वार भी शामिल है जिसके शताब्दी समारोह कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आए थे.
साइंस कॉलेज की जमीन देने को लेकर कुलपति नहीं हुए थे राजी
कुलपति की अध्यक्षता में हुई सिंडिकेट की बैठक में जब साइंस कॉलेज के ग्राउंड के कुछ हिस्सों को निर्माण कार्य में इस्तेमाल करने की बात कही गई तो इस पर कुलपति राजी नहीं हुए. उनका कहना था कि यह जमीन मेट्रो से ज्यादा छात्रों के स्पोर्ट्स और अन्य तरह के खेलों में इस्तेमाल की जानी चाहिए. कुलपति का यह विचार छात्रों के हित में था.
लेकिन जब शिक्षा भी सरकार के अधीन होकर उसके आदेशों पर चलने लगती है तो उसके सामने किसी और की बिल्कुल नहीं चलती और ऐसा ही हुआ. पटना विश्वविद्यालय की ओर से मेट्रो के निर्माण कार्य के लिए राज्य सरकार को 2000 वर्ग मीटर जमीन पटना मेट्रो परियोजना के लिए हस्तगत कर दिया गया.
सिंडिकेट की बैठक में फैसला होने के बाद भी आया सरकार का पत्र
यह बात थोड़ी अजीब सी लगती है लेकिन यह बिल्कुल सच है कि जब सिंडिकेट की बैठक के दौरान कुलपति की अध्यक्षता में ही यह फैसला हो गया था कि विश्वविद्यालय अपनी 2000 वर्ग मीटर जमीन मेट्रो और एलिवेटेड रोड के नाम पर देगी. इसके बावजूद राज्य सरकार का पत्र विश्वविद्यालय को जमीन खाली करने के विषय में आया. इससे कहीं ना कहीं सरकार की मंशा पर और सवाल खड़े हो जाते हैं.
दोबारा पत्र आने से यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सरकार कई बड़े ठेकेदारों, बिल्डरों और बड़ी-बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी के मालिकों के दबाव में कार्य करती है. ऐसा इसलिए क्योंकि दोबारा पत्र आने का, और वह भी राज्य सरकार का इसके अलावा और क्या ही औचित्य हो सकता है?
एमओयू करने के बाद विश्वविद्यालय ने दी अपनी जमीन
कुलपति की अध्यक्षता में हुए सिंडिकेट की बैठक में यह तय हुआ की विश्वविद्यालय सशर्त अपनी जमीन मेट्रो और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट में देगा. इसके लिए एजेंसी को विश्वविद्यालय के साथ एमओयू करना होगा. एमओयू करने के बाद ही विश्वविद्यालय अपनी जमीन मेट्रो और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट में देगा. इस शर्त के आधार पर निर्माण के क्रम में पटना विश्वविद्यालय का जो भी भवन या संसाधन का नुकसान होगा, एजेंसी को उसे पुनः तैयार करके पुनर्स्थापित करना होगा.
क्या है एमओयू?
दरअसल एमओयू यानी समझौता ज्ञापन जिसे अंग्रेजी में मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग कहते हैं. जब किसी दो पक्षों के बीच किसी खास कार्यक्रम की रूपरेखा पर काम करने के लिए कुछ शर्तों के साथ समझौता किया जाता है तब इसे एमओयू कहा जाता है.
आपको बता दें की एमओयू यानी समझौता ज्ञापन एक प्रकार का कानूनी पत्र है. यदि कोई एक पक्ष अपने किए गए वचनों के ऊपर कार्य नहीं करता तो उसके खिलाफ दूसरा पक्ष न्यायालय जा सकता है.
विश्वविद्यालय की और जमीन जाने का है खतरा
आपको बता दें कि राज्य सरकार केवल पटना मेट्रो और एलिवेटेड रोड प्रोजेक्ट के लिए ही विश्वविद्यालय की जमीन नहीं ले रही बल्कि पटना विश्वविद्यालय और कृष्णा घाट के बीच से जो "गंगा पाथ वे" बनने जा रहा है. उस परियोजना में बनने वाले डबलडेकर फ्लाईओवर के निर्माण कार्य में भी अपनी जमीन खो सकता है.
जब हमने इस विश्वविद्यालय की लगातार खोती जमीन पर विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण संकायाध्यक्ष से बात की तो उन्होंने कहा कि
हां यह बात सच है कि विश्वविद्यालय की कुछ जमीने मेट्रो के प्रोजेक्ट में इस्तेमाल हो रही हैं. लेकिन यदि सरकार इन जमीनों को जनकल्याण के लिए इस्तेमाल करना चाहती है तो यह भी एक अच्छा कदम है. और सरकार के इस विकास कार्य में विश्वविद्यालय भी सरकार की मदद कर रहा है.
उच्च शिक्षा पर कितना असर पड़ रहा है?
भले सरकार विकास का आइना दिखाकर जितनी चाहे उतनी बातें बना ले लेकिन पटना विश्वविद्यालय की जमीन जाना वहां के छात्रों के साथ सरासर अन्याय है. सरकार कहती है कि वह विकास कार्य में पटना विश्वविद्यालय की जमीन का इस्तेमाल कर रही है. लेकिन सिंडिकेट की बैठक में फैसला हो जाने के बाद भी सरकार के द्वारा फिर से विश्वविद्यालय को जमीन देने के लिए पत्र लिखना सरकार के ऊपर एक प्रश्न चिन्ह लगाता है.
सरकार को यह समझना होगा विश्वविद्यालय की जमीन केवल शैक्षणिक कार्य में इस्तेमाल होनी चाहिए. यदि सरकार विश्वविद्यालय की जमीन का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए प्रोजेक्ट और फ्लाईओवर निर्माण में कर रही है तो यह छात्रों का हक छीनने जैसा है.