बिहार में पैक्स धान अधिप्राप्ति के बाद भी नहीं कर रही भुगतान, किसान परेशान

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आमिर अब्बास
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बिहार में पैक्स धान अधिप्राप्ति के बाद भी नहीं कर रही भुगतान, किसान परेशान
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हम फ़रवरी में पैक्स में अपना धान बेचे थे. सरकार रेट 1940 रूपए प्रति क्विंटल है लेकिन पैक्स अध्यक्ष का कहना है कि सिर्फ़ 1800 रूपए प्रति क्विंटल ही देंगे. हम सोचे कि कुछ कम दाम ही सही लेकिन पैसा समय से मिल जाएगा. लेकिन अब तो 2 महीना से ज़्यादा हो गया है और पैसा नहीं मिला है. जब भी पैक्स के दफ़्तर जाकर अपने पैसे की मांग करते हैं तो कहा जाता है कि सरकार पैसा जून या जुलाई में देगी. लेकिन मेरा सरकार से ये पूछना है कि ऐसे में तो हम किसान मर जायेंगे. हम क्या खाएंगे जून-जुलाई तक?

अभिनंदन ने 400 क्विंटल धान बलिया पैक्स को बेचा था. धान के बड़े व्यापारी उन्हें धान की 1100 रूपए प्रति क्विंटल की रकम दे रहे थे. लेकिन उन्होंने पैक्स को इस वजह से धान बेचा क्योंकि वहां उन्हें 700 रूपए ज़्यादा मिल रहे थे. लेकिन अब उनके पैसे ही फंस गए हैं. ये स्थिति सिर्फ़ अभिनन्दन की नहीं बल्कि बिहार के लाखों किसानों की है जिनका पैसा पैक्स में कई महीनों तक फंसा रहता है. इस वजह से किसानों की आर्थिक स्थिति पर इसका सीधा असर पड़ता है. धान बेच देने के बाद भी उनके हाथ खाली ही रहते हैं.

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(डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते अभिनंदन)
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पूर्णिया के केनगर प्रखंड के रहुआ पंचायत में लगभग 15 किसान हैं जिनका पिछले साल का लाखों रुपये का भुगतान अभी तक पैक्स के द्वारा नहीं किया गया है. इस बारे में जब भी किसान पैक्स अध्यक्ष से बात करते हैं तो वो साफ़ तौर से ये कह देते हैं कि उन्हें सरकार की ओर से राशि नहीं दी गयी है. एक ओर सरकार का ये दावा है कि वो अपने धान अधिप्राप्ति की क्षमता बढ़ा रही है वहीँ दूसरी ओर किसानों को पैसे ही नहीं मिल रहे हैं. हालांकि हमेशा सरकार के धान अधिप्राप्ति की अपने लक्ष्य से पीछे ही रहती है जिसकी वजह से कई किसानों के धान की खरीद ही नहीं हो पाती है और वो बड़े व्यापारियों को कम कीमत में बेचने के लिए मजबूर हो जाते हैं. मधुबनी में भी पैक्स ने कई बार लक्ष्य को घटाया जिसके वजह से किसानों को अपनी फ़सल कम कीमत में व्यापारियों को बेचनी पड़ी. कई बरसों में ऐसा कभी नहीं हुआ कि सरकार की तरफ़ से पैक्सों के लिए धान-ख़रीद का जो लक्ष्य निर्धारित हुआ, उसका 30 फ़ीसद भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ख़रीदा गया हो. सहकारिता विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2020-202 में बिहार के डेढ़ लाख किसानों को ही उनकी फ़सल पर MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य मिला था. इससे पहले खरीफ सीजन 2019-2020 में सिर्फ़ 279440 किसानों को धान का एमएसपी मिल सका था. रबी सीजन 2020-2021 में केवल 980 किसान एमएसपी पर गेहूं बेच पाये थे.

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(किसानों को नहीं मिल रहा है समय पर पैसा)

आल इंडिया किसान संघर्ष समिति के बिहार चैप्टर के महासचिव अशोक कुमार पांडेय बताते हैं-

पैक्स के काम करने का तरीका काफ़ी जटिल है. सबसे पहले तो किसानों को ऑनलाइन रजिस्टर करने के लिए कहा जाता है जिसमें अधिकांश किसानों को दिक्कत होती है. दूसरी सबसे बड़ी दिक्कत है भुगतान की. किसान को फ़सल के बदले हमेशा तत्काल पैसों की ज़रूरत होती है क्योंकि उन्हीं पैसों से वो आगे दूसरी फ़सल की तैयारी करता है. अगर 5-6 महीने बाद किसानों को उनका पैसा दिया जाएगा तो फिर किसानों को क्या ही लाभ मिलेगा? दूसरी फ़सल लगाने के लिए फिर उन्हें किसी महाजन से सूद पर पैसा उधार लेना पड़ता है. जिसके चंगुल से निकलना फिर उनके लिए मुश्किल हो जाता है.

बिहार की 77% आबादी कृषि से सीधे तौर से जुड़ी हुई है. ये संख्या पंजाब जैसे कृषि समृद्ध राज्य से भी अधिक है. पंजाब की 75% आबादी कृषि से जुड़ी हुई है. इस साल बिहार के 642242 किसानों ने पैक्स के ज़रिये अपने धान को बेचा है. जबकि धान उपजाने वाले किसानों की आबादी इससे कहीं अधिक है.  धान ख़रीद के लिहाज़ से सहकारिता विभाग, बिहार सरकार के आंकड़ों के अनुसार पूरे बिहार में 8463 पैक्स और 521 व्यापार मंडल हैं. सरकार इन्हीं के माध्यम से धान या अन्य फ़सलों की सरकारी ख़रीद को सुनिश्चित करती है. फिर इन्हीं के ज़रिये किसानों के खाते तक उनकी रकम को पहुंचाने का काम करती है. लेकिन पैसे मिलने में देरी की वजह से किसान पैक्स की जगह व्यापारियों को फ़सल बेचना प्राथमिकता देते हैं.

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(दिन रात काम के बाद भी परेशान किसान)

नीतीश कुमार बेगूसराय से धान के किसान हैं. उनके घर में मई के महीने में बहन की शादी है. उन्हें उम्मीद थी कि धान की खरीद के बाद उनके पैसे उन्हें मिल जायेंगे जिससे वो अपनी बहन की शादी अच्छे से कर पायेंगे. लेकिन अब पैसों की कमी की वजह से नीतीश काफ़ी परेशान रहते हैं. वो बताते हैं-

शादी तो दूर की बात है अब मेरे पास एक वक्त का खाने का पैसा भी नहीं बचा है. सरकार इतना किसानों को तड़पा क्यों रही है? इससे अच्छा तो सीधा मार ही दे.

किसानों की बदहाल स्थिति और पैक्स में भुगतान की अनियमितता पर बात करने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा ने दो स्तर पर संपर्क किया. सबसे पहले डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने पैक्स अध्यक्ष से बात करने की कोशिश की लेकिन पैक्स अध्यक्ष ने इस पर बात करने से साफ़ मना कर दिया. उसके बाद कृषि मंत्री अमरेन्द्र सिंह से बातचीत की. उन्होंने बताया-

हमारी सरकार हमेशा किसानों के हित में सोचने का काम करती है. किसानों को 48 घंटे में भुगतान करने का आदेश दिया गया है.

जिला सहकारिता पदाधिकारी ने भी ये बताया कि ये पूरा मामला ऑनलाइन है इसलिए कोई किसी का पैसा रोक नहीं सकता है. अगर किसी वजह से किसानों का पैसा नहीं गया है तो उस मामले को निपटाते हुए जल्द ही भुगतान किया जाएगा.