मेट्रो बनाने के लिए पहाड़ी मौजा का अधिग्रहण, क्या निवासियों को उजाड़ने की साज़िश है?

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पटना मेट्रो रेल डिपो निर्माण के लिए पटना-गया रोड में आईएसबीटी के सामने ज़मीन अधिग्रहण किया जाना है. लेकिन प्रस्तावित ज़मीन के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ स्थानीय लोग पिछले दो सालों से विरोध कर रहे हैं. पटना मेट्रो रेल डिपो के लिए पहाड़ी क्षेत्र के करीब 76.645 एकड़ जिसमे पहाड़ी मौजा के 50 एकड़ और रानीपुर मौजा के लगभग 26 एकड़ भूखंड का अधिग्रहण किया जाना है. लेकिन स्थानीय लोगों का आरोप है कि मेट्रो कारपोरेशन द्वारा डिपो के साथ-साथ प्रॉपर्टी डेवलपमेंट के नाम पर भी आवश्यकता से अधिक ज़मीन का अधिग्रहण किया जा रहा है. स्थानीय लोगों को आशंका है की डिपो के नाम पर ज़मीन लेकर आसपास शॉपिंग मॉल बनाया जाएगा.

पहाड़ी मौजा के स्थानीय लोग जिनकी ज़मीन या मकान मेट्रो डिपो के निर्माण के लिए लिया जा रहा है, पिछले 22 दिनों से इसके विरोध में आईएसबीटी बस स्टैंड के पास धरना दे रहे हैं. धरना दे रहें लोगों का कहना है कि

सरकार और अधिकारी हमारी बात नहीं सुन रहे हैं. हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने के बाद भी हमें अभी तक कोई रास्ता नहीं मिला है. इसलिए धरना दे रहे लोगों में से दो लोग अब आमरण अनशन पर बैठ गए हैं. पिछले दो दिनों से अनशन पर बैठे जयप्रकाश महतो कि उम्र 70 वर्ष है. उम्र के इस पड़ाव पर अपनी ज़मीन खोने के दुःख को बताते हुए जयप्रकाश महतो कहते हैं

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जमीन अगर चली गयी तो हम भूखे मरेंगे. जब भूखे ही मरना है तो क्यों ना अपने जमीन को बचाने के लिए अपना जान दे दें. हमारे खाने और जीने का साधन यही जमीन है. हमारी यहां पुश्तैनी ज़मीन है. पहले भी बस अड्डे के निर्माण के लिया मेरी ज़मीन सरकार ने ले लिया और हमने दिया भी. उसका भी अभी तक पूरा मुआवज़ा नहीं मिला है. अब दोबारा मेट्रो के लिए मेरी ज़मीन ली जा रही है. अगर इस बार मेरी ज़मीन चली गयी तो हम भूमिहीन हो जायेंगे.

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धरना दे रहे एक अन्य स्थानीय सुरेन्द्र कुमार का कहना है कि

हमारा जन्म कर्म सब यहीं हुआ है. हम यहां के निवासी है. पहाड़ी मौजा क्षेत्र के खेती के जमीन को ग्रीन बेल्ट कहा जाता है. यहां आलू-प्याज़ सहित कई मौसमी सब्जियां उगाई जाती है. यहां के किसानों के आय का श्रोत यही है. लेकिन बार-बार सरकार विकास के नाम पर पहाड़ी क्षेत्र के किसानो के ही घर और खेत अपने कब्जे में क्यों ले रही है.

पहाड़ी क्षेत्र में इससे पूर्व में भी चार बार ज़मीन का अधिग्रहण किया गया है. बाईपास बनाने, गंगा प्रदुषण परियोजना, ट्रांसपोर्ट नगर आईएसबीटी पाटलिपुत्रा बस स्टैंड निर्माण और पहाड़ी पंप हाउस निर्माण के लिए जमीन सरकार के द्वारा लिया जा चुका है. साथ ही प्रस्तावित जमीन पर नमामि गंगे परियोजना का भी काम पूरा किया जा चुका है. अब पांचवी बार अधिग्रहण होने के कारण ग्रामीण और स्थानीय लोग इसका विरोध कर रहे हैं.  

स्थानीय लोगो का कहना है कि सरकार अगर क्षेत्र का विकास ही करना चाहती है तो मेट्रो डिपो परियोजना को पहाड़ी से दो किलोमीटर दूर संपतचक या फिर पूर्व में प्रस्तावित एतवारपुर मौजा या रामचक बैरिया के कचरा डिपो में किया जा सकता है. जिससे शहर का विकास भी होगा और एक ही क्षेत्र पर दबाव भी कम होगा.

आवासीय ज़मीन बचाओ संघर्ष समिति से जुड़े रौशन कुमार पूरे मामले को समझाते हुए कहते हैं

जिला प्रशासन के तरफ से 23 दिसम्बर तक दावा आपत्ति दाखिल करने का समय दिया गया था. लेकिन हमलोगों ने हाईकोर्ट जाने का फैसला किया. हाईकोर्ट के आदेश पर डीएम ने हमलोगों की बात सुनी. हमने जनसुनवाई के दौरान अपनी बातों को सिलसिलेवार ढंग से बताया. जनसुनवाई के लिए एसआईए कमिटी बनायी गयी. इसके बाद 1 जून को विज्ञप्ति निकाली गयी और 4 जून को जनसुनवाई भी कर दी गयी. जबकि विज्ञप्ति निकालने के बाद कम से कम 21 दिन का समय दिया जाता है लेकिन हमलोगों को वह समय भी नहीं दिया गया.

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पहला जमीन अधिग्रहण के लिए बने एसआईए कमिटी के द्वारा किसानों का पक्ष नहीं सुना गया. सामाजिक मूल्यांकन कमिटी में स्थानीय वार्ड पार्षद (वार्ड-56) जो इस मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं उनको शामिल नहीं करके वार्ड-68 के प्रतिनिधि को शामिल किया गया और कुछ लोगों से बात करके रिपोर्ट बना दिया गया.

दूसरा, मेट्रो डिपो का निर्माण पहले रामचक बैरिया और एतवारपुर में प्रस्तावित था, लेकिन बाद में इसे बदलकर पहाड़ी मौजा में कर दिया गया. और इसके लिए तर्क दिया गया कि एतवारपुर और रामचक बैरिया में ऐतिहासिक स्थल है जिसे बचाने के लिए ऐसा किया जा रह है. जबकि वहां ऐसा कोई ऐतिहासिक धरोहर नहीं है.

तीसरा, मेट्रो कारपोरेशन ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि पहाड़ी क्षेत्र एतवारपुर इलाके से ऊंचाई पर है. जिससे निर्माण में लागत कम आएगा जबकि गूगल मैप पर इसके उलट पहाड़ी क्षेत्र को समुद्र तल से 47 मीटर और एतवारपुर 50 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. पहाड़ी क्षेत्र नीचे का इलाका है. यहां पूरे शहर के नाले का पानी गिरता है. यदि इसे भर दिया जायेगा तो भविष्य में पटना शहर जलजमाव के संकट से जूझ सकता है. 

दरअसल पहले पहाड़ी मौजा की ज़मीन बुडको को नाला निर्माण के लिए दिया गया था. लेकिन मेट्रो डिपो निर्माण के लिए सरकार ने वापस पहाड़ी मौजा कि जमीन मेट्रो कारपोरेशन को दे दिया. जिसके कारण नामिम गंगे प्रोजेक्ट के तहत बिछाई गयी करीब एक किलोमीटर तक कि पाइपलाइन को अब उखाड़ा जाएगा.

दरअसल मेट्रो को ज़मीन देने के बाद अब अलाइनमेंट में बदलाव किया गया है. पहले जो पाइपलाइन बादशाही नाले तक बिछाई जा रही थी अब उसे खनवा नाले तक ले जाया जाएगा. इसकी जानकारी जनसुनवाई के दौरान ख़ुद बुडको ने दिया है. बादशाही नाले की अपेक्षा खनवा नाला छोटा है. इसमें प्रतिदिन 60 एमएलडी पानी भेजना भविष्य में परेशानी का कारण बन सकता है. वर्तमान में पूरे शहर का पानी खनवा और बादशाही नाले में गिराया जाता है.

मेट्रो कॉर्पोरेशन की तरफ़ से जारी अधिसूचना में बताया गया कि पहाड़ी क्षेत्र में डिपो निर्माण से किसी का विस्थापन नहीं होगा. 4 अप्रैल को जारी विज्ञप्ति में इनका कहना है कि यहां कोई मकान नहीं है. लेकिन यहां 1200 से अधिक परिवार रहते हैं. जिनमें से कुछ परिवार स्थानीय और कुछ ने ज़मीन खरीदकर यहां घर बनाया है. यहां आवासीय और व्यवसायिक ज़मीन है.

रौशन आगे कहते हैं

यहां ज़्यादातर छोटे-छोटे ज़मीनों के प्लाट है. कम आय वर्ग के लोगों ने यहां भविष्य में विकास के उम्मीद से जमीन लिया था. लेकिन विकास के नाम पर आज उन्हें ही इस ज़मीन से बेदखल करने का प्लान बना लिया गया है.

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आमरण अनशन पर बैठे हाजीपुर के रहने वाले संजीव चौधरी का कहना है कि

साल 2017 में ज़मीन लेकर यहां घर बनाये थे. पटना में घर बनाये तो लगा अब बच्चों को शहर में अच्छी शिक्षा मिलेगी. लेकिन क्या पता था कि दो साल बाद ही घर छोड़ने की नौबत आ जायेगी. परिवार को वापस गांव भेज दिए हैं ताकि बच्चों की पढ़ाई नहीं रुके. हम यहां केवल अपने घर को बचाने के लिए बैठे हैं. नीतीश कुमार कहते हैं हर गरीब के सिर पर छत होगा. लेकिन जब कोई गरीब अपनी मेहनत से घर बनाता है तो उसे उजाड़ देते हैं. सब सरकार के मिली-भगत से हो रहा है.   

वहीं वार्ड 56 के पार्षद बलराम मंडल का कहना है

पिछले दो सालों से यहां के लोगों के लिए आवाज उठा रहे हैं. लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रहा है. कोर्ट में जाने के बाद भी कोई रास्ता नहीं मिल रहा है. इस वार्ड में ज़्यादातर मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोग रहते हैं. यहां लोग सालों पहले 5 धुर, 8 धुर या  ज़्यादा से ज़्यादा एक कट्ठा ज़मीन ख़रीद कर घर बनाये थे. कमाने खाने वाले लोग अपना घर और ज़मीन बचाने के लिए सड़क पर हैं. सरकार द्वारा जबरन गरीबों का घर और ज़मीन लेना गलत है.

इस मामले पर बात करने के लिए डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने मेट्रो कॉर्पोरेशन से बातचीत करने की कोशिश की लेकिन कॉर्पोरेशन के ओर से कहा गया कि जो भी बात रखने है वो बिहार सरकार रखेगी.

डेमोक्रेटिक चरखा की टीम ने बिहार सरकार के कई अधिकारियों से बात करने की कोशिश की लेकिन किसी से भी जवाब नहीं मिला.

बाद में पटना नगर निगम पीआरओ अधिकारी से जानकारी मिली

हमलोग प्रदर्शनकारियों से बात कर रहे हैं और मामले को निपटाने की कोशिश कर रहे हैं. उम्मीद है जल्द ही ये ग़लतफ़हमी दूर होगी कि सरकार उन्हें उजाड़ने की कोशिश कर रही है.

धरना दे रहे ग्रामीणों का कहना है जान दे देंगे लेकिन ज़मीन और मकान नहीं देंगे. अब देखना होगा कि सरकार इस समस्या का हल कैसे निकालती है.

(संपादकीय नोट- डेमोक्रेटिक चरखा ने कई बार वरीय अधिकारियों से बात करने की कोशिश की. नगर निगम पीआरओ से जवाब 6 अक्टूबर को मिला जिसके बाद आर्टिकल को अपडेट किया गया है.)

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