भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग यानी हाथ से मल उठाना. इस बात को लेकर समय-समय पर विश्लेषण और विवाद होता रहा है. वैसे तो साल 1993 में हाथ से मैला उठाने या सीवर में सीधे उतर कर सफाई करना बंद कर दिया गया था लेकिन यह बैन करने के बाद भी यह प्रथा आज भी पूरे बिहार में फैली हुई है.
शहर के 80% सीवेज का सफ़ाया मैनुअल स्कैवेंजिंग के द्वारा
जनगणना 2011 के अनुसार पटना में प्रतिदिन 225 एमएलडी सीवेज निकलता है. पटना शहर में कुल 4 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट है लेकिन खुद पटना नगर निगम की बुलकेट के अनुसार यह दयनीय हालत में है. सीवरेज सिस्टम से पटना के सिर्फ 20% घर ही जुड़े है यानी बाकी के 80% सीवेज खुले में पाया जाता है.
इसी सेप्टिक टैंक और खुले में सीवरेज की सफाई का जिम्मा सीवर मजदूर का है. इसी क्रम में पटना के जकारिया पुल के पास वाले सीवेज को साफ करने के दौरान 2 मजदूरों की मृत्यु हो गई. मरने वाले मजदूरों में एक का नाम रंजन कुमार बताया जा रहा है. उनके परिवार वालों से हमने बात की. उन्होंने हमें बताया कि
सर उस वक्त वे लोग चेंबर में काम कर रहे थे. मैं तो उस दिन दो-तीन दिन से छुट्टी पर था. हमको फोन आया फिर मैं वहां गया और देखा कि दोनों उस में गिरे हुए हैं. फिर हम लोग घुसकर शव को निकाले और सब चीज करवाएं.
10 लाख की जगह कंपनी ने 5 लाख ही दिया मुआवजा
मृतक रंजीत कुमार के जीजा ने हमें बताया कि
बॉडी अंदर से निकालने के बाद वहां नमामि गंगे के अफसर लोग आए और उनसे मुआवजे पर हमारी बात हुई. हम लोगों ने 10 लाख रुपए मुआवजे पर बात की थी. उसके बाद सब कुछ लिखा-पढ़ी हुआ लेकिन अब तक पैसा हम लोगों को नहीं मिला है. अगले दिन पेपर में छपा की 5 लाख मुआवजा दिया जाएगा जबकि 10 लाख देने की बात हुई थी. हम लोग गरीब आदमी हैं. किसी का जवान बेटा चला गया, वह तो वापस नहीं आएगा. अगर यह लोग मुआवजा देने में भी इस तरह का व्यवहार करेंगे तो कैसे चलेगा. हम लोग गरीब भले हैं लेकिन हमारे अंदर भी बोलने और लड़ने का पावर है.
स्थानीय थाने ने बनाया दबाव, मृतक के शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जल्दी
मृतक के साथ काम करने वाले लोगों का आरोप है कि पुलिस ने उनके साथ ठीक नहीं किया. उन्होंने हमें बताया कि
थाने के लोग बात को दबाने में लगे थे और हमें जल्दी-से-जल्दी लाश निकालने कहा जा रहा था. हमलोगों ने 10 बजे पुलिस को बुलाया जबकि पुलिस 11 बजे पहुंची थी. उसके बाद जब पुलिस आई तो उन्होंने हमसे मृतकों की लाश निकालने को कहा, लेकिन मैंने मना कर दिया. आप ही बताइए हम बुजुर्ग आदमी हैं,अंदर कैसे घुसते?
कंपनी से आया सेफ्टी बेल्ट तब जाकर निकली लाश
मृतक की जीजा ने हमें बताया कि
मेरे साले को बिना सेफ्टी बेल्ट के ही अंदर भेज दिया गया था. जब उसकी मृत्यु हो गई उसके बाद शव को निकालने के लिए कंपनी के तरफ से सेफ्टी बेल्ट भेजा गया. उसके बाद मैं उसके अंदर गया. अंदर जाने के बाद लाश निकाली और फिर उसे पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया.
लोगों का आरोप शव निकालने के समय चल रही थीं सांसे
स्थानीय लोगों ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए हमें कहा कि
पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए बहुत हड़बड़ी दिखाई. जिस वक्त शव को निकाला गया, उस वक्त सांसे चल रही थीं. अगर पुलिस उसी समय एंबुलेंस के द्वारा उसे अस्पताल ले जाती तो शायद उसकी जान बच सकती थी. लेकिन प्रशासनिक लापरवाही की वजह से यह मौत हुई है. जैसे-तैसे किसी गाड़ी में शव को रखवाकर जल्दी-से-जल्दी पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया.
मैनुअल स्कैवेंजिंग के लिए बिना सेफ्टी बेल्ट के ही चेंबर में घुसते हैं मजदूर
मृतक रंजन कुमार के साथ काम करने वाले उनके कुछ सहकर्मियों ने हमें बताया कि
बिना सेफ्टी बेल्ट के ही हमें चेंबर में घुसने को कहा जाता है. अंदर का गैस भी निकलने नहीं दिया जाता. ना कोई हेलमेट दिया जाता है. चेंबर भी 20-25 फीट गहरा होता है. उसमें अंदर घुसकर हम लोग कचरा निकालते हैं. ऐसे में अंदर दम घुटना स्वभाविक है.
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में मैन्युअल स्कैवेंजिंग के मामले में हुई है सुनवाई
कुछ दिनों पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने हाथ से मल की सफाई रोकने को लेकर जल्द-से-जल्द कदम उठाने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस रविंद्र भट्ट की अगुवाई वाली बेंच ने मामले में कोर्ट सलाहकार और केंद्र के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल से मीटिंग में होने वाले संभावित चर्चाओं पर कोर्ट को सूचित करने की बात कही है.
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में हाथों से मल की सफाई पर रोक लगाने के लिए अर्जी दाखिल की गई थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा था कि 2013 के कानून को लेकर अब तक केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए हैं.