अपने नोटों की या शराब की कालाबाजारी के बारे में सुना होगा लेकिन क्या आपने कभी पानी की कालाबाजारी के बारे में सुना है? आज हम आपको इसी पानी के कालाबाजारी के बारे में बताने जा रहे हैं.
हमने अक्सर देखा है कि गर्मी के मौसम में पानी को लेकर कुछ-कुछ इलाकों में कितनी किल्लत शुरू हो जाती है. लेकिन जहां एक ओर प्रदेश के कुछ लोग पानी को लेकर इतनी समस्या झेलते हैं तो वहीं दूसरी ओर कुछ लोग इसी पानी का इस्तेमाल या यूं कहें कि अवैध इस्तेमाल करके मालामाल हो जाते हैं.
पानी के कालाबाजारी का यह धंधा इसका व्यापार करने वाले लोगों के लिए कितना किफायती है इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि औसत ₹2 की लागत पर ₹20 का मुनाफा यानी कि सीधा 10 गुना ज्यादा मुनाफा. आपको बता दें कि बिहार के 38 जिलों में यह अवैध व्यापार किया जा रहा है.
खासकर बिहार राज्य की राजधानी पटना में बगैर लाइसेंस के ही पानी की कालाबाजारी धड़ल्ले से की जा रही है. प्रशासन को इसकी भनक तक नहीं है. आपको बता दें कि नगर निगम को इस कालाबाजारी के विषय में जानकारी होते हुए भी नगर निगम इसका डाटा नहीं निकलवा पा रहा है.
अवैध वाटर प्लांट से पानी की भी होती है बहुत बर्बादी
अवैध वाटर प्लांट से सिर्फ पानी की गुणवत्ता ही खत्म नहीं होती बल्कि की पानी की बर्बादी भी एक बड़ा मसला बन जाती है. आपको बता दें कि बिहार के 38 जिलों में करीबन 2800 वाटर प्लांट ऐसे हैं जहां से हर दिन करोड़ों लीटर पानी निकाला जा रहा है. अनुमानित आंकड़ों की बात करें तो इसमें 95 लाख लीटर पानी बिक्री के लिए 65 लाख लीटर पानी पीने लायक बनाने के क्रम में बर्बाद हो जाता है.
असली आंकड़े इससे भी ज्यादा होने की संभावना है.
बेलगाम जल दोहन से गिर गया है भू-जल स्तर
आपको बता दें कि पानी के इस अवैध दोहन का आम लोगों को इतना खामियाजा भुगतना पड़ता है इसका अनुमान केवल इस बात से लगाया जा सकता है कि बिहार के कई क्षेत्र ऐसे हैं जहां भू-जल स्तर तय मानकों से बहुत नीचे चला गया है. पहले जहां 150 फीट पर पानी निकाला जा सकता था वहीं आज 200 फुट की लंबी पाइप को जोड़ने की आवश्यकता पड़ जाती है.
केवल वाटर प्लांट से ही नहीं बल्कि तालाबों को पाटकर लगातार बनाए जा रहे मकान से भी भू-जल स्तर गिरता जा रहा है. भूजल स्तर चुकीं तालाब में मिट्टी भर देने से या किसी खास क्षेत्र के जल को सुखा देने से इसका प्रभाव उस क्षेत्र के ग्राउंड वाटर पर पड़ता है. इसलिए ऐसे स्थानों पर भी भूजल स्तर लगातार कम होता जा रहा है.
इन अवैध वाटर प्लांट से बिजली की भी होती है बेतहाशा बर्बादी
बिहार में इन अवैध वाटर प्लांट के संचालन से केवल पानी की ही बर्बादी नहीं होती बल्कि इससे बिजली की भी काफी बर्बादी होती है. आपको बता दें अमूमन प्रत्येक प्लांट में हर दिन औसतन 2 से 5 घंटे तक मोटर चलता है. इसके अलावा वहां लगी फिल्टर मशीन भी बहुत हाई पावर कंजूमिंग होती है. इससे बिजली की खपत भी बहुत ज्यादा हो जाती है.
गुणवत्ता की जांच के बिना ही बेचा जाता है पानी
जब हम किसी वाटर प्लांट सप्लायर से पानी लेते या खरीदते हैं तो हमें लगता है कि वह पानी बेहद साफ और पीने योग्य है. जबकि सही मायनों में अवैध कारोबारी इन पानियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन आदि की कितनी मात्रा है या फिर यह मानक अनुरूप है भी या नहीं, यह जांचे बिना पानी बेचते हैं.
आपको यह भी बता देना आवश्यक है कि अधिकांश वाटर प्लांट में आर-ओ (RO) की जगह केवल सीलिंग प्लांट के माध्यम से पानी की सप्लाई की जा रही है. इस प्रक्रिया में पानी को तब तक ठंडा किया जाता है जब तक बैक्टीरिया खत्म ना हो जाए. आमतौर पर इस तरह का पानी पीने से टाइफाइड जैसी बीमारियां हो सकती है.
कैसे तैयार किया जाता है वाटर प्लांट में यह पानी
आपको बता दें कि सबसे पहले हैवी बोरिंग के जरिए यह सभी अवैध कारोबारी धरती का पानी निकालते हैं. इसके बाद इसे फिल्टर किया जाता है. अधिकांश स्थानों पर तो फिल्टर की प्रक्रिया ही नहीं है. बोरिंग के जरिए पानी को निकालकर केवल चिलिंग प्लांट में डाल दिया जाता है. इसे तब तक ठंडा किया जाता है जब तक बैक्टीरिया पूरी तरह से खत्म ना हो जाए.
आपको बता दें कि आंकड़ों के मुताबिक बिहार में लगभग 95 लाख लीटर पानी को पीने लायक बनाने में करीबन 65 लाख लीटर पानी बर्बाद हो जाता है. सरकार इस पूरे अवैध कारोबार के विषय में सबकुछ जानते हुए भी सही कदम उठाने से परहेज कर रही है.
लागत के मुकाबले ज्यादा कीमतों पर बेचा जाता है यह पानी
इन सभी अवैध व्यापारियों की जितनी पूंजी लगती है, यह प्रति लीटर पानी बेचकर उसका 20 गुना कमा लेते हैं. आपको बता दें कि इन सभी नॉन ब्रांडेड कंपनियों के 20 लीटर वाले जार की कीमत 20 से ₹25 है. जबकि जो ब्रांडेड कंपनियां हैं उनकी कीमत 55 से ₹65 में बेचती हैं. जबकि इसकी लागत महज ₹14 होती है. इसके अलावा ये अपनी खरीद-बिक्री का कोई रसीद ही ग्राहकों को नहीं देते. इससे इन अवैध व्यापारियों को अपना टैक्स बचाने में आसानी होती है.
किन-किन पैमानों पर इन व्यापारियों को अवैध माना गया है
- वाटर प्लांट लगाने के लिए सबसे पहले सरकार से लाईसेंस लेना पड़ता है. बिना लाइसेंस के ये कारोबार अवैध माना जाएगा.
- इसके अलावा पानी की जांच भी करानी होती है. जिसके बाद पीएचइडी यानी लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (PHED) इन्हें एनओसी देता है.
हालत तो यह है कि एक भी प्लांट ऐसा नहीं है जिसके विषय में बिहार सरकार यह कह सके कि ये प्लांट पूरी तरीके से वैध और सुरक्षित है.
आखिर कौन जारी करता है लाइसेंस
वाटर प्लांट या आरो (RO) प्लांट लगाने के लिए कई विभागों से एनओसी (NOC) लेना जरूरी होता है. इसके बाद ही प्लांट को वैध तरीके से शुरू किया जा सकता है. इसका व्यवसाय करने वाले को नगर निगम, खाद्य संरक्षण आयुक्त, उद्योग विभाग पर्यावरण विभाग, जल विभाग तथा केंद्रीय उत्पाद विभाग से एनओसी लेना पड़ता है. उसके बाद लाइसेंस जारी किया जाता है. लेकिन बिहार के इन सभी वाटर प्लांट मालिकों के पास में ना तो लाइसेंस है और ना एनओसी. यह पूरे अवैध तरीके से पानी का व्यापार कर रहे हैं.
नियम तो है लेकिन फिर भी होती है अनदेखी
वाटर प्लांट को लगाने के लिए कई नियम बनाए गए हैं. कायदे से वाटर प्लांट स्थापित करने के लिए 1500 वर्ग फीट जमीन होनी चाहिए. इसके अलावा पानी का प्लांट लगाने के लिए 200 फीट तक बोरिंग जरूरी है,तभी पीने योग्य पानी निकाला जा सकता है.
लेकिन ऐसा ना करके कई जगहों पर केवल 20 फीट चौड़ा और 30 फीट लंबा एक कमरा जिसमें वॉटर प्लांट को स्थापित कर दिया जाता है और बोरिंग भी मात्र 100 फीट ही गहरा होता है जिसका पानी साफ तो होगा लेकिन पीने योग्य नहीं. इसके अलावा पैकेट बंद पानी के लिए बीआईएस जरूरी है. यदि वाटर प्लांट मालिक पानी की पैकेजिंग कर उसे मार्केट में बेचता है तो उसे भी नियमों का पालन करना आवश्यक है.
आपको बता दें कि 2011 के नियम के अनुसार पैकेट वाटर या मिनरल वाटर को बेचने के लिए बीआईएस प्रमाण पत्र लेना जरूरी है. इसके अलावा भूगर्भ जल अधिनियम 2019 के तहत एनओसी लेना भी अनिवार्य होता है और इस एनओसी को हर 5 साल के बाद रिन्यू करवाना होता है. इसके अलावा प्लांट के लाइसेंस के लिए बीआईएस के साथ-साथ नगर निगम, नगर परिषद, पीएचइडी विभाग, पर्यावरण विभाग तथा खाद्य आपूर्ति विभाग से अनुमति लेनी पड़ती है.
क्या है बीआईएस प्रमाणन?
बीआईएस यानी भारतीय मानक ब्यूरो जो आमतौर पर ग्राहक को किसी उत्पाद की गुणवत्ता, उसकी विश्वसनीयता और सुरक्षा का आश्वासन प्रमाण पत्र देने वाला एक राष्ट्रीय मानक निकाय है. भारत में उत्पादों और वस्तुओं के मानकों को तय करता है तथा उन्हें बढ़ावा देता है.
बीएसआई के द्वारा किसी उत्पाद के मानकों का परीक्षण करने के लिए भारत में 8 केंद्रीय, चार क्षेत्रीय और तीन शाखा प्रयोगशालाओं की स्थापना की गई है. बीएसआई सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक सुरक्षा प्रदान करता है. बीएसआई ग्राहकों को गुणवत्ता का आश्वासन देता है. इतना ही नहीं बीएसआई अपने विज्ञापनों में भी यह कहता है कि उसके द्वारा प्रमाणित नहीं किए गए उत्पाद खतरनाक है और उसे ना खरीदें. बीएसआई उपभोक्ताओं के विश्वास को भी बढ़ावा देता है.
पटना नगर निगम के पास भी नहीं है कोई डेटा
जब हमने इस विषय पर पटना नगर निगम के नगर आयुक्त से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा फोन नहीं उठाया. इसके बाद हमने नगर निगम की मीडिया सेल से यह जानकारी हासिल करने की कोशिश की कि आखिर कितने वाटर प्लांट मालिकों के पास लाइसेंस है और कितनों के पास नहीं तो उन्होंने कहा कि
"अभी हमारे पास इसका कोई डेटा नहीं है लेकिन नगर निगम ने नियम बनाए हैं. इसके तहत लोगों को हमसे लाइसेंस लेकर ही यह व्यापार शुरू करने की अनुमति है"
क्या बिहार सरकार इस अवैध व्यापार को रोक पाएगी?
बिहार सरकार के नाक के नीचे पानी का इतना बड़ा अवैध व्यापार चल रहा है लेकिन सरकार को इसकी तनिक भी परवाह नहीं है. बिना लाइसेंस वाले अवैध वाटर प्लांट से न केवल पानी की बर्बादी हो रही है बल्कि लोगों तक पीने योग्य पानी भी नहीं पहुंच पा रहा है. सरकार चाहे तो नगर व जिला स्तर से लेकर वार्ड स्तर तक का सर्वेक्षण करवा सकती है.
पानी का लगातार दोहन भविष्य में एक बड़ी समस्या बनकर खड़ा हो इससे पहले इसे सुधार लेने की आवश्यकता है. सरकार को चाहिए कि वह वाटर प्लांट स्थापित करने के लिए तय मानकों को गंभीरता से लें और उसका पालन ना करने वालों पर सख्ती से कार्यवाई करे. तभी जाकर इस समस्या का हल एक सार्थक रूप में निकल पाएगा.