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कहा जाता है कि छात्र किसी भी देश और राज्य के विकास के लिए महत्वपूर्ण है. वहीं जिस राज्य में लॉ एंड आर्डर दुरुस्त रखने के लिए छात्रों की पढ़ाई रोक दी जाए. तो उस राज्य का विकास कैसे होगा ये सोचने वाली बात है.
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हमारे स्कूल में जब चाहे प्रशासन आ जाती है. हर वक्त हमारे स्कूल में पुलिस रहती है जिसके वजह से हमारी पढ़ाई नहीं हो पाती है.
यह कहना है इंद्र प्रसाद उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय की एक छात्रा का. जिसके आंखों में आंसू हैं क्योंकि पिछले 2 हफ़्तों से वो अपने स्कूल नहीं गई. जिसके कारण उसकी पढ़ाई छूट रही है.
मंगलवार के सुबह, दीघा का रोड शहर के शोर-शराबे के बीच बच्चियों के नारे से गूंज रहा था. और वजह थी सरकारी स्कूल में रह रहे पुलिसकर्मी. इंद्र प्रसाद उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय के सामने रोड पर बच्चों और उनके अभिभावकों ने सड़क जाम कर दिया. साथ ही सरकार के खिलाफ़ नारे भी लगाए.
प्रशासन के वजह से बच्चियां नहीं जा रहीं हैं स्कूल
सपना (बदला हुआ नाम) एक गरीब परिवार से आती है. सपना एक छात्रा है जो कि इंद्र प्रसाद उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय में पढ़ती है. जिसका ख्वाब पुलिस में जाना है. आर्थिक तंगी और विद्यालय के परेशानियों से जूझ रही सपना आज सड़क पर उतरने को मजबूर हो गई.
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए सपना ने कहा कि
हमारा एग्जाम होने वाला था. पिछले कई दिनों से हमारा क्लास सस्पेंड है. हमारी क्लास नहीं हो रही है. हमारे बिल्डिंग के 2 रूम में पुलिसकर्मियों का बसेरा बन गया है. जहां सरकार ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ के नारे देती है अब आप बताएं की सरकार खुद ही हमें पढ़ने नहीं दे रही है.
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सपना आगे बताती है कि
मुझे पुलिस में जाना है लेकिन ऐसे माहौल में पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं. एक तो महीने से स्कूल बंद है. हम गरीब परिवार से आते हैं इसीलिए सरकारी स्कूल में पढ़ रहें हैं. मुझे अपने परिवार की स्थिति भी ठीक करनी है, लेकिन जब तक हम पढ़ेंगे नहीं तो आगे कैसे बढ़ेंगे?
बच्चियों के चेहरे पर आक्रोश साफ़ देखा जा सकता था. क्योंकि सरकार उनके भविष्य को अंधेरे में डाल रही है. 11 जुलाई 2023 से इंद्र प्रसाद उच्च माध्यमिक बालिका विद्यालय में पुलिस रह रही है. लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए पुलिस को बालिका विद्यालय में आवास कराया गया था. जहां पुलिस को एक सप्ताह तक रहना था. लेकिन पुलिस का डेरा अभी तक वहीं जमा हुआ है. जिसके कारण इस वर्ष अभी तक बच्चियों का क्लास बंद है. बच्चियों की पढ़ाई का नुकसान हो रहा, लेकिन इसे देखने वाला कोई नहीं.
हर साल बिहार में जब-जब चुनाव होता है. तब पुलिसकर्मियों को सरकारी स्कूल में आवास दिया जाता है. जिससे बच्चियों की पढ़ाई बाधित हो जाती है. ऐसे में सरकार को इस समस्या का कोई स्थायी निदान निकालना होगा.
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यू-डाइस की रिपोर्ट खोल रही सरकार की पोल
यू-डाइस के 2014-15 से लेकर 2016-17 के आंकड़े देखें तो बिहार राज्य में सबसे ज़्यादा बच्चे बीच में पढ़ाई छोड़ रहे हैं. साल 2014-15 में माध्यमिक स्तर पर कुल बच्चों का 25.33%. साल 2015-16 में 25.90% और 2016-17 में 39.73% बच्चों ने स्कूल छोड़ा है. हालांकि साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार बिहार में ड्राप आउट की संख्या कम होकर 21.4% पर पहुंची है. लड़कियों में माध्यमिक (9-10) कक्षाओं में ड्राप आउट की संख्या अभी भी चिंताजनक है. साल 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार 22.7% लड़कियां स्कूल छोड़ देती है.
एक अभिभावक जो अपने बच्चियों को लेकर चिंतित थे, और सरकार की लापरवाही से परेशान थे.
जब हमने उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि
यह स्कूल 1979 में बनकर तैयार हुआ था. इंद्र राय जी ने ज़मीन दिया था ताकि यहां बच्चियां पढ़ाई कर सके. गोलघर से लेकर दीघा तक में मात्र 2 ही बालिकाओं के लिए स्कूल हैं. जहां 9वीं, 10वीं, 11वीं और 12वीं तक की पढ़ाई होती है. पिछले 3 हफ्तों से यहां पर पुलिस कैम्प लगा करके पढ़ाई को बाधित कर रही है.
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अभिभावक आगे बताते हैं कि
24 तारीख़ से परीक्षा होनी थी. लेकिन परीक्षा नहीं हुई. एक तरफ़ सरकार कहती है बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ. अब सरकार ही बताये आखिर किस तरीके से बेटी पढ़ाएंगे.
जब उसपर हमने विद्यालय के प्रधानाध्यापक से बात की तो उन्होंने कहा कि
सुबह दीघा पुलिस आई थी, छात्राओं से बात की गई है. बात एक सप्ताह रुकने की थी. लेकिन अभी तक पुलिस आवास ख़त्म नहीं हुआ है, जिसके वजह से बच्चियों की पढ़ाई रुकी हुई है. हालांकि प्रशासन ने जल्द ही इसे खाली करने का आश्वासन दिया है.
सोचने वाली बात ये है की कई हफ्तों से कई छात्राओं की पढ़ाई छूट रही है, आख़िर इसका ज़िम्मेदार कौन है. सरकार ने लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए प्रशासन को तो बुलाया. लेकिन उससे बच्चियों की पढ़ाई पर गहरा असर पड़ा.