15 से 20 साल पुराने वाहनों के परिचालन पर सरकार द्वारा पहले ही रोक लगायी जा चुकी है. बीएस (BS) के विभिन्न मानकों को लेकर सरकार कदम उठाती रहती है. हालांकि फिर भी बिहार में ऐसे वाहनों की संख्या काफी है जो तय मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं. ऐसे में सीएनजी (CNG) या फिर इलेक्ट्रिक वाहन (Electric Vehicle) के परिचालन को बढ़ावा देना क्या बेहतर कदम साबित हो सकता है?
Patna का AQI है चिंताजनक
गुरुवार को परिवहन सचिव और निजी स्कूलों के प्राचार्यों व प्रबंधकों के साथ हुए बैठक में निजी स्कूलों के वाहनों को सीएनजी (CNG) में परिवर्तित करने का निर्णय लिया गया है. परिवहन सचिव पंकज कुमार पाल ने इस बैठक में कहा कि
“पटना शहर को प्रदूषण मुक्त बनाने व सड़क सुरक्षा संबंधी नियमों और मानकों का पालन जरूरी है. क्योंकि शहर की एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) की स्थिति चिंताजनक है.”
परिवहन सचिव पंकज कुमार पाल ने कहा कि
“सभी निजी विद्यालय प्रबंधन को एक महीने में वाहनों में स्पीड गवर्नर लगाने, परमिट, बीमा, पॉल्यूशन सर्टिफिकेट व फिटनेस प्रमाणपत्र रखना होगा, अन्यथा विद्यालय प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकते हैं. साथ ही सभी गाड़ियों को फेज वाइज सीएनजी में परिवर्तित किया जाए.”
डीपीएस स्कूल (Delhi Public School, Patna) के प्रबंधक इस संबंध में कहते हैं
“इस समय सारे वाहनों को सीएनजी (CNG) में तत्काल बदलना संभव नहीं है. हमारे स्कूल में 52 गाड़ियां हैं और सभी डीजल से चलने वाली हैं. इन्हें तत्काल सीएनजी में बदलना संभव नहीं है. इसका पहला कारण कोरोना महामारी है. अभी सारे स्कूल इससे धीरे-धीरे उबर रहे हैं. मीटिंग में हमने इसके लिए दो साल का समय मांगा है.”
डेमोक्रेटिक चरखा से बात करते हुए DPS Patna के प्रबंधक आगे बताते हैं
“दूसरी समस्या सीएनजी फिलिंग की है. स्कूल बस के पास इतना समय नहीं रहता है कि वे घंटों लाइन में खड़े होकर फ्यूल भरवाएं. हमने मीटिंग में सीएनजी फिलिंग स्टेशन पर स्कूल बसों के लिए अलग लाइन आरक्षित करने का प्रस्ताव भी रखा है. वहीं अभी शहर में सीएनजी की आपूर्ति कितनी मात्रा में हो रही है इसकी भी कोई सटीक जानकारी नहीं है.”
सीएनजी स्टेशन की है कमी
पटना में अभी 22 सीएनजी स्टेशन हैं, जिसे जून 2023 तक 32 और मार्च 2024 तक 50 किए जाने का लक्ष्य रखा गया है. साथ ही इलेक्ट्रिक व्हेकिल चार्जिंग स्टेशन की भी पर्याप्त संख्या में उपलब्धता सुनिश्चित किये जाने की योजना है.
पंकज कुमार पाल ने पटना नगर निगम, दानापुर नगर परिषद, खगौल नगर परिषद एवं फुलवारीशरीफ नगर परिषद के क्षेत्र सीमा में 15 साल से अधिक पुराने सभी प्रकार के व्यावसायिक वाहनों के परिचालन पर कड़ाई से रोक लगाने का निर्देश दिया है.
साथ ही स्कूली वाहनों के लिए निर्धारित मानकों का अनुपालन करना अनिवार्य है. स्कूलों में चलने वाली बस के अलावा लीज या भाड़ा वाली बसों को पीछे और सामने स्पष्ट रूप से ऑन स्कूल ड्यूटी लिखना होगा. स्पीड गवर्नर होने से अधिकतम गति सीमा 40 किमी प्रति घंटा रहेगी. सभी वाहनों में प्राथमिक चिकित्सा बॉक्स, वीएलटीडी और पैनिक बटन लगाना भी अनिवार्य है.
शहर छोटे पर प्रदुषण महानगरों से भी ज्यादा
पिछले कई महीनों से बिहार के कई जिलों के नाम सबसे अधिक वायु प्रदूषित शहरों में गिना जा रहा है. यहां तक की बिहार का कटिहार, सिवान, पटना, मुंगेर, बिहारशरीफ और मुजफ्फरपुर जैसे कई छोटे शहर जहां कोई बड़े कल-कारखाने भी मौजूद नहीं हैं, राजधानी दिल्ली से भी ज्यादा प्रदूषित पाए गए हैं.
अब सवाल उठता है की आखिर जब इन शहरों में कोई बड़े उद्योग या कल कारखाने मौजूद नहीं है, तो यहां इतना ज्यादा वायु प्रदुषण क्यों हैं?
बिहार के अधिकांश जिलों में बड़े स्तर पर फोरलेन सड़क के निर्माण समेत कई पुल-पुलियों का निर्माण कार्य चल रहा है. जिसके लिए वाहनों द्वारा बालू-मिट्टी लाने ले जाने के कारण भी शहर में वायु प्रदुषण बढ़ा हुआ है. साथ ही इन शहरों से सटे हुए गांवों में किसानों द्वारा पराली जलाने के कारण भी इन शहरों के हवा की गुणवत्ता ख़राब हो जाती है.
अगर राजधानी पटना को देखा जाए तो, पटना में बड़े स्तर पर मेट्रो निर्माण कार्य, पुल निर्माण कार्य, सड़क निर्माण और भवनों का निर्माण कार्य मानक को ताक पर रखकर किया जा रहा है. साथ ही पटना में सड़क पर गाड़ियों की बेतहाशा बढ़ती संख्या भी प्रदूषण को बढ़ाने का काम कर रही हैं.
परिवहन विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1 जनवरी से 31 जुलाई तक राज्य में 6 लाख 48 हजार 534 गाड़ियों की बिक्री हुई है. इन गाड़ियों में से 5 लाख 57 हजार 998 वाहन पेट्रोल से चलने वाले हैं.
वहीं पेट्रोल व सीएनजी मिश्रित वाले मात्र 3,415 वाहन बिके हैं. वहीं इलेक्ट्रिक से चलने वाली 24 हजार 528 गाड़ियों की बिक्री हुई. जबकि डीजल से चलने वाली 47 हजार 869 और सीएनजी से चलने वाली 8,348 गाड़ियों के बिक्री हुई है.
क्यों पसंद नहीं कर रहें सीएनजी गाड़ियां
इन आंकड़ों से साफ पता चलता है कि लोग आज भी सीएनजी या इलेक्ट्रिक से ज्यादा पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियां पसंद कर रहे हैं. इसके पीछे एक मुख्य कारण है सीएनजी पंप का शहर से दूर होना. पटना में बस चालक और ऑटो चालकों को घंटों पंप तक पहुंचने और सीएनजी भरवाने में लग जाता है. इसी तरह सीएनजी की निजी गाड़ियां चलाने वालों का हाल है.
कार खरीदने का मन बना रहे मुकेश सीएनजी के बजाय पेट्रोल से चलने वाली कार खरीदने वाले हैं. इसका कारण बताते हैं कि
“सीएनजी गाड़ी नहीं खरीदने का मुख्य कारण है कि इसकी फिलिंग के लिए मुझे शहर से दूर जाना होगा. क्योंकि शहर के मेन पॉइंट पर कहीं भी इसकी फिलिंग नहीं होती हैं.”
वहीं सोनू बताते हैं
“सीएनजी फिलिंग में समस्या तो पहला कारण है ही इसके आलावा सीएनजी गाड़िया पेट्रोल गाड़ियों के मुकाबले कमजोर भी होती हैं. कहने के लिए सीएनजी गाड़ियां पेट्रोल गाड़ियों से ज्यादा माईलेज देती है लेकिन हकीकत इससे उलट है. साथ ही सीएनजी गाड़ियां सुरक्षा के लिहाज से भी कमजोर होती हैं. क्योकिं सीएनजी सिलिंडर गाड़ी के डिक्की में ही फिट रहता है. अगर दुर्भाग्यवश सिलिंडर के फटने के कारण कोई दुर्घटना होती है तो कार कंपनी एक्सीडेंट क्लेम को कवर नहीं करती है.”
क्यों हैं सीएनजी गाड़ियों पर जोर
सीएनजी गाड़ियां बेहद किफायती बताई जाती है. इसकी माइलेज पेट्रोल-डीजल कारों से ज्यादा होती है. इससे पैसों की बचत होती है. वहीं यह पर्यावरण संरक्षण के लिए भी लाभदायक है. पेट्रोल-डीजल कार सीएनजी के मुकाबले अधिक प्रदूषण फैलाती हैं, जबकि सीएनजी हानिकारक कार्बन-मोनो-आक्साइड (Carbon Monoxide) व नाइट्रोजन आक्साइड (Nitrogen Oxide) उत्सर्जन को काफी कम करती है. पेट्रोल-डीजल के मुकाबले सीएनजी सस्ती होने के साथ देश में प्रचुर मात्रा में उपलब्ध भी है.
लेकिन सीएनजी भी है खतरनाक
सीएनजी वाहन देश में उतना ही प्रदुषण फैला रहें हैं, जितना डीजल की कार और बस फैला रही थीं. फर्क सिर्फ इतना आया है कि सीएनजी के प्रचलन से कार्बन के बड़े पार्टिकल कम हो गए हैं. लेकिन हम सभी जानतें हैं की जब भी कोई पदार्थ जलता है तो उससे कुछ ना कुछ अपशिष्ट जरूर निकलता है.
ठीक यही सीएनजी फ्यूल के साथ भी है. सीएनजी चलित वाहन प्रति किलोमीटर संचालन में 20 से 66 मिलीग्राम अमोनिया उत्सर्जित करते हैं. अमोनिया ग्रीनहाउस गैस है और इसके कारण ओजोन परत को नुकसान पहुंचता है.
सीएनजी वाहन से अन्य ईंधनों की तुलना में पार्टिकुलेट मैटर 80 फ़ीसदी और हाइड्रो कार्बन 35 फ़ीसदी कम उत्सर्जित होते हैं पर इससे कार्बन मोनोऑक्साइड उत्सर्जन पांच गुना अधिक है. शहरों में सर्दियों में बनने वाले स्मॉग का एक कारण यह गैस भी है. नाइट्रोजन ऑक्साइड में सांस लेने से इसका सीधा असर इंसान के फेंफडों पर पड़ता है.
साल 2021 में ग्रीनपीस इंडिया के द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली सहित देश के कई बड़े शहरों में 2020 की तुलना में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा में इजाफा हुआ है. ग्रीनपीस इंडिया द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार अप्रैल, 2020 की तुलना में अप्रैल, 2021 में दिल्ली में नाइट्रोजन ऑक्साइड की मात्रा 125 फीसदी तक ज्यादा रही थी.
ग्रामीण इलाकों में नाइट्रोजन ऑक्साइड के मौजूदगी का कारण खेतों में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक खाद को दिया जाता है. लेकिन बड़े शहरों में हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड में वृद्धि का मूल कारण ग्रीन फ्यूल कहे जाने वाले सीएनजी इंधन हैं.
इसतरह आमलोगों के लिए यह बहुत उहापोह वाली समस्या है की वो किस वाहन का चुनाव करें. सरकार तो सीएनजी वाहनों के इस्तेमाल पर जोर दे रही है लेकिन वैज्ञानिक तथ्य यह बताते हैं की सीएनजी भी हानिकारक है. तो क्या मानकर चला जाए की एकसमय के बाद सीएनजी वाहनों का विकल्प भी खोजा जाएगा.