पटना यूनिवर्सिटी में नए सत्र से ट्रेडिशनल कोर्स में भी क्रेडिट बेस्ड चॉइस सिस्टम(CBCS) लागू किया जा रहा है. जिससे पटना यूनिवर्सिटी ट्रेडिशनल कोर्स के फ़ीस जैसे- बीए, बीएससी और बीकॉम के छात्रों को सेमेस्टर पद्धति सहित कई बदलाव अपने कोर्स में देखने को मिलेंगे. लेकिन सीबीसीएस लागू होने के कारण ट्रेडिशनल कोर्स के फ़ीस में वृद्धि कर दी गयी है जिससे छात्र परेशान हैं.
पटना यूनिवर्सिटी में ट्रेडिशनल कोर्स की बढ़ी फ़ीस
पश्चिमी चम्पारण से पटना पढ़ने आये छात्र एहतेशाम इब्राहिम फ़ीस वृद्धि से ख़ासे परेशान हैं. एहतेशाम पटना यूनिवर्सिटी से सोशल वर्क में पीजी (स्नातकोत्तर) कर रहे हैं.
एहतेशाम कहते हैं
वोकेशनल कोर्स में सीबीसीएस (CBCS) तो पहले से लागू था. लेकिन इस वर्ष से रेगुलर कोर्स में भी सीबीसीएस लागू किया गया है. केवल उसके नाम पर छात्रों से ज्यादा फ़ीस लिया जा रहा है.
एहतेशाम कहते हैं
2019 में वोकेशनल कोर्स में सीबसीएस लागू किया गया था. जिसके कारण मेरे बायोटेक्नोलॉजी कोर्स की फ़ीस 22 हज़ार से बढ़कर 32 हज़ार हो गयी थी. जो किसी भी समान्य गरीब परिवार से आने वाले छात्र के लिए अचानक से डाला गया एक बोझ था. इसी तरह हर वोकेशनल कोर्स में 10 से 15 हज़ार रूपए की वृद्धि हुई थी. लेकिन इस वर्ष से पारंपरिक कोर्स में भी सीबीसीएस लागू कर दिया गया है. जिस कोर्स की फ़ीस पहले 2500 से तीन हज़ार रूपए सालाना थी, वो बढ़कर अब पांच हज़ार रूपए सालाना हो गयी है.
वहीं छात्राओं को पहले यूजी ट्रेडिशनल कोर्स जैसे बीएससी (B.Sc), बीकॉम (B.Com) या बीए (B.A.) जैसे कोर्स पढ़ने के लिए सालना 170 रूपए लगते हैं.
हालांकि बीच में छात्राओं को यूजी कोर्स की फ़ीस बढाकर तीन हज़ार कर दिया गया था. लेकिन छात्रों के विरोध के बाद इसे वापस 170 कर दिया गया है.
पटना यूनिवर्सिटी में ट्रेडिशनल कोर्स की बढ़ी फ़ीस लेकिन सुविधाओं का है अभाव
विश्वविद्यालय में स्थायी शिक्षकों सहित कई असुविधाएं आज भी जस की तस हैं. छात्रों का कहना है कि नया सेशन शुरू होने के बाद भी कॉलेज की लाइब्रेरी में सिलेबस के अनुरूप किताबे नहीं रहती हैं. साथ ही कॉलेज में कैंटीन, साफ़ पानी, शौचालय और कॉमन रूम की सुविधा अच्छी नहीं है.
एहतेशाम बताते हैं
छात्रों से पार्किंग और मैगजीन के लिए पैसे लिए जा रहे हैं जबकि पार्किंग की व्यवस्था बहुत ख़राब है. मैगजीन भी सभी छात्रों को नहीं मिल पाती है. हमें खुद के पैसों से मैगज़ीन ख़रीदना पड़ता है. सेंट्रल लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए वोकेशनल कोर्स के छात्रों को सालाना 500 रूपए और रेगुलर कोर्स के छात्रों को 350 रूपए सालाना देने होते हैं. लेकिन अब इसके लिए भी हमें हर सेमेस्टर में पैसे देने होंगे.
एहतेशाम आगे कहते हैं
पहले छात्रों से छात्रसंघ फंड के लिए सालाना 100 रूपए लिए जाते थे लेकिन अब इसके लिए छात्रों से हर सेमेस्टर में 100 रुपए लिए जा रहे हैं यानी तीन साल में अब 600 रूपए देने पड़ेंगे.
छात्र नेता ओसामा खुर्शीद बताते हैं
सीबीसीएस आने से फ़ीस सीधे दोगुनी हो गयी है. पहले जो फ़ीस साल में एक बार लिया जाता था. वही फ़ीस अब छात्रों को सेमेस्टर में ही देना पड़ रहा है. साथ ही उन सुविधाओं के लिए भी चार्ज लिया जा रहा है जो कॉलेज और विश्वविद्यालय में दिए भी नहीं जा रहे हैं.
ओसामा खुर्शीद आगे कहते हैं
वैसे छात्र जो बिहार में रहकर ही पढ़ना चाहते हैं. उनकी पहली प्राथमिकता पटना विश्वविद्यालय ही है. शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के लिए बदलाव करना अच्छी बात है लेकिन उसके लिए गरीब मेधावी छात्रों पर आर्थिक दबाव डालना गलत है. हम कॉलेज प्रशासन और राज्य सरकार से छात्र हित में काम करने की अपेक्षा रखते हैं.
ट्रेडिशनल कोर्स से पहले बीएड कोर्स का फ़ीस भी अचानक 1800 से बढ़ाकर डेढ़ लाख कर दिया गया था. फ़ीस वृद्धि के विरोध में छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किए जिसके बाद फ़ीस घटाकर 25 हज़ार रूपए कर दिया गया.
फ़ीस नहीं सीबीसीएस लागू किया गया है: DSW अनिल कुमार
पटना विश्वविद्यालय के डीएसडब्लू अनिल कुमार फीस वृद्धि की बात से इंकार करते हैं. उनका कहना है
इसे फ़ीस वृद्धि नहीं कहा जा सकता क्योंकि सीबीसीएस एक प्रोग्राम है जो बिहार सरकार और चांसलर से स्वीकृत होने के बाद कॉलेज में लागू किया गया है. जब सीबीसीएस प्रोग्राम डेवेलप किया गया तो उसमें कोर्स का सिलेबस, एग्जाम स्ट्रक्चर और फ़ीस स्ट्रक्चर सभी को डेवलप किया गया. सीबीसीएस लागू होने के बाद से अब ट्रेडिशनल कोर्स में भी सेमेस्टर एग्जाम लागू हो गया है. सेमेस्टर में भी मिड टर्म और इंटरनल की परीक्षा होती है. पहले जहां एक बार परीक्षा होती थी वहां अब छह बार परीक्षा हो रही है. छात्रों को पहले के अनुपात में अब क्लासेज भी ज़्यादा दी जा रही है.
DSW अनिल कुमार कहते हैं
वार्षिक (Annual System) परीक्षा और सेमेस्टर परीक्षा होने के बाद भी छात्रों को 800 के करीब ही ज़्यादा फ़ीस देनी पड़ेगी. वहीं पार्किंग और लाइब्रेरी फ़ीस तो छात्रों से पहले भी लिया जा रहा था. दरअसल, जब नैक की टीम बिहार आई और उसने बिहार के विश्वविद्यालयों में फ़ीस स्ट्रक्चर देखा तो उसने सुझाव दिया कि आप छात्रों से जो फ़ीस ले रहे हैं वो किस मद में ले रहे है उसे भी क्लियर लिखे. इस कारण से अब छात्रों को पता है उनसे किस मद में फ़ीस लिया जा रहा है.
वहीं अनिल कुमार कहते हैं कि
यूनियन को कहा गया है कि उन्हें फ़ीस से सम्बंधित जो भी दिक्कत है वो हमें लिखकर दें. हम उसपर विचार के लिए आगे सरकार को भेजेंगे.